दुनागिरी मंदिर, पांडुखोली और कुमाऊँ की सबसे ऊँची चोटी भतकोट

इस लेख में है दुनागिरि, पाण्डुखोली और कुमाऊँ की सबसे ऊँची non हिमालयन पहाड़ी भतकोट से जुडी जानकारी।

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में – द्वाराहाट से लगभग 14 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है दुनागिरि मंदिर। मंदिर के लिये सड़क से लगभग 1 किलोमीटर का पैदल दूरी तय करके पंहुचा जा सकता है। सड़क के किनारे वाहनों की पार्किंग, कुछ रेस्टोरेंट, दैनिक आवश्यकताओं से जुड़े सामान से सम्बंधित दुकानो के साथ साथ प्रसाद इत्यादि के प्रतिष्ठान आप को सड़क से लगे हुए स्थित हैं।

यहाँ रानीखेत से द्वाराहाट होते हुए पहुँचा जा सकता है। इस स्थान से आगे 5 किलोमीटर की दूरी पर कुकुछीना नामक स्थान है और कुकुछीना से लगभग 4 किलोमीटर का ट्रेक करके सुप्रसिद्धि पाण्डुखोली आश्रम पंहुचा जा सकता जहाँ स्वर्गीय बाबा बलवंतगिरि जी ने एक आश्रम की स्थापना की थी।पाण्डुखोली – महावतार बाबा और लाहिड़ी महाशय जैसे उच्च आध्यात्मिक संतो की तपस्थली रही है । इसके बारे में विस्तृत जानकारी इस लेख में आगे है।

दुनागिरि मंदिर – उत्तराखंड और कुमाऊँ के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है – दुनागिरि मंदिर के के लिए सीढ़ियों से चढ़कर उप्पर जाना होता है और सीढ़ियों जहाँ शुरू होती हैं – वही प्रवेश द्वार से लगा हुआ हनुमान जी का मंदिर।

दुनागिरि मंदिर के दर्शन हेतु आने वाले श्रद्धालु सीढ़ियां चढ़ कर दुनागिरि मंदिर तक पहुंचते हैं।मंदिर तक ले जाने वाला मार्ग बहुत सुन्दर हैं, पक्की सीढिया, छोटे -२ स्टेप्स, जिसमे लगभग हर उम्र के लोग चल सकें, मार्ग के दोनों ओर दीवार और दीवार के उप्पर लोहे की रैलिंग लगी हैं, जिससे वन्य प्राणी और मनुष्य एक – दूसरे की सीमा को न लांघ सके। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 365 सीढ़ियां चढ़नी होती है | पूरा रास्ता टीन की छत से ढका हुआ है, जिससे श्रद्धालुओं का धुप और बारिश से बचाव होता है ।

मार्ग में कुछ कुछ दुरी पर आराम करने के लिए कुछ बेंचेस लगी हुई हैं। पूरे मार्ग में हजारों घंटे लगे हुए है, जो दिखने में लगभग एक जैसे है। मां दुनागिरि के मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 800 मीटर की दुरी पैदल चल के तय करनी होती हैं। लगभग दो तिहाई रास्ता तय करने के बाद, भंडारा स्थल मिलता है, जहा दूनागिरी मंदिर ट्रस्ट द्वारा प्रतिदिन भण्डारे का आयोजन किया जाता है। सुबह 9 बजे से लेकर दोपहर 3 बजे तक। जिसमें यहाँ आने वाले श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं।
दूनागिरी मंदिर रखरखाव का कार्य ‘आदि शाक्ति मां दूनागिरी मंदिर ट्रस्ट’ द्वारा किया जाता है।
प्रसादा आदि ग्रहण करने के बाद सभी श्रद्धालु अपने बर्तन, स्वंय धोते हैं एवं डोनेशन बॉक्स में अपनी श्रद्धानुसार भेट चढ़ाते है – जिससे भंडारे का कार्यक्रम अनवरत चलता रहता है।

इस जगह पर भी प्रसाद – पुष्प खरीदने हेतु कई दुकाने हैं। मंदिर से ठीक नीचे एक ओर गेट हैं – श्रद्धालओं की सुविधा के लिए यहाँ से मंदिर दर्शन के लिए जाने वाले और दर्शन कर वापस लौट के आने वालों के लिए दो अलग मार्ग बने हैं। देवी के मंदिर के पहले भगवान हनुमान, श्री गणेश व भैरव जी के मंदिर है। बायीं और लगभग 50 फ़ीट ऊंचा झूला जिसे पार्वती झूला के नाम से जाना जाता है।

मुख्य मदिर के निकट और मंदिर से पहले – बायीं और हैं गोलू देवता का मंदिर।
यहीं से दायी ओर – और भी मदिर है, और उप्पर सामने है मुख्य मंदिर। मुख्य मंदिर से नीचे मार्ग के दोनों और माँ की सवारी शेर।

अब जानते हैं मदिर से जुड़े कुछ तथ्यों को – दूनागिरी मुख्य मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। प्राकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिण्डियां माता भगवती के रूप में पूजी जाती हैं। दूनागिरी मंदिर में अखंड ज्योति का जलना इस मंदिर की एक विशेषता है।

दूनागिरी माता का वैष्णवी रूप में होने से इस स्थान में किसी भी प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती है। यहाँ तक की मंदिर में भेट स्वरुप अर्पित किया गया नारियल भी मंदिर परिसर में नहीं फोड़ा जाता है।

पुराणों, उपनिषदों और इतिहासविदों ने दूनागिरि की पहचान माया-महेश्वर व दुर्गा कालिका के रूप में की है। द्वाराहाट में स्थापित इस मंदिर में वैसे तो पूरे वर्ष भक्तों की कतार लगी रहती है, मगर नवरात्र में यहां मां दुर्गा के भक्त दूर-दराज से बड़ी संख्या में आशीर्वाद लेने आते हैं।

इतिहास/ मान्यताएं
इस स्थल के बारे में एक प्रचलित कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब लक्ष्मण को मेघनाद के द्वारा शक्ति लगी थी, तब सुशेन वेद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था।हनुमान जी आकाश मार्ग से पूरा द्रोणाचंल पर्वत उठा कर ले जा रहे तो इस स्थान पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरी का मंदिर का निर्माण कराया गया।
एक अन्य मान्यता के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य ने इस पर्वत पर तपस्या की थी, जिस कारण उन्हीं के नाम पर इसका नाम द्रोणागिरी पड़ा और बाद में स्थानीय बोली के अनुसार दूनागिरी हो गया।

एक अन्य जानकारी के अनुसार, कत्यूरी शासक सुधारदेव ने सन 1318 ईसवी में मन्दिर का पुनर्निर्माण कर यहाँ माँ दुर्गा की मूर्ति स्थापित की। यहाँ स्थित शिव व पार्वती की मूर्तियां उसी समय से यहाँ प्रतिस्थापित है।

दूनागिरि माता का भव्य मंदिर बांज, देवदार, अकेसिया और सुरई समेत विभिन्न प्रजाति के पेड़ों के झुरमुटों के मध्य स्थित है, जिससे यहां आकर मन को शांति की अनुभूति होती है। इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की जीवनदायिनी जड़ी, बूटियां भी मिलती हैं |

दूनागिरी मंदिर के बारे में यह भी माना जाता है कि यहाँ जो भी महिला अखंड दीपक जलाकर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है, उसे देवी वैष्णवी, संतान का सुख प्रदान करती है। यहाँ से हिमालय की विशाल पर्वत शृंखला को यहाँ से देखा जा सकता है।

यहाँ कैसे पहुँचे!
द्वाराहाट और दुनागिरि पहुंचने के लिये निकटतम हवाई अड्डा 164 किलोमीटर दूर पंतनगर में है। निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम 130 किलोमीटर की दूरी हैं, जहाँ से बस अथवा टैक्सी द्वारा यहाँ पंहुचा जा सकता हैं।
एक हवाई अड्डा चौखुटिया जो कि यहाँ से मात्र 25-30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित में प्रस्तावित हैं।

दुनागिरि से 14 किलोमीटर दूर द्वाराहाट और रानीखेत में रात्रि विश्राम लिए कई होटल्स उपलब्ध हैं, जिनकी जानकारी इंटरनेट में सर्च कर ली जा सकती हैं।

इस लेख के आरम्भ में हमने जिक्र किया था – दुनागिरि के निकट ही स्थित है प्रसिद्द पाण्डुखोली आश्रम का, जहाँ लगभग ४ किलोमीटर का ट्रेक करके पंहुचा जा सकता है, पाण्डुखोली का शाब्दिक अर्थ है ‘पांडू’ जो पांडव और ‘खोली’ का आशय हैं – आश्रय स्थल अथवा घर, अर्थात पांडवो का ‘आश्रय’।

पाण्डुखोली जाने का रमणीय मार्ग – बाज, बुरांश आदि के वृक्षों से घिरा है. कहते हैं पांडवो ने यहाँ अज्ञात वास के दौरान अपना कुछ समय व्यतीत किया था। पाण्डुखोली आश्रम से लगा सुन्दर बुग्यालनुमा घास का मैदान, इसे भीम गद्दा नाम से जाना है, आश्रम के प्रवेश द्वार, से प्रवेश करते ही मन शांति और आध्यात्मिक वातावरण से प्रफुल्लित हो उठता है, आश्रम में रात्रि विश्राम के लिए आपको आश्रम के नियम आदि का पालन करना होता है, किसी प्रकार के नशे आदि का यहाँ कड़ा प्रतिबन्ध है।

स्वामी योगानंद महाराज ने अपनी आत्मकथा “ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ योगी” में बताया है कि उनके गुरु श्री युक्तेश्वर गिरि महाराज के गुरु श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय जी ने यहीं अपने गुरु महावतार बाबा जी से क्रिया योग की दीक्षा ली थी।

कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास पांडवखोली के जंगलों में व्यतीत किये। यही नहीं पांडवों की तलाश में कौरव सेना भी पहुंची इस लिए इसे कौरवछीना भी कहा जाता था। लेकिन अब कुकुछीना के नाम से जाना जाता है।
माना जाता हैं – हमारे युग के सर्वकालिक महान गुरु – महावतार बाबा बीते पांच हजार साल से भी अधिक समय से यहां साधनारत हैं, उन्होंने दुनागिरि मंदिर में भी ध्यान किया था, उनका ध्यान स्थल दुनागिरि मंदिर भी देखा जा सकता हैं।

लाहिड़ी महाशय उच्च कोटि के साधक थे, पांडुखोली पहुंच गए, जहां महावतार बाबा ने उन्हें क्रिया योग की दीक्षा दी थी। लाहड़ी महाशय का रानीखेत और वहां से पाण्डुखोली पहुंचने और महावतार बाबा से साक्षात्कार का प्रसंग बेहद दिलचस्प हैं, जिसे आप ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ ए योगी जिसका हिंदी रूपांतरण – ‘योगी कथामृत’ में पढ़ सकते हैं, इन पुस्तकों का लिंक नीचे दिए हैं

योगी कथामृत (Hindi) : https://amzn.to/2Q0M8nz
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इस क्षेत्र की पहाड़ियों में अनेको – अनदेखी गुफाएं हैं, संतो को मनुष्यों की आवाजाही से, दूर शांत जगह ध्यान और समाधी के लिए पसंद होती हैं, यहाँ ‘भीम गद्दा कहे जाने वाले मैदान पर पर पैर मारने पर – खोखले बर्तन की भांति ध्वनि महसूस की जा सकती हैं। यह जगह प्रसिद्ध है क्योंकि इस पहाड़ी में महामुनी बाबाजी महात्मा बलवंत गिरि जी महाराज की गुफा है। प्रत्येक दिसंबर माह में बाबा की पुण्यतिथि पर विशाल भंडारा होता है।

इस स्थान से आस पास की जगहों के आनेक लुभावने दृश्य देखे जा सकते हैं |

यही से कुमाऊँ की सबसे ऊँची non- himalaya चोटि भरतकोट जिसकी समुद्र तल से उचाई लगभग दस हजार फ़ीट है, स्थित है। ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग में श्रीराम के अनुज भरत ने भी इस क्षेत्र में (भरतकोट या भटकोट) तपस्या की थी। कहा जाता है कि श्री राम के वनवाश के समय महात्मा भरत ने इसी स्थान पर तपस्या कि थी। रामायण के युद्ध के समय जब लक्ष्मण मेघनाथ के शक्ति प्रहार से मूर्छित हो गए थे तब वीरवार हनुमान उनके प्राणों कि रक्षा के लिए संजीवनी बुटी लेने हिमालय पर्वत गए।

जब वो वापिस रहे थे तो भरत को लगा के कोई राक्षस आक्रमण के लिए आकाश मार्ग से रहा है। उन्होंने ये अनुमान लगा कर हनुमान जी पर बाण चला दिया। महावीर हनुमान मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़े और मूर्छित अवस्था में भी “राम” नाम का स्मरण करने लगे। यह देख कर भरत जी को बहुत ग्लानि हुयी कि उन्होंने एक राम भक्त पर बाण चला दिया। भरत ने हनुमान जी से क्षमा याचना कि और उनसे पूरा वृतांत सुना।

गगास नदी जो सोमेश्वर में बहती है, उसका उद्गम स्थल भी यही है। ट्रैकिंग के शौक रखने वाले पर्यटक यहाँ भी विजिट करते हैं. जिसके लिए उन्हें अपने साथ जरुरी सामान – जिसमे हैं – फ़ूड, टेंट्स, गरम कपडे, रेनकोट, स्लीपिंग बैग मुख्य है। ट्रेक में जाने से जाने से पूर्व क्या तैयारियाँ करें और क्या सामान ले जायें के जानकारी देता वीडियो देंखे

भारतकोट या भटकोट के ट्रेक के लिए स्थानीय गाइड, अनुभवी अथवा प्रशिक्षित ट्रेकर के साथ ही जाना सही रहता हैं।

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पूर्णागिरी देवी का मंदिर टनकपुर

वैसे तो इस पवित्र शक्ति पीठ के दर्शन हेतु श्रद्धालु वर्ष भर आते रहते हैं। परन्तु चैत्र मास की नवरात्रियों से जून तक श्रद्धालुओं की अपार भीड दर्शनार्थ आती है। चैत्र मास की नवरात्रियों से दो माह तक यहॉ पर मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें श्रद्धालुओं के लिए सभी प्रकार की सुविधायें उपलब्ध कराई जाती हैं।

गैरसैंण – उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी

गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में मान्यता मिलना, उत्तराखंड के अपेक्षाकृत कम विकसित – पर्वतीय भूभाग के विकास के लिए अच्छी शुरुआत हो सकती हैं। आइये देखें कैसा हैं – गैरसैण।

ग्वालदम बधानगढ़ी Trek

इस विडियो टूर मे हैं – उत्तराखंड के एक छोटे से हिल स्टेशन ग्वालदम से बधानगढ़ी मंदिर का ट्रेक, जानेंगे यहाँ कैसे जाते हैं।

देवरिया ताल ट्रेक

उखीमठ – चोपता मार्ग में उखीमठ से लगभग 4 किलोमीटर, और चोपता से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तिराहा, और इस तिराहे से 4 किलोमीटर दूर  हैं – सारी विलेज।

बागेश्वर – कुमाऊं – उत्तराखंड की तीर्थ नगरी

भगवान शिव के एक रूप – बागनाथ जी का स्थान  – बागेश्वर – उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ की धार्मिक नगरी और तीर्थस्थल के रूप में सुप्रसिद्ध हैं। बागेश्वर भ्रमण के साथ भगवान श्री बागनाथ जी के दर्शन करें – इस वीडियो टूर द्वारा।

Nainital City Guide

नैनीताल मे प्रवेश करते ही पहले टॅक्सी स्टैंड हैं, और इसके बाद नज़र आता है – रोडवेज़ का बस स्टॉप। जो तल्लीताल मे हैं, यहाँ कुछ होटेल्स भी हैं।

इसके बाद नैनीताल शहर में फोर व्हीलेर्स के प्रवेश के लिए के lake ब्रिज का शुल्क तल्लीताल चेक पॉइंट मे लिया जाता हैं, 2 व्हीलेर्स के लिए कोई चार्ज नहीं लिया जाता।

कार अथवा टॅक्सी से शहर में जाने के लिए टोल मूल्य देना होता है, जो मॉल रोड से एक बार गुजरने के लिए ही मान्य है। टोल शुल्क स्क्रीन मे देखा जा सकता हैं।




यहाँ से नैनीताल की मॉल रोड शुरू होती हैं जो मल्लीताल तक जाती हैं।, टोल ब्रिज के बाद माल रोड के 2 रोड्स मे बट जाती हैं, जो 2 अलग अलग elevavation में है – लोअर मॉल रोड, और अपर मॉल रोड, लोअर मॉल रोड, जो lake की ओर हैं, से wahan तल्लीताल से मल्लीताल की ओर और upar मॉल रोड से मल्लीताल से तल्लीताल की ओर आते हैं।

ये दोनों रोड्स, मल्लीताल में, फिर आपस मे मिल जाती हैं।



Nainital main टुरिस्ट सीज़न में upar मॉल रोड शाम 6 बजे के 8 बजे तक माल रोड मे वाहनों की आवाजाही बंद रहती हैं, इस रोड मे चलते हुए, एक तरफ झील और दूसरी ओर नैनीताल के होटेल्स, restaurants और शौरूम्स हैं। इस समय रोशनी से नहाएँ क्बुसूरत नैनीताल शहर, और ताल के किनारे मॉल रोड में घूमना – ये वो बात हैं, जो सैलानीयों की मधुर स्मृतियों मे हमेशा के लिए बस जाती।

नैनीताल, उत्तराखंड का एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल, जहां हर किसी के लिये कुछ न कुछ अवश्य है। मॉल रोड में चलते हुए झील का बेजोड़ दृश्य, हिमालय दर्शन करने वालों के लिए उपयुक्त स्थान होने के साथ साथ, आप यहाँ ब्रिटिश कालीन कुछ निर्माण भी देख सकते हैं। चिड़ियाघर में अनेकों पक्षियों के साथ साथ बाघ, भालू, तेदवें, काकड़, घुरड़ आदि कई पशु देख सकते हैं। खान पान के लिए यहाँ हर taste के लोगों के लिए कुछ न कुछ जरूर है। नैना देवी मंदिर, हनुमानगढी मंदिर, Rope-way, Parking, Snow view Point, Mall Road, सहित कई अन्य आकर्षणों को जानने के लिए देखें ये विडियो –

रानीखेत से भवाली

रानीखेत से भवाली रोड यात्रा

हल्द्वानी की कहानी। Haldwani – explore the city

देखें video

हल्द्वानी शहर, जो कि नैनीताल जिले मे स्थित हैं और उत्तराखंड के बड़े शहरों मे से एक हैं।

शहर को ‘हल्द्वानी’ नाम कैसे मिला? –  यहाँ हल्दू वृक्षों का घना वन हुआ करता था, और  कितने ही  पशुओ और पंछियो   का  प्रवास, अब तो वह जंगल बस  पुरानी यादो में, बुर्जुगों की बातो में, और इतिहास की किताबो में  हैं। हलदु के वन से इस स्थान को नाम मिला – हल्द्वानी। 

हल्दू  वृक्ष का बोटेनिकल नाम  हैं  – Haldina Cordifolia

कालाढूंगी चौराहे शहर का केंद्र माना जाता है। यहाँ चार मुख्य सड़कें मिलती हैं, जो शहर को देश के अन्य हिस्सों से कनेक्ट करती हैं, ये रोड्स हैं नैनीताल रोड –, बरेली रोड, कालाढूंगी रोड और रामपुर रोड। और ये सब रोड्स मिलती हैं, कालाढूंगी रोड चौराहे, जिसे कालाढूंगी चौराहे भी कहते हैं, ये जगह शहर का केंद्र मानी जाती है। 

कालाढूंगी चौराहे के  पास यहाँ की सबसे बड़ी बाजार हैं, इस बाजार  कई गालिया हैं, कपडे, ज्वेल्लेरी, बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक्स और लभभग हर तरह दुकानें और हर तरह की मार्किट में दुकानों तक पहुंचने के लिए  गलियानुमा रास्ते कार/ ऑटोमोबाइल कम्पनीज के ज्यादातर शोरूम बरैली रोड और रामपुर रोड में हैं।

नैनीताल रोड – बड़े शोरूम्स, माल्स आदि के लिए जानी जाती हैं। कालाढूंगी रोड  मे सबसे घनी आबादी हैं। इसके अलावा इन रोड्स के बीच मे कई कोननेकटिंग रोड्स हैं, जो लेकर जाती हैं – शहर के मोहल्लों और गलियों मे।

पहले कैसा था हल्द्वानी, कैसे विकसित होता गया, कौन सी मुख्य बाजार और मुख्य सड़कें है?  ब्रिटिश हुकूमत से से पहले कौन शासन करता था यहाँ, और हल्द्वानी में मुगल क्यों नहीं कर सकें अधिकार, सहित देखिये शहर हल्द्वानी की दिलचस्प कहानी।




जानिये हल्द्वानी शहर को #Haldwani (Distt: #Nainital), Gateway To Kumaon #Uttarakhand, A short film on Haldwani, Know a few interesting facts, history, geography, tour the city. The story of a city.
Main Roads in Haldwani as Kaladhungi Road, Rampur Road, Bareilly Road, Nainital Road.
Main Crossing – Kaladhungi Chauraha, Educational institution in Haldwani, Hospitals, streets.
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विस्तार से जानने के लिए देखें video

Omkareshwar Temple, Ukhimath | ओम्कारेश्वर मंदिर, उखीमठ

इस वर्ष में 9 नवंबर को केदारनाथ के कपाट बंद होने के बाद ओम्कारेश्वर मंदिर उखीमठ में भगवान श्री केदारनाथ और मद महेश्वर की पूजा होगी, यहाँ पुरे वर्ष भगवान श्री ओम्कारेश्वर की पूजा होती हैं।

उखीमठ भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक तीर्थ स्थल है। यह 1311 मीटर की ऊंचाई पर है और रुद्रप्रयाग से 41 किलोमीटर की दूरी पर है। सर्दियों के दौरान, केदारनाथ मंदिर और मध्यमहेश्वर से मूर्तियों (डोली) को उखीमठ रखा जाता है और छह माह तक उखीमठ में इनकी पूजा की जाती है। उषा (बाणासुर की बेटी) और अनिरुद्ध (भगवान कृष्ण के पौत्र) की शादी यहीं सम्पन की गयी थी। उषा के नाम से इस जगह का नाम उखीमठ पड़ा। सर्दियों के दौरान भगवान केदारनाथ की उत्सव डोली को इस जगह के लिए केदारनाथ से लाया जाता है। भगवान केदारनाथ की शीतकालीन पूजा और पूरे साल भगवान ओंकारेश्वर की पूजा यहीं की जाती है। यह मंदिर उखीमठ में स्थित है।





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i) https://youtu.be/oi68UwM5W8k (गोपेश्वर महादेव मंदिर)
ii) https://youtu.be/as0JQ0PoPLM (श्री केदारनाथ मंदिर)
iii) https://youtu.be/5w70xP_74-k (श्री बद्रीनाथ मंदिर)
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Ukhimath (also written Okhimath) is a small town and a Hindu pilgrimage site in Rudraprayag district, Uttarakhand, India. It is situated at an elevation of 1311 meters and at a distance of 41 km from Rudraprayag. During the winters, the idols from Kedarnath temple, and Madhyamaheshwar are brought to Ukhimath and worshipped here for six months. Ukhimath can be used as center destination for visiting different places located nearby, i.e. Madhmaheshwar (Second kedar), Tungnath (Third kedar) and Deoria Tal (a natural fresh water lake) and many other picturesque places. According to Hindu Mythology, Wedding of Usha (Daughter of Vanasur) and Anirudh (Grandson of Lord Krishna) was solemnized here. By name of Usha this place was named as Ushamath, now known as Ukhimath. King Mandhata penances Lord Shiva here. During winter the Utsav Doli of Lord Kedarnath is brought from Kedarnath to this place. Winter puja of Lord Kedarnath and year-round puja of Lord Omkareshwar is performed here. This temple is situated at Ukhimath which is at a distance of 41 km from Rudraprayag.




Ukhimath has many other ancient temples dedicated to several Gods and Goddesses such as Usha, Shiva, Aniruddha, Parvati, and Mandhata.[3] Situated on the road connecting Guptkashi with Gopeshwar, the holy town is mainly inhabited by the head priests of Kedarnath known as Rawals.

Ukhimath has an All India Radio Relay station known as Akashvani Ukhimath. It broadcasts on FM frequencies

विभिन्न पर्यटक स्थलों और यात्राओं से जुडी की जानकारी। और ये जानकारी आपको सहायता करेगी इन स्थानों में जाने से पहले क्या तैयारियां की जाएँ, कैसे पंहुचा जाए, और वहां के मुख्य आकर्षण। इसलिए अलग अलग स्थानों से जुडी रोचक जानकारियों से अपडेट रहने हेतु हो सके तो PopcornTrip youtube चैनल subscribe करें। चैनल पर विजिट करने के लिए धन्यवाद।





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