पंचकूला स्थित माता मनसा देवी मंदिर

भारत देश के हरियाणा राज्य में पंचकूला स्थित माता मनसा देवी, प्रसिद्ध सिद्ध पीठ श्रद्धालुओं के लिए हर इच्छा पूरी करने वाला प्रसिद्ध मंदिर है।  

माता मनसा देवी के मुख्य मदिंर का निर्माण, मनीमाजरा के राजा गोपाल सिंह ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर, आज से लगभग दो सौ वर्ष पूर्व सन् 1811-1815 की अवधि में किया था। यह मंदिर हरियाणा राज्य के ज़िला पंचकुला की शिवालिक पर्वत श्रृखला की तलहटी में मणि माजरा के पास समीप विलासपुर गाँव की सीमा पर १०० एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। 

मुख्य मदिंर में माता की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के आगे तीन पिंडियां हैं, जिन्हें मां का रूप ही माना जाता है। ये तीनों पिंडियां महालक्ष्मी, मनसा देवी तथा सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती हैं। मंदिर की परिक्रमा पर गणेश, हनुमान, द्वारपाल, वैष्णवी देवी, भैरव की मूर्तियां एवं शिवलिंग स्थापित है। हरियाणा सरकार ने मनसा देवी परिसर को 9 सितम्बर 1991 को माता मनसा देवी पूजा स्थल बोर्ड का गठन करके इसे अपने हाथ में ले लिया था।

देखें वीडियो

मंदिर खुलने का समय
गर्मियों में समय: सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक
शीतकालीन समय: सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक

आरती का समय
सुबह: 5 बजे / 6 बजे
शाम: 6 बजे / 7 बजे

भोग का समय

रोजाना सुबह 11 बजे से 11:15 बजे तक

मनसा देवी का मंदिर पहले मां सती के मंदिर के नाम से जाना जाता था। जिसका निर्माण – स्थानीय लोगों ने करवाया था, एक कथा के अनुसार शिवालिक की पहाड़ियों में प्रतिदिन एक गाय आती थी और पहाड़ी की चोटी पर लगे तीन पिंडों पर दूध चढ़ाती थी। तीन पिंड यहाँ शिलाएँ वहाँ प्रकट हुई थी। जिन्हें श्री सती माता के मस्तक के रूप में जाना गया। 

सन् 1811 से 1815 के बीच  मनीमाजरा के राजा गोपालदास ने अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर मंदिर को भय्व रूप दिया।

चंडीगढ़ – शिमला हाईवे में चंडीगढ़ से लगभग 12 किमी की दूरी पर है – माँ मनसा देवी का मंदिर। मंदिर के आस पास कुछ धर्मशाला, गेस्ट हाउस और होटल भी है। पॉपकॉर्न ट्रिप में चंडीगढ़ और शिमला पर भी वीडियो बना चुके है, जिनके वीडियो भी आप देख सकते है।

पार्किंग से कुछ ही सीढ़ियाँ चढ़कर मंदिर पहुँच सकते है। मंदिर मार्ग में  प्रसाद व भेंट सामग्री की दुकाने है।  श्रद्धालु/ दर्शनाथी क़तार में लग कर मंदिर तक पहुँच सकते है। मंदिर जाते हुए दिखता है – श्री मनसा नाथ जी का मंदिर।  सीढ़ियों चढ़कर मुख्य मंदिर का प्रवेश द्वार पार कर पहुचते है – माँ मनसा देवी के मुख्य मंदिर, जहां माँ मनसा देवी की आकर्षक मूर्ति प्रतिष्ठित है।मूर्ति के आगे तीन पिंडियां हैं, जिन्हें मां का रूप ही माना जाता है। ये तीनों पिंडियां महालक्ष्मी, मनसा देवी तथा सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती हैं। मंदिर की परिक्रमा पर गणेश, हनुमान, द्वारपाल, वैष्णवी देवी, भैरव की मूर्तियां एवं शिवलिंग स्थापित है।

संपूर्ण मंदिर परिसर के फ़र्श पर टाइल्स और पत्थर बिछाया हुआ है। और पैदल मार्ग tin shed से कवर्ड है। जिससे लाइन में खड़े श्रद्धालुओं का अलग अलग मौसम में सीधी धूप, और बारिश से  बचाव हो सके। मंदिर खुलने, बंद होने व भोग आरती का समय स्क्रीन में देख सकते हैं, हो जाड़ो और गर्मियों में अलग अलग रहता है। मुख्य मंदिर से आगे बढ़ने पर यहाँ पूजा, हवन आदि मांगलिक कार्य करवाने के लिए अलग स्थान भी बने हुए हैं, और कुछ और भी मंदिर स्थित हैं जैसे पटियाला मंदिर, माता सती मंदिर, बाबा भैरों नाथ मंदिर  और भंडारा कक्ष। 

मुख्य मंदिर से 200 मीटर की दूरी पर पटियाला के तत्कालीन महाराजा करम सिंह द्वारा एक और मंदिर का निर्माण कराया गया जिसे, पटियाला मंदिर कहते है।

पटियाला मंदिर में, शाम के समय अलग अलग रंगों की लाइट्स की व्यवस्था मंदिर भवन को आकर्षित बनाती हैं। मंदिर से पूर्व गार्डन में लगे पेड़ों पर लिपटी हुई लाइट्स की लड़ियाँ। शाम को मंदिर परिसर में लाइट्स की व्यवस्था इस मंदिर की भव्यता में और भी वृद्धि करती हैं। नवरात्रि और पर्वों के समय मंदिर में माँ के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते  है।  यहाँ पूरे साल कभी भी पहुँचा जा सकता है। 

मंदिर में एक लक्ष्मी भवन धर्मशाला है जिसमें 22 कमरे और शयनगृह हैं जो तीर्थयात्रियों के लिए नाममात्र शुल्क पर उपलब्ध हैं। कम्बल भी नि:शुल्क उपलब्ध कराये जाते हैं। इसके अलावा बोर्ड के पास लाजवंती गेस्ट हाउस नामक एक और धर्मशाला है जिसमें 7 कमरे हैं, इन कमरों में आधुनिक सुविधाएं हैं जैसे संलग्न शौचालय जहां गीजर प्रदान किए गए हैं और कमरे हवा से ठंडे हैं, प्रत्येक कमरे में गद्दे तकिए के साथ डबल बेड प्रदान किया गया है। चादरें और कंबल, एक मेज, दो कुर्सियाँ।

निकटवर्ती अन्य आकर्षण 

शिव मंदिर, सकेतड़ी
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर श्री माता मनसा देवी मंदिर, पंचकुला से 5 किमी दूर स्थित है।

गुरुद्वारा नाडा साहिब, पंचकुला
गुरुद्वारा नाडा साहिब श्री माता मनसा देवी मंदिर, पंचकुला से 8 किमी दूर स्थित है। 

श्री काली माता मंदिर, कालका
प्राचीन श्री काली माता मंदिर, कालका श्री माता मनसा देवी मंदिर, पंचकुला से 18.7 किमी दूर स्थित है

श्री चंडी माता मंदिर, चंडी मंदिर
श्री चंडी माता मंदिर, चंडी मंदिर श्री माता मनसा देवी मंदिर, पंचकुला से 3.1 किमी दूर स्थित है।

यादविंदर गार्डन, पिंजौर
यादविंदर गार्डन, पिंजौर  श्री माता मनसा देवी मंदिर, पंचकुला से 12.3 किमी दूर स्थित है।

सुखना झील, चंडीगढ़
सुखना झील चंडीगढ़  श्री माता मनसा देवी मंदिर, पंचकुला से 10.1 किमी दूर स्थित है। 

पिथौरागढ़ से धारचूला की यात्रा

इस लेख में है –  पिथौरागढ़ से धारचूला की सड़क यात्रा का विवरण। धारचूला जहां पंचाचुली, आदि कैलाश और ओम पर्वत आदि यात्राओं के लिए मेडिकल जाँच होती है, और इनर लाइन पास बनता है। धारचूला से ही नेपाल विजिट भी किया जा सकता है, एक सेतु को पार कर।

देखिए अल्मोडा से पिथौरागढ़ का सफ़र

1,627 मीटर (5,338 फीट) की ऊंचाई पर स्थित पिथौरागढ़ से 940 मीटर (3084 फीट) ऊंचाई वाले धारचूला के लिए उतरने लगे। जैसे-जैसे हम आगे बड़े मौसम थोड़ा गर्म होने लगा, ऊंची पहाड़ियों से घिरी हुई घाटी नुमा स्थान की सड़कों के बीच से। पिथौरागढ़ से धारचूला तक यह यात्रा 92 किलोमीटर की थी, जिसे तय करने में सामान्यतः तीन से चार घंटों समय लगता है। 

पिथौरागढ़ शहर के केंद्र से लगभग 5-6 किलोमीटर बाद, बायीं ओर, एक सड़क थल होते हुए बागेश्वर और मुनस्यारी के लिए जाती मिली, हम दाहिनी ओर मुड़ गए जो हमें धारचूला के की और ले जाती थी।

आह, घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर यात्रा करने का आश्चर्य! यद्यपि पहाड़ी सड़कों में यात्रा थकान पैदा कर सकती है, लेकिन प्रकृति के बदलते दृश्य एकरसता से बोर नहीं होते देते।

जैसे ही हमने अपनी आरामदायक सीट की खिड़की की सीट से बाहर देखा, विचारों की एक लय हमारे दिमाग में नाचने लगी। प्रकृति के साथ रहने पर तृप्ति का भाव होता है, जैसे सब कुछ पास है, और प्रकृति से दूर होने पर भौतिक जीवन के जितना पास जायें और कितना कुछ भी हो लेकिन फिर भी दिखता है सिर्फ़ अभाव। 

पहाड़ी सड़कों में मार्ग घुमावदार तो होते हैं, लेकिन प्राकृतिक दृश्य हर कुछ किलोमीटर के बाद बदलते रहते है, और जिससे एकरसता या बोरियत नहीं होती,  प्राकृतिक दृश्यों के आकर्षण, सफ़र की थकावट को भी कम करते रहते है। 

हरे-भरे हरियाली के बीच से झांकते अनोखे पहाड़ी आवास, हमें उनकी दीवारों के भीतर रहने वाले जीवन और कहानियों की कल्पना करने के लिए प्रेरित करते हैं। 

अपने परिवेश की अलौकिक सुंदरता में खोए हुए, हमने पहाड़ियों के मध्य बनाने वाली आभासी आकृतियों की खोज करनी शुरू दी, जैसे कि प्रकृति स्वयं हमारी कल्पनाओं के साथ लुका-छिपी का एक आकर्षक खेल खेल रही हो। 

लेकिन जैसे ही हम इन मनमौजी सोच में डूबने लगे, एक आती हुई गाड़ी के तेज हॉर्न ने हमें हमारी ख़यालों से झकझोर दिया। चौंककर, हम वर्तमान में लौट आए, लेकिन फिर प्रकृति का नया रंग देखने को मिला जिसने हमारा ध्यान आकर्षित किया। प्रकृति, कितनी अद्भुत क्रिएटर है – जो नए मनोरम रूप दिखाने के साथ, मौसम और रंग बदल कर हर पल ऐसा दृश्यों का ऐसा संयोग प्रस्तुत करती है, जैसा पहले किसी ने न देखा हो, और शायद दोबारा भी नहीं देख पायेगा।

हमारी यात्रा हमें कनालीछीना क़स्बे तक ले आयी, पहाड़ियों के बीच ये एक खुला स्थान है, पिथौरागढ से लगभग 25 किलोमीटर दूर। यहां, व्यस्त बाजार और एक सुविधाजनक आवासीय क्षेत्र के बीच, यह छोटा खूबसूरत स्थान बहुत खुला होने के कारण यहाँ रहने के लिए भी सुविधाजनक है, यहाँ का आवासीय क्षेत्र देखकर ऐसा लगता है। कनालीछीना पिथौरगढ़ जनपद की एक तहसील भी है। कनाली छीना पिथौरागढ़ के बाद पिथौरागढ़ धारचूला रोड में सबसे बड़ी बाज़ार। 

आबादी क्षेत्र समाप्त होने के बाद कनालीछीना से 1 किलोमीटर बाद, बायीं और सड़क है देवलथल के लिए जो कि यहाँ से १६ किलोमीटर है। कुछ किलोमीटर सड़कों में चलने के बाद ओगला मार्केट ने जल्द ही अपने जीवंत माहौल से आकर्षित किया। 

मार्ग में है जौलजीबी, जो कि पिथौरागढ़धारचूला मार्ग का एक प्रमुख पड़ाव। सड़क से नीचे की और काली नदी और गोरी नदी का संगम, उस पार अपने पड़ोसी देश –  नेपाल का भू भाग, सुंदरता पूरे परिदृश्य में बिखरी हुई है। 

जौलजीबी की बाज़ार और टैक्सी स्टैंड। मार्केट के एक सिरे पर पोस्ट ऑफिस। मार्केट से कुछ आगे बढ़ने पर सड़क से नीचे दायी  ओर जौलजीबी  का राजकीय इंटर कॉलेज का गेट। 

जौलजीबी छोटा सा खूबसूरत एवं सुंदर क़स्बा, इस स्थान का सांस्कृतिक और व्यापारिक महत्व भी है, यहाँ काली और गोरी नदियों का संगम है। यहाँ हर वर्ष नवम्बर में भारत नेपाल के बीच बड़ा व्यापारिक मेला भी आयोजित होता है, जिसमे बड़ी संख्या में देश विदेश से लोग पहुँचते है।

इस रोड से आगे बढ़ते हुए, बलुवाकोट पहुँच गये। प्राकृतिक सौंदर्य की पृष्ठभूमि में यह हलचल भरा बाजार, यहाँ अस्पताल, पुलिस स्टेशन, स्कूल, डिग्री कॉलेज और बैंक जैसी सुविधाएँ है। सड़क के समानांतर नीचे की ओर काली नदी बहती है, और नदी के दूसरी और अपनी सुंदरता से नेपाल भी मन मोहता रहता है।  

पहाड़ों पर हम सड़क बना सकते है, लेकिन बारिश को कई बार यह आता, और ऊपर से कुछ मलबा या बोल्डर सड़क में आकर अवरोध के रूप में आ जाते है, और इस सड़क में मलवा आने की वजह से कुछ देर मार्ग अवरुद्ध रहा, रास्ता खोलने के लिए काम करते श्रमिकों और जेसीबी/ मैकिनिकल मशीनों के सहारे मार्ग को पुनः सुचारू कर दिया। धूल का ग़ुबार सड़क पर चलते काम की वजह से 

कुछ आगे जाने पर, फिर से सड़क में ट्रैफिक में ट्रैफ़िक रोका गया था, लेकिन यहाँ सड़क में अवरोध नहीं नयी सड़क का काम चल रहा था, बधाई हो, जिन्हें भी इससे लाभ मिले।

फिर मिला कालिका। और उसके बाद निंगालपानी।

धारचूला से लगभग 1 किलोमीटर पहले बायीं जाती सड़क – तवाघाट – लिपुलेख रोड, जिससे नारायण आश्रम, पंचाचुली, आदि

कैलाश, ओम पर्वत आदि स्थानों के लिए जा सकते है। लेकिन उससे पहले इनर लाइन परमिट होना ज़रूरी है, जिसे धारचूला से बनाया जा सकता है। वैसे यह ऑनलाइन भी बन जाता है, प्रक्रिया को जानने के साथ, इस ट्रिप में कितना खर्च होता है, किस समय यात्रा करनी होती है, क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए, क्या चुनौतियाँ आ सकती है, सहित आदि कैलाश की यात्रा करेंगे अगले भाग में।

हम बढ़ रहें है नेपाल मार्ग में, अपने गेस्ट हाउस में चेक इन करने। हमारी बुकिंग KMVN के धारचूला स्थित गेस्ट हाउस में थी, जो की नेपाल रोड में स्थित काली नदी के तट के समीप स्थित है। हम KMVN के आदि कैलाश यात्रा 16वे ग्रुप के यात्रियों में शामिल थे।

 

गेस्ट हाउस से नेपाल का भूभाग भी दिखता है, यहाँ से नेपाल का हिस्सा जो दार्चुला नाम से जाना जाता है, पुल पार कर पहुँचा जा सकता है, धारचूला और दार्चुला पर लेख फिर कभी। अभी चेक इन के बाद लंच और फिर मेडिकल और इनर लाइन पास के लिए प्रक्रिया होनी है। कैसे होती है, जानेंगे अगले भाग में। अब रोमांच और अध्यात्म के अनोखे अनुभव को हमारे साथ जानने के लिए रहिए तैयार। लेख पढ़ने और इस सीरीज का हिस्सा बने रहने के लिए धन्यवाद, अगर आपने पिछले दो भाग भी देखे है, तो कमेंट में बताइएगा।

धन्यवाद।

अल्मोडा से चितई व जागेश्वर मंदिर दर्शन करते हुए पिथौरागढ़ का यात्रा वृतांत

अल्मोडा उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक, ऐतिहासिक मायने से महत्वपूर्ण नगर और उत्तराखंड का सीमांत जनपद पिथौरागढ़ जो अपने विविध महत्वपूर्ण पर्यावरणीय संपन्नता समेटे हुए है। पिथौरागढ़ से कई उच्च हिमालयी क्षेत्रों और ग्लेशियर्स के ट्रैक्स किए जा सकते हैं, river sports के लिए अनुकूलता लिए नगर। इस लेख में है, इन दोनों नगरों की सड़क यात्रा की जानकारी।

पिछले लेख में, हल्द्वानी जो कि कुमाऊँ का प्रवेश द्वार के नाम से जाना जाता है, जहां से कई पहाड़ी क्षेत्रों जैसे अल्मोडा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, रानीखेत, मुक्तेश्वर, बिनसर सहित अन्य कई स्थानों के लिए मार्ग है, और अल्मोडा जो उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्मृति चिन्ह समेटे हुए है, पहुँचने का यात्रा वृतांत था, अब आगे।

अल्मोडा नगर के धारानीला स्टेशन से पिथौरागढ़ को नियमित जाने वाली बस और टैक्सी आदि मिलती है।

अल्मोड़ा के नाम से जुड़ी है बाल मिठाई, चाकलेट और सिंगौड़ी को अलमोड़ा की मुख्य बाज़ार के अलावा यहाँ से ख़रीद सकते है, इनको बनानें में मिल्क प्रॉडक्ट्स का उपयोग होता है, तो इनके बेस्ट टेस्ट के लिए इन्हें 2-3 दिन के अंदर कंज्यूम करना ठीक रहता है।

धारानौला में रात्रि विश्राम करना हो, यहाँ कुछ होटल भी मिल जाएँगे, यहाँ ख़ान पान के लिए भी कई रेस्टोरेंट है।

चलने फिरना पसंद करते हो, तो  धारानीला से पटाल बाज़ार तक 15 – 20 मिनट में चढाई में ट्रेक कर पहुँच सकते है। और पटाल बाज़ार –  अल्मोडा की मुख्य बाज़ार है, लगभग 2 किमी लंबी बाज़ार में टहलते – टहलते शॉपिंग का भी आनद ले सकते है और अल्मोड़ा की ऐतिहासिक भवनों को देखते हुए, कुमाऊँ के इतिहास को अपने सामने देख कर महसूस कर सकते हैं।

अल्मोड़ा से पिथौरागढ़ 114 किलोमीटर है। धारानौला का बाज़ार का क्षेत्र ख़त्म होने के तुरंत बाद एक तिराहा दिखता है – सिकुड़ा बैंड, यहाँ से यू टर्न लेती दाहिनी ओर को जाती सड़क से जलना, लमगड़ा और उससे आगे जा सकते हैं, और सीधे आगे जाती सड़क से पिथौरागढ़ की ओर, यहाँ से सड़क हल्की चढ़ाई लिए है। इसी सड़क में मिलता – एक सुंदर व्यू पॉइंट है – फ़लसिमा, जहां से देख सकते है – अल्मोडा का विहंगम दृश्य और दूर तक फैली घाटियाँ। फ़लसीमा बेंड को पार करने के बाद दिखता है एक कलात्मक भवन – जो जाना जाता है –  उदयशंकर नाट्य अकैडमी के नाम से।

इस रोड पर आगे चलते हुए NTD तिराहे – बाद सड़क से ऊपर, बायीं ओर है, अल्मोड़ा  का जू, यहाँ तेंदुए, मृग सहित वन्य जीव देखे जा सकती हैं।

अल्मोड़ा  नगर से लगभग 8 -9  किलोमीटर की दूरी पर स्थित है –  स्थानीय निवासियों के धार्मिक आस्था का पवित्र स्थल चितई, जो अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध गोलू देव को समर्पित है।

अलमोड़ा – पिथौरागढ़ रोड से लगा, मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार, मंदिर के बाहर सड़क के किनारे प्रसाद, पुष्प, घंटियाँ अन्य सामग्री ख़रीदी जा सकती है। चितई में जलपान के साथ ठहरने के लिए कुछ गेस्ट हाउस दिखते है।

चितई मदिर स्थित गोलू देवता न्याय के देवता के रूप में जाने जाते हैं, लोग यहाँ अपनी प्रार्थनापत्रोंचिठ्ठियों में लिख, यहाँ टाँगते हैं, जो बड़ी बड़ी संख्या में देखी जा सकती है, मान्यता है किपवित्र और सच्चे हृदय से लिखी गई प्रार्थनाएँ यहाँ अवश्य स्वीकार होती हैं, श्रदालु यहाँ घंटियाँ, चुनरी भी अर्पित करते हैं।

इस मंदिर के चारों और अनगिनत घंटियाँ लगी दिखती हैं। कई विशेष अवसरों पर भक्तों द्वारा यहाँ भंडारा भी आयोजित कराया जाता है। मंदिर से कुछ मीटर आगे जाकरवाहनों के लिए बड़ा पार्किंग स्थल है। 

चितई से आगे सड़क ढलान लिए है, चितई से आगे 6 किमी बाद हैं –  छोटा सुंदर क़स्बा पेटशाल, पेटशाल से लगभग 1 किलोमीटर पर लखुउडयार शैलाश्रय prehistoric cave। यहाँ गुफानुमा चट्टान में की गई चित्रकारी आदि काल के मानवों द्वारा की गई है। लखुउडयार पर बना डेडिकेटेड वीडियो YouTube.com/PopcornTrip में देख सकते हैं।

अलमोड़ा – पिथौरागढ़ मार्ग में अगला स्थान मिलता है  – बाड़ेछीना। समुद्र तल से 1,415 मीटर की उचाई पर स्थित यह आस पास के गाँव के लिए बाज़ार हैं। बाड़ेछीना में बुनियादी ज़रूरत का सभी समान उपलब्ध हो जाता है,  यह एक उपजाऊ क्षेत्र है यहाँ ग्रामीणों द्वारा खेती होते देखी जा सकती है।

बाड़ेछीना के बाद मिलने वाले एक तिराहे से बायीं से धौलछीना, शेराघाट, बेरीनाग, चौकोड़ी, मुन्स्यारी आदि स्थानों को जा सकते है, और सीधी जाती सड़क है पिथौरागढ़ के लिए।

बाड़ेछीना से 11 किलोमीटर की दूरी पर पनुवानौला, यह घनी आबादी वाला क्षेत्र हैं, यहाँ काफी दुकानें, रैस्टौरेंटस आदि हैं।

पनुवानौला से लगभग दो किलोमीटर आगे हैआरतोला। यहाँ तिराहे से बायीं और जाती सड़क से 3 किलोमीटर की दूरी पर है भगवान शिव को समर्पित प्रांचीन जागेश्वर धाम और सीधा जाती सड़क पिथौरागढ़ के लिए है।

जागेश्वर मंदिर से समीप एक म्यूजियम भी है, जहां मंदिर से जुड़ी मूर्तियाँ और मंदिर से जुड़े विभिन्न प्रतीक रखे गये हैं।

जागेश्वर कई छोटे बड़े मंदिरों, जो कि  नौवीं से ग्याहरहवीं सदी के बीच, कत्यूरी शासन काल में निर्माण हुआ था का समूह है। इनमें से कुछ हैं महामृत्युंजय मंदिर, श्री जागेश्वर ज्योतिर्लिंग। यहाँ मंदिरों में काफी बारीक, उत्कृष्ट और आकर्षक नक्काशी की गई है। ये मंदिर प्रागण में एक ताल, जिसमें ब्रहम्मकमल के फूल दिखते हैं।

 

जागेश्वर मंदिर समूह के साथ ही यहाँ जागेश्वर मंदिर से समीप ही कुबेर देवता और चण्डिका देवी को समर्पित मंदिर भी स्थित हैं।  जागेश्वर आने वाले श्रद्धालु यहां भी अवश्य आते हैं। कुबेर भगवान धन और संपदा के प्रदानकर्ता माने गए हैं।

जागेश्वर मंदिर में कुछ समय व्यतीत कर, लंच जागेश्वर के कुमाऊँ मण्डल विकास निगम के गेस्ट हाउस में लिया।  आदि कैलाश यात्रा की यह यात्रा हम KMVN के १६ वे ग्रुप के साथ कर रहे है,  वापस लौटे अपना सफ़र जारी रखने के लिए। और मार्ग में फिर वही दण्डेश्वर मंदिर जिसे हमने आते समय भी देखा था। श्रद्धालु यहाँ भी रुक इस मंदिर के दर्शन करते हैं।

जागेश्वर मंदिर के दर्शन कर, उसी मार्ग से ३ किलोमीटर वापस आरतोला लौट अलमोड़ा पिथौरागढ़ मार्ग में फिर से अपना सफ़र जारी रखा। यहीं से एक सड़क के बायीं ओर झाकरसैम मंदिर, इस पर बना वीडियो भी PopcornTrip में देख सकते है।

आरतोला  से ४-५ किलोमीटर पर स्थित ये छोटा सा गाँव हैं गरुड़ाबांज। यहाँ सड़क के बाँज और अन्य चौड़ी पत्तियों वाले वृक्षों इस स्थान को अब तक के सफ़र में दिखने वाले वन क्षेत्रों से अलग बनाते हैं।

मार्ग में आने वाले कुछ स्टेशन है ध्याड़ी, बसौलीख़ान, पनार आदि। पनार में रामगंगा नामक नदी बहती है। पनार – पिथौरागढ़ मार्ग में पिथौरागढ़ से लगभग १३ किलोमीटर पूर्व गुरना माता का मंदिर है। यहाँ इस मार्ग से आने जाने वाले वाहन यहाँ माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने गंतव्य की और बड़ते हैं।

पिथौरागढ़ उत्तराखण्ड का सबसे लंबा अंतर्रास्त्रीय सीमा वाला ज़िला है, जिसकी सीमाएँ नेपाल और तिब्बत जो अब चीन का हिस्सा है, से लगी है।

देखें इस पर बना वीडियो 

आपको यह यात्रा सीरीज कैसी लग रही है, कमेंट करके बताइएगा।

वैष्णो देवी धाम दर्शन

जय माँ वैष्णो देवी 

 देश के  सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण तीर्थों में से एक वैष्णो देवी मंदिर, जिसे भवन नाम से भी जाना जाता है – जहां माँ वैष्णो देवी विराजती है। इस भवन में स्थित एक गुफा मंदिर में माँ वैष्णो देवी के दर्शन होते है। मंदिर मे देवी के पिंडी स्वरूप में देवी महाकाली, महा सरस्वती और महा लक्ष्मी रूप विराजती हैं। यहाँ प्रतिवर्ष लाखों –  करोड़ों श्रद्धालु, माँ के दर्शनों के लिए पहुँचते है।
Trek to Vaishno Devi 

प्रतिदिन सूर्योदय से कुछ पहले बजे माँ की वैदिक मंत्रोच्चार के साथ आरती आरंभ होती है, जो लगभग एक – डेढ़ घंटे तक चलती है, जिसमे मंत्रौचार, प्रार्थना सहित प्रवचन शामिल होते है, और सूर्यास्त के बाद भी इसी तरह आरती होती है, 

इस पूजा में भाग लेने के लिए माँ वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की ऑफिसियल वेबसाइट maavaishnodevi.org से बुकिंग करवायी जा सकती हैइस वेबसाइट या मोबाइल एप से  माँ वैष्णो देवी मार्ग में रात्रि विश्राम, हेलीकॉप्टर सहित अन्य कई सेवाओं के लिए बुकिंग करायी जा सकती है। 

प्रातः और सांध्य आरती के समय को छोड़कर, माँ वैष्णो देवी के दर्शन, दर्शनों के लिए बनी – क़तार में खड़े होकर अपनी बारी पर दिन – रात किसी भी समय किये जा सकते है। वैष्णो देवी मंदिर में होने वाली आरती को श्रदालू घर बैठे प्रतिदिन लाइव भी देख सकते है। कैसे इस पर आगे बात करेंगे। 

पॉपकॉर्न ट्रिप के माँ वैष्णो देवी मंदिर यात्रा से जुड़ी जानकारी देते लेख और video को देखने के लिए आपका स्वागत है।

कैसे पहुँचे!

मां वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन करने के लिए शेष भारत से कटरा पहुँचना होता है। और कटरा तक सीधी ट्रेन ना हो तो जम्मू पहुँच सकते है। – जम्मू तवी रेलवे स्टेशन से कटरा की दूरी लगभग ५० किलोमीटर है। जम्मू – जम्मू और कश्मीर की शीतकालीन राजधानी है और भारत के सभी प्रमुख शहरों से हवाई, सड़क और रेल मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

By Air आने के लिए भी कटरा का निकटतम हवाई अड्डा जम्मू हवाई अड्डा है, जिसे आधिकारिक तौर पर जम्मू सिविल एन्क्लेव के रूप में जाना जाता है। इण्डियन एयरलाइंस और जेट एयरवेज़ की फ्लाइट प्रतिदिन जम्मू से ऑपरेट होती है। नयी दिल्ली से जम्मू की हवाई यात्रा में लगभग 80 मिनट का समय फ्लाइंग टाइम है।

बस के साथ कैब और टैक्सी की नियमित सेवाएं हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन से आसानी से उपलब्ध हैं। 

भारत के लगभग हर बड़े शहर से जम्मू और कटरा के लिए कई ट्रेनें उपलब्ध हैं। कटरा तक ट्रेन ना मिले तो –  जम्मू तवी रेलवे स्टेशन आकर यहाँ से आगे  टैक्सी अथवा नियमित रूप से चलने वाली बस से कटरा पहुँच सकते है। 

जम्मू तवी रेलवे स्टेशन से कटरा तक की दूरी लगभग 51 किमी है। इसके अलावा देश पर से सड़क मार्ग से आसानी से जम्मू और कटरा पहुचा जा सकता है। कटरा समुद्र तल से 2500 फीट की ऊंचाई पर है और माता वैष्णो देवी भवन समुद्र तल से 5200 फीट की ऊंचाई पर है। मार्च से मध्य जुलाई तक तीर्थयात्रियों की सर्वाधिक संख्या होती है।

कहाँ रुकें!

कटरा में हर बजट के होटल/ गेस्ट हाउस मिल जाते है। यहाँ वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड के कुछ गेस्ट हाउस कटरा से वैष्णों देवी के मार्ग में कई जगह है, उन्हें भी एडवांस में बुकिंग करायी जा सकती है। हमने अपनी यात्रा में कटरा में के गेस्ट हाउस में रूम लेकर यात्रा शुरू की। कटरा से बाणगंगा तक नियमित अंतराल पर ऑटो रिक्शा मिलते रहते हैं।

पैदल मार्ग

वैष्णो देवी मंदिर के पैदल मार्ग में यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व पंजीकरण कराना आवश्यक होता है, इसके लिए कटरा में स्थित जम्मू और कश्मीर के पर्यटक रिसेप्शन काउंटर, जो कटरा बस स्टेशन के समीप है, सुबह पाँच बजे से रात्रि 10 बजे यात्री अपना पहचान पत्र दिखा कर यात्रा हेतु आरएफआईडी कार्ड ले सकते है, RFID कटरा हैलीपैड, माता वैष्णो देवी रेलवे स्टेशन कटरा में भी बनवायें जा सकते है।

आरएफआईडी लेने के बाद  कटरा से दो किमी दूर बाणगंगा स्थित चेक पोस्ट तक ऑटो से पहुँच कर, कटरा से बाणगंगा चेक पोस्ट के लिए ऑटो आसानी से उपलब्ध हो जाते है,  यहाँ से आगे से माँ वैष्णो देवी के लिए ट्रेक शुरू होता है। जो लगभग बारह  किलोमीटर का है। 

बाणगंगा चेक पोस्ट पर आरएफआईडी radio frequency identification दिखाने के बाद ही ट्रेक की अनुमति मिलती है।  RFID को पूरी यात्रा में अपने साथ रखना अनिवार्य है, और यात्रा संपन्न होने के बाद बाणगंगा के प्रवेश/ निकास द्वार में जमा करना भी ज़रूरी है। 

RFID बनाने के बाद यात्री को 6 घंटे के अंदर बाणगंगा के चेक एंट्री द्वारा पर पहुँचना होता है। 

नदी का नाम बाण और गंगा से मिलकर बना है। बाण का अर्थ है तीर – arrow और गंगा पवित्र नदी गंगा के लिए है। ऐसा माना जाता है कि माता वैष्णो देवी ने पवित्र गुफा की ओर जाते समय अपने तरकश से एक तीर से इस जलाशय का निर्माण किया था, इसलिए इसका नाम बाणगंगा पड़ा। मान्यता है – कि उन्होंने इसमें डुबकी लगाई थी और अपने बाल भी यहीं धोए थे। कई तीर्थयात्री यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व इसमें स्नान भी करते हैं। नदी के किनारे कुछ कुछ घाट भी दिखते हैं। वैष्णो देवी के मुख्य मंदिर, जिसे भवन कहा जाता है, की पैदल यात्रा आरंभ से ही  दुकाने, चाय नाश्ते, भोजन आदि के प्रतिष्ठान मिलने लगते है, मार्ग में जगह जगह वाटर प्युरीफ़ायर, डस्ट बिन्स, टॉयलेट भी बने है। मार्ग में 24 घंटे वैष्णो देवी दर्शन हेतु जाते और दर्शन कर आते, श्रदालुओं का आवागमन होता रहता है। अलग अलग सीजन के अनुसार इनकी संख्या कम या ज़्यादा हो सकती है। 

दुकानों में मिलने वाली बांस की स्टिक्स जो बीस- तीस रुपये में मिल जाती हैं, इनके साथ ट्रेक करने में सहायता मिलती है।   यहीं से घोड़े, पालकी आदि भी उपलब्ध हो जाते हैं, जिनके लिए अलग मार्ग है। हेलीकॉप्टर से आना हो, तो वो कटरा हैलीपैड से मिल जाते है, लेकिन उसके लिए एडवांस बुकिंग करानी होती हो तो हेलीकॉप्टर सांझी छत तक जाते है, जहां से माँ वैष्णो देवी का ट्रेक 2.5 kilometer है। 

बाणगंगा से कुछ आगे चलते हुए पहुँचे – माँ के प्रथम चरण पादुका स्थल। ये है वो स्थान जहां माँ के प्रथम चरण पड़े थे, चरण पादुका, जो पुराने मार्ग से जाते हुए नज़र आता है। 

मार्ग में फुट मसाज देती मशीन लगी हुई कई स्टाल्स दिखते हैं, जहां यात्री भवन से लौट कर अपनी पैरों को आराम पहुँचाते दिखते है। हाँ अखरोट और ड्राई फ़्रूट कई दुकानों में भरें मिलते है, आकर्षक क़ीमतों पर, लेकिन इन्हें ख़रीदने से पहले सावधानी बरतना ज़रूरी है, अक्सर दिखने वाले अच्छे लगते है, लेकिन जब लोग घर ले जाते है, तो कई ख़राब क्वालिटी के निकलते है। मार्ग में प्लास्टिक सामग्री, डिस्पोजेबल सामग्री ले जाना प्रतिबंधित है।

पैदल मार्ग ज़्यादातर कवर्ड है, लगातार हल्की चढ़ाई लिए, घुमावदार मार्ग होने के कारण – ट्रैकिंग रूट के बीच -२ में सीढ़ीनुमा शॉर्टकट्स भी है, हर शॉर्टकट में सीढ़ियों की संख्या आरम्भ में ही लिखी गई है। साथ ही ये निर्देश भी –  बुजुर्ग, बीमार व हृदय रोगी सीढ़ियों का प्रयोग करने से बचना चाहिए। 

तीर्थ यात्रियों को ले जाने का साथ – भवन तक विभिन्न आवश्यक सामग्री भी ले जाते हैं –  खच्चर।    

सफ़र हमने रात में शुरू किया, पर्याप्त रोशनी के साथ ट्रैकिंग रूट अच्छे बने है, मार्ग में रात्रि में कटरा का जगमगाता दृश्य काफ़ी लुभावना दिखता है। मार्ग में आवश्यकता पड़ने पर स्वास्थ्य सहायता, पूरे मार्ग में प्रकाश व्यवस्था का प्रबंधन, माँ वैष्णो देवी shrine बोर्ड द्वारा किया जाता है। 

जम्मू में फ़िलहाल पोस्ट पेड मोबाइल फ़ोन ही काम करते है, और अगर आपके पास प्री पेड सिम है तो जितनी देर जम्मू राज्य में है – फ़ोन बातचीत करने के काम नहीं आएगा, इसलिए इस ट्रैकिंग रूट में अगर फ़ैमिली या ग्रुप में है तो कुछ निश्चित स्थान तय कर कर सकते है, अगर आगे – पीछे हो गये हो गये तो कहाँ पर एक दूसरे का इंतज़ार करेंगे। कटरा से भवन के बीच कई पॉइंट्स हैं –  बाणगंगा, चरण पादुका, इंद्रप्रस्थ, अर्धकुवांरी, गर्भजून, हिमकोटी, सांझी छत और भैरो मंदिर शामिल है कटरा मार्ग में कई दुकानों में किराए पर सिम देने वाले पोम्पलेट भी लगे दिखते है। 

कटरा से लगभग 6 किलोमीटर चल कर है, अर्धक्वारी। यह इस तीर्थयात्रा का मिडल पॉइंट है। अर्धकुवारी में माता का मंदिर और गुफा है। गुफा में प्रवेश के लिए यहाँ भवन के लिए जाने से पूर्व अपना नंबर लगवा सकते है, और वापसी तक नंबर आ जाये तो गुफा में प्रवेश किया जा सकता है। अर्धकुवारी में रात के समय कमरों के साथ प्रांग्रण में विश्राम करते तीर्थयात्री भी दिखते है, कंबल अर्धुकुवारी में बने काउंटर से लिए जा सकते है। यहाँ कुछ रूम्स भी है, उपलब्ध होने पर आवश्यक शुल्क देकर उन्मे भी ठहरा जा सकता है।  

अर्धकवारी से भवन के लिए दो मार्ग हैं, बायीं ओर हिमकोटी होते हुए (लगभग 5.5 kilometer), दायी ओर, जो अर्धकुवारी में कंबल जारी करने वाले काउंटर से लगा हुआ है, और चढ़ाई लिए हुए, थोड़ा लंबा  है। (लगभग 6.5 kilometer) है।

अर्धकुवारी

वर्णित कथा के अनुसार – बाणगंगा और चरण पादुका में विश्राम करने के बाद, माता अद्कुवारी में रुकी, यहाँ एक छोटे से गर्भ के आकार की गुफा में उन्होंने नौ माह तक ध्यान किया। चूंकि वैष्णवी ने नौ महीने की अवधि के लिए गर्भ के आकार की गुफा में आध्यात्मिक अनुशासन का पालन किया था, इसलिए यह गुफा गर्भ जून के नाम से लोकप्रिय हो गई। 

जब उनके ध्यान के दौरान उन्हें पता चला कि भैरों नाथ उनकी खोज में गुफा तक पहुंचे हैं, तो उन्होंने अपने त्रिशूल के साथ दूसरे छोर पर एक निकास बनाया और पवित्र गुफा की ओर बढ़ गईं। चूंकि गुफा बहुत संकरी है, इसलिए एक समय में केवल एक ही व्यक्ति इससे गुजर सकता है। 

 

Ardkuwari

Ardhkuwari

अर्धकवारी और कटरा के बीच में हिमकोटी होते हुए ५-६ किलोमीटर के मार्ग में –  इलेक्ट्रिक वाहनों से भी जा सकते है, लेकिन सीमित इलेक्ट्रिक वाहन चलने के कारण, अपनी सीट बुक कराने के बाद देर तक वाहन का इंतज़ार करना पड़ सकता है। पूरे यात्रा मार्ग में जगह जगह पर आवश्यक announcements और मधुर भजन प्रसारित किए जाते हैं। 

 

vaishno devi

vaishno devi गेट नंबर 3 से सामान्य श्रेणी के दर्शनार्थियों का प्रवेश होता है। 
गेट नंबर 3 के पास स्थित काउंटर से आप अपने किसी साथी जो आपसे यात्रा में बिछड़ गया हो, की सूचना प्रसारित करवा सकते हैं। जिसकी घोषणा यहाँ से लगभग 100 मीटर के दायरे में लगे विभिन्न माइक्स के ज़रिए की जाती है। 

माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की विभिन्न सुविधाओं की जानकारी  ऐप “Mata Vaishnodevi App” अथवा वेबसाइट  के द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है। मार्ग में जगह जगह पर यात्रियों के बैठने के लिए बेंचेज, पीने के पानी के लिए वाटर टैंक व आवश्यक निर्देश देते हुए बोर्ड्स दिखते रहते हैं।  कहीं कहीं पर चट्टान की ओर से पानी भी टपकता दिखता है। जहां पर तेज गति से सँभलते हुए चले, ऐसे निर्देश दिये बोर्ड भी दिखते हैं, क्योंकि इन स्थानों में पानी के साथ मिट्टी कंकड़ आदि भी गिरने की संभावना रहती है।

लॉकर रूम के आसपास प्रसाद सामग्री की दुकानें, खाने पीने के लिए स्थान पूरे रास्ते मिलते रहते है, और लॉकर रूम  से कुछ आगे बढ़ कर है, नीचे बायीं ओर को यहाँ से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भैरो घाटी जाने के  rope-way के लिए एंट्री गेट, भैरो घाटी जाने के लिए ट्रेक भी किया सकता है। 

वैष्णो देवी मुख्य मंदिर के नीचे एक प्राचीन शिव गुफा भी स्थित है। वैष्णोदेवी के दर्शन करने की बाद श्रद्धालुगण इस गुफा के भी दर्शन करते हैं। यहाँ पहुँचने के लिए कुछ सीढ़ियाँ उतरनी होती हैं। यहाँ प्राकृतिक श्रोत से निरंतर जल बहता रहता है। 

वैष्णो देवी मंदिर का इतिहास 

अधिकांश प्रांचीन तीर्थों की तरह, यह जानकारी नहीं मिलती कि –  वास्तव में यह पवित्र तीर्थ की तीर्थयात्रा कब शुरू हुई। पवित्र गुफा के एक भूवैज्ञानिक अध्ययन ने इसकी आयु लगभग एक लाख वर्ष होने का संकेत दिया है। वैदिक साहित्य में किसी देवी-देवता की पूजा का कोई संदर्भ नहीं मिलता है, हालांकि चार वेदों में सबसे पुराने ऋग्वेद में त्रिकुट पर्वत का उल्लेख मिलता है।

देवी मां का पहला उल्लेख महाकाव्य महाभारत में मिलता है। जब पांडवों और कौरवों की सेनाएँ कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में खड़ी थीं, तो श्रीकृष्ण की सलाह पर पांडवों के प्रमुख योद्धा अर्जुन; देवी मां का ध्यान किया और जीत का आशीर्वाद मांगा। यह तब है जब अर्जुन देवी माँ को ‘जम्बूकाटक चित्यैषु नित्यं सन्निहितालय’ कहकर संबोधित करते हैं, जिसका अर्थ है ‘आप जो हमेशा जम्बू में पर्वत की ढलान पर मंदिर में निवास करते हैं’ (जंबू का संदर्भ वर्तमान में जम्मू से माना जाता है)।

Vaishno Devi Jammu

Vaishno Devi Jammu

आमतौर पर यह भी माना जाता है कि पांडवों ने सबसे पहले कोल कंडोली और भवन में मंदिरों का निर्माण देवी मां के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता में किया था। एक पहाड़ पर, त्रिकुट पर्वत के ठीक बगल में और पवित्र गुफा के सामने पाँच पत्थर की संरचनाएँ हैं, जिन्हें पाँच पांडवों की चट्टान का प्रतीक माना जाता है।

पवित्र गुफा में एक ऐतिहासिक व्यक्ति की यात्रा का शायद सबसे पुराना संदर्भ गुरु गोबिंद सिंह का है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे पुरमंडल के रास्ते वहां गए थे। पवित्र गुफा तक जाने का पुराना पैदल मार्ग इस प्रसिद्ध तीर्थस्थल से होकर गुजरता था।

कुछ परंपराएं इस मंदिर को सभी शक्तिपीठों में सबसे पवित्र मानती हैं (एक ऐसा स्थान जहां देवी मां, शाश्वत ऊर्जा का निवास है) क्योंकि माता सती की मस्तक यहां गिरा था। कुछ लोग मानते है –  कि उसका दाहिना हाथ यहाँ गिरा था। श्री माता वैष्णो देवीजी की पवित्र गुफा में, एक मानव हाथ के पत्थर के अवशेष मिलते हैं, जिसे वरद हस्त (वह हाथ जो वरदान और आशीर्वाद देता है) के रूप में जाना जाता है।

वैष्णो देवी की पिंडी रूप में दर्शन करने के बाद, हम चले भैरो घाटी को।

भैरो घाटी को चढ़ाई लिए हुए मार्ग के प्रारंभ में दिखते है कुछ रेस्टोरेंट। भैरो घाटी के लिए पालकी, घोड़ा आदि उपलब्ध हो जाते हैं, और अगर आप के साथ छोटे बच्चे हैं, तो उनके लिए ट्रॉली भी अवैलबल हो जाती है। जो समर्थ हैं, उनके लिए सीढ़ियाँ भी हैं, जिनकी संख्या सीढ़ियों के प्रारंभ में ही अंकित है। बीच बीच में ट्रॉली में भैरव घाटी को जाती ट्रॉली, और साथ चलते श्रद्धालु, और दर्शन कर वापस लौटते श्रद्धालु दिखते रहते हैं। 

भैरो मंदिर का प्रवेश द्वार, मंदिर में श्रद्धालु की भीड़ को मैनेज करने के लिए इस तरह से रेलिंग द्वारा rows बनी हुई है, जिससे कम जगह में बिना धक्का- मुक्की के अधिक लोग लाइन में खड़े हो सके। और भैरो देव के मुख्य कक्ष में दर्शन कर श्रद्धालु कृतार्थ हो इस मार्ग से आगे बढ़ बाहर निकलते हैं।

Bhairo Mandir

Bhairo Mandir

कल शाम कटरा में मिली बारिश के बाद आज अच्छी धूप खिली है, जिससे आस पास की घाटियों के साथ वैष्णो देवी माता के मुख्य भवन का बड़ा सुंदर दृश्य दिख रहा है।  

मौसम

मध्य जुलाई से सितंबर – इन महीनों में कटरा में भारी वर्षा होती है, इसलिए अचानक land स्लाईड, सड़क खराब होने से माँ वैष्णो देवी की यात्रा करना मुश्किल हो सकता है।  इस समय कम यात्री होते है, जिससे, जो लोग बजट यात्रा और आराम से दर्शन करना चाहते है, वे ऐसा समय थोड़ा जोखिम लेकर आते है। 

अक्टूबर के महीने में नवरात्रि का त्योहार होने के कारण देश-विदेश से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। 

दिसंबर से जनवरी के मध्य तापमान उप-शून्य स्तर तक पहुँच जाता है, और आप भारी हिमपात का देख सकते हैं। इस मौसम के बावजूद, तीर्थयात्री एक अनोखे रहस्यमय अनुभव के लिए योजना बनाते हैं और मंदिर जाते हैं और यदि आप फोटोग्राफी से प्यार करते हैं, तो आपको इन दिनों अपनी यात्रा को याद नहीं करना चाहिए।

अधिक संख्या में यात्री वर्ष के अंत और शुरुआत में भी आते है, इस समय मार्ग पर बड़ी संख्या में दर्शनार्थी होते है। 

Clothing and accessories

सर्दियों के दौरान भारी ऊनी कपड़े ले जाने की जरूरत होती है। शेष वर्ष के लिए, हल्के ऊनी कपड़ों की आवश्यकता होती है। गर्मियों में भी, जब बेस कैम्प कटरा भी गर्म और उमस से भरा हो, मुख्य तीर्थ क्षेत्र, जिसे भवन के रूप में जाना जाता है, विशेष रूप से रातों में ठंडा रहता है। कंबल निःशुल्क मिल जाते है। यात्रा के लिए कैनवास के जूतों की भी आवश्यकता हो सकती है। फैंसी जूते ट्रैकिंग रूट पर चलना मुश्किल बनाते हैं 

Souvenirs

Souvenirs

पैदल जाने वालों के लिए, खड़ी चढ़ाई पर चलने में छड़ी बहुत मददगार होती है। बरसात के मौसम में छाता और रेनकोट की आवश्यकता होती है। जूते, कैमरे, छड़ी, टॉर्च, हेडबैंड, छाता और ऐसी ही कई अन्य वस्तुएं जिनके लिए व्यक्ति पहले से तैयार नहीं हो सकता है, पूरे कटरा और पवित्र मंदिर के रास्ते में विभिन्न निजी दुकानों पर किराए पर आसानी से उपलब्ध हैं। हालाँकि उनमे से कुछ की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं हो सकती है और इसलिए तीर्थयात्रियों को कुछ भी किराए पर लेने या खरीदने से पहले सावधानीपूर्वक जांच करने की आवश्यकता हो सकती है।

आपको ये जानकारी देता रोचक लेख और यात्रा संस्मरण पसंद आया होगा। विभिन्न स्थानों और ट्रैक्स की जानकारी देते लेख और वीडियोस भी आप PopcornTrip चैनल में देख सकते हैं।

देखे वीडियो 👇

 

 देश के सर्वाधिक प्रसिद्ध हिल स्टेशन में से एक मसूरी यात्रा का विवरण

पिछले लेख में देहरादून नगर के विवरण के बाद इस लेख में है देहरादून से मसूरी यात्रा का विवरण जैसे कैसा है मसूरी, कैसे पहुँचे मसूरी और क्यों इतना पोपुलर डेस्टिनेशन है – मसूरी! (इन सवालो के जवाब को जानने PopcornTrip के इस video को देखें)

देहरादून से मसूरी के दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। हम राजपुर रोड से जाखन, देहरादून जू, श्री प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर से होते हुए मसूरी के लिए आगे बढ़े। देहरादून के नगर क्षेत्र से मसूरी मार्ग में कुछ दूर चलते ही घुमावदार सड़क देख कर पहाड़ों से मिलने का अहसास होता है और तापमान में गिरावट का एहसास होता है।
देहरादून, समुद्र तल से लगभग 640 मीटर (2100 फीट) की ऊँचाई पर, और मसूरी, की ऊँचाई समुद्र तल से 2005 मीटर (6578 फीट) पर स्थित है। मसूरी का ठंडा मौसम, दूर तक घाटियों का दृश्य और स्वास्थ्यप्रद जलवायु, मसूरी को विशेष बनाती है।

अपने वाहन के अतिरिक्त देहरादून से मसूरी के लिए बसेज और टैक्सीज़ भी उपलब्ध हो जाती हैं। टैक्सी व उत्तराखण्ड परिवहन निगम की बस, देहरादून के रेलवे स्टेशन से समीप ही स्थित मसूरी बस अड्डे से नियमित अंतराल पर मिल जाती हैं।

Dehradun Railway

देहरादून के नगर क्षेत्र से बाहर निकलते ही घुमावदार सड़क देख कर पहाड़ों से मिलने का अहसास होता है। देहरादून पर बना वीडियो आप popcorntrip चैनल में देख सकते हैं

देहारादून चिड़ियाघर के बाद, सड़क घुमावदार होने के साथ हल्की चढ़ाई भी लिए हुए है। सड़क के किनारे दिखते खड़े – वाहन यह संकेत देते हैं – कि मसूरी जैसी खूबसूरत जगह, उत्तराखंड मे पर्यटकों द्वारा कितनी पसंद की जाती है। इस सफ़र में लगने वाला समय इस बात पर निर्भर करता है कि किस सीजन में मसूरी ट्रैवल कर रहें हैं, कोई ऑफ सीजन है तो लगभग डेढ़ घंटा और गर्मियों का सीजन और साथ मे सप्ताहंत भी, तो फिर समय होता है अपने धैर्य की परीक्षा देने का।

देहरादून से मसूरी जाते हुए सड़क के दाई ओर ओर पहाड़ी और बायीं ओर ढलान लिए हुए पहाड़ी नजर आती है। साफ़ मौसम हो तो मार्ग से दिखने वाले खूबसूरत दृश्य, जिसमें घाटियों के उतार के साथ दूर तक देहरादून शहर दिखाई देता है।

Dehradun to Mussoorie Journey

Dehradun to Mussoorie Journey Popcorn Trip

मार्ग में Mussoorie Municipality का Toll पॉइंट, यहाँ मसूरी नगर में वाहनों के प्रवेश के लिए शुल्क जमा होता है। इस सड़क में बरसातों के मौसम में अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों की सड़कों की तरह चट्टान से पत्थर या मलवा खिसकने का अंदेशा रहता है और इस बारे मे सावधानी बरतने के निर्देश देते बोर्ड जगह जगह दिखते हैं। इसी मार्ग में एक स्थान से बायीं ओर यहाँ का एक प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट भट्टा फॉल के लिए मार्ग है। यहाँ से भट्टा फॉल तक रोपवे द्वारा भी पहुँच सकते हैं। इस मार्ग में जगह जगह रेस्टोरेंट, कई गेस्ट हाउस और होटल भी दिखते हैं। मसूरी झील भी इसी मार्ग में स्थित है, जो मसूरी से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर है।

मसूरी नगर से कुछ पहले मल्टीलेवल पार्किंग के समीप से, मसूरी शहर मे एंट्री के लिए दो मार्ग जाते हैं, सीधा आगे जाता मार्ग पिक्चर पैलेस चौक की ओर जो यहाँ से लगभग 1 किलोमीटर और बाई ओर की सड़क जिससे तीन किलोमीटर की दूरी पर है – लाइब्रेरी चौक। Library चौक जाते हुए राइट हैंड साइड को मॉल रोड सीढ़ियों से भी पंहुचा जा सकता है। लाइब्रेरी चौक के सामने, मॉल रोड का ऊप्परी सिरा मिलता है, और दूसरा सिरा पिक्चर पैलेस चौक के समीप मिलता है।
मसूरी मॉल रोड में सुबह 9 बजे से रात्रि 10 बजे तक बड़े वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित है।मसूरी में वाहनों हेतु पार्किंग अलग अलग स्थानों में बनी हुई है।

देखें इस खूबसूरत मार्ग से यात्रा का रोचक वीडियो 

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कटारमल सूर्य मंदिर, अल्मोड़ा

कटारमल सूर्य मंदिर, भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से लगभग 16 किलोमीटर की दुरी अल्मोड़ा रानीखेत मार्ग पर एक ऊँची पहाड़ी पर बसे गाँव अधेली सुनार में स्थित है।

कटारमल सूर्य मंदिर कुमांऊॅं के विशालतम ऊँचे मन्दिरों में से एक है।  पूरब की ओर रुख वाला यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा और सबसे ऊंचा मंदिर है।

हिन्दू धर्म की यही खासियत हैं कि इसमे प्रकृति के हर रूप को पूजा जाता है, चाहे वो जल हो, अग्नि हो, वायु हो, अन्न हो, भूमि हो या फिर सूर्य, तो इन्ही में से एक सूर्य को समर्पित विभिन्न मंदिर भारत के कई राज्यों में हैं – जैसे उड़ीसा स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर के अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात, कश्मीर, बिहार, असम, तमिलनाडु, राजस्थान आदि सहित उत्तराखंड राज्य स्थित कटारमल सूर्य मंदिर प्रमुख हैं।

आज आप जानेंगे, उत्तराखंड स्थित इस कटारमल सूर्य मंदिर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी। नमस्कार आपका स्वागत है पॉपकॉर्न ट्रिप में।

इस मंदिर का सामने वाला हिस्सा पूर्व की ओर है। इसका निर्माण इस प्रकार करवाया गया है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर में रखे शिवलिंग पर पड़ती है।

अल्मोड़ा रानीखेत मार्ग में कोसी से लगभग ४ किलोमीटर की दुरी पर कटारमल सूर्य मंदिर के लिए ३ किलोमीटर का एक अलग मार्ग जाता है। एक और हलकी पहाड़ी और नीचे की और रेलिंग लगी है। इस मार्ग से चलते हुए आपको कटारमल गाँव और आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों जैसे कोसी, हवालबाग आदि गाँव का दृश्य दिखाई देता है। साथ ही मार्ग में आपको पारंपरिक शैली से बने हुए पहाड़ी घर भी दिखते हैं, और ऐसे ही खुबसूरत दृश्यों को देखते हुए आप कब मंदिर के समीप पहुच जाते हैं, पता ही नहीं चलता।

लगभग 9वी से 11वी शताब्दी के मध्य, कत्युरी शासन काल में बने इस सूर्य मंदिर के बारे में मान्यता है कि, इसका निर्माण एक रात में कराया गया था। कत्युरी शासक कटारमल देव द्वारा इस मंदिर का निर्माण हुआ। इस मंदिर का मुख्य भवन का शिखर खंडित है, जिसके पीछे ये कारण बताया जाटा है कि मंदिर निर्माण के अंतिम चरण में सूर्योदय होने लगा था, जिससे मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया, और ये हिस्सा अधुरा ही रह गया, जिसे आज भी देखा जा सकता है। हालाँकि एक अन्य मान्यता के अनुसार परवर्ती काल में रखरखाव आदि के अभाव में मुख्य मन्दिर के बुर्ज का कुछ भाग ढह गया।

देखिए video

How to Reach कैसे पहुचे!

कटारमल मंदिर के नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम यहाँ से लगभग 105 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर 135 किलोमीटर की दुरी पर है। जिला मुख्यालय अल्मोड़ा से लगभग 16 किलोमीटर, रानीखेत से 30 किलोमीटर, कौसानी से 42 किलोमीटर है।

कटारमल मंदिर के सबसे नजदीक का क़स्बा मंदिर से लगभग 4.5 किलोमीटर की दुरी पर कोसी है, और पैदल मार्ग द्वारा लगभग २ किलोमीटर की दुरी पर है।

Where to stay रात्रि विश्राम के लिए नजदीक स्थल कोसी में रात्रि विश्राम के लिये आपको होटल मिल जायेंगे, जिसकी दुरी यहाँ से लगभग 5 किलोमीटर है। इसके अतिरिक्त अल्मोड़ा, रानीखेत, कौसानी आदि में भी आप ठहर सकते हैं।

Nearby attractions – आस पास के पर्यटक आकर्षण के केंद्र चितई गोलू देवता मंदिर, कसार देवी मंदिर, जागेश्वर धाम, रानीखेत, कौसानी (इन स्थानों पर बने वीडियो भी आप youtube.com/popcornTrip पर देख सकते हैं।), कोसी नदी आदि हैं। यहाँ आप कोसी से ट्रैकिंग कर के भी पँहुच सकते हैं और उसी दिन वापसी भी कर सकते हैं।

 

खटीमा : भारत और नेपाल की सीमा के निकट बसा उत्तराखंड का नगर

उत्तराखण्ड स्थित खटीमा, कुमाऊँ मण्डल के उधमसिंहनगर जनपद में स्थित एक नगर है। समुद्र तल से 653 फीट (199 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित, यह स्थान भारत-नेपाल सीमा के निकट है। खटीमा नगर, राज्य के अन्य भागों से भली भांति, सड़क और रेलमार्गों से जुड़ा है। यह दिल्ली से 8 घण्टे, नैनीताल से 4 घंटा एवं हल्द्वानी से 3 घंटे की दूरी पर स्थित है।

खटीमा उत्तराखंड निर्माण की मांग करते हुए 1994 में शहीद हुए आंदोलनकारियों की भूमि के रूप मे भी जाना जाता है। यहाँ की बाज़ार मे सीमावर्ती राज्य नेपाल के भी लोग खरीददारी करने आते है।

खटीमा क्षेत्र में पर्यटको को आकर्षित और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने उत्तराखंड के पहले मगरमच्छों के पार्क का लोकार्पण किया। यहाँ 150 से अधिक क्रोकोडाइल हैं। 01 दिसम्बर 2021 से यहाँ crocodile पार्क आरंभ हुआ। यहाँ आगुन्तुक जान सकेंगे कि मगरमच्छ कैसे रहते हैं, कैसे तैरते हैं, कैसे खाते हैं, कैसे सोते हैं, कैसे अपने भोजन के लिए शिकार करते हैं।

खटीमा कैसे पहुंचे!
खटीमा से निकटतम हवाईअड्डा पंतनगर है। खटीमा के आसपास, पर्यटकों के भ्रमण के लिए अनेक स्थानों में से कुछ – नानकमत्ता साहिब, पूर्णागिरि मंदिर और अंतर्राष्ट्रीय नेपाल सीमा से सटा हुआ बनबसा और नेपाल स्थित महेन्द्रनगर हैं (इन स्थानों की जानकारी देते वीडियो आप Popcorn Trip Youtube चैनल में देख सकते हैं)। खटीमा से उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून व अन्य प्रमुख नगर जैसे हरिद्वार, दिल्ली आदि के लिए टूरिस्ट बसों का भी संचालन भी होता। देखिए खटीमा की जानकारी देता विडीयो

Shimla Travel Guide

शिमला की मॉल रोड की सैर करने, जो शिमला का सबसे बड़ा आकर्षण है। चमकदार रोशनी से सजी मॉल रोड, सजी हुई दुकाने, शोरूम, रैस्टौरेंट, bakery और साथ में जगमगाते ब्रिटिश टाइम के भवन जिनमे से कहीं पोस्ट ऑफिस, किसी में municipal भवन, पर्यटन सूचना केंद्र है।

मॉल रोड में घूमना बेहद रिफ्रेशिंग एहसास देता है। मॉल रोड में अति आवश्यक सेवाओं के अतिरिक्त सभी वाहनों का चलना प्रतिबंधित है। इसलिए पैदल सैर करने का आनंद और भी बड़ जाता है। मॉल रोड में कहीं किनारे लगी हिमांचली कल्चर दिखाती पेंटिंग और mural आर्ट, कहीं पानी की आवाज़ और फाउंटेन से गिरता पानी आकर्षित करता है। शाम के समय इनमे लगी रोशनिया वातावरण को और भी खुशनुमा रूप देते है। और शिमला में आने का सबसे खूबसूरत वजह यही लगती है।

मॉल रोड में है मध्य में यह स्थान – scandal पॉइंट – जहां से मॉल रोड का एक हिस्सा ऊपर की ओर रिज की तरफ जाता है। और मॉल रोड का  दूसरा हिस्सा कुछ आगे जाकर शिमला के लोअर बाज़ार, लिफ्ट और दूसरे हिस्सों को मॉल रोड जोड़ता है। हालांकि इस सड़क से थोड़ा आगे सीढ़ियों से ऊपर चद्कर पुनः रिज में पंहुच सकते है।

रिज की ओर चलते चलते जानते है – scandal पॉइंट का यह विचित्र नाम क्यों पड़ा। scandal पॉइंट से कुछ ही कदमों की दूरी पर है – दी रिज शिमला की मॉल रोड का सबसे ऊंचा पॉइंट। यहाँ ब्रिटिश टाइम का एक चर्च है। यहाँ शिमला का समर फस्टिवल के साथ समय समय पर कई एवेंट्स और concert होते है। यहाँ दर्शकों के बैठने के लिए भी स्थान है। तस्वीरें और सेलफ़ी लवर्स के लिए पूरी की पूरी मॉल रोड आकर्षक background का काम करती है। रिज भी सेलफ़ी लवर्स के लिए खास है। यहाँ से शिमला के आस पास की पहाड़ियाँ भी देखी जा सकती है। सुनसेट का भी आनंद लिया जा सकता है।

रिज में घुड़सवारी करने का भी आनंद ले सकते है। फूड और शॉपिंग लवर्स के लिए भी शिमला जन्नत है ही।  

शिमला शहर के मॉल रोड के निकटवर्ती कुछ आकर्षण इस map में स्पॉट सकते है।  कई स्थान scandal पॉइंट और रिज तो मॉल रोड का ही हिस्सा है, इसके अलावा जाखू मंदिर, हाइ कोर्ट, विधान सभा आदि। शहर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तो पहुँचना हो तो उसके लिए है सर्क्युलर रोड और शिमला शहर के बाहर – बाहर निकल जाना हो तो इसके लिए है – शिमला बाइपास रोड।

इसके साथ ही शिमला इस तरह से बसा है कि – ऊंची नीची सभी जगहों तक सब रोड्स है, जो अगल अलग जगहों को कनैक्ट करती है – शिमला की सड़कों से अपरिचित लोगों को उनमे ड्राइव करने में परेशानी हो सकती है। कई जगह वन वन वे है – कई जगह सड़क ढलान अथवा चड़ाई लिए बेहद संकरी। इसलिए अच्छा यह रहता है कि – अपने वाहन को पार्किंग में रख – एक जगह से दूसरी जगह पनहुचने के लिए स्थानीय टॅक्सी का उपयोग किया है।

अगले दिन किसी दूसरे होटल में रूम लेना चाहते थे तो सुबह victory tunnel के होटल से चेक आउट कर पैदल पहुचे – ओल्ड बस स्टॉप, जिस होटल में हम रुके थे वहाँ से यह 5 से 10 मिनट की वॉकिंग डिस्टन्स पर था। यहाँ वाहनों की पार्किंग भी है और कई होटेल्स भी है। लेकिन हमें यहाँ न  कोई वाहन पार्क करना था, ना ही किसी होटल में रूम लेना था,  यहाँ OLD बस स्टॉप के क्लॉक रूम में अपना समान रखना चाहते थे। वैसे रात्री विश्राम के लिए रूम हमने शिमला शहर से कुछ दूर बूक करा लिया था, जहां शाम को चेक इन करने वाले थे।

ओल्ड बस स्टॉप से बस द्वारा पँहुचे लिफ्ट के पास, यहाँ से मॉल रोड तक लिफ्ट से पंहुच सकते है। जो शिमला की मॉल रोड के एक किनारे रिज के नीचे की माल रोड में मिलती है।

मॉल रोड मे घूमने बाद टॅक्सी से जाखू मंदिर जो कि – शिमला की ऊंची पहाड़ी पर है। जहां चर्च के पीछे से जाती सड़क से 2-3 किमी का ट्रेक कर भी पंहुच सकते है। रिज में चर्च से पीछे की ओर जाती सड़क से कुछ 100-150 मिटर दूर से रोपेवे सुविधा भी है। 

जाखू मंदिर के बाद हम पँहुचे – संकटमोचन मंदिर जो शिमला से लगभग 7 किलोमीटर दूर, ISBT बस स्टॉप से लगभग 4.5 किलोमीटर है। 

देखें video:

शिमला में बजट होटेल्स के रूम्स 800-900 से शुरू हो जाते है, जो शायद इंटरनेट पर सर्च कर न मिलें, और प्रीमियम होटल 15-20 हज़ार या उससे ऊपर भी जाते है। जो पर्यटक सीज़न में डिमांड के अनुसार जिनके रेंट कम या ज्यादा हो सकते है। कुछ होटेल्स हिमांचल टूरिज्म की वेबसाइट में देखें जा सकते है। 

शिमला के होटेल्स देखने के लिए क्लिक करें।(Thrid Party वेबसाइट)

गंगोलीहाट माँ हाट कालिका मंदिर : नवरात्र विशेष

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में गंगोलीहाट में माँ कालिका का मंदिर, देवदार के खूबसूरत वृक्षों से घिरा है। इस सुविख्यात मंदिर में स्थानीय लोगो के अलावा दूर- दूर से शृदालू  माँ काली के दर्शन को आते हैं, और मनोकामनाओं की सिद्धि के साथ यहाँ आध्यात्मिक शांति पाते हैं। 

नवरात्रियों में माँ हाट कालिका के मंदिर में श्रद्धालुओं का बड़ी संख्या में आगमन, मंदिर के दिव्य वातावरण को और भी उल्लसित करता है और आगंतुकों को ऊर्जा से सरोबोर कर देता है।

माँ हाट कालिका मंदिर-, उत्तराखंड मे पिथोरगढ़ जिले मे, जिला मुख्यालय से 57 किलोमीटर दूर  गंगोलीहाट नाम के खूबसूरत पहाड़ी नगर मे हैं। गंगोलिहाट की बाज़ार बहुत बड़ी नहीं हैं, यहाँ थोड़ी सी दूरी मे बस स्टॉप, टॅक्सी स्टैंड है।

ठहरने के लिए KMVN के टुरिस्ट रेस्ट हाउस सहित –  कुछ होटेल्स, lodges है।  मंदिर के अलग से रोड ढलान की ओर जाती हैं, इस जगह नाम गंगोलीहाट पड़ने का कारण और यहाँ का संक्षित इतिहास इस तरह हैं। 

सरयू गंगा तथा राम गंगा नदियों के मध्य स्थित होने के कारण इस क्षेत्र को पूर्वकाल में गंगावली कहा जाता था, जो धीरे धीरे बदलकर गंगोली हो गया। तेरहवीं शताब्दी से पहले इस क्षेत्र पर कत्यूरी राजवंश का शासन था। गंगोलीहाट इस गंगोली क्षेत्र का प्रमुख व्यापारिक केंद्र था, बाज़ार को जिसे स्थानीय बोली मे हाट कहते हैं। गंगोली के साथ साथ हाट –  जुड़कर इस क्षेत्र को नाम मिला गंगोलीहाट। 

तेरहवीं शताब्दी के बाद यहाँ मनकोटी राजाओं का शासन रहा, जिनकी राजधानी मनकोट में थी। सोलहवीं शताब्दी में कुमाऊँ के राजा बालो कल्याण चन्द ने मनकोट पर आक्रमण कर गंगोली क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। 

गंगोलीहाट की मुख्य सड़क से आधे से एक किलोमीटर की दूरी पर  रोड के बाद सड़क के किनारे वहाँ पार्क किए जा सकते हैं,यहाँ पर कई दुकाने हैं, जहां से मंदिर के लिए प्रसाद पुष्प आदि खरीदे जा सकते हैं। 

यहाँ से कुछ सीढ़िया उतर मंदिर तक पहुचा जा सकता हैं। पैदल मार्ग का एक बड़ा में टिन की चादरों से कवर्ड हैं और हाट कालिका मंदिर घिरा है, देवदार के छायादार और घने वृक्षों से। 

हजारों वर्ष पूर्व आदि गुरू शंकराचार्य बद्रीनाथ, केदारनाथ होते हुए, यहां पर आए तो उन्हें आभास हुआ कि यहां पर कोई शक्ति है, यहाँ मां ने कन्या के रूप में दर्शन दिया और कहाँ की उन्हे ज्वाला रूप से शांत रूप में ले आओ।  तब इस जगह माँ हाट कालिका – शक्तिपीठ की स्थापना इस जगह आदि गुरु शंकरायचार्य जी द्वारा हुई।

यह माना जाता है कि कोलकाता में माँ काली मंदिर मे विराजित महाकाली का ही शक्ति रूप  गंगोलिहाट मैं  हाट कालिका मंदिर में vidhyaman है,  गंगोलीहाट में स्थित हाट कालिका का मंदिर पुरे भारत के साथ-साथ भारतीय सेना बलों के बीच में भी प्रसिद्ध है|

मंदिर के मुख्य पुजारी, रावल परिवार से हैं, यहाँ के पुरोहित  पंत जी से मंदिर के बारे मे कुछ जानकरियाँ ली। 

भारतीय सेना के कुमाऊं रेजीमेंट के हाट कालिका से जुड़ाव के बारे में एक दिलचस्प कहानी है। “द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945) के समय एक बार भारतीय सेना का जहाज डूबने लगा। तब सैन्य अधिकारियों ने जवानों से अपने-अपने ईश्वर को याद करने का कहा, कुमाऊं के सैनिकों ने जैसे ही हाट काली का जयकारा लगाया वैसे ही जहाज किनारे आ गया।” तभी से कुमाऊं रेजीमेंट ने मां काली को आराध्य देवी के रूप मे मानता हैं।जब भी कुमाऊं रेजीमेंट के जवान युद्ध के लिए जाते हैं तो काली मां के दर्शन के बिना नहीं जाते हैं। हर वर्ष माघ माह में यहां पर सैनिकों और अधिकारी बड़ी संख्या मे दर्शन के लिए आते हैं, यहाँ बने कई धर्मशाले, मंदिर और रास्ते के  निर्माण मे स्थानीय लोगों, श्रीडालुओं के साथ भारतीय सेना से जुड़े लोगो का भी योगदान हैं। 

गंगोलिहाट से करीब 24 किलोमीटर दूर विश्व विख्यात पाताल भुवनेश्वर गुफा हैं, यहाँ कुछ अन्य गुफाये भी देखी जा सकती हैं – जिनमे हैं – शैलेश्वर गुफा “मुक्तेश्वर गुफा” भी प्रसिद्ध हैं और कुछ समय पूर्व जानकारी मे आई  गुफा – भोलेश्वर गुफा।  

गंगोलिहाट के समीपवर्ती  दर्शनीय स्थलों मे चौकोडी, पिथोरागढ़ , बेरीनाग, धौलछीना, जागेश्वर आदि हैं, कुछ दर्शनीय स्थलों  की  दूरी स्क्रीन मे देखी जा सकती हैं। 

गंगोलिहाट से नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर 162 किलोमीटर और काठगोदाम रेलवे 190 किलोमीटर हैं। नजदीकी  नैनी सैनी एयरपोर्ट पिथोरागढ़  84 किमी और पंतनगर हवाई अड्डा 223 किलोमीटर हैं। 

दिल्ली, देहारादून, लखनऊ और दूसरे बड़े शहरो से फिलहाल को सीधी बस सर्विस नहीं हैं,  यहाँ से गगोलिहाट आने के लिए  पहले हल्द्वानी पहुचना होगा, से 197 किलोमीटर दूर हैं, पहाड़ी मार्ग होने के कारण इस दूरी को तय करने मे 6 से 7 घंटे लगते हैं।

हल्द्वानी से रोडवेज़ की एक बस शेराघाट, गंगोलीहाट होते हुए पिथौरागढ़ तक जाती हैं, हल्द्वानी से गंगोलिहाट के लिए कुछ प्राइवेट बस सर्विस और shared टॅक्सी भी मिल जाती हैं। 

मंदिर के दर्शन करने और जानने के लिए देखें वीडियो:

Haldwani to Tanakpur Journey

हल्द्वानी, नैनीताल जिले का एक प्रमुख नगर होने के साथ साथ कुमाऊँ के प्रवेश द्वारा के रूप में भी जाना जाता है। और टनकपुर नगर चंपावत जिले का नेपाल सीमा में बसा एक प्राचीन भारतीय नगर है। इस यात्रा संस्मरण और विडियो में इन्हीं दो स्थानों के बीच सड़क यात्रा का विवरण।
Poppcorn Trip के इस सफ़र के लिए उत्तराखंड में कुमाऊ में हल्द्वानी से सितारगंज/ खटीमा सहित विभिन्न पड़ावों से होकर चम्पावत, लोहाघाट, पिथोरागढ़ जनपद के भ्रमण का कार्यक्रम बनाकर, हमने अपनी यात्रा आरम्भ की।

हल्द्वानी से सितारगंज के लिए Roadways स्टेशन से आगे होते हुए गौला नदी के पुल को पार कर हल्द्वानी गौलापार क्षेत्र में पहूचे, यहाँ से हल्द्वानी का व्यस्त क्षेत्र पीछे छूटता जाता है, इसी मार्ग मे हमें दिखा – अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स, हल्द्वानी का स्टेडियम।

कुछ और आगे जाने पर हम पँहुचे नवाड़ खेड़ा तिराहे पर जहां से एक रोड हल्द्वानी, जहां से हम आए थे – दूसरी काठगोदाम और और तीसरी रोड से सितारगंज की ओर जा सकते है।

यहाँ से आगे दिखती है खुली सड़के, प्राकर्तिक वातावरण, हरियाली, कहीं किनारे के खेतों मे हरी – भरी लहलहाती फसलें और काम करते कृषक। मुख्य सड़क में लगे बोर्ड – बीच – बीच में आवश्यक जानकारी देकर अपनी भूमिका निभाते।

रोड के किनारे दिखते – कुछ फार्म और दूर – दूर बने घर, किसी पेंटर को उसके अगले मास्टरपीस के लिए प्रेरणा देते।

आगे बढ़ते हुए, मार्ग से दिखने वाले वाले छोटे -छोटे गाँव, कहीं सड़क के किनारे मंदिर, कहीं फलों या फूलों के विविध रंग, कहीं आपस मे संवाद करते पशु और ग्रामीण जीवन। सड़क पर सरपट दौड़ते वाहन दोनों और वनों से घिरी सड़क।

आगे चलते हुए हम पँहुचे चोरगलिया, जिसे नन्धौर वन्य अभयारण्य नाम से भी जाना जाता है। जहां वन विभाग से अनुमति लेकर wildlife सफारी की जा सकती है।

कुछ स्थानीय जानकार कहते है कि – चोरगलिया का सही नाम चार गलियाँ था, जो बिगड़ कर चोरगलिया हो गया। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि कभी इस सुरम्य घने जंगलों वाले मार्ग में चोर डाकुओं की बहुतायत थी, इसलिए इस क्षेत्र का नाम चोरगलिया पड़ा।

यहाँ से आगे सितारगंज रोड मे आगे बड़े, जो यहाँ से 23 किलोमीटर दूर है। सितारगंज रोड में ही सिडकुल का इंडस्ट्रियल एरिया मिलता है।

https://youtu.be/T-8K2WhjSzQ

संगीत प्रेमियों को झंकार देने वाले वाद्य यंत्र सितार से शुरू होने वाले उधम सिंह जनपद का प्रमुख स्थान सितारगंज समुद्र तल से 298 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

सितारगंज की मुख्य बाज़ार में जाना हो तो मुख्य चौराहे से दाई और जाकर बाज़ार में पंहुचा जा सकता है – यहाँ सभी तरह की दुकाने, शो रूम मिल जाते है. बाज़ार का केंद्र है पीपल चौराहा – बाज़ार का सबसे पुराना इलाका – इसी के इर्द गिर्द बाज़ार का विस्तार हुआ। बाज़ार की रोड से मुख्य हाई वे की और वापस आते कई सरकारी कार्यालय. स्कूल दिखाई देते है। कुछ देर बाज़ार में घुमकर वापस हम मुख्य हाई वे में पंहुचे अपने अपने सफ़र को जारी रखने के लिए।
सितारगंज से खटीमा रोड में हमें एक तिराहा दिखा, जहां से बायीं ओर को जाता मार्ग नानकमतता को और दाहिनी ओर को जाता मार्ग खटीमा के लिए है। गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब की दूरी 1.5 किलोमीटर है। नानकमत्ता स्थित गुरुद्वारा पर हम पूर्व में विडियो बना चुकें हैं, जो आप youtube में “Nanakmatta PopcornTrip” लिख के देख सकते हैं।

https://youtu.be/yNqftnqQjFA


नानकमत्ता से आगे मिलती है – प्रतापपुर चौकी, और यहाँ से कुछ आगे ही स्थित है झनकट।

अपनी यात्रा मे आगे बढ्ने के लिए दायी ओर मुख्य हाईवे पर बने रहे। सितारगंज से 11 किलोमीटर के बाद, एक सुंदर स्थान मिलता है – झनकट। इस स्थान की एक विशेषता यह है कि – जहां समान्यतः किसी भी शहर में लोग हाई वे से बाइपास होकर अगले स्थान के लिए निकल जाते है – वहीँ झनकट की मुख्य बाज़ार हाइवे के दोनों और बसी है – मुख्य हाइवे और जो all weather रोड के रूप में भी विकसित हो रही के किनारे बाज़ार होने कारण लोगों को बाजार में चौड़ी सड़कें और पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ मिल जाते हैं। इसलिए इस छोटे से बाज़ार से गुजरने का अनुभव अनूठा है।

झनकट में हाइवे के किनारे – यहाँ के फास्ट फूड के कुछ स्टॉल। और सड़क के दोनों और स्थित लगभग सभी तरह की दुकाने है, जहां से स्थानीय लोग ख़रीददारी करते हैं.

यहाँ खेती के लिए उपजाऊ जमीन का महत्व इस बात से लगा सकते है कि – इस छोटे से स्थान में 8 राइस मिल है।

झनकट के बाद खटीमा/ टनकपुर मार्ग में मिला इस रूट मे पहला टोल गेट, जहां से FastTAg द्वारा टोल शुल्क दे कर हम आगे बड़े। इस मार्ग मे सड़क मे अच्छी गति से वाहन चलाया जा सकता है। झनकट से 20 किलोमीटर की दूरी पर है – खटीमा। खटीमा, उधम सिंह नगर का एक प्रमुख नगर।

खटीमा उत्तराखंड निर्माण की मांग करते हुए 1994 में शहीद हुए आंदोलनकारियों की भूमि के रूप मे भी जाना जाता है। यहाँ की बाज़ार मे सीमावर्ती राज्य नेपाल के भी लोग खरीददारी करने आते है।

खटीमा क्षेत्र में पर्यटको को आकर्षित और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने उत्तराखंड के पहले मगरमच्छों के पार्क का लोकार्पण किया। यहाँ 150 से अधिक क्रोकोडाइल हैं। एक दिसम्बर 2021 से यहाँ crocodile पार्क आरंभ हुआ। यहाँ आगुन्तुक जान सकेंगे कि मगरमच्छ कैसे रहते हैं, कैसे तैरते हैं, कैसे खाते हैं, कैसे सोते हैं, कैसे अपने भोजन के लिए शिकार करते हैं।

खटीमा की सीमा से बाहर आते हुए हुए वनखंडी महादेव मंदिर परिसर में स्थित है – 116 फीट ऊंची भगवान शिव की मूर्ति, संभवतः यह उत्तराखंड की सबसे ऊंची मूर्ति है।
खटीमा से 15 किलोमीटर की दूरी पर है बनबसा। बनबसा अपनी प्राकर्तिक सुन्दरता लिए जाना जाता है। प्रसिद्ध शारदा नहर का उद्गम भी बनबसा से ही हुआ है। बनबसा का मुख्य आकर्षण केन्द्र अंग्रेजों के समय बना बनबसा पुल व बनबसा पुल पर स्थित पार्क है।
बनबसा से हम चंपावत जनपद में है। यहाँ से नेपाल के लिए भी सड़क मार्ग से जा सकते है। कुछ समय पहले हम बनबसा से ही महेन्द्रनगर जिसे अब भीमदत्त कहते है से नेपाल गए थे।

अपने वाहन द्वारा नेपाल में प्रवेश की जानकारियों सहित नेपाल में महेंद्र नगर से काठमांडू और पोखरा की ट्रेवल गाइड पूर्व में पॉपकॉर्न ट्रिप में बना चुके हैं, जिसे आप PopcornTrip youtube channel में देख सकते हैं।
बनबसा से आगे बढ़ते हुए आता है टनकपुर। बनबसा से टनकपुर की दुरी 10 किलोमीटर है. टनकपुर, चंपावत और पिथौरागढ़ का प्रवेशद्वार है। शारदा नदी के किनारे बसा टनकपुर – धार्मिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक महत्व के साथ सौन्दर्य प्राकृतिक के लिए उत्तराखंड के महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह चंपावत जनपद अंतिम रेलवे स्टेशन है। पहाड़ी स्थानों को लौटते लोगों और पर्यटक के लिए यहाँ कई होटेल्स और गेस्ट हाउस है।
नेपाल के साथ देश के विभिन्न स्थानों के लिए टनकपुर से रोडवेज़ की बस सेवाएँ है। यहाँ की बाज़ार मे सभी तरह की दुकाने है। जिनमे स्थानीय लोगो की जरूरत का समान मिल जाता है।

टनकपुर बस स्टेशन से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर से एक सड़क पूर्णागिरी मंदिर की ओर जाती है। पूर्णागिरी मंदिर यात्रा पर भी पूर्व मे पॉप्कॉर्न ट्रिप चैनल मे video बना चुके है, जिसे youtube में पॉपकॉर्न ट्रिप पूर्णागिरी टाइप कर सर्च किया जा सकता है।

https://youtu.be/_7WCEaN60RM

इसी तिराहे के पास टनकपुर मे नन्धौर वन्य अभयारण्य का ककराली गेट है। इसका एक गेट हमने इसी video मे चोरगलिया मे देखा था।
मैदानी सड़क में सफ़र यहीं तक इसके आगे की यात्रा पहाड़ी घुमावदार मोड़ों से हुए होते आगे बढेगी, यात्रा के अगले भाग में यहाँ से चम्पावत की यात्रा रास्ते के खुबसूरत लैंडस्केप के साथ देखेंगे – श्यामलाताल को, जहाँ एक खुबसूरत ताल है, और जहाँ कभी स्वामी विवेकानंद भी आये थे।

आशा है आपको ये लेख पसंद आया होगा। विडियो देखें PopcornTrip चैनल में।