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इस लेख में है – पिथौरागढ़ से धारचूला की सड़क यात्रा का विवरण। धारचूला जहां पंचाचुली, आदि कैलाश और ओम पर्वत आदि यात्राओं के लिए मेडिकल जाँच होती है, और इनर लाइन पास बनता है। धारचूला से ही नेपाल विजिट भी किया जा सकता है, एक सेतु को पार कर।
देखिए अल्मोडा से पिथौरागढ़ का सफ़र
1,627 मीटर (5,338 फीट) की ऊंचाई पर स्थित पिथौरागढ़ से 940 मीटर (3084 फीट) ऊंचाई वाले धारचूला के लिए उतरने लगे। जैसे-जैसे हम आगे बड़े मौसम थोड़ा गर्म होने लगा, ऊंची पहाड़ियों से घिरी हुई घाटी नुमा स्थान की सड़कों के बीच से। पिथौरागढ़ से धारचूला तक यह यात्रा 92 किलोमीटर की थी, जिसे तय करने में सामान्यतः तीन से चार घंटों समय लगता है।
पिथौरागढ़ शहर के केंद्र से लगभग 5-6 किलोमीटर बाद, बायीं ओर, एक सड़क थल होते हुए बागेश्वर और मुनस्यारी के लिए जाती मिली, हम दाहिनी ओर मुड़ गए जो हमें धारचूला के की और ले जाती थी।
आह, घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर यात्रा करने का आश्चर्य! यद्यपि पहाड़ी सड़कों में यात्रा थकान पैदा कर सकती है, लेकिन प्रकृति के बदलते दृश्य एकरसता से बोर नहीं होते देते।
जैसे ही हमने अपनी आरामदायक सीट की खिड़की की सीट से बाहर देखा, विचारों की एक लय हमारे दिमाग में नाचने लगी। प्रकृति के साथ रहने पर तृप्ति का भाव होता है, जैसे सब कुछ पास है, और प्रकृति से दूर होने पर भौतिक जीवन के जितना पास जायें और कितना कुछ भी हो लेकिन फिर भी दिखता है सिर्फ़ अभाव।
पहाड़ी सड़कों में मार्ग घुमावदार तो होते हैं, लेकिन प्राकृतिक दृश्य हर कुछ किलोमीटर के बाद बदलते रहते है, और जिससे एकरसता या बोरियत नहीं होती, प्राकृतिक दृश्यों के आकर्षण, सफ़र की थकावट को भी कम करते रहते है।
हरे-भरे हरियाली के बीच से झांकते अनोखे पहाड़ी आवास, हमें उनकी दीवारों के भीतर रहने वाले जीवन और कहानियों की कल्पना करने के लिए प्रेरित करते हैं।
अपने परिवेश की अलौकिक सुंदरता में खोए हुए, हमने पहाड़ियों के मध्य बनाने वाली आभासी आकृतियों की खोज करनी शुरू दी, जैसे कि प्रकृति स्वयं हमारी कल्पनाओं के साथ लुका-छिपी का एक आकर्षक खेल खेल रही हो।
लेकिन जैसे ही हम इन मनमौजी सोच में डूबने लगे, एक आती हुई गाड़ी के तेज हॉर्न ने हमें हमारी ख़यालों से झकझोर दिया। चौंककर, हम वर्तमान में लौट आए, लेकिन फिर प्रकृति का नया रंग देखने को मिला जिसने हमारा ध्यान आकर्षित किया। प्रकृति, कितनी अद्भुत क्रिएटर है – जो नए मनोरम रूप दिखाने के साथ, मौसम और रंग बदल कर हर पल ऐसा दृश्यों का ऐसा संयोग प्रस्तुत करती है, जैसा पहले किसी ने न देखा हो, और शायद दोबारा भी नहीं देख पायेगा।
हमारी यात्रा हमें कनालीछीना क़स्बे तक ले आयी, पहाड़ियों के बीच ये एक खुला स्थान है, पिथौरागढ से लगभग 25 किलोमीटर दूर। यहां, व्यस्त बाजार और एक सुविधाजनक आवासीय क्षेत्र के बीच, यह छोटा खूबसूरत स्थान बहुत खुला होने के कारण यहाँ रहने के लिए भी सुविधाजनक है, यहाँ का आवासीय क्षेत्र देखकर ऐसा लगता है। कनालीछीना पिथौरगढ़ जनपद की एक तहसील भी है। कनाली छीना पिथौरागढ़ के बाद पिथौरागढ़ धारचूला रोड में सबसे बड़ी बाज़ार।
आबादी क्षेत्र समाप्त होने के बाद कनालीछीना से 1 किलोमीटर बाद, बायीं और सड़क है देवलथल के लिए जो कि यहाँ से १६ किलोमीटर है। कुछ किलोमीटर सड़कों में चलने के बाद ओगला मार्केट ने जल्द ही अपने जीवंत माहौल से आकर्षित किया।
मार्ग में है जौलजीबी, जो कि पिथौरागढ़ – धारचूला मार्ग का एक प्रमुख पड़ाव। सड़क से नीचे की और काली नदी और गोरी नदी का संगम, उस पार अपने पड़ोसी देश – नेपाल का भू भाग, सुंदरता पूरे परिदृश्य में बिखरी हुई है।
जौलजीबी की बाज़ार और टैक्सी स्टैंड। मार्केट के एक सिरे पर पोस्ट ऑफिस। मार्केट से कुछ आगे बढ़ने पर सड़क से नीचे दायी ओर जौलजीबी का राजकीय इंटर कॉलेज का गेट।
जौलजीबी छोटा सा खूबसूरत एवं सुंदर क़स्बा, इस स्थान का सांस्कृतिक और व्यापारिक महत्व भी है, यहाँ काली और गोरी नदियों का संगम है। यहाँ हर वर्ष नवम्बर में भारत नेपाल के बीच बड़ा व्यापारिक मेला भी आयोजित होता है, जिसमे बड़ी संख्या में देश विदेश से लोग पहुँचते है।
इस रोड से आगे बढ़ते हुए, बलुवाकोट पहुँच गये। प्राकृतिक सौंदर्य की पृष्ठभूमि में यह हलचल भरा बाजार, यहाँ अस्पताल, पुलिस स्टेशन, स्कूल, डिग्री कॉलेज और बैंक जैसी सुविधाएँ है। सड़क के समानांतर नीचे की ओर काली नदी बहती है, और नदी के दूसरी और अपनी सुंदरता से नेपाल भी मन मोहता रहता है।
पहाड़ों पर हम सड़क बना सकते है, लेकिन बारिश को कई बार यह आता, और ऊपर से कुछ मलबा या बोल्डर सड़क में आकर अवरोध के रूप में आ जाते है, और इस सड़क में मलवा आने की वजह से कुछ देर मार्ग अवरुद्ध रहा, रास्ता खोलने के लिए काम करते श्रमिकों और जेसीबी/ मैकिनिकल मशीनों के सहारे मार्ग को पुनः सुचारू कर दिया। धूल का ग़ुबार सड़क पर चलते काम की वजह से।
कुछ आगे जाने पर, फिर से सड़क में ट्रैफिक में ट्रैफ़िक रोका गया था, लेकिन यहाँ सड़क में अवरोध नहीं नयी सड़क का काम चल रहा था, बधाई हो, जिन्हें भी इससे लाभ मिले।
फिर मिला कालिका। और उसके बाद निंगालपानी।
धारचूला से लगभग 1 किलोमीटर पहले बायीं जाती सड़क – तवाघाट – लिपुलेख रोड, जिससे नारायण आश्रम, पंचाचुली, आदि
कैलाश, ओम पर्वत आदि स्थानों के लिए जा सकते है। लेकिन उससे पहले इनर लाइन परमिट होना ज़रूरी है, जिसे धारचूला से बनाया जा सकता है। वैसे यह ऑनलाइन भी बन जाता है, प्रक्रिया को जानने के साथ, इस ट्रिप में कितना खर्च होता है, किस समय यात्रा करनी होती है, क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए, क्या चुनौतियाँ आ सकती है, सहित आदि कैलाश की यात्रा करेंगे अगले भाग में।
हम बढ़ रहें है नेपाल मार्ग में, अपने गेस्ट हाउस में चेक इन करने। हमारी बुकिंग KMVN के धारचूला स्थित गेस्ट हाउस में थी, जो की नेपाल रोड में स्थित काली नदी के तट के समीप स्थित है। हम KMVN के आदि कैलाश यात्रा 16वे ग्रुप के यात्रियों में शामिल थे।
गेस्ट हाउस से नेपाल का भूभाग भी दिखता है, यहाँ से नेपाल का हिस्सा जो दार्चुला नाम से जाना जाता है, पुल पार कर पहुँचा जा सकता है, धारचूला और दार्चुला पर लेख फिर कभी। अभी चेक इन के बाद लंच और फिर मेडिकल और इनर लाइन पास के लिए प्रक्रिया होनी है। कैसे होती है, जानेंगे अगले भाग में। अब रोमांच और अध्यात्म के अनोखे अनुभव को हमारे साथ जानने के लिए रहिए तैयार। लेख पढ़ने और इस सीरीज का हिस्सा बने रहने के लिए धन्यवाद, अगर आपने पिछले दो भाग भी देखे है, तो कमेंट में बताइएगा।
धन्यवाद।
अल्मोडा उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक, ऐतिहासिक मायने से महत्वपूर्ण नगर और उत्तराखंड का सीमांत जनपद पिथौरागढ़ जो अपने विविध महत्वपूर्ण पर्यावरणीय संपन्नता समेटे हुए है। पिथौरागढ़ से कई उच्च हिमालयी क्षेत्रों और ग्लेशियर्स के ट्रैक्स किए जा सकते हैं, river sports के लिए अनुकूलता लिए नगर। इस लेख में है, इन दोनों नगरों की सड़क यात्रा की जानकारी।
पिछले लेख में, हल्द्वानी जो कि कुमाऊँ का प्रवेश द्वार के नाम से जाना जाता है, जहां से कई पहाड़ी क्षेत्रों जैसे अल्मोडा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, रानीखेत, मुक्तेश्वर, बिनसर सहित अन्य कई स्थानों के लिए मार्ग है, और अल्मोडा जो उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्मृति चिन्ह समेटे हुए है, पहुँचने का यात्रा वृतांत था, अब आगे।
अल्मोडा नगर के धारानीला स्टेशन से पिथौरागढ़ को नियमित जाने वाली बस और टैक्सी आदि मिलती है।
अल्मोड़ा के नाम से जुड़ी है – बाल मिठाई, चाकलेट और सिंगौड़ी को अलमोड़ा की मुख्य बाज़ार के अलावा यहाँ से ख़रीद सकते है, इनको बनानें में मिल्क प्रॉडक्ट्स का उपयोग होता है, तो इनके बेस्ट टेस्ट के लिए इन्हें 2-3 दिन के अंदर कंज्यूम करना ठीक रहता है।
धारानौला में रात्रि विश्राम करना हो, यहाँ कुछ होटल भी मिल जाएँगे, यहाँ ख़ान पान के लिए भी कई रेस्टोरेंट है।
चलने फिरना पसंद करते हो, तो धारानीला से पटाल बाज़ार तक 15 – 20 मिनट में चढाई में ट्रेक कर पहुँच सकते है। और पटाल बाज़ार – अल्मोडा की मुख्य बाज़ार है, लगभग 2 किमी लंबी बाज़ार में टहलते – टहलते शॉपिंग का भी आनद ले सकते है और अल्मोड़ा की ऐतिहासिक भवनों को देखते हुए, कुमाऊँ के इतिहास को अपने सामने देख कर महसूस कर सकते हैं।
अल्मोड़ा से पिथौरागढ़ 114 किलोमीटर है। धारानौला का बाज़ार का क्षेत्र ख़त्म होने के तुरंत बाद एक तिराहा दिखता है – सिकुड़ा बैंड, यहाँ से यू टर्न लेती दाहिनी ओर को जाती सड़क से जलना, लमगड़ा और उससे आगे जा सकते हैं, और सीधे आगे जाती सड़क से पिथौरागढ़ की ओर, यहाँ से सड़क हल्की चढ़ाई लिए है। इसी सड़क में मिलता – एक सुंदर व्यू पॉइंट है – फ़लसिमा, जहां से देख सकते है – अल्मोडा का विहंगम दृश्य और दूर तक फैली घाटियाँ। फ़लसीमा बेंड को पार करने के बाद दिखता है एक कलात्मक भवन – जो जाना जाता है – उदयशंकर नाट्य अकैडमी के नाम से।
इस रोड पर आगे चलते हुए NTD तिराहे – बाद सड़क से ऊपर, बायीं ओर है, अल्मोड़ा का जू, यहाँ तेंदुए, मृग सहित वन्य जीव देखे जा सकती हैं।
अल्मोड़ा नगर से लगभग 8 -9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है – स्थानीय निवासियों के धार्मिक आस्था का पवित्र स्थल चितई, जो अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध गोलू देव को समर्पित है।
अलमोड़ा – पिथौरागढ़ रोड से लगा, मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार, मंदिर के बाहर सड़क के किनारे प्रसाद, पुष्प, घंटियाँ व अन्य सामग्री ख़रीदी जा सकती है। चितई में जलपान के साथ ठहरने के लिए कुछ गेस्ट हाउस दिखते है।
चितई मदिर स्थित गोलू देवता न्याय के देवता के रूप में जाने जाते हैं, लोग यहाँ अपनी प्रार्थना – पत्रों/ चिठ्ठियों में लिख, यहाँ टाँगते हैं, जो बड़ी बड़ी संख्या में देखी जा सकती है, मान्यता है कि – पवित्र और सच्चे हृदय से लिखी गई प्रार्थनाएँ यहाँ अवश्य स्वीकार होती हैं, श्रदालु यहाँ घंटियाँ, चुनरी भी अर्पित करते हैं।
इस मंदिर के चारों और अनगिनत घंटियाँ लगी दिखती हैं। कई विशेष अवसरों पर भक्तों द्वारा यहाँ भंडारा भी आयोजित कराया जाता है। मंदिर से कुछ मीटर आगे जाकर – वाहनों के लिए बड़ा पार्किंग स्थल है।
चितई से आगे सड़क ढलान लिए है, चितई से आगे 6 किमी बाद हैं – छोटा सुंदर क़स्बा पेटशाल, पेटशाल से लगभग 1 किलोमीटर पर लखुउडयार शैलाश्रय prehistoric cave। यहाँ गुफानुमा चट्टान में की गई चित्रकारी आदि काल के मानवों द्वारा की गई है। लखुउडयार पर बना डेडिकेटेड वीडियो YouTube.com/PopcornTrip में देख सकते हैं।
अलमोड़ा – पिथौरागढ़ मार्ग में अगला स्थान मिलता है – बाड़ेछीना। समुद्र तल से 1,415 मीटर की उचाई पर स्थित यह आस पास के गाँव के लिए बाज़ार हैं। बाड़ेछीना में बुनियादी ज़रूरत का सभी समान उपलब्ध हो जाता है, यह एक उपजाऊ क्षेत्र है यहाँ ग्रामीणों द्वारा खेती होते देखी जा सकती है।
बाड़ेछीना के बाद मिलने वाले एक तिराहे से बायीं से धौलछीना, शेराघाट, बेरीनाग, चौकोड़ी, मुन्स्यारी आदि स्थानों को जा सकते है, और सीधी जाती सड़क है पिथौरागढ़ के लिए।
बाड़ेछीना से 11 किलोमीटर की दूरी पर पनुवानौला, यह घनी आबादी वाला क्षेत्र हैं, यहाँ काफी दुकानें, रैस्टौरेंटस आदि हैं।
पनुवानौला से लगभग दो किलोमीटर आगे है – आरतोला। यहाँ तिराहे से बायीं और जाती सड़क से 3 किलोमीटर की दूरी पर है भगवान शिव को समर्पित प्रांचीन जागेश्वर धाम और सीधा जाती सड़क पिथौरागढ़ के लिए है।
जागेश्वर मंदिर से समीप एक म्यूजियम भी है, जहां मंदिर से जुड़ी मूर्तियाँ और मंदिर से जुड़े विभिन्न प्रतीक रखे गये हैं।
जागेश्वर कई छोटे बड़े मंदिरों, जो कि नौवीं से ग्याहरहवीं सदी के बीच, कत्यूरी शासन काल में निर्माण हुआ था का समूह है। इनमें से कुछ हैं महामृत्युंजय मंदिर, श्री जागेश्वर ज्योतिर्लिंग। यहाँ मंदिरों में काफी बारीक, उत्कृष्ट और आकर्षक नक्काशी की गई है। ये मंदिर प्रागण में एक ताल, जिसमें ब्रहम्मकमल के फूल दिखते हैं।
जागेश्वर मंदिर समूह के साथ ही यहाँ जागेश्वर मंदिर से समीप ही कुबेर देवता और चण्डिका देवी को समर्पित मंदिर भी स्थित हैं। जागेश्वर आने वाले श्रद्धालु यहां भी अवश्य आते हैं। कुबेर भगवान धन और संपदा के प्रदानकर्ता माने गए हैं।
जागेश्वर मंदिर में कुछ समय व्यतीत कर, लंच जागेश्वर के कुमाऊँ मण्डल विकास निगम के गेस्ट हाउस में लिया। आदि कैलाश यात्रा की यह यात्रा हम KMVN के १६ वे ग्रुप के साथ कर रहे है, वापस लौटे अपना सफ़र जारी रखने के लिए। और मार्ग में फिर वही दण्डेश्वर मंदिर जिसे हमने आते समय भी देखा था। श्रद्धालु यहाँ भी रुक इस मंदिर के दर्शन करते हैं।
जागेश्वर मंदिर के दर्शन कर, उसी मार्ग से ३ किलोमीटर वापस आरतोला लौट अलमोड़ा पिथौरागढ़ मार्ग में फिर से अपना सफ़र जारी रखा। यहीं से एक सड़क के बायीं ओर झाकरसैम मंदिर, इस पर बना वीडियो भी PopcornTrip में देख सकते है।
आरतोला से ४-५ किलोमीटर पर स्थित ये छोटा सा गाँव हैं गरुड़ाबांज। यहाँ सड़क के बाँज और अन्य चौड़ी पत्तियों वाले वृक्षों इस स्थान को अब तक के सफ़र में दिखने वाले वन क्षेत्रों से अलग बनाते हैं।
मार्ग में आने वाले कुछ स्टेशन है ध्याड़ी, बसौलीख़ान, पनार आदि। पनार में रामगंगा नामक नदी बहती है। पनार – पिथौरागढ़ मार्ग में पिथौरागढ़ से लगभग १३ किलोमीटर पूर्व गुरना माता का मंदिर है। यहाँ इस मार्ग से आने जाने वाले वाहन यहाँ माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने गंतव्य की और बड़ते हैं।
पिथौरागढ़ उत्तराखण्ड का सबसे लंबा अंतर्रास्त्रीय सीमा वाला ज़िला है, जिसकी सीमाएँ नेपाल और तिब्बत जो अब चीन का हिस्सा है, से लगी है।
देखें इस पर बना वीडियो
आपको यह यात्रा सीरीज कैसी लग रही है, कमेंट करके बताइएगा।
हल्द्वानी कुमाऊँ का प्रवेश द्वार, जहां से कई पहाड़ी क्षेत्रों जैसे अल्मोडा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, रानीखेत, मुक्तेश्वर, बिनसर सहित अन्य कई स्थानों के लिए मार्ग है, और अल्मोडा जो उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्मृति चिन्ह समेटे हुए है।
हल्द्वानी – भीमताल रूट में आगे बड़े, हल्द्वानी और काठगोदाम से जैसे ही आगे बढ़े, चढ़ाई मिलने लगी, मार्ग में एक स्थान है – सलड़ी, जहां बस, टैक्सी, या आते जाते जाते यात्री भोजन जलपान के लिए रुकते है, अच्छी लोकेशन के साथ यहाँ सड़क के किनारे कई जल स्रोत है, जिनमे स्वच्छ मिनरल पानी का स्वाद लिया जा सकता है। यहाँ से काठगोदाम का दृश्य काफ़ी सुंदर नज़र आता है, अगर मौसम साफ़ और उसमे धुंध ना हो तो।
हल्द्वानी से भीमताल 28 किलोमीटर के पर्यटकों के बीच लोकप्रिय स्थान है, यहाँ नैनीताल ज़िले की सबसे बड़ी झील है, यह मान्यता है कि इस झील का निर्माण द्वापर युग में भीम ने किया था। यहाँ ताल के एक सिरे पर भीम को समर्पित भीमेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। भीमताल के एक मार्ग नैनीताल ज़िले की ही एक अन्य खूबसूरत नौ कोनों वाले ताल नौकुचियाताल को जाता है।
Bhimtal Uttarakhand
भीमताल – भवाली मार्ग से हमारा सफ़र आगे बड़ा, भीमताल की इस चदाई से में खूटानी नाम के स्थान से दायी और जाती दायी ओर जाती सड़क स्थानीय क़स्बों जैसे पदमपुरी, धानाचूली, रामगढ़, मुक्तेश्वर को भी जाती है।
खुटानी तिराहे से थोड़ा आगे आने पर बायीं और जाती यह सड़क ज़िले के एक और खूबसूरत ताल – सातताल तक ले कर जाती है। सातताल प्रकर्ति और पक्षी प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान है, जहां आम ज़िंदगी की दौड़ भाग से दूर शांति से दिन गुज़ारा जा सकता है।
भवाली जो की भीमताल से लगभग ८-१० किलोमीटर की दूरी पर है, भवाली एक ठंडी जगह और आस पास के क्षेत्रों के लिए फलों की मंडी है। भवाली से पहाड़ों के कई स्थानों के लिए रॉड्स है, यहाँ से एक रोड नैनीताल को और एक दूसरा रोड ज्योलीकोट होते हुए हल्द्वानी को जाती है। भवाली से ढलान को जाती सड़क निगलाट होते हुए कैंची पहुँचती है, हमारे सफ़र का अगला पड़ाव। भवाली से कैंची की दूरी 8 किमी है। कैंची धाम, महान संत बाबा नीम करौरी जी के नाम से विख्यात है।
सोशल मीडिया में और दुनिया भर के सेलिब्रिटीज़ के बाबाजी पर आस्था रखने और उनके विजिट के बाद चर्चा में आने से पिछले कुछ समय में यहाँ आवाजाही काफ़ी बढ़ गई है। यहाँ देश और दुनिया भर से कई नामी हस्तियों ने बाबा के दर्शन किए हैं या उनके निर्वाण के बाद आश्रम में विजिट किया है। जिससे इस स्थान को प्रिंट और सोशल मीडिया में सुर्ख़ियों में रहने से यहाँ दर्शनार्थियों की आवाजाही लगी रहती है। मंदिर से समीप ही वाहनों के लिए पार्किंग और सड़क के दोनों और restaurant, गेस्ट house इत्यादि हैं।
कैंची से आगे जाते हुए रातीघाट, गरमपानी, खैरना होते हुए कुछ आगे बढ़ दो मार्ग दिखते हैं, जिसमें बायीं ओर जाती सड़क रानीखेत और सीधा अल्मोडा के लिये है, जहां से हमने आगे जाना है।कैंची के बाद कुछ ही मिनट्स में जिस क़स्बे में पहुचते है उसका नाम है खैरना, यह है खैरना की बाज़ार, यहाँ भी सीजनल फल और सब्ज़ियाँ उल्पब्ध हो जाती हैं।
खैरना में सड़क के किनारे बहती नदी और उससे आगे पहाड़ियों को देख यात्रा प्रकृति की वादियों और विविधताओं के देखते हुए कब 10-20 किलोमीटर और आगे बाद जाते है, पता नहीं चलता। खैरना के बाद कुछ देर मोड़ कम हो जाते है, और मैदानी सड़क में चलने सा एहसास होता है। छड़ा, चमड़ियाँ, काकड़ीघाट, सुयालबाडी होते हुए पहुँचे, क्वारब, यहाँ से भी मुक्तेश्वर, रामगढ़ के लिए अलग सड़क जाती है।
क्वारब के बाद पुल पार कर ये स्थान है एक शांत स्थान में हनुमान जी को समर्पित मंदिर स्थित है।
अलमोड़ा के दूरी यहाँ से लगभग 10 किलोमीटर है। यहाँ से बायीं और को हाल में सड़क बनी है, जिससे शीतलाखेत या फिर अलमोड़ा जाये बिना कोसी पहुँच सकते हैं। यहाँ से दिखती पहाड़ियों और उनकी विभिन्न लेयर्स को सफ़र में प्रकृति का रूप लगातार बदलती रहती है, और यह विविधता उन यात्रियों को ख़ुशनुमा एहसास देती है, जो पहाड़ी सफ़र के बाद ऊँघने ना लगे हो।
क्वारब से अल्मोडा की ओर कुछ आगे बढ़ने पर, चढ़ाई में बसा एक छोटी बाज़ार मिलती है, जो लोधिया है, यहाँ पर कुछ रेस्टोरेंट और मिठाइयों की दुकानें मौजूद हैं। जो लोग अल्मोडा नगर क्षेत्र से मिठाइयाँ नहीं ख़रीद पाते वो यहाँ से ले लेते है। लोधिया के बाद पहुँचे करबला तिराहा, यहाँ से लेफ्ट नीचे को जाती सड़क अलमोड़ा की लोअर मॉल रोड नाम से जानी जाती है, और उप्पर को जाती सड़क वो है अपर मॉल रोड।
देखिए इस यात्रा का वीडियो
जैसे जैसे सफ़र ऊँचाई की और बढ़ रहा है, सफ़र की रोचकता भी बढ़ती जा रही है। इस सीरीज के अगले भाग में PopcornTrip के अल्मोडा से आगे की यात्रा में फिर मिलेंगे, आज के लिए यही तक, जल्दी पुनः मिलते है। धन्यवाद।
उत्तराखण्ड आना अब हुआ और अधिक आसान, आकर्षक और आनंददायक। वन्दे भारत ट्रेन के साथ, इनोग्रेशन डे पर ट्रेन की सवारी करने का हमें अवसर मिला और इस दिलचस्प सफ़र के अनुभव, रेल मंत्री अंश्वनी वैष्णव जी से मुलाक़ात और वन्दे भारत ट्रेन की जानकारी लिए लेख और वीडियो में आपका स्वागत है।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव जी के साथ बातचीत में हमने उन्हें अपना अनुभव शेयर किया कि 7-8 साल पहले जब हमने अपने चाइना के विजिट में शंघाई में आधुनिक सुविद्याओं से युक्त – मैगलेव ट्रेन के बारे में जाना, तव उसमे सफ़र करना चाहा, लेकिन किसी कारणवश तब ऐसा नहीं कर पाये, उस समय भारत के विकास कार्यों को देख यह ख्याल में भी नहीं आया था, कि भारत में भी कभी इस तरह से ट्रेन चल सकती है। वह भी इतनी जल्दी, रिकॉर्ड समय में तैयार कर – इसके लिए भारत सरकार और रेलवे की यह पहल अत्यंत सराहनीय है। हालाँकि maglev की स्पीड से अभी तुलना नहीं की जा सकती, लेकिन यह भारत के रेलवे सिस्टम के आधुनिकर
ण की दिशा में रिकॉर्ड समय में किसी कार्य को पूरा करने की स्पीड है, वह इनक्रेडिबल है।
भारत में पहले ही कई स्थानों पर वन्दे भारत ट्रेन्स चल रही है, पहली वन्दे भारत ट्रेन 15 फ़रवरी 2019 में दिल्ली से वाराणसी के रूट में चलनी शुरू हुई थी।
हमने रेल मंत्री के माध्यम से भारत सरकार के ऐसे कार्यों के लिए भी उनका आभार व्यक्त किया जो जो वो देश के लिए कर रहे है, बिना रुके और बिना थके, कई ऐसे कार्य भी जो अविश्वसनीय रूप से आम जनों के जीवन में गुणात्मक और रचनात्मक परिवर्तन ला रहे है।
अश्विनी जी ने वन्दे भारत के बारे में कई दिलचस्प जानकरियाँ दी- जैसे – स्वदेशी तकनीक पर निर्मित सेमी हाई स्पीड ट्रेन है, जो आधुनिक सुविधाओं से युक्त नयी पीढ़ी के आवश्यकताओं को पूर्ण करने का प्रयास करती हाई टेक सुविधाओं से युक्त है। अन्य साधारण ट्रेन की तरह लगने वाले झटके और सुनाई देने वाला शोर कम होगा। एक कोच से दूसरे कोच में जाना एकदम आसान। दो कोच के मध्य में लगा स्वचालित डोर दरवाज़े पर किसी के आते ही अपने आप खुलेगा, और गुजरते ही बंद हो जाएगा। ट्रेन में वातानुकूलित सिस्टम इस तरह से लगा है कि जो हवा को purify करने साथ हवा में घूमते वायरस को भी ख़त्म कर देगा।
सामान्यतः ट्रेन्स के कोच dark color के होते है, लेकिन सफ़ेद रंग की, सुंदर ग्राफ़िक्स से सजी, विशिष्ट डिज़ाइन के लिए यह ट्रेन विशेष आकर्षित करती है।
उत्तराखण्ड को मिली पहली वन्दे भारत ट्रेन बुधवार को छोड़कर शेष प्रतिदिन देहरादून और दिल्ली के बीच चलेगी, सुबह 7 बजे देहरादून से हरिद्वार – जो सुबह ११: ४५ पर आनंद विहार टर्मिनल पहुँचेगी। और शाम को ५:५० बजे दिल्ली से चलेगी और रात को १०:३५ मिनट पर देहरादून पहुँचेगी, वन्दे भारत अधिकतम 180 से 200 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से चल सकती है।
इस रूट के मध्य में वन क्षेत्र होने के कारण फ़िलहाल इस रूट पर यह ट्रेन फ़िलहाल अपनी ऑप्टिमम स्पीड से नहीं चलेगी।
दिल्ली से देहरादून के मध्य ट्रेन के सफ़र में ४:४५ घंटे का समय लगेगा। जिसे भविष्य में कम किए जाने का प्रस्ताव है।
ट्रेन में २ केटेगरी है – एसी चेयर कार और एग्जीक्यूटिव चेयर कार, जिनके किराए देहरादून से दिल्ली के लिए क्रमशः रू 900 एवं 1695 तथा दिल्ली से देहरादून का fare क्रमशः रू 1065 और 1890 रुपये है, Fare में भोजन भी सर्व किया जाएगा। देहरादून से दिल्ली जाते हुए भोजन में ब्रेकफास्ट और दिल्ली से देहरादून की ट्रेन में डिनर शामिल होगा। जिन्हें अपनी सीट irctc की वेबसाइट से ऑनलाइन रिज़र्व करायी जा सकती है।
इस इन्नॉग्रेशन डे पर यात्रा में उन सभी का उत्साह देखने लायक़ था, जो इस सफ़र का हिस्सा बने और उन सबका भी जो अलग अलग जगहों पर – अपने घरों से, पटरियों के किनारे या किसी प्लेटफार्म पर खड़े हो इसे जाते देख रहे थे, जगह – जगह देशभक्ति से भरे जयघोष ने वातावरण रोमचित कर दिया था, गर्व से भरे भारतीयों के लिए आनंद का दिन, हो भी क्यों ना स्वदेशी तकनीक से बनी यह ट्रेन, आधुनिक रेलयात्रा के अनुभव को विस्तार दे रही थी और उत्तराखण्ड राज्य को वन्दे भारत से जोड़ने वाली पहली ट्रेन थी।
अपने inauguration दिवस पर ट्रेन से जगह जगह हाथ हिलाते, अपने कैमरे में उन पलों को क़ैद करते दिख रहे थे – उत्साहित लोगों का समूह दिख रहा था, और बदले में ऐसे लग रहा था, अपने देश वसियों के आनंद पर, मानो नतमस्तक हो यह ट्रेन भी अपनी इनौग्रेशन डे पर धीमी रफ़्तार में चलते हुए, उनका अभिवादन स्वीकार करते जा रही हो।
वंदे भारत एक्सप्रेस को आमतौर पर “ट्रेन 18” के रूप में जाना जाता है वजह इसे 2018 में विकसित और लॉन्च किया गया था। “ट्रेन 18” नाम का अर्थ है कि यह एक आधुनिक और तकनीकी रूप से उन्नत ट्रेन है, जिसे पहली बार वर्ष के 18 वें वर्ष में पेश किया गया था। ट्रेन की कॉन्सेप्ट और निर्माण चेन्नई, भारत में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) द्वारा किया गया था और 15 फरवरी, 2019 को भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसका उद्घाटन कर जनता को समर्पित किया था।
दुनिया की सर्वाधिक गति से चलने वाली ट्रेन अभी चाइना में चलती है, बीजिंग से नानाजिंग के मध्य जिसकी एवरेज स्पीड ३१८ किलोमीटर प्रति घंटे है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ट्रेन का आधिकारिक नाम “वंदे भारत एक्सप्रेस” है। “वंदे भारत” नाम भारत की भावना का प्रतीक है और हाई-स्पीड रेल परिवहन के क्षेत्र में देश की प्रगति और विकास में ट्रेन के योगदान का प्रतिनिधित्व करता है।
उम्मीद है पर्यटकों और अन्य कार्यों से उत्तराखण्ड आने वाले विज़िटर्स को इस ट्रेन के साथ सफ़र का नया अनुभव मिलेगा। उत्तराखण्ड के अन्य स्थानों पर आवागमन के लिए जल्दी ही अन्य अन्य ट्रेन्स भी मिलने वाली है, ऐसा रेल मंत्री अश्विनी जी ने बताया।
वंदे भारत एक्सप्रेस के अंदर का विश्व स्तरीय इंटीरियर सहसा आपका ध्यान खींचेगा। इस ट्रेन में विशाल और एर्गोनोमिक रूप से डिज़ाइन की गई सीटें हैं, जो आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित हैं और यात्रियों के शानदार अनुभव के लिए पर्याप्त लेगरूम हैं। बड़ी खिड़कियां भारत के विविध परिदृश्यों के मनोरम दृश्य पेश करती हैं, जिससे आप अपनी यात्रा के दौरान देश की सुंदरता में डूब जाते हैं।
ऑन-बोर्ड वाई-फाई, इंफोटेनमेंट सिस्टम और जीपीएस-आधारित यात्री सूचना प्रणाली जैसी उन्नत सुविधाओं के साथ, वंदे भारत एक्सप्रेस आपको आपकी यात्रा के दौरान जोड़े और मनोरंजन करती है। ट्रेन में सभी यात्रियों के लिए स्वच्छ और आरामदायक वातावरण सुनिश्चित करने के लिए स्वचालित दरवाजे, बायो-वैक्यूम शौचालय और बेहतर एयर कंडीशनिंग भी शामिल है।
वंदे भारत एक्सप्रेस टिकाऊ परिवहन के लिए भारत की प्रतिबद्धता का एक चमकदार उदाहरण है। ट्रेन विद्युत कर्षण द्वारा संचालित है, कार्बन उत्सर्जन को कम करती है और हरित भविष्य में योगदान करती है। यात्रा के इस पर्यावरण-अनुकूल तरीके को चुनकर, आप अपने पर्यावरण पदचिह्न को कम करते हुए भारत की सुंदरता का पता लगा सकते हैं।
सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है और वंदे भारत एक्सप्रेस सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। यह ट्रेन ट्रेन सुरक्षा और चेतावनी प्रणाली (TPWS) और स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ATP) प्रणाली जैसी उन्नत प्रणालियों से सुसज्जित है, जो यात्रियों और चालक दल के लिए सुरक्षा की एक मजबूत परत प्रदान करती है।
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