Omkareshwar Temple, Ukhimath | ओम्कारेश्वर मंदिर, उखीमठ

इस वर्ष में 9 नवंबर को केदारनाथ के कपाट बंद होने के बाद ओम्कारेश्वर मंदिर उखीमठ में भगवान श्री केदारनाथ और मद महेश्वर की पूजा होगी, यहाँ पुरे वर्ष भगवान श्री ओम्कारेश्वर की पूजा होती हैं।

उखीमठ भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक तीर्थ स्थल है। यह 1311 मीटर की ऊंचाई पर है और रुद्रप्रयाग से 41 किलोमीटर की दूरी पर है। सर्दियों के दौरान, केदारनाथ मंदिर और मध्यमहेश्वर से मूर्तियों (डोली) को उखीमठ रखा जाता है और छह माह तक उखीमठ में इनकी पूजा की जाती है। उषा (बाणासुर की बेटी) और अनिरुद्ध (भगवान कृष्ण के पौत्र) की शादी यहीं सम्पन की गयी थी। उषा के नाम से इस जगह का नाम उखीमठ पड़ा। सर्दियों के दौरान भगवान केदारनाथ की उत्सव डोली को इस जगह के लिए केदारनाथ से लाया जाता है। भगवान केदारनाथ की शीतकालीन पूजा और पूरे साल भगवान ओंकारेश्वर की पूजा यहीं की जाती है। यह मंदिर उखीमठ में स्थित है।





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i) https://youtu.be/oi68UwM5W8k (गोपेश्वर महादेव मंदिर)
ii) https://youtu.be/as0JQ0PoPLM (श्री केदारनाथ मंदिर)
iii) https://youtu.be/5w70xP_74-k (श्री बद्रीनाथ मंदिर)
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Ukhimath (also written Okhimath) is a small town and a Hindu pilgrimage site in Rudraprayag district, Uttarakhand, India. It is situated at an elevation of 1311 meters and at a distance of 41 km from Rudraprayag. During the winters, the idols from Kedarnath temple, and Madhyamaheshwar are brought to Ukhimath and worshipped here for six months. Ukhimath can be used as center destination for visiting different places located nearby, i.e. Madhmaheshwar (Second kedar), Tungnath (Third kedar) and Deoria Tal (a natural fresh water lake) and many other picturesque places. According to Hindu Mythology, Wedding of Usha (Daughter of Vanasur) and Anirudh (Grandson of Lord Krishna) was solemnized here. By name of Usha this place was named as Ushamath, now known as Ukhimath. King Mandhata penances Lord Shiva here. During winter the Utsav Doli of Lord Kedarnath is brought from Kedarnath to this place. Winter puja of Lord Kedarnath and year-round puja of Lord Omkareshwar is performed here. This temple is situated at Ukhimath which is at a distance of 41 km from Rudraprayag.




Ukhimath has many other ancient temples dedicated to several Gods and Goddesses such as Usha, Shiva, Aniruddha, Parvati, and Mandhata.[3] Situated on the road connecting Guptkashi with Gopeshwar, the holy town is mainly inhabited by the head priests of Kedarnath known as Rawals.

Ukhimath has an All India Radio Relay station known as Akashvani Ukhimath. It broadcasts on FM frequencies

विभिन्न पर्यटक स्थलों और यात्राओं से जुडी की जानकारी। और ये जानकारी आपको सहायता करेगी इन स्थानों में जाने से पहले क्या तैयारियां की जाएँ, कैसे पंहुचा जाए, और वहां के मुख्य आकर्षण। इसलिए अलग अलग स्थानों से जुडी रोचक जानकारियों से अपडेट रहने हेतु हो सके तो PopcornTrip youtube चैनल subscribe करें। चैनल पर विजिट करने के लिए धन्यवाद।





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Delicious Jalebiya Almora Ki

अल्मोड़ा अपनी प्राकर्तिक सुंदरता के साथ और भी कई बातों के लिए जाना जाता है

जिनमे से एक नाम आते ही – मुँह में मिठास घुल जाती हैं। वो हैं – अल्मोड़ा में कारखाना बाजार स्थित जलेबियो की मशहूर दुकान, इस दुकान की स्थापना कुछ तक़रीबन 70-80 साल पहले – स्वर्गीय किशन दत्त जोशी जी ने की थी, उनकी विरासत को आज उनके पुत्र आगे बढ़ा रहे हैं.

अल्मोड़ा मशहूर जलेबियों की यह दुकान, ब्रैंडिंग स्ट्रैटेजिस्ट के लिए शोध का विषय हो सकता हैं कि – दुकान के बाहर आज भी कोई बोर्ड नहीं हैं, कही कोई ब्रांडिंग नहीं हैं.




फिर भी जब जलेबियो का आनंद लेने का मन हो, तो अल्मोड़ा के स्थानीय निवासीयो को पहला ध्यान इसी दुकान का आता हैं. और यहाँ बैठकर दूध या दही के साथ जलेबियाँ लेने पर तो इसका जायका और भी बढ़ जाता हैं।

हर उम्र के लोग आनंद लेते गरमागरम जलेबियो का, यहाँ नज़र आते हैं, दिलचस्प बात यह हैं कि – यहाँ आप जिन जलेबियों का स्वाद लेंगे – उन्हें अपने सामने बनते हुए देख सकते हैं, दिन भर यहाँ स्वादिष्ट जलेबियाँ बनती रहती हैं – और हाथो हाथ बिक जाती हैं.




इस वीडियो को देखते हुए आया आपके में मुहं में पानी, तो आइये अल्मोड़ा और लीजिये खूबसूरत वादियों का आनंद साथ में माउथ मेल्टिंग जलेबिया,

आपको जलेबियाँ पसंद हों या वीडियो अच्छा लगा हो तो, लाइक का बटन दबायें – कमेंट कर बताएं आपके अनुभव, और अपने मित्रो को परिचित कराएं – अल्मोड़ा की एक डेलिकेसी से|

Mana Village

आज आप जानेंगे बद्रीनाथ धाम से तक़रीबन 4 किलोमीटर की दुरी पर भारत तिब्बत सीमा पर स्थित माणा गांव के बारे में…
viewers इसी चैनल में हम इसे पहले बद्रीनाथ धाम aur mana gaon की विस्तृत जानकारी देता वीडियो आपके लिए ला चुकें हैं jiska link aapko screen kee uppari hisse aur neeche discription mei bhi mil jaayega,
नमस्कार viewers, popcornTrip में आपका स्वागत हैं, इस वीडियो में जानेगे-
mana gaon, vyas gufa, bhim pul, vasu dhara aadi ke baare mein

बद्री धाम के कपट खुलने का समय/ कब आयें –

हिमालय में बद्रीनाथ से तीन किमी आगे समुद्रतल से 3111 मीटर की उचाई पर बसा गुप्त गंगा और अलकनंदा के संगम पर भारत-तिब्बत सीमा से लगे है भारत का अंतिम गाँव माणा।

बद्रीनाथ आने वाले श्रद्धालु माणा गाँव भी जरूर आते हैं, सड़क से लगभग आधा किलोमीटर पैदल चल कर यहाँ पंहुचा जा सकता हैं,

भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित इस गाँव के आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमें व्यास गुफा, गणेश गुफा, सरस्वती मन्दिर, भीम पुल, वसुधारा आदि मुख्य हैं।




माणा में कड़ाके की सर्दी पड़ती है। यह एक छोटा सा गांव है जहां के लोग मई से लेकर अक्तूबर तक इस गांव में रहते हैं, क्योंकि बाकी समय यह गांव बर्फ से ढका होता है। सर्दियां शुरु होने से पहले यहां रहने वाले ग्रामीण नीचे स्थित चमोली जिले के गाँवों में shift ho jaate हैं।

इस गांव में एक ऊंची पहाड़ी पर बहुत ही सुन्दर गुफा है, ऐसी मान्यता है कि व्यास जी इसी गुफा में रहते थे। व्यास गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर वेदव्यास ने पुराणों की रचना की थी वर्तमान में इस गुफा में व्यास जी का मंदिर बना हुआ है।

व्यास गुफा को बाहर से देखकर ऐसा लगता है मानो कई ग्रंथ एक दूसरे के ऊपर रखे हुए हैं। इसलिए इसे व्यास पोथी भी कहते हैं।

व्यास गुफा के पास एक बोर्ड लगा है. ‘भारत की आखिरी चाय की दुकान’ जी हां, इसे देखकर हर सैलानी और तीर्थयात्री इस दुकान में चाय पीने के लिए जरूर रुकता है.




यहां से लगभग सौ दो सौ मीटर नीचे की और उतरने पर स्थित है भीमपुल
कहा जाता है कि जब पांडव स्वर्ग को जा रहे थे तो उन्होंने इस स्थान पर सरस्वती नदी से जाने के लिए रास्ता मांगा, लेकिन सरस्वती ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और मार्ग नहीं दिया. ऐसे में महाबली भीम ने दो बड़ी शिलाएं उठाकर इसके ऊपर रख दीं, जिससे इस पुल का निर्माण हुआ. पांडव तो आगे चले गए और आज तक यह पुल मौजूद है.
यह भी एक रोचक बात है कि सरस्वती नदी यहीं पर दिखती है, इससे कुछ दूरी पर यह नदी अलकनंदा में समाहित हो जाती है. नदी यहां से नीचे जाती तो दिखती है, लेकिन नदी का संगम कहीं नहीं दिखता. इस बारे में भी कई मिथक हैं, जिनमें से एक यह है कि महाबली भीम ने नाराज होकर गदा से भूमि पर प्रहार किया, जिससे यह नदी पाताल लोक चली गई.
दूसरा मिथक यह है कि जब गणेश जी वेदों की रचना कर रहे थे, तो सरस्वती नदी अपने पूरे वेग से बह रही थी और बहुत शोर कर रही थी. आज भी भीम पुल के पास यह नदी बहुत ज्यादा शोर करती है. गणेश जी ने सरस्वती जी से कहा कि शोर कम करें, मेरे कार्य में व्यवधान पड़ रहा है, लेकिन सरस्वती जी नहीं मानीं. इस बात से नाराज होकर गणेश जी ने इन्हें श्राप दिया कि आज के बाद इससे आगे तुम किसी को नहीं दिखोगी.
वसुधारा- माणा से लगभग 5 किमी की दूरी पर बसुधारा प्रपात है यहां पर जलधारा 500 फीट की ऊंचाई से
गिरती है। ऐसा कहा जाता है कि जिसके ऊपर इसकी बूंदें पड़ जायें उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।




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धन्यवाद

सम्पूर्ण उत्तराखंड जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, जहाँ के हर हिस्से से कोई न कोई देवीय कथा जुडी हुई है, फिर चाहे वो कुमाऊँ हो या फिर गढ़वाल.
जहाँ कुमाऊँ में कई मंदिर हैं, वही गढ़वाल में चार धाम स्थित हैं, साथ ही हर भाग में कई ट्रैकिंग रूट मौजूद हैं.
हरिद्वार, ऋषिकेश, यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ, पाताल भुवनेश्वर, जगेशर, पूर्णागिरि, द्रोणागिरी जैसे धार्मिक स्थल हैं, तो राजाजी नेशनल पार्क, कॉर्बेट नेशनल पार्क, बिनसर एक सेंचुरी जैसे रिजर्व्ड फारेस्ट, गंगा, यमुना, अलकनंदा जैसे नदियों का उद्गम स्थल भी यही स्थित है… कई ऋषियों, मुनियो, और स्वयं साक्षात् इश्वर का ध्यान व तप स्थल भी उत्तराखंड रहा है

बदरीधाम कैसे पहुचे
चलिए पहले जान लेते हैं यहाँ कैसे पहुंचे
बदरीधाम तक आप देश के किसी भी हिस्से से हरिद्वार, ऋषिकेश होते हुए पहुच सकते हैं, देहरादून से बद्रीनाथ की दुरी 335 किलोमीटरस, हरिद्वार से 315 km और ऋषिकेश से क्रमशः 295 km, aur ek baar aap badrinath pahuch gaye to mana aap aasani se pahuch sakte hain
screen mei aaapko vibhinn hisso mana pahuche ke liye route chart dikh jayga
(kathgodam – bhimtal – bhowali – kherna – ranikhet – dwarahat – chaukhutia – aadibadri – Karnprayag – langasu – nandprayag – chamoli – pepalkoti – joshimath – govind ghat pandukeshwar – hote hue pahucha jaa sakta hai
dehradun se doiwala – rishikesh – devprayag – shrinagar – rudrapryag – gauchar – karnprayag – langasu – karnprayag – chamoli – pipalkoti hote hue badrinath – 335 km
hariwar se rishikesh – devprayag – srinagar – aur baaki soute same — 315 km
kedarnath se – gaurikund – phata – ukimath- agastmuni – rudraprayag – gauchar – karnprayag- langasu – nandprayag- chamoli – pipalkoti- joshimath – pandukeshwar hote hue badrinath pahucha ja sakta hai – dono dhamo kee duri sadak marg dwara 225 kilometer hai aur tay karne mei lagne waala samay 8 se 10 ghanta

इन सड़क मागों के अलावा अब हवाई मार्ग से भी बदरीनाथ आया जा सकता है जिसके लिये देहरादून, हरिद्वार, एवं गौचर से चार्टेड हेलीकाप्टर सेवायें चलती हैं।

शीतकाल में यहां के निवासी निचले इलाकों की ओर चले आते है और कपाट खुलने से साथ ही वहां पहुचते हैं। उनका एक समय भेड़ों का मुख्य कारोबार हुआ करता था।वे जड़ी बूटियां का संग्रहण व ऊनी वस्त्रों को बनाने का कार्य करते रहे हंै।

माण से पूर्व पहलंे सेना के कैम्प हैं।

व्यासगुफा एवं गणेष गुफा- बसुधारा सतोपंथ मार्ग पर व्यासगुफा है जहां रहकर ऋषि व्यास ने वेदों का सृजन किया। इसके समीप ही गणेश गुफा है।मान्यता है कि गणेश जी ने वेद व्यास के मुख से निकली वाणी को चैव्वन ग्रन्थों में लिपिबद्ध किया था।




भीमपुल- माणा से कुछ दूर सतोपंथ जाने वाले मार्ग पर कुछ दूर सरस्वती नदी है जो एक चट्टान के नीचे से गुजरती है।महाभारत युद्ध के बाद जब पाण्डव यहां से गुजर रहे थे राह में सरस्वती नदी के प्रवाहमान होने से उनका मार्ग अवरुद्ध होने पर भीम ने इस नदी पर एक भारी चट्टान को रखा जिसे भीम पुल जाना जाता है। दायीं हाथ की ओर का रास्ता तिब्बत सीमा के लिये चला गया है। उस ओर प्रवेश की मनाही है।

सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी)- इस स्थान से राजा युधिष्ठिर ने सदेह स्वर्ग को प्रस्थान किया था।इसे धन के देवता कुबेर का भी निवास स्थान माना जाता है। यहां पर सतोपंथ झील है जो बदरीनाथ धाम से 24 किमी. दूर है। यहीं से अलकनंदा नदी का उद्गम होता है।इस मार्ग पर बर्फीली चोटियों के बीच से आकर कई हिमानियां नदी में मिलती है व इसका परिमाण बढ़ाती है।कई श्रद्धालु व पर्यटक सतोपंथ तक की कठिन यात्रा करते हंै और इसमें स्नान करते हैं।बदरीनाथ के अतिरिक्त चार अन्य बदरी मन्दिर आदिबदरी, योगबदरी, वृद्धबदरी, ध्यानबदरी हंै जिनका अपना महात्मय है।

उम्मीद है आपको श्री बदरीधाम से जुडी जानकारियां पसंद आयी होगी
आप सब का मंगल भगवान श्री विष्णु करें, इसी कामना के साथ विदा, फिर मुलाकात होती किसी और सफ़र YA KISI DESTINATION में धन्यवाद,

देवता जागर उत्तराखंड लोक संस्कृति, मां भगवती देवी

Shri Gopeshwar Mahadev Temple

Intro/ Preface
According to video ( as gopeshwar market, location etc)
History/ Story
Altitude, Weather, how to reach, distances, stay
Closing

Intro/ Preface
Popcorntrip mei aap ka ek baar fir se swagat hai, Popcorn Tirp me hamari koshish rahti hai.. Ki aap uttarakhand ko aur karib se jaane.

Hellow viwers, ये खबूसूरत और शांत जगह है गोपेश्वर। और ye आप देख रहें है यहाँ की बाजार और बस व टैक्सी स्टैंड. रविवार को यहाँ बाजार का साप्ताहिक अवकाश रहता है। अभी अभी यहाँ बारिश हुई है जिससे मौसम सुहावना हो गया है। पहाड़ियों में बिखर रहा रहा कोहरा इसे और भी खुशनुमा बना रहा है।




Ye सामने प्रवेश द्वार है श्री गोपेश्वर महादेव मंदिर का, जिसकी दुरी यहाँ से करीब ½ kilometer ke karib है, Taxi stand से लगभग ५०० मीटर पैदल चल कर गोपीनाथ मंदिर तक आसानी से, पंहुचा जा सकता है।
इस लेख में आप जानेंगे उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में चमोली जिले में गोपेश्वर में स्थित श्री गोपीनाथ मंदिर से जुडी बातों को।

गोपीनाथ मंदिर एक प्रसिद्द धार्मिक स्थल उत्तराखंड ये मंदिर भगवन शिव को समर्पित है। प्रतिवर्ष बड़ी संख्यां में यहाँ आकर इस धार्मिक sthal के darshan कर पुण्य प्राप्त करते हैं।




मान्यता है कि – भगवान शिव को समर्पित यह कत्यूरी शासन काल में 9 वीं se 11 वीं शताब्दी के बीच बनाया गया था। गोपीनाथ मंदिर की बनावट उत्तराखंड के अन्य शिव mandiron जैसे केदारनाथ जी और तुंगनाथ से मिलती है।
मन्दिर के आस पास , माँ दुर्गा , श्री गणेश एवं श्री हनुमान जी के मन्दिर हैं।
इस मन्दिर में शिवलिंग, परशुराम, भैरव जी की प्रतिमाएँ विराजमान हैं। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है।

बद्रीनाथ -केदारनाथ मार्ग में, चमोली जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर गोपेश्वर है। और गोपेश्वर उत्तराखंड के अन्य shaharon जैसे ऋषिकेश, देहरादून, हरिद्वार, कर्णप्रयाग aadi से achhi तरह कनेक्टेड है। नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश २२० किलोमीटर , नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून जॉली ग्रांट २५८ किलोमीटर की duri पैर स्थित है।

अब हम पहुंच चुकें हैं मंदिर के समीप, ये यहाँ लगे बोर्ड पर मंदिर के बारे में संछिप्त जानकारी, जैसे यहाँ से अन्य आस पास के प्रमुख स्थानों से यहाँ की दुरी, इस स्थान का संछिप्त परिचय।

यहाँ लगे कुछ शिलापटों में आप यहाँ का संछिप्त विवरण पढ़ सकते हैं।




मंदिर के पीछे कुछ दिलचस्प से लगने वाले पारम्परिक तरीकों से बने लकड़ी, मिटटी और पत्थरों से बने घर।
इन मकानों की खासियत ये होती है, के इनके अंदर गर्मियों में ठंडा और जाड़ों के मौसम में गरम होता है।
छतों में इनके चपटे और बड़े आकर की पत्थरों जिन्हे स्थानीय बोली में पाथर कहते हैं लगे होते हैं, उसके नीचे लकड़ी लगी होती है।

History/ Story

इस मंदिर की स्थापना को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।

एक मान्यता के अनुसार देवी सती के शरीर त्यागने के बाद भगवान शिव जी इसी स्थान में तपस्या में लीन हो गए थे।
और तब “ताड़कासुर” नामक राक्षस ने तीनों लोकों में हा-हा-कार मचा रखा था और उसे कोई भी हरा नहीं पा रहा था।

तब ब्रह्मदेव ने देवताओं से कहा कि भगवान शिव का पुत्र ही ताड़कासुर को मार सकता है। उसके बाद से सभी देवो ने भगवान शिव की आराधना करना आरम्भ कर दिया लेकिन तब भी शिवजी तपस्या से नहीं जागे। फिर भगवान शिव की तपस्या को समाप्त करने के लिए इंद्रदेव ने यह कार्य कामदेव को सौपा ताकि शिवजी की तपस्या समाप्त हो जाए और उनका विवाह देवी पारवती से हो जाए। और उनका पुत्र राक्षस “ताड़कासुर” का वध कर सके।
जब कामदेव ने अपने काम तीरो से शिवजी पर प्रहार किया तो भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। तथा जब शिवजी ने क्रोध में जब कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फैका , तो वो त्रिशूल इसी स्थान में गढ़ गया था ।
यह भी कहा जाता है कि मंदिर के आसपास टूटी हुई मूर्तियों के अवशेष इस बात का संकेत करते हैं कि प्राचीन समय में यहाँ अन्य भी बहुत से मंदिर थे। मंदिर के आंगन में एक ५ मीटर ऊँचा त्रिशूल है, जो १२ वीं शताब्दी का है और अष्ट धातु का बना है।
दन्तकथा है कि जब भगवान शिव ने कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका तो वह यहाँ गढ़ गया। त्रिशूल की धातु अभी भी सही स्थित में है जिस पर मौसम प्रभावहीन है और यह एक आश्वर्य है। यह माना जाता है कि शारिरिक बल से इस त्रिशुल को हिलाया भी नहीं जा सकता, जबकि यदि कोई सच्चा भक्त इसे छू भी ले तो इसमें कम्पन होने लगता है।
गोपीनाथ मंदिर , केदारनाथ मंदिर के बाद सबसे प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में आता है। मंदिर के चारों ओर टूटी हुई मूर्तियों के अवशेष प्राचीन काल में कई मंदिरों के अस्तित्व की गवाही देते हैं। मंदिर के आंगन में एक त्रिशूल है, जो लगभग 5 मीटर ऊंची है, जो आठ अलग-अलग धातुओं से बना है, जो कि 12 वीं शताब्दी तक है।

इस मदिर से जुडी एक अन्य खास बात ये हैं कि यहीं भगवान श्री केदारनाथ जी के अग्रभाग रुद्रनाथ जी की गद्दी शीतकाल में छह माह के लाई जाती है जहां पर शीतकाल के दौरान रुद्रनाथ की पूजा होती है।
भगवान केदारनाथ जी के मुखभाग रुद्रनाथ जी के मंदिर में प्रतिदिन भव्य पूजा की जाती है |




हर रोज सैकडो़ श्रद्धालू यहां भगवान के दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर में शिवलिंग ही नहीं बल्कि परशुराम और भैरव जी की प्रतिमाएं भी स्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है और मंदिर से कुछ ही दूरी पर वैतरणी नामक कुंड भी बना हुआ है, जिसके पवित्र जल में स्नान करने का विशेष महत्व है।
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Garjia Temple

गर्जिया नामक शक्तिस्थल सन १९४० से पहले उपेक्षित अवस्था में था, किन्तु सन १९४० से पहले की भी अनेक दन्तश्रुतियां इस स्थान का इतिहास बताती हैं। वर्ष १९४० से पूर्व इस मन्दिर की स्थिति आज की जैसी नहीं थी, कालान्तर में इस देवी को उपटा देवी के नाम से जाना जाता था। तत्कालीन जनमानस की धारणा थी कि वर्तमान गर्जिया मंदिर जिस टीले में स्थित है, वह कोसी नदी की बाढ़ में कहीं ऊपरी क्षेत्र से बहकर आ रहा था। मंदिर को टीले के साथ बहते हुये आता देख भैरव देव द्वारा उसे रोकने के प्रयास से कहा गया- “थि रौ, बैणा थि रौ। (ठहरो, बहन ठहरो), यहां पर मेरे साथ निवास करो, तभी से गर्जिया में देवी उपटा में निवास कर रही है।

लोक मान्यता है कि वर्ष १९४० से पूर्व यह क्षेत्र भयंकर जंगलों से भरा पड़ा था, सर्वप्रथम जंगलात विभाग के तत्कालीन कर्मचारियों तथा स्थानीय छुट-पुट निवासियों द्वारा टीले पर मूर्तियों को देखा और उन्हें माता जगजननी की इस स्थान पर उपस्थिति का एहसास हुआ। एकान्त सुनसान जंगली क्षेत्र, टीले के नीचे बहते कोसी की प्रबल धारा, घास-फूस की सहायता से ऊपर टीले तक चढ़ना, जंगली जानवरों की भयंकर गर्जना के बावजूद भी भक्तजन इस स्थान पर मां के दर्शनों के लिये आने लगे।





Kaise phuche :

रामनगर तक रेल और बस सेवा उपलब्ध है, उससे आगे yani ki garijiya mandir tk phuchne, aap ranikhet/ bhikiyasen ki aur jaane wali bus se ja sakte hai, jiske liye thoda wait karna pad sakta hain ya taxi le sakte hain। रामनगर में रहने और bhojan के लिये कई achche होटल aur restaurants उपलब्ध है।

Mandir me devi sarswati, bhagwan ganesh aur batuk bharav ki murtiyo ke sath girja devi ki 4.5 feet uchi sangmarmar ki patima hai। mandir me darshn se phle shrdhalu pavitra kosi nadi me snan aadi krte hai or fr 90 sidiya chad ma ke darshn krte hai….or maa ki puja ke bad bhraw devta ki puja ki jati hai …
Mannat puri hone par shiradalu yha ganti v chatra chadate hai….

Yha ane vale sadhraluo ke lie any aarkansh ke kendra hai jim corbett national park, hanuman dham, corbett fall parytak sthal,




Garija mandir aane ka uchit samay:

Saal mai kbhi bhi mndir mai darshan karne aa skte hai par, barsaat ke mousm mai, thoda raste kharab ho jaate hai, kabhi -2 aur kosi nadi ka jalstar bad jaata hain.

Gangotri Temple

गंगोत्रि धाम का, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान है, मंदिर के समीप…गौमुख से ही.. गंगा नदी का udgam होता है अगर आपने… उत्तर भारत के, चारोंधामों ki yatra, एक साथ karni ho to ऐसी मान्यता hai… कि सबसे पहले यमुनोत्री धाम के दर्शन किये जाते हैं…, और उसके बाद का क्रम है गंगोत्री… बद्रीनाथ… और फिर केदारनाथ…. धर्मग्रंथों में कहा गया है, कि जो यहां का दर्शन करने में सफल होते हैं उनका न केवल इस जनम का पाप धुल जाता है वरन वे जीवन-मरण के बंधन से भी मुक्‍त हो जाते हैं। इन धामों में से यमुनोत्री के liye लगभग 7 किलोमीटर का, केदरनाथ के लिए 20 किलोमीटर का trek hai jabki बद्रीनाथ और गंगोत्री धाम sadak ke pass hi isthit hai.

गोमुख – जहां से गंगा नदी का उद्गम होता है, गोमुख गंगोत्री से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर है। गोमुख तक पहुंचने का रास्ता बेहद कठिन और दुर्गम है.गंगोत्री एक ग्लेशियर है और गोमुख, इसी का एक हिस्‍सा है. जहां से बर्फ पिघलकर गंगा बनने के लिए आगे बढ़ती है. ये एक उच्च हिमालयी छेत्र है, जहाँ ऑक्सीजन की कमी रहती है, साथ ही गोमुख जाने का मार्ग भी कही कही par काफी संकरा और जोखिम भरा है, एक तरफ पत्थर और मलवे के पहाड़, और दूसरी और नदी, इस तरह ke ट्रेक करने से पहले, आपको apne sarir ko iske lie anukul krna होता है
यह ग्‍लेशियर चारो तरफ से हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं जैसे – शिवलिंग, थलय सागर, मेरू और भागीरथी तृतीय की बर्फीली चोटियों से घिरा हुआ है।

Adi Badri Mandir

उत्तराखंड के चमोली जिले में बदरीनाथ धाम के अलावा छह और बद्री विद्यमान है… जो हैं… वृद्धबद्री, ध्यानबद्री, अर्धबद्री, भविष्यबद्री, योग-ध्यानबद्री व आदिबद्री, अगर आप बद्रीधाम दर्शन की यात्रा में निकले हों तो इन धामों का भी दर्शन कर अपनी यात्रा को सफल बनायें … आदि बद्री उत्तराखंड के प्रसिद्द्ध सप्त बद्री में भी शामिल है… भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर – १६ मंदिरों का समूह, उत्तराखंड में चमोली ज़िले में कर्णप्रयाग से 19 किलोमीटर दूर कर्ण प्रयाग – रानीखेत रोड पर स्तिथ हैं. आदि का तात्पर्य होता है प्राचीन, ऐसी मान्यता हैं – कि सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग में भगवान विष्णु यहाँ रहते थे और कलयुग में वे श्री बद्रीनाथ में निवास करते हैं, इसलिए इसे आदि बद्री के नाम से जाना जाता है…

महर्षि वेद व्यास जी द्वारा यहाँ श्री मद भागवत गीता पुराण भी इसी स्थान में लिखा गया. आदि बद्री को सरस्वती नदी के उद्गम स्थान के रूप में भी जाना जाता है.

किंबदंती है कि इन मंदिरों का निर्माण स्वर्गारोहिणी पथ – पर उत्तराखंड आये पांडवों द्वारा किया गया। यह भी माना जाता है कि इसका निर्माण कि आदि गुरु शंकरचार्य ने इन मंदिरों का निर्माण शुरू किया था। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षणानुसार के अनुसार इनका निर्माण 8वीं से 11वीं सदी के बीच कत्यूरी राजाओं द्वारा किया गया। कुछ वर्षों से इन मंदिरों की देखभाल भारतीय पुरातात्विक के सर्वेक्षणाधीन है।

मूलरूप से इस समूह में 16 मंदिर थे, जिनमें 14 अभी बचे हैं। प्रमुख मंदिर भगवान विष्णु का है । इसके सम्मुख एक छोटा मंदिर भगवान विष्णु की सवारी गरूड़ को समर्पित है। समूह के अन्य मंदिर अन्य देवी-देवताओं यथा सत्यनारयण, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, चकभान, कुबेर (मूर्ति विहीन), राम-लक्ष्मण-सीता, काली, भगवान शिव, गौरी, शंकर एवं हनुमान को समर्पित हैं। इन प्रस्तर मंदिरों पर गहन एवं विस्तृत नक्काशी है तथा प्रत्येक मंदिर पर नक्काशी का भाव उस मंदिर के लिये विशिष्ट तथा अन्य से अलग भी है।

आदि बद्री मंदिर की पूजा पास ही थापली गांव के रहने वाले थपलियाल परिवार के पूजारी करते हैं जो पिछले पांच-छ: पीढ़ियों से इस मंदिर के पुजारी रहे हैं। आदि बद्री धाम के कपाट शीतकाल में एक माह के लिए बंद रहते हैं, इस मंदिर में भगवान विष्णु के 1 मीटर/ ३ फुट ऊंची काले की पत्थर की मूर्ति स्थापित है । विष्णु निश्चित रूप से, बिद्रीनाथ का एक और नाम है इसलिए इस मंदिर को आदिबद्री भी कहा जाता है। यह पांच बद्रि (पंच बद्री) में से एक है, विशाल बद्री, योग-ध्यान बद्री, वृद्ध बद्री और भविष्य बद्री। सभी पांच तीर्थस्थल यहाँ से निकटता में ही स्थित हैं।

कैसे पहुंचें:

बाय एयर
गढ़वाल क्षेत्र आने पर निकटम हवाई अड्डा देहरादून में जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो आदिबद्री से लगभग 210 किमी दूर है। और कुमाऊँ क्षेत्रसे आने पंतनगर करीब 222 किलोमीटर की दुरी पर हैं.

ट्रेन द्वारा
गढ़वाल में ऋषिकेश, हरिद्वार और देहरादून सभी के पास रेलवे स्टेशन हैं। आदिबद्री से निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश (लगभग 192 किमी) हैकुमाऊँ में काठगोदाम रेलवे स्टेशन से अदिबद्री की दुरी करीब 188 किलोमीटर हैं. निकटतम रेलवे स्टेशन से बस, टैक्सी द्वारा अदिबद्री पंहुचा जा सकता हैं..

सड़क के द्वारा
कर्णप्रयाग से 19 कि०मी० दूर आदिबद्री पहुंचा जा सकता है जो वापसी में रानीखेत, नैनीताल और रामनगर के साथ एक मोटर रोड से जुड़ा हुआ है।

आदि बद्री मंदिर के हर वर्ष नवम्बर माह दिवाली के बाद कपाट बंद होते हैं मकर संक्रांति के अवसर पर द्वार खुलते हैं. अदि बद्री आने के लिए पुरे वर्ष अच्छा समय हैं बरसात में रोड कनेक्टिविटी में कभी – कभी अवरोध मिल सकता हैं। आदि बद्री में ठहरने के लिए कुछ प्राइवेट गेस्ट हाउस के साथ, गढ़वाल मंडल निगम का एक गेस्ट हाउस भी हैं, जहाँ ठहरा जा सकता हैं, इसके अतिरिक्त रात्रि विश्राम – कर्णप्रयाग में भी किया जा सकता हैं, जहाँ ठहरने के लिए बहुत सारे होटल, गेस्ट हाउस हैं।

Badrinath Travel Guide

बद्रीनाथ धाम : हिमालय के शिखर पर स्थित बद्रीनाथ मंदिर हिन्दुओं की आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य में चमोली जिले में जिला मुख्यालय चमोली से १०० किलोमीटर की दुरी पर अलकनंदा नदी के किनारे बसा है। मूल रूप से यह धाम विष्णु के नारायण रुप को समर्पित है।। बद्रीनाथ मंदिर को आदिकाल से स्थापित माना जाता है।

बद्रीनाथ मंदिर के कपाट प्रतिवर्ष अप्रैल के अंत या मई के प्रथम पखवाड़े में दर्शन के लिए खोल दिए जाते हैं। कपाट के खुलने के समय मन्दिर में अखण्ड ज्योति को देखने को बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का तांता रहता है।

अधिक जानने के लिए वीडियो देखें।

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Reetha Sahib Gurudwara Vlog


सिक्खों और हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का केंद्र, श्री रीठा साहिब, उत्तराखण्ड के चम्पावत जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 72 कि.मी. की दुरी पर ड्युरी नामक एक छोटे से गांव में लोदिया और रतिया नदी के संगम पर स्थित है । गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब उत्तराखंड के चमोली जिले में है। यह गुरुद्वारा समुद्र स्तर से 4000 मीटर की ऊंचाई पर है। बर्फबारी के कारण यात्रियों की सुरक्षा के लिए इसे अक्टूबर से अप्रैल तक बंद कर दिया जाता है। नानकमत्ता गुरुद्वारा से श्री रीठा साहिब पहुचने का मार्ग खटीमा, टनकपुर, चम्पावत, लोहाघाट, धुनाघाट से होते हुए आता है ।

चीड के जंगलों से घिरा हुआ और साथ के हरे भरे उपजाऊ भूमि और नदी से लगा हुआ रीठा साहिब गुरुद्वारा आईये चलते हैं गुरुद्वारा दर्शन को… ये रीठा साहिब बाजार, यहाँ डेली नीड्स की जरूरतों आदि के दुकाने और एक बैंक पंजाब & सिंध बैंक की एक शाखा है. और बाजार से आगे बद हम बद रहें है गुरद्वारे की ओर , यहाँ पर मार्ग संकरा होने की साथ साथ काफी तेज ढलान वाला भी है… ये देखिये सामने रस्ते में ढलान की साथ साथ मोड़ भी है, यहाँ पर काफी धीमी गति में और सावधानी पूर्वक अपना वाहन चल्यें … और अब हम पहुचे हैं गुरूद्वारे के एंट्रेंस पर, एंट्रेंस से लगा हुआ ही पार्किंग स्पेस है… , पार्किंग से लगा हुआ ही रिसेप्शन हैं… यहाँ आपने रुकना हो तो यहाँ आपको एंट्री करनी होती है और पहचान सम्बन्धी डाक्यूमेंट्स जैसे DL, वोटर id कार्ड, आधार कार्ड, आदि दिखाने होते हैं, यहाँ आपको काफी रियायती दरो में कमरे अलग अलग श्रेणी जैसे dormitory, डबल एंड फोर bedded फॅमिली room आदि। जो रु 300, 500, 800 प्रतिदिन के मूल्य पर  उपलब्ध हैं. …. ये रिसेप्शन से बाहर से दिखने वाला दृश्य जहाँ राईट हैण्ड को रुकने के लिए कमरे, सामने मुख्य गुरूद्वारे के लिए प्रवेश द्वार, और बाये रसोई घर और dining एरिया है … और ये सामने दिख रहा पार्किंग एरिया… चारो और पहाड़ियों के बीचो बीच बसे इस स्थान में पीछे चलती गुरुबानी की मधुर आवाज और मधुर संगीत की आवाज सुन आपको अलग ही आनंद और शांति की प्राप्ति होती है..;.

इस गुरुद्वारे का निर्माण 1960 में करवाया गया था । गुरूद्वारा रीठा साहिब उत्तराखण्ड राज्य के समुद्री तल से लगभग 7,000 फुट की ऊच्चाई पर स्थित है | इस स्थान के बारे में यह कहा जाता है कि गुरु नानक जी ने इस जगह का दौरा किया था यह जगह एक खास तरह के मीठे रीठा के पेड़ों के लिए भी प्रसिद्ध है । यहां तीर्थयात्रियों के आवास, भोजन आदि सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इस तीर्थ स्थल में तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए करीब दो सौ कमरे और सराय हॉल है। हरसाल लाखों लोग गुरुनानक की आध्यात्मिक शक्ति के चमत्कार को नमस्कार करने आते हैं।

गुरद्वारे में जाने के लिए आपको अपने जुते चप्पल उतार कर अपने पेरो को रस्ते में बने कुंड में डूबा कर धोना होता है… जिससे आपके पेरो के द्वारा कोई गन्दगी गुरुदारे में ना जाए, साथ ही अपने सर को ढकना भी होता है ।

एक रीठा का वृक्ष (मूल नहीं है) अभी भी यहां है और तीर्थयात्रियों को मिठाई में रीठे का रस का प्रसाद दिया जाता है । गुरुद्वारा से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर, एक ऐसा बगीचा है जहां ऐसे पेड़ उगते हैं और उनके फल एकत्र किए जाते हैं और उन्हें गुरुद्वारा के प्रसाद का भंडार भरने के लिए लाया जाता है। इसे नानक बागीच कहा जाता है।

इस स्थान के बारे में यह मान्यता है कि सन् 1501 में सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव (1469-1539) अपने शिष्य “बाला” और “मरदाना” के साथ रीठा साहिब आए थे | इस दौरान गुरु नानक देव जी की उनकी मुलाकात सिद्ध मंडली के महंत “गुरु गोरखनाथ” के चेले “ढ़ेरनाथ” के साथ हुई| इस मुलाकत के बाद दोनों सिद्ध प्राप्त गुरु “गुरु नानक” और “ढ़ेरनाथ बाबा” आपस में संवाद कर रहे थे | दोनों गुरुओं के इस संवाद के दौरान मरदाना को भूख लगी और उन्होंने गुरु नानक से भूख मिटाने के लिए कुछ मांगा | तभी गुरु नानक देव जी ने पास में खड़े रीठा के पेड़ से फल तोड़ कर खाने को कहा, लेकिन रीठा का फल आम तौर पर स्वाद में कड़वा होता हैं, लेकिन जो रीठा का फल गुरु नानक देव जी ने भाई मरदाना जी को खाने के लिए दिया था वो कड़वा “रीठा फल” गुरु नानक की दिव्यता से मीठा हो गया | जिसके बाद इस धार्मिक स्थल का नाम इस फल के कारण “रीठा साहिब” पड़ गया|

साथ ही रीठा साहिब गुरुद्वारे की यह मान्यता है कि रीठा साहिब में मत्था टेकने के बाद श्रद्धालु ढ़ेरनाथ के दर्शन कर अपनी इस धार्मिक यात्रा को सफल बनाते है | आज भी यहाँ होने वाला रीठा का फल खाने में मीठा होता है और और गुरूद्वारे द्वारा इन्ही मीठे रीठो का प्रसाद श्रध्हलुवों को प्रसाद स्वरुप दिया जाता है। वर्तमान समय में वृक्ष अभी भी गुरुद्वारा के परिसर में खड़ा है । इस गुरुद्वारे के निकट ढ़ेरनाथ jee का मंदिर स्थित है |

बैसाखी पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है | शान्ति का केन्द्र होने के साथ-साथ यह गुरूद्वारा दशकों से आपसी भाईचारे का भी प्रतीक है ।

रीठा साहिब कैसे पहुँचे? How to reach Reetha Sahib Gurudwara
गुरुद्वारा रीठा साहिब लोहाघाट से 64 किमी. की दूरी पर है। यहाँ रोड द्वारा पहुँचा जा सकता है. यहाँ नॅशनल हाइवे नंबर 125 से पहुँचा जा सकता है. यहाँ से नज़दीक रेलवे स्टेशन, टनकपुर रेलवे स्टेशन है जो यहाँ से 142 किमी दूर पर स्थित है. काठगोदाम रेलवे स्टेशन से 160 किमी की दूरी पर स्थित है. रीठा साहिब रोडवेज बस या प्राइवेट टेक्सी से पहुँचा जा सकता है. यहाँ रोड द्वारा दो अलग अलग रूट से पहुँचा जा सकता है-
टनकपुर—> चंपावत—->लोहाघाट —->रीठा साहिब
हल्द्वानी—->देवीधुरा—–>रीठा साहिब

कैसे पहुंचें:

बाय एयर
मीठा रीठा साहिब से निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है जो कि उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले में 160 किमी दूर स्थित है। पंतनगर हवाई अड्डे से मीठा रीठा साहिब तक टैक्सी उपलब्ध हैं। पंतनगर एक सप्ताह में चार उड़ान दिल्ली के लिए उपलब्ध है |

ट्रेन द्वारा
मीठा रीठा साहिब चम्पावत से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। टनकपुर रेलवे स्टेशन से मीठा रीठा साहेब तक टैक्सी और बस आसानी से उपलब्ध हैं। टनकपुर लखनऊ, दिल्ली, आगरा और कोलकाता जैसे भारत के प्रमुख स्थलों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ट्रेन टनकपुर रेलवे स्टेशन के लिए उपलब्ध होती है और रीठा साहिब टनकपुर के साथ मोटर वाहनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

सड़क के द्वारा
मीठा रीठा साहिब उत्तराखंड राज्य और उत्तरी भारत के प्रमुख स्थलों के साथ मोटर वाहनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आईएसबीटी आनंद विहार की बसें टनकपुर, लोहाघाट और कई अन्य गंतव्यों के लिए उपलब्ध हैं, जहां से आप आसानी से स्थानीय कैब या बस तक पहुंच सकते हैं

स्टे
मीठा रीठा साहिब में होटल और साथ ही गुरुद्वारा में आवास की सुविधा है।