गैरसैंण – उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी
गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में मान्यता मिलना, उत्तराखंड के अपेक्षाकृत कम विकसित – पर्वतीय भूभाग के विकास के लिए अच्छी शुरुआत हो सकती हैं। आइये देखें कैसा हैं – गैरसैण।
गैरसैण उत्तराखण्ड के बीचों-बीच तथा सुविधा सम्पन्न क्षेत्र माना जाता है। उत्तराखण्ड राज्य के मध्य में होने के कारण बर्षों से चले आ रहे पृथक उत्तराखण्ड राज्य की स्थाई राजधानी के रूप में सर्वमान्य स्वीकार किया जाता रहा है। भौगोलिक दृष्टि से यहॉं की जलवायु को गर्म माना जाता है।
गैरसैंण – दो शब्दों से मिलकर बना है। “गैर” तथा “सैंण”। स्थानीय बोली में गैर का अर्थ हैं – गहरा तथा सैंण नामक शब्द समतल, यह एक ऐसा स्थान हैं – जो मैदानी और पहाड़ी – दोनों तरह के भौगिलिक विशेषताएं लिए सुन्दर भूभाग हैं.
ईसा से 2500 वर्ष पूर्व से लेकर सातवीं शताब्दी तक यह क्षेत्र कत्यूरियों के अधीन रहा, तत्पश्चात तेरहवीं शताब्दी से लगभग सन् १८०३ तक गढ़वाल के परमार राजवंश के अधीन रहा। सन् १८०३ में आये एक भयंकर भूकंप के कारण इस क्षेत्र का जन-जीवन व भौगोलिक-सम्पदा बुरी तरह तहस-नहस हो गया था, और इसके कुछ समय बाद ही गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा के नेतृत्व में गोरखाओं ने इस क्षेत्र पर आक्रमण कर कब्ज़ा कर लिया और १८०३ से 1815 तक यहां गोरखा राज रहा। 1815 के गोरखा युद्ध के बाद 1815 से 14 अगस्त, 1947 तक ब्रिटिश शासनकाल रहा। इसी ब्रिटिश शासनकाल के अन्तराल 1839 में गढ़वाल जिले का गठन कर अंग्रेजी हुकूमत ने इस क्षेत्र को कुमाऊँ से गढ़वाल जिले में स्थानांतरित कर दिया तथा 20 फरवरी 1960 को इसे चमोली जिले बना दिया गया।
गैरसैंण पहुॅंचने के लिये निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर में की 200 किलोमीटर दूर है। जहॉं से सुविधानुसार टैक्सी अथवा कार द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। गैरसैंण के लिये दूसरा निकटम जॉलीग्राण्ट एअरपोर्ट 235 किलोमीटर की दूरी पर है।
गैरसैंण के टूर के लिए देखें वीडियो।