उत्तराखंड आपदा के समय, नैनीताल जिले के एक होम स्टे के अनुभव।

admin
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पिछले वर्ष अक्टूबर माह मे जब नैनीताल जिले में बहुत ही ज्यादा बारिश होने से प्राकृतिक आपदा आई थी, कई मकान और खेतों के साथ सड़क के कई हिस्से बह गए, और उस अतिवृष्टि का सबसे ज्यादा प्रभावित रामगढ़/ मुक्तेश्वर क्षेत्र हुआ, हम उन दिनों वहीं एक गाँव सुपी किरोड स्थित एक होम स्टे में रुके थे।

जब हम हम सुपी किरोड़ पँहुचे – मौसम बहुत अच्छा था, अगले तीन दिन हमने आस पास के जंगल की सैर की, एवं निकटवर्ती पहाड़ियों में ट्रेकिंग की। इस पर हमने एक वीडियो भी बनाया जो हमारे यूट्यूब चैनल में देखा जा सकता है।

लेकिन जिन बातों का जिक्र हमने वीडियों मे नहीं किया वो यहाँ है।

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तीन दिन का अच्छा समय बीतने के बाद – चौथे दिन अचानक मौसम खराब होने लगा, दिन भर होम स्टे के छोटे से कमरे के अंदर रहे। शाम तक लाइट भी चली गयी, पता चला कि – बिजली के कुछ खंबे गिर गए हैं। AirTel, Jio के सिग्नल वैसे भी कमरे के भीतर आते नहीं थे, इसलिए इंटरनेट भी नहीं था। बाहरी दुनिया से संपर्क नहीं हो पा रहा था। सिग्नल के लिए थोड़ा ऊपर की ओर जाना होता, लेकिन इस बारिश मे कैसे बाहर निकल पाते। ऊपर से ठंड, बाहर निकलते ही कपकपी छूट जाती, मोबाइल की उपयोगिता रात मे रोशनी देना रह गयी थी।

अगले दिन मौसम बारिश और तेज और लगातार होने लगी, रह रहकर आसमान तेज गर्जना करता, कमरे के अंदर आपस मे बात करने के लिए भी ऊंची आवाज़ मे बोलना होता, जलधारा इतनी तेज थी कि हमने अपने आस पास ही खेतों के कुछ हिस्से – पानी की तेज धारा के साथ बहते देखे, साथ ही वहाँ से दिखने वाले सामने पहाड़ी मे बसे गाँव के दृश्य भी डराने वाले थे – कई मकानों के नीचे से उनकी नीव का कुछ हिस्से ही बह गए थे या कुछ बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे।

एक और दिन यह सिलसिला जारी रहा, हमें जानकारी मिली कि – गाँव के कई मकानों, रास्तों को नुकसान हुआ है। गाँव तक आती motorable सड़क के कुछ हिस्से ही बह गए है, जिससे गाँव का सड़क संपर्क भी कट गया।

शाम को बारिश भी कम होने लगी, लेकिन लगातार चलने वाली इस अप्रत्याशित वर्षा ने वहाँ कि ज़िंदगी को उथल पुथल कर रख दिया। इस खूबसूरत जगह की तस्वीर बदल गई थी, जगह जगह लेंड स्लाइड, टूटे रास्ते। फिर हिम्मत नहीं हुई कि – इस जगह camera ऑन कर सकें, आप जिस तस्वीर को देख रहे है वो इसी गाँव की है, बारिश के पूर्व।

ऐसी आपदा सामान्यतः बरसात के दिनों में भी नहीं आती, मॉनसून के बाद लोग घास काट उनके गट्ठे बनाकर खेतों मे ही सुखाने के लिए रख देते है, और अचानक अत्यधिक परिमाण मे आई इस बारिश के पानी को निकास का रास्ता नहीं मिला, जिससे बारिश से इकठ्ठा हुए पानी ने अपने हिसाब से इधर – उधर से रास्ता बना लिया, और उसका स्वरूप और भी विकराल हो गया।

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इस लगातार बारिश के बाद – जब यह बंद हुई – तो हमने वापस लौटने का निश्चय किया, लेकिन सड़क कई जगह टूट गयी थी। जिसके अगले 3-4 दिन तक खुलने की संभावना नहीं थी, हम जिस टैक्सी से आए थे, वो हमें ड्रॉप कर वापस चली गयी थी, यहाँ से दूसरी टैक्सी लेनी थी, लेकिन सड़क तो बंद थी। तब अब वापस कैसे जाएँ!

जिस होम स्टे मे हम रुके थे वो मुख्य सड़क से लगभग एक किलोमीटर दूर था, समान ज्यादा था, जिसको ले जाने के लिए खच्चर तो उपलब्ध था, लेकिन पैदल मार्ग भी कई जगह से बुरी तरह टूट गए थे, या बह गए थे। कच्चे और टूटे रास्तों से जैसे तैसे आगे बढ़े, रास्ते इतने खराब हो चुके थे कि – जूते कीचड़ मे धस रहे थे, कपड़े पूरे भीग गए, जिससे ठंड भी लग रही थी। कुछ जगह गधेरे (पहाड़ी से आती तेज नहर/ नाले), जिनमे घुटनों तक पानी था, और बहुत तेज वेग से बह रहे थे, को पार कर आगे एक ऐसी जगह पहुंचे जहां से कसियालेख के लिए पैदल मार्ग था।

कसियालेख कुछ किलोमीटर दूर नजदीकी मार्केट हैं, जहां से आगे सड़क खुली होने की संभावना थी। जहां हम रुके थे, उसके निकट ही एक केंप साइट भी थी, जिसमे दिल्ली, गुड़गाँव से कुछ और पर्यटक भी अपने वाहनो मे आए थे, – जिन्हे तीन चार दिन पहले वापस जाना था, लेकिन सड़क टूटने और खराब मौसम के कारण उन्हे कुछ और दिन रुकना था। उस समय हम यह सोचकर रिलैक्स हुए कि, यहाँ हम अपने वाहन से नहीं आए थे। इसलिए हमारे पास ट्रेक कर, कुछ पैदल चलकर ही सही, आगे का सफर जारी रखने का तो ऑप्शन है।

कसियालेख पहुंचने के लिए फिर से पैदल चलना था – स्थानीय लोगों ने एक ट्रेकिंग रूट सुझाया जो जंगल से घिरा था, समस्या यह थी कि साथ मे थोड़ा ज्यादा समान था, जिसे ले जाने के लिए हमें किसी सहायता की आवश्यकता थी। जो मजदूर वहाँ थे, उन्हे सड़क ठीक करने का काम मिला था, थोड़ा – बहुत प्रयासों के बाद वहाँ के इंटर कॉलेज मे पढ़ने वाले दो बच्चे मिले, जो थोड़ा सा समान उठाकर हमारे साथ कसियालेख तक चलने को तैयार हो गए।

लगभग दो घंटे की ट्रेकिंग के बाद के बाद हम कसियालेख पहुचे – यहाँ से आगे भी रोड के हालात बहुत अच्छे नहीं थे। हमें जानकारी मिली कि – रामगढ़ से भीमताल के बीच और उससे आगे भी कई जगह सड़क बंद है। कुछ लोग – क्वारब से खैरना, रानीखेत से रामनगर होते हुए आगे जा रहे है, जो तुलनात्मक रूप से बहुत लंबा है।

कसियालेख से थोड़ी ही दूर है – भटेलिया, जो मुक्तेश्वर से बस 4-5 किलोमीटर पहले है, यहाँ कई टैक्सी मिल जाती है, हम टैक्सी की जानकारी लेने भटेलिया पहुचे – जहां पहुच कर अपडेट मिला कि – भीमताल होते हुए हल्द्वानी की रोड खुल चुकी है लेकिन बहुत जगह जाम है – टैक्सी कम थी, इसलिए टैक्सी वाले भी दो से तीन गुना चार्ज कर रहे थे।

हमारे पास अधिक ऑप्शन नहीं थे – बारिश मे तीन चार दिन बुरी तरह से एक रूम मे बंद होने के बाद हम अब वापस ही लौटना चाहते थे, तो टैक्सी वाले के डिमांड पर ही बुकिंग करा ली, वापस लौटते हुए कई जगह जाम मिला, और अंधेरा होने के बाद अपनी मंजिल पर पहुंचे।

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