हल्द्वानी की कहानी। Haldwani – explore the city

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हल्द्वानी शहर, जो कि नैनीताल जिले मे स्थित हैं और उत्तराखंड के बड़े शहरों मे से एक हैं।

शहर को ‘हल्द्वानी’ नाम कैसे मिला? –  यहाँ हल्दू वृक्षों का घना वन हुआ करता था, और  कितने ही  पशुओ और पंछियो   का  प्रवास, अब तो वह जंगल बस  पुरानी यादो में, बुर्जुगों की बातो में, और इतिहास की किताबो में  हैं। हलदु के वन से इस स्थान को नाम मिला – हल्द्वानी। 

हल्दू  वृक्ष का बोटेनिकल नाम  हैं  – Haldina Cordifolia

कालाढूंगी चौराहे शहर का केंद्र माना जाता है। यहाँ चार मुख्य सड़कें मिलती हैं, जो शहर को देश के अन्य हिस्सों से कनेक्ट करती हैं, ये रोड्स हैं नैनीताल रोड –, बरेली रोड, कालाढूंगी रोड और रामपुर रोड। और ये सब रोड्स मिलती हैं, कालाढूंगी रोड चौराहे, जिसे कालाढूंगी चौराहे भी कहते हैं, ये जगह शहर का केंद्र मानी जाती है। 

कालाढूंगी चौराहे के  पास यहाँ की सबसे बड़ी बाजार हैं, इस बाजार  कई गालिया हैं, कपडे, ज्वेल्लेरी, बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक्स और लभभग हर तरह दुकानें और हर तरह की मार्किट में दुकानों तक पहुंचने के लिए  गलियानुमा रास्ते कार/ ऑटोमोबाइल कम्पनीज के ज्यादातर शोरूम बरैली रोड और रामपुर रोड में हैं।

नैनीताल रोड – बड़े शोरूम्स, माल्स आदि के लिए जानी जाती हैं। कालाढूंगी रोड  मे सबसे घनी आबादी हैं। इसके अलावा इन रोड्स के बीच मे कई कोननेकटिंग रोड्स हैं, जो लेकर जाती हैं – शहर के मोहल्लों और गलियों मे।

पहले कैसा था हल्द्वानी, कैसे विकसित होता गया, कौन सी मुख्य बाजार और मुख्य सड़कें है?  ब्रिटिश हुकूमत से से पहले कौन शासन करता था यहाँ, और हल्द्वानी में मुगल क्यों नहीं कर सकें अधिकार, सहित देखिये शहर हल्द्वानी की दिलचस्प कहानी।




जानिये हल्द्वानी शहर को #Haldwani (Distt: #Nainital), Gateway To Kumaon #Uttarakhand, A short film on Haldwani, Know a few interesting facts, history, geography, tour the city. The story of a city.
Main Roads in Haldwani as Kaladhungi Road, Rampur Road, Bareilly Road, Nainital Road.
Main Crossing – Kaladhungi Chauraha, Educational institution in Haldwani, Hospitals, streets.
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विस्तार से जानने के लिए देखें video

रानीखेत से भवाली

इस मार्ग में सड़क के किनारे पेराफीट का कलर कॉम्बिनेशन ये अहसास कराते हैं कि – आप आर्मी एरिया में हैं. देवदार, बांज बलूत और चीड के वृक्षों से घिरा ये क्षेत्र है रानीखेत का।

रानीखेत जिसे – क्वीन’स मीडो (queen’s meadow) भी कहते हैं – उत्तराखंड में अल्मोड़ा जिले का एक बहुत ही खुबसूरत हिल स्टेशन और छावनी क्षेत्र है।

रानीखेत अपनी प्राकर्तिक खूबसूरती, यहाँ से दिखने वाले विशाल हिमालय श्रंखला, यहाँ के मंदिरों, यहाँ स्थित गोल्फ कोर्स, और खुबसूरत खेतों के लिए सभी का मन जीत लेता है।




सुंदर घाटियां, चीड़ और देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़, शहरी कोलाहल तथा प्रदूषण से दूर अद्भुत सौंदर्य आकर्षण का केन्द्र है। यहाँ, निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम से भवाली, खैरना होते हुए लगभग 80 किलोमीटर की दुरी तय कर पंहुचा जा सकता है।

तो चल पड़िए आप भी इस रानीखेत से भवाली के सफ़र में हमारे साथ डूबते उबरते रहिये अपने अहसासों और यादों के समुन्दर में।

नमस्कार viwers आपका स्वागत है तहे दिल से, popcorn trip की … इस विडियो में हम बात करेंगे यहाँ के कुछ इतिहास, कुछ वर्तमान, कुछ भूगोल, कुछ facts, कुछ सामान्य जानकारी के बारे में और साथ ही जानेंगे और देखेंगे रानीखेत से भवाली तक पड़ने वालें कुछ पहाड़ी कस्बो को, और साथ ही आनंद लेंगे ढेर सारी प्राकर्तिक खूबसूरती का।

अल्मोड़ा/ मझखाली या द्वाराहाट से आते हुए रानीखेत बाजार से पहले आपको इस जगह से दो मार्ग दीखते हैं, राईट हैण्ड साइड वाला रानीखेत मुख्य बाजार से होते हुए और लेफ्ट हैण्ड साइड वाला मार्ग मॉल रोड छावनी छेत्र से होते हुए चिलियानौला के समीप आपस में मिल जातें हैं, हमने ट्रैफिक congesstion से बचने के लिए left हैण्ड वाला मार्ग जो माल रोड होते हुए जाता है वो मार्ग चुना।

छावनी होने से रानीखेत का ये इलाका काफी साफ़ सुथरा, शांत और व्यवस्थित है. स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 के अनुसार रानीखेत दिल्ली और अल्मोड़ा छावनियों के बाद भारत की तीसरी सबसे स्वच्छ छावनी है।





ये यहाँ मॉल रोड स्थित पोस्ट ऑफिस, और military हॉस्पिटल. यहाँ की रिहायशी इलाका नीचे दाहिनी और की और मार्ग सदर बाजार और चिलियानौला के लिए है।

अपर माल रोड से जाने का चार्ज टैक्सी आदि के लिये १० रूपया और प्राइवेट वाहनों के लिये २० रूपया है अपर माल रोड से रानिखेत से यहाँ के दुरी 2.5 किलोमीटर और वाया चिल्यानौअला ६ किलोमीटर है
रानीखेत मॉल रोड स्थित छावनी छेत्र से आगे बढ़ ये मार्ग है रानीखेत – भवाली मोटर मार्ग
बायीं ओर पिलखोली स्थित घट घटेश्वरी मंदिर का प्रवेश द्वार
Ranikhet – se लगभग 11 किलोमीटर एक और चुंगी नाका, यहाँ पर हल्द्वानी से आने वाले वे वाहन जिन्हें मॉल रोड से होकर जाना है उन्हें छावनी परिसर में प्रवेश करने का शुल्क देना होता है . जो की वर्तमान में ३० रुपया है,

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रानीखेत का पिन कोड है – 263645
और STD कोड है 05966

sea लेवल से height – 6132 feet (1869 m) -Ranikhet
2,084 m (Nainital) & 1,642 m (Almora)

मनोरम पर्वतीय स्थल रानीखेत लगभग 25 वर्ग किलोमीटर में फैला है। कुमाऊं क्षेत्र में पड़ने वाले इस स्थान से लगभग 400 किलोमीटर लंबी हिमाच्छादित पर्वत-श्रृंखला का ज़्यादातर भाग दिखता हैं।
छावनी का यह शहर अपने पुराने मंदिरों के लिए मशहूर है।




कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पहले कोई रानी अपनी यात्रा पर निकली हुई थीं। इस क्षेत्र से गुजरते समय वह यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से मोहित होकर रात्रि-विश्राम के लिए रुकीं। बाद में उन्हें यह स्थान इतना अच्छा लगा कि उन्होंने यहीं पर अपना स्थायी निवास बना लिया। चूंकि तब इस स्थान पर छोटे-छोटे खेत थे, इसलिए इस स्थान का नाम ‘रानीखेत’ पड़ गया। दुनिया भर से हर साल लाखों की संख्या में सैलानी यहां मौज-मस्ती करने के लिए आते हैं।

क्योंकि रानीखेत कुमाऊं रेजिमेन्ट का मुख्यालय है, इसलिए यह पूरा क्षेत्र काफ़ी साफ-सुथरा रहता है। cant area होने के कारण यहाँ किसी भी प्रकार का निर्माण प्रतिबंधित है
रानीखेत – उपराडी – बजीना, बजोल, बम्स्युं, पातली, भुजान – खैरना

उपराडी में 4 व्हीलर्स को छावनी परिसद के लिए टोल टैक्स देना होता है,
साफ़ मौसम, गुनगुनी धुप के साथ हलकी सर्द हवाएं मौसम को सुहावना बना रही है
ये न ख़तम होने वाले रस्ते, रास्तो में कहते मुसाफिर, कौन कमबख्त चाहता है ये सफ़र ख़तम हो… इन रास्तो में चलते आपके साथ पेड़, नदी और ये पहाड़ियां… इसीलिए उत्तराखंड टूरिज्म के baseline है Simply Heaven
हाँ पर एस हेवन में यहाँ होना सिम्पल नहीं है ये amazing और अतुलनीय भी है
रानीखेत से खेरना 29 किलोमीटर

रानीखेत के आस पास के आकर्सन – हैडाखान आश्रम, चौबटिया apple गार्डन, दूनागिरी मंदिर, गोल्फ कोर्स, माल रोड, सोहनी बिनसर आदि हैं
और यहाँ के अधिकतर निर्माण अंग्रेजों के समय के हैं’. यहाँ कुछ वर्ष पूर्व रानी lake का निर्माण कराया गया,
रानीखेत शहर से अल्मोड़ा मार्ग में लगभग 5 किलोमीटर की दुरी पर चीड़ के घने जंगल के बीच विश्व प्रसिद्ध गोल्फ मैदान है। उसके पास ही कलिका में कालीदेवी का प्रसिद्ध मंदिर भी है। मजखाली, चौबटिया (10 km), चिलियानौला (6 किलोमीटर) स्थित हेडाखान बाबा का भव्य मंदिर खासतौर से देखने लायक है। खडी बजार, आशियाना पार्क जो की जंगल थीम पर बना आकर्सन का केंद्र है , आर्टिफीसियल रानी झील यहाँ के कुछ प्रमुख , आकर्सन है, बिनसर महादेव – भगवन शिव को समर्पित मंदिर बिनसर महादेव भी यहाँ से कुछ दुरी पर ताडीखेत होते हुए स्थित है।




रानीखेत देश से सभी प्रमुख स्थानों से सड़क मार्ग द्वारा कनेक्टेड है कुछ प्रमुख स्थानों जैसे दिल्ली, देहरादून, चंडीगढ़, आदि से दुरी आप स्क्रीन में देख सकते हैं
नजदीकी रैलवे स्टेशन काठगोदाम ८० किलोमीटर, हवाई अड्डा पंतनगर १३५ किलोमीटर पंतनगर में है. रानीखेत की दूरी नैनीताल से 63 किमी, अल्मोड़ा से 50 किमी, कौसानी से 85 किमी और काठगोदाम से 80 किमी हैं।

रानीखेत सदर बाजार,
रानीखेत के प्राकर्तिक सुन्दरता किसी का भी मन मोह लेती है

रानीखेत से भवाली मार्ग को कुमाओं के बेहतरीन मार्गो में कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, मार्ग के एकंऔर पहाड़ी और दूसरी और ढलान, कभी कभी दिखती नदी, बीच में पड़ते छोटे छोटे गांव जहाँ स्ठित दुकाने, घर और आबादी आपका मन बरबस अपनी और आकर्षित कर लेती हैं,
अगर आप खुद राइड या ड्राइव कर रहें हो तो आपके लिए ये सुझाव है कि अपने वाहन की गति धीमी और नियंत्रित सीमा में ही रखे, क्युकी इन साफ़ हवाओं में साँसे लेना का मौका आपको बार बार नहीं मिलेगा, और ना ही मिलेगा इतना मनलुभावन दृश्यों से परिपूर्ण मार्ग
यहाँ इस मार्ग में आपको कई जगह कुछ दुरी के अन्तराल टी & स्नैक्स और meal के लिए दुकाने मिलती रहती हैं… पहाड़ी मार्गो के बात हे अपने में निराली है, यहाँ का साफ़ वातावरण और ताजगी लिए हवाओं की खुशबू के सामने इत्र की खुसबू कहीं नहीं ठहरती.
ये घुमावदार मोड जिंदगी का अहसास कराते हुए , जहाँ आपको पता नहीं होता अगले पल क्या मिलेगा ऐसे ही इन मोड़ो से गुजरते वक़्त आपको पता नहीं होता की आपको क्या दिखेगा,
एक शायर की मशहूर चंद पंक्तियाँ भी हैं
सफ़र आसान रखना हो तो सामान कम रखिये
जिंदगी आसां रखनी हो तो अरमान कम रखिये

इन रास्तो में आपको हिंदी सिनेमा के कई नए पुराने गीत याद आयेंगे
जैसे युही कट जायेगा सफ़र साथ चलने से, कि मंजिल आएगी नजर साथ चलने से

युही चला चल राही, यु ही चला चल

आगे दिख रहे बोर्ड के मुताबिक हल्द्वानी की दुरी है ७२ किलोमीटर, काठगोदाम 67, नैनीताल 45 और भीमताल है ४२ किलोमीटर की दुरी पर GOPR3301

और फिर से साफ़ सुथरी सड़क, सड़क के किनारे खड़े वाहनों से पता लग रहा है कि यहाँ पर भी कोई restaurnat होगा

अगर आपने कार/ बाइक रेसिंग गेमिंग कभी खेला या देखा हो तो ये सामने दिख रही सड़क, सड़क के किनारे लगे parafit और पहाड़िया आपको किसी रेसिंग गेम का ध्यान दिलाते हैं.




देखने को बहुत कुछ मिलेगा सड़क से चलते हुए कभी सड़क के किनारे दुकान, कभी कोई रिहायशी घर तो कभी ऐसा घर जहाँ लोग नहीं रहते बस उनकी यादें रहती हैं, वो चले गए किसी बेहतर जिंदगी की तलाश में या फिर छोड़ गए अपना आसियान किसी मज़बूरी के कारण वो एक कुछ और चंद पंक्तियाँ याद आ गयी
कोई युहीं क्यों बेवफा हुआ होगा,
कुछ तो बुरा उसे भी लगा होगा

खैर सफ़र है जिंदगी, चलती रहती है, ठहरती कहाँ है, मंजिल में hmmm
मंजिल भी तो बदलते रहती है, ठहराव को अच्छा नहीं समझा जाता

यहाँ पर का दिख रहा दृश्य अल्मोड़ा – खैरना मार्ग के दृश्य से मिलता जुलता है, वैसी ही घुमावदार सड़क, दाहिनी हाथ को नदी और पहाड़ी

कैंची धाम यहाँ से 27 किलोमीटर की दुरी पर रह गया है, खैरना ७ किलोमीटर और भुजान २ किलोमीटर
पहाड़ों में आपको इस तरह से ४ – ५ ट्रक से ज्यादा ट्रक खड़े दिखाई दे तो समाझ जाईयेगा की वहां आस पास कही जल श्रोत होगा, अक्सर ट्रक ड्राइवर्स अपने ट्रक की साफ़ सफाई हेतु ट्रक रात्रि को ऐसे स्थान में खड़ा करते हैं. और ट्रक खड़े होंगे तो संभवतया आस पास कोई ढाबा भी होगा ही

और भुजान ही वह जगह है जहाँ से बेतालघाट को मार्ग जाता है, जिसकी दुरी यहाँ से — किलोमीटर है

ये सामने सड़क जो बेतालघाट को,

अब खैरना पुल से हम गुजर रहे हैं, यहाँ से लेफ्ट हैण्ड को मार्ग अल्मोड़ा के लिए, राईट हैण्ड को मार्ग हल्द्वानी व नैनीताल के लिए… और यहाँ से खैरना भी शुरू हो जाता है… यहाँ भी काफी बड़ी बाजार है, जहाँ लगभग हर तरह का जरुरी सामान मिल जाता है
यहाँ भी एक पेट्रोल पंप मौजूद है
और खैरना से ही लगा हुआ गरम पानी बाजार, यहाँ लेफ्ट हैण्ड साइड को हनुमान जी के मंदिर से लगा हुआ एक प्राकर्तिक जल श्रोत है, जिससे वर्ष भर चौबीसों घंटे पीने का पानी बहता रहता है

और गरम पानी से कुछ ६ सात किलोमीटर की दुरी पर स्थित रातिघाट, यहाँ पर भी छोटी सी बाजार है

अब ये रातिघट से १० किलोमीटर बाद है कैची धाम, स्क्रीन में दिख रहे suggestion link और नीचे डिस्क्रिप्शन में दिए लिंक द्वारा कैंची मंदिर का दर्शन कर सकते हैं, इस मंदिर से जुडी जानकारी देते रोचक विडियो का लिंक आपको स्क्रीन के उप्परी हिस्से और नीचे discriptoin में मिल जाएगा.

यहाँ से विश्व प्रसिद्द कैंची धाम की दुरी लगभग 20 किलोमीटर, जहाँ विस्व्प्रसिद्द मेला व भंडारा बाबा नीब करौरी जी की याद में प्रतिवर्ष १५ जून को मनाया जाता है
कैंची धाम से लगभग ७ किलोमीटर की दुरी पर है आज के सफ़र की मंजिल भवाली, और भवाली से कुछ पहले ये स्थान है निगलाट

भवाली के सीमा शुरू हो चुकी है, ये राईट हैण्ड साइड को पेट्रोल पंप, और यहाँ की बाजार,
रोडवेज बस डिपो है दाहिनी हाथ की दिशा में, जहाँ से आपको हल्द्वानी, या नैनीताल जाने के लिए बसेस आदि मिल जाएँगी.
और ये भवाली तिराहा जहाँ से राईट हैण्ड साइड का मार्ग नैनीताल को जाता है और वाया ज्योलीकोट होते हुए आप हल्द्वानी काठगोदाम इस मार्ग से भी जा सकते हैं और
और आपने भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, घोडाखाल, मुक्तेश्वर, रामगढ आदि जाना हो तो लेफ्ट हैण्ड का मार्ग आपको choose करना होगा .. जिससे हम आगे बढ़ रहे हैं.
करीब डेढ़ दो सौ मीटर आगे से फिर एक तिराहा आएगा, जहाँ से लेफ्ट का मार्ग रामगढ, मुक्तेश्वर, धानाचूली आदि के लिए जाता है… और आप रामगढ से और आगे बढेंगे तो ये मार्ग भी क्वारब में मिलेगा जहां से भी आप अल्मोड़ा, कौसानी, बिनसर आदि को जा सकते हैं
और सीधे करीब १०० मीटर आगे बढ़ के ये U turn जहाँ से सीधा मार्ग घोडाखाल को और U Turn लेता हुआ मार्ग भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, काठगोदाम, हल्द्वानी को जाता है




राजेश खन्ना अभिनीत किशोर कुमार द्वारा गया एक और गाना है
जिंदगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते, फिर नहीं आते
तो जिंदगी का तो पता नहीं पर जब भी आपका दिल करे अपनी जिंदगी के मुकामों में वापस आने का तो आप इस चैनल में हमारे द्वारा बनाये गए अलग अलग स्थानों से जुड़े जानकारी देते वीडियोस देख के अपनी बीती यादों में जा सकते हैं

अपना और अपने आस पास के लोगो का ख्याल रखें
फिर मुलाकात होगी किसी और सफ़र में या किसी और जगह की जानकारी देते विडियो में, इसी उम्मीद के साथ आपसे विदा,

Amazing Dashara (dussehra) Festival, दुनिया का अनूठा दशहरा अल्मोड़ा का।

दुनिया के इस अनोखे दशहरा महोत्सव का आनंद लें.. Dashara (Dussehra) Almora, दशहरा अल्मोड़ा, wonderful festival of the world, Goddess Durga Idols, Effigies of Ravan Dynasty #Almora #Dussehra #Festival #Uttarakhand
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विभिन्न पर्यटक स्थलों और यात्राओं से जुडी की जानकारी। और ये जानकारी आपको सहायता करेगी इन स्थानों में जाने से पहले क्या तैयारियां की जाएँ, कैसे पंहुचा जाए, और वहां के मुख्य आकर्षण। इसलिए अलग अलग स्थानों से जुडी रोचक जानकारियों से अपडेट रहने हेतु हो सके तो PopcornTrip youtube चैनल subscribe करें। चैनल पर विजिट करने के लिए धन्यवाद।





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Delicious Jalebiya Almora Ki

अल्मोड़ा अपनी प्राकर्तिक सुंदरता के साथ और भी कई बातों के लिए जाना जाता है

जिनमे से एक नाम आते ही – मुँह में मिठास घुल जाती हैं। वो हैं – अल्मोड़ा में कारखाना बाजार स्थित जलेबियो की मशहूर दुकान, इस दुकान की स्थापना कुछ तक़रीबन 70-80 साल पहले – स्वर्गीय किशन दत्त जोशी जी ने की थी, उनकी विरासत को आज उनके पुत्र आगे बढ़ा रहे हैं.

अल्मोड़ा मशहूर जलेबियों की यह दुकान, ब्रैंडिंग स्ट्रैटेजिस्ट के लिए शोध का विषय हो सकता हैं कि – दुकान के बाहर आज भी कोई बोर्ड नहीं हैं, कही कोई ब्रांडिंग नहीं हैं.




फिर भी जब जलेबियो का आनंद लेने का मन हो, तो अल्मोड़ा के स्थानीय निवासीयो को पहला ध्यान इसी दुकान का आता हैं. और यहाँ बैठकर दूध या दही के साथ जलेबियाँ लेने पर तो इसका जायका और भी बढ़ जाता हैं।

हर उम्र के लोग आनंद लेते गरमागरम जलेबियो का, यहाँ नज़र आते हैं, दिलचस्प बात यह हैं कि – यहाँ आप जिन जलेबियों का स्वाद लेंगे – उन्हें अपने सामने बनते हुए देख सकते हैं, दिन भर यहाँ स्वादिष्ट जलेबियाँ बनती रहती हैं – और हाथो हाथ बिक जाती हैं.




इस वीडियो को देखते हुए आया आपके में मुहं में पानी, तो आइये अल्मोड़ा और लीजिये खूबसूरत वादियों का आनंद साथ में माउथ मेल्टिंग जलेबिया,

आपको जलेबियाँ पसंद हों या वीडियो अच्छा लगा हो तो, लाइक का बटन दबायें – कमेंट कर बताएं आपके अनुभव, और अपने मित्रो को परिचित कराएं – अल्मोड़ा की एक डेलिकेसी से|

Garjia Temple

गर्जिया नामक शक्तिस्थल सन १९४० से पहले उपेक्षित अवस्था में था, किन्तु सन १९४० से पहले की भी अनेक दन्तश्रुतियां इस स्थान का इतिहास बताती हैं। वर्ष १९४० से पूर्व इस मन्दिर की स्थिति आज की जैसी नहीं थी, कालान्तर में इस देवी को उपटा देवी के नाम से जाना जाता था। तत्कालीन जनमानस की धारणा थी कि वर्तमान गर्जिया मंदिर जिस टीले में स्थित है, वह कोसी नदी की बाढ़ में कहीं ऊपरी क्षेत्र से बहकर आ रहा था। मंदिर को टीले के साथ बहते हुये आता देख भैरव देव द्वारा उसे रोकने के प्रयास से कहा गया- “थि रौ, बैणा थि रौ। (ठहरो, बहन ठहरो), यहां पर मेरे साथ निवास करो, तभी से गर्जिया में देवी उपटा में निवास कर रही है।

लोक मान्यता है कि वर्ष १९४० से पूर्व यह क्षेत्र भयंकर जंगलों से भरा पड़ा था, सर्वप्रथम जंगलात विभाग के तत्कालीन कर्मचारियों तथा स्थानीय छुट-पुट निवासियों द्वारा टीले पर मूर्तियों को देखा और उन्हें माता जगजननी की इस स्थान पर उपस्थिति का एहसास हुआ। एकान्त सुनसान जंगली क्षेत्र, टीले के नीचे बहते कोसी की प्रबल धारा, घास-फूस की सहायता से ऊपर टीले तक चढ़ना, जंगली जानवरों की भयंकर गर्जना के बावजूद भी भक्तजन इस स्थान पर मां के दर्शनों के लिये आने लगे।





Kaise phuche :

रामनगर तक रेल और बस सेवा उपलब्ध है, उससे आगे yani ki garijiya mandir tk phuchne, aap ranikhet/ bhikiyasen ki aur jaane wali bus se ja sakte hai, jiske liye thoda wait karna pad sakta hain ya taxi le sakte hain। रामनगर में रहने और bhojan के लिये कई achche होटल aur restaurants उपलब्ध है।

Mandir me devi sarswati, bhagwan ganesh aur batuk bharav ki murtiyo ke sath girja devi ki 4.5 feet uchi sangmarmar ki patima hai। mandir me darshn se phle shrdhalu pavitra kosi nadi me snan aadi krte hai or fr 90 sidiya chad ma ke darshn krte hai….or maa ki puja ke bad bhraw devta ki puja ki jati hai …
Mannat puri hone par shiradalu yha ganti v chatra chadate hai….

Yha ane vale sadhraluo ke lie any aarkansh ke kendra hai jim corbett national park, hanuman dham, corbett fall parytak sthal,




Garija mandir aane ka uchit samay:

Saal mai kbhi bhi mndir mai darshan karne aa skte hai par, barsaat ke mousm mai, thoda raste kharab ho jaate hai, kabhi -2 aur kosi nadi ka jalstar bad jaata hain.

Devidhura

उत्तराखंड प्रसिद्ध है अपनी प्राकर्तिक सुन्दरता , वन संपदा, कला-संस्कृति, जलवायु ,वन्य जीवन,गंगा , अलकनंदा, सरयू, जैसी नदियों के उदगम स्थल के लिए, और यहाँ स्थित धार्मिक स्थलों से जिस वजह से इसे देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है।

देवीधुरा दिल्ली से लगभग 383 के. मि.,चम्पावत से 55 के. मि., टनकपुर से 127 के.मि., नैनीताल से 96 के.मि., अल्मोड़ा से 79 के.मि., हल्द्वानी से देवीधुरा के लिए काठगोदाम, भीमताल, धानाचूली, ओखलकांडा होते हुए दुरी 108 के. मि. है। यहाँ का मौसम अन्य पहाड़ी इलाकों की तरह मिला जुला ही रहता है, सर्दियों के मौसम में यहाँ बर्फ गिरती है और गर्मियां गुनगुनी रहती है। देवीधुरा सुमद्रतल से लगभग 6600 फिट की ऊँचाई पे बसा हुआ है।

माँ बारही के समीप ही सड़क से लगा हुआ हनुमान मदिर, अब हम देवीधुरा मदिर के प्रवेश द्वार पर पहूँच चुके हैं। मंदिर को जाने के मार्ग पर स्थित दुकानों में आपको पूजन सामग्री मिल जाती हैं। ये मंदिर के सामने का मैदान जहाँ हर वर्ष पत्थर युद्ध जिसे बग्वाल कहा जाता है का आयोजन किया जाता है। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन जहाँ समस्त भारतवर्ष में रक्षाबंधन पूरे हर्षोल्लास के साथ बहनों का अपने भाईयों के प्रति स्नेह और विश्वास के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है वहीं हमारे देश के इस स्थान पर इस दिन सभी बहनें अपने अपने भाइयों को युद्ध के लिये तैयार कर, युद्ध के अस्त्र के रूप में उपयोग होने वाले पत्थरों से सुसर्जित कर विदा करती हैं।

इस पत्थरमार युद्ध को स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहा जाता है। यह बग्वाल कुमाऊँ की संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। देश विदेश के हज़ारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाला पौराणिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल देवीधुरा अपने अनूठे तरह के पाषाण युद्ध यानी पत्थरों द्वारा युद्ध आयोजन के लिये पूरे भारत प्रसिद्ध है।

देवीधुरा मेले की एतिहासिकता कितनी प्राचीन है इस विषय में जानकारों के मतभेद है, कुछ इतिहासकार इसे आठवीं-नवीं सदी से प्रारम्भ मानते हैं। यहाँ के लोगों के अनुसार पौराणिक काल में चार खामों के लोगों में आराध्या बाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देने की प्रथा थी और ये चार खाम हुआ करते हैं गहरवाल, चम्याल, वालिक और लमगड़िया। एक बार बलि देने की बारी चम्याल खाम में एक वृद्धा के परिवार की थी। परिवार में उसका एक मात्र पौत्र था। वृद्धा ने पौत्र की रक्षा के लिए मां बाराही की स्तुति की तो खुश होकर मां बाराही ने वृद्धा को दर्शन दिये। तदनुसार देवी से स्वप्न में दिए निर्देशानुसार ये विकल्प निकला की भविष्य में पत्थर युद्ध का आयोजन किया जायेगा और यह खेल तब तक जारी रहता है जब तक खेल के दौरान सामूहिक रूप से एक व्यक्ति के शरीर के रक्त के जितना रक्त न बह जाए।

एक दूसरे पर पत्थर फेंकने वाले प्रतिभागी बग्वाल खेल के दौरान अपनी आराध्य देवी को खुश करने के लिए यह खेल खेलते हैं। इस पाषाण युद्ध में चार खामों के दो दल एक दूसरे के ऊपर पत्थर बरसाते है बग्वाल खेलने वाले अपने साथ बांस के बने फर्रे पत्थरों को रोकने के लिए रखते हैं। हालांकि पिछले कुछ सालों से पत्थरों की वजाय फल और फूलों का ज्यादा प्रयोग किया जाता है पर फिर भी पत्थर मारने की प्रथा अभी भी जारी है।

मान्यता है कि बग्वाल खेलने वाला व्यक्ति यदि पूर्णरूप से शुद्ध व पवित्रता रखता है तो उसे पत्थरों की चोट नहीं लगती है। सांस्कृतिक प्रेमियों के परम्परागत लोक संस्कृति के दर्शन भी इस मेले के दौरान होते हैं। पुजारी को जब अंत:करण से विश्वास हो जाता है कि एक मानव के रक्त के बराबर खून बह गया होगा तब वह केताँबें के छत्र और चँबर साथ मैदान में आकर शंख बजाकर बगवाल सम्पन्न होने की घोषणा करता है । समापन पर दोनों ख़ामो के लोग आपस में गले मिलते हैं।

Haldwani to Nainital Journey

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हल्द्वानी से नैनीताल की दुरी 40 किल्मोटर और सफ़र तय करने में लगने वाला समय लगभग डेढ़ से 2 घंटे… क्यूंकि यहाँ से लगभग 7 किलोमीटर की दुर रानीबाग के बाद, घुमावदार और हलकी चढाई शुरू हो जाती है।

पहाड़ी क्षेत्र होने से बस संचालक रात्रि में बस सेवा अमूमन नहीं चलते…. और अगर आपको देर दुपहरी या शाम को यात्रा करनी है तो तिकोनिया टैक्सी स्टैंड से टैक्सी आदि hire करनी होंगी… कभी कभी शेयर्ड टैक्सी भी आपको मिल जाती हैं, और बरेली, रुद्रपुर जैसे स्थानों के लिए आपको नियमित अन्तराल पर रोडवेज बस स्टेशन से बस मिल जायेंगी (ये क्यों? नैनीताल जा रहे है, आउट ऑफ़ थे कॉन्टेक्स्ट)।

अधिक जानने के लिए देखें वीडियो ।





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उत्तराखंड के विभिन्न पर्यटक स्थलों और यात्राओं से जुडी की जानकारी। और ये जानकारी आपको सहायता करेगी इन स्थानों में जाने से पहले क्या तैयारियां की जाएँ, कैसे पंहुचा जाए, और वहां के मुख्य आकर्षण। इसलिए अलग अलग स्थानों से जुडी रोचक जानकारियों से अपडेट रहने हेतु हो सके तो PopcornTrip youtube चैनल subscribe करें।

Reetha Sahib Gurudwara Vlog


सिक्खों और हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का केंद्र, श्री रीठा साहिब, उत्तराखण्ड के चम्पावत जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 72 कि.मी. की दुरी पर ड्युरी नामक एक छोटे से गांव में लोदिया और रतिया नदी के संगम पर स्थित है । गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब उत्तराखंड के चमोली जिले में है। यह गुरुद्वारा समुद्र स्तर से 4000 मीटर की ऊंचाई पर है। बर्फबारी के कारण यात्रियों की सुरक्षा के लिए इसे अक्टूबर से अप्रैल तक बंद कर दिया जाता है। नानकमत्ता गुरुद्वारा से श्री रीठा साहिब पहुचने का मार्ग खटीमा, टनकपुर, चम्पावत, लोहाघाट, धुनाघाट से होते हुए आता है ।

चीड के जंगलों से घिरा हुआ और साथ के हरे भरे उपजाऊ भूमि और नदी से लगा हुआ रीठा साहिब गुरुद्वारा आईये चलते हैं गुरुद्वारा दर्शन को… ये रीठा साहिब बाजार, यहाँ डेली नीड्स की जरूरतों आदि के दुकाने और एक बैंक पंजाब & सिंध बैंक की एक शाखा है. और बाजार से आगे बद हम बद रहें है गुरद्वारे की ओर , यहाँ पर मार्ग संकरा होने की साथ साथ काफी तेज ढलान वाला भी है… ये देखिये सामने रस्ते में ढलान की साथ साथ मोड़ भी है, यहाँ पर काफी धीमी गति में और सावधानी पूर्वक अपना वाहन चल्यें … और अब हम पहुचे हैं गुरूद्वारे के एंट्रेंस पर, एंट्रेंस से लगा हुआ ही पार्किंग स्पेस है… , पार्किंग से लगा हुआ ही रिसेप्शन हैं… यहाँ आपने रुकना हो तो यहाँ आपको एंट्री करनी होती है और पहचान सम्बन्धी डाक्यूमेंट्स जैसे DL, वोटर id कार्ड, आधार कार्ड, आदि दिखाने होते हैं, यहाँ आपको काफी रियायती दरो में कमरे अलग अलग श्रेणी जैसे dormitory, डबल एंड फोर bedded फॅमिली room आदि। जो रु 300, 500, 800 प्रतिदिन के मूल्य पर  उपलब्ध हैं. …. ये रिसेप्शन से बाहर से दिखने वाला दृश्य जहाँ राईट हैण्ड को रुकने के लिए कमरे, सामने मुख्य गुरूद्वारे के लिए प्रवेश द्वार, और बाये रसोई घर और dining एरिया है … और ये सामने दिख रहा पार्किंग एरिया… चारो और पहाड़ियों के बीचो बीच बसे इस स्थान में पीछे चलती गुरुबानी की मधुर आवाज और मधुर संगीत की आवाज सुन आपको अलग ही आनंद और शांति की प्राप्ति होती है..;.

इस गुरुद्वारे का निर्माण 1960 में करवाया गया था । गुरूद्वारा रीठा साहिब उत्तराखण्ड राज्य के समुद्री तल से लगभग 7,000 फुट की ऊच्चाई पर स्थित है | इस स्थान के बारे में यह कहा जाता है कि गुरु नानक जी ने इस जगह का दौरा किया था यह जगह एक खास तरह के मीठे रीठा के पेड़ों के लिए भी प्रसिद्ध है । यहां तीर्थयात्रियों के आवास, भोजन आदि सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इस तीर्थ स्थल में तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए करीब दो सौ कमरे और सराय हॉल है। हरसाल लाखों लोग गुरुनानक की आध्यात्मिक शक्ति के चमत्कार को नमस्कार करने आते हैं।

गुरद्वारे में जाने के लिए आपको अपने जुते चप्पल उतार कर अपने पेरो को रस्ते में बने कुंड में डूबा कर धोना होता है… जिससे आपके पेरो के द्वारा कोई गन्दगी गुरुदारे में ना जाए, साथ ही अपने सर को ढकना भी होता है ।

एक रीठा का वृक्ष (मूल नहीं है) अभी भी यहां है और तीर्थयात्रियों को मिठाई में रीठे का रस का प्रसाद दिया जाता है । गुरुद्वारा से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर, एक ऐसा बगीचा है जहां ऐसे पेड़ उगते हैं और उनके फल एकत्र किए जाते हैं और उन्हें गुरुद्वारा के प्रसाद का भंडार भरने के लिए लाया जाता है। इसे नानक बागीच कहा जाता है।

इस स्थान के बारे में यह मान्यता है कि सन् 1501 में सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव (1469-1539) अपने शिष्य “बाला” और “मरदाना” के साथ रीठा साहिब आए थे | इस दौरान गुरु नानक देव जी की उनकी मुलाकात सिद्ध मंडली के महंत “गुरु गोरखनाथ” के चेले “ढ़ेरनाथ” के साथ हुई| इस मुलाकत के बाद दोनों सिद्ध प्राप्त गुरु “गुरु नानक” और “ढ़ेरनाथ बाबा” आपस में संवाद कर रहे थे | दोनों गुरुओं के इस संवाद के दौरान मरदाना को भूख लगी और उन्होंने गुरु नानक से भूख मिटाने के लिए कुछ मांगा | तभी गुरु नानक देव जी ने पास में खड़े रीठा के पेड़ से फल तोड़ कर खाने को कहा, लेकिन रीठा का फल आम तौर पर स्वाद में कड़वा होता हैं, लेकिन जो रीठा का फल गुरु नानक देव जी ने भाई मरदाना जी को खाने के लिए दिया था वो कड़वा “रीठा फल” गुरु नानक की दिव्यता से मीठा हो गया | जिसके बाद इस धार्मिक स्थल का नाम इस फल के कारण “रीठा साहिब” पड़ गया|

साथ ही रीठा साहिब गुरुद्वारे की यह मान्यता है कि रीठा साहिब में मत्था टेकने के बाद श्रद्धालु ढ़ेरनाथ के दर्शन कर अपनी इस धार्मिक यात्रा को सफल बनाते है | आज भी यहाँ होने वाला रीठा का फल खाने में मीठा होता है और और गुरूद्वारे द्वारा इन्ही मीठे रीठो का प्रसाद श्रध्हलुवों को प्रसाद स्वरुप दिया जाता है। वर्तमान समय में वृक्ष अभी भी गुरुद्वारा के परिसर में खड़ा है । इस गुरुद्वारे के निकट ढ़ेरनाथ jee का मंदिर स्थित है |

बैसाखी पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है | शान्ति का केन्द्र होने के साथ-साथ यह गुरूद्वारा दशकों से आपसी भाईचारे का भी प्रतीक है ।

रीठा साहिब कैसे पहुँचे? How to reach Reetha Sahib Gurudwara
गुरुद्वारा रीठा साहिब लोहाघाट से 64 किमी. की दूरी पर है। यहाँ रोड द्वारा पहुँचा जा सकता है. यहाँ नॅशनल हाइवे नंबर 125 से पहुँचा जा सकता है. यहाँ से नज़दीक रेलवे स्टेशन, टनकपुर रेलवे स्टेशन है जो यहाँ से 142 किमी दूर पर स्थित है. काठगोदाम रेलवे स्टेशन से 160 किमी की दूरी पर स्थित है. रीठा साहिब रोडवेज बस या प्राइवेट टेक्सी से पहुँचा जा सकता है. यहाँ रोड द्वारा दो अलग अलग रूट से पहुँचा जा सकता है-
टनकपुर—> चंपावत—->लोहाघाट —->रीठा साहिब
हल्द्वानी—->देवीधुरा—–>रीठा साहिब

कैसे पहुंचें:

बाय एयर
मीठा रीठा साहिब से निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है जो कि उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले में 160 किमी दूर स्थित है। पंतनगर हवाई अड्डे से मीठा रीठा साहिब तक टैक्सी उपलब्ध हैं। पंतनगर एक सप्ताह में चार उड़ान दिल्ली के लिए उपलब्ध है |

ट्रेन द्वारा
मीठा रीठा साहिब चम्पावत से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। टनकपुर रेलवे स्टेशन से मीठा रीठा साहेब तक टैक्सी और बस आसानी से उपलब्ध हैं। टनकपुर लखनऊ, दिल्ली, आगरा और कोलकाता जैसे भारत के प्रमुख स्थलों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ट्रेन टनकपुर रेलवे स्टेशन के लिए उपलब्ध होती है और रीठा साहिब टनकपुर के साथ मोटर वाहनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

सड़क के द्वारा
मीठा रीठा साहिब उत्तराखंड राज्य और उत्तरी भारत के प्रमुख स्थलों के साथ मोटर वाहनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आईएसबीटी आनंद विहार की बसें टनकपुर, लोहाघाट और कई अन्य गंतव्यों के लिए उपलब्ध हैं, जहां से आप आसानी से स्थानीय कैब या बस तक पहुंच सकते हैं

स्टे
मीठा रीठा साहिब में होटल और साथ ही गुरुद्वारा में आवास की सुविधा है।

चितई गोलू देवता मंदिर अल्मोड़ा

यहाँ सत्य के लिए न प्रमाण दिखाने होते, न साथ अपने गवाह लाने होते।
शृद्धा, विश्वास और पवित्र हृदय से जो भी आते, न्याय गोलू देवता से पाते।