अद्वैत आश्रम – जहां स्वामी विवेकानंद हमेशा रहना चाहते थे।

स्वामी विवेकानंद के कल्पना और विचारों का मूर्त रूप अद्वैत आश्रम, जो उत्तराखंड राज्य के चंपावत जिले में लोहाघाट के समीप मायावती नाम के स्थान में है। यह स्थान कैसे अद्वैत आश्रम के रूप में अस्तित्व में आया, इसे समझना के लिए हमें 19वीं सदी के कुछ अंतिम वर्षों से बात शुरू करनी होगी।

सन 1896 में अमेरिका से भारत लौटने से पूर्व स्वामी विवेकानंद जब लंदन में थे, तो वहां उनके अनुरागियों कप्तान सेवियर तथा श्रीमती सेवियर ने उनसे स्वीटजरलैंड में घूमने का प्रस्ताव रखा। स्वामी जी उनके साथ स्विट्ज़रलैंड घूमने गये, जहां आल्प्स में बर्फ़ीले स्थान और वहां के सबसे ऊंचे शिखर मांट ब्लांक को देखते ही अभिभूत हो स्वामी जी बोल पड़े – यहां हम लोग बिल्कुल बर्फ के बीच में है। फिर अपने देश को याद करते हुए बोले और भारतवर्ष हिम से ढके स्थान इतने दूर है कि पहाड़ों में अनेक दिन चलने के बाद ही उन तक पहुंच जा सकता है। परंतु तिब्बत की सीमा से लगे उन उतंग शिखरों की तुलना में आल्प्स की ये पर्वत माला केवल छोटी सी पहाड़ियों मात्र है। इन पहाड़ियों को देख स्वामी जी के मन में उत्तराखंड में भी, हिमालय के समीप एक मठ बनाने के विचार ने उड़ान भरी।

स्वामी जी अपनी अमेरिका यात्रा से पूर्व भी उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण कर चुके थे। इसके तुरंत बाद उन्होंने लंदन से अल्मोड़ा में अपने मित्र और अनुयाई लाल बद्री शाह जी, जिनके आवास पर स्वामी जी पूर्व में अपने अल्मोड़ा आगमन के दौरान ठहरते रहे थे, को वो पत्र लिखा।

मैं अल्मोड़ा में या अल्मोड़ा के पास किसी स्थान में एक मठ स्थापित करना चाहता हूं। क्या आप अल्मोड़ा के समीप उद्यान आदि से युक्त कोई ऐसा उपयुक्त स्थान जानते हैं, जहां मैं अपना मठ बना सकूँ? बल्कि मैं तो एक पुरी पहाड़ी ही प्राप्त करना चाहूंगा। 15 जनवरी 1897 को स्वामी जी अपनी विदेश यात्रा के बाद भारत पहुंचे।

भारत में वह औपनिवेशिक काल था। जिस पर यूरोपिय साम्राज्य था। ज्यादातर भारतीय, तब तक ब्रिटिशर्स की लगभग 150 वर्षों की गुलामी सहते हुए, अपना आत्म गौरव, आत्मसम्मान भूल चुके थे। और दुनिया भारतीयों को सभ्यता विहीन, धर्महीन, सपेरों और पिछड़ों का देश मानकर तिरिस्कार और अवहेलना कर समृद्ध भारतीय इतिहास और उपलब्धियों को भुला चुकी थी। तब विश्व धर्म महासभा में स्वामी के असाधारण अभूतपूर्व प्रतिनिधित्व से, दुनिया ने हिंदू धर्म की विराटता को जाना। और भारतीयता के गौरवशाली रूप से परिचय प्राप्त किया। साथ ही उनकी इस उपलब्धि और स्वामी जी के प्रयासों से भारत में पुनर्जागरण का युग आरंभ हुआ।

सन 1818 पे जून माह में जब स्वामी जी अपना स्वास्थ्य सुधारने हेतु अल्मोड़ा में निवास कर रहे थे। यह दुखद समाचार मिला कि मद्रास जिसे अब चेन्नई कहते हैं, से प्रकाशित प्रबुद्ध भारत पत्रिका के संपादक श्री राजम अय्यर का निधन हो गया।

स्वामी जी शिक्षा और मनुष्य की चेतना के जागृति के साथ अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी के विचार और संदेशों के प्रसार के उद्देश्य से आरंभ हुई इस पत्रिका को, बंद नहीं होने देना चाहते थे। तब कप्तान सेवियर ने इसे पुनर्जीवित करने से जुड़ी लागत को वहन करने का प्रस्ताव दिया। पत्रिका के पुनः प्रकाशन की तैयारी होने लगी। इसके बाद प्रबुद्ध भारत का कार्यालय उत्तराखंड में अल्मोड़ा नगर के थॉमसन हाउस नमक एक किराए के मकान में शुरू किया गया। स्वामी जी कुछ समय अल्मोड़ा रहकर वापस कोलकाता चले गये।

प्रिंटिंग प्रेस के लिए कप्तान सेवियर को अल्मोड़ा में आवश्यक निर्जनता नहीं लगी। कप्तान सेवियर और स्वामी स्वरूपानंद ने एक उपयुक्त स्थान ढूंढना शुरू किया। और वह 6000 से 7000 फिट की ऊंचाई वाले घने जंगलों वाली पहाड़ियों के बीच स्थित मायावती के सुंदर भूखंड तक जा पहुंचे। प्रबुद्ध भारत के कार्यालय के लिए इस मनोरम स्थान को 2 मार्च 1899 को खरीद लिया गया। खरीदने के बाद यहां आश्रम और पत्रिका के प्रकाशन का कार्य आरंभ हुआ। यह बिल्कुल वैसा ही रूपायित हुआ था – जैसा स्वामी जी ने कल्पना की थी।

स्वामी जी ने हिमालय में कैसे स्थान में रहने की कल्पना की थी? उसे उनके द्वारा भगिनी क्रिस्टीन को लिखे गए एक पत्र के इन शब्दों से जाना जा सकता है, जो उन्होंने यहां आने से पूर्व लिखा था। वहां कुछ पानी के झरने और एक छोटा सा सरोवर होगा। उसमें देवदार के जंगल होंगे और सर्वत्र फूल ही फूल किल रहे होंगे। उनके मध्य मेरी एक छोटी सी कुटिया होगी। बीच में साग-सब्जियों का उद्यान होगा, जिसमें मैं स्वयं काम करूंगा। और – और साथ में मेरी किताबें होंगी। और कभी कभार ही मैं किसी मनुष्य का चेहरा देखूंगा। यदि पृथ्वी मेरे निकट से ध्वंश को भी प्राप्त हो, तो मैं परवाह नहीं करूंगा तब तक मैं अपना सर जागतिक और आध्यात्मिक कार्य संपन्न कर चुका होऊँगा, और अवकाश ले लूंगा। सारे जीवन ने मुझे जरा भी विश्राम नहीं मिला, जन्म से ही मैं एक खानाबदोश बंजारा रहा हूं।

कप्तान सेवियर आश्रम के प्रबंधक थे, स्वामी जी के इन निष्ठावान शिष्य ने 28 अक्टूबर 1900 को देह त्याग दिया। स्वामी जी परिवार को सांत्वना देने के लिए पहले बार मायावती स्थित इस मठ में पहुंचे। वह अपनी यात्रा में काठगोदाम से अल्मोड़ा, और वहां से पैदल चलते हुए तीन जनवरी 1901 को मायावती स्थित इस आश्रम में पहुंचे, और 15 दिन तक रुके। भीषण ठंड के बीच स्वामी विवेकानंद अद्वैत आश्रम में, पहले कुछ दिन मुख्य भवन की दूसरी मंजिल पर रहे। लेकिन वहां बहुत अधिक ठंड होने से 9 जनवरी को वह निचली मंजिल के अंगीठी वाले कमरे में आ गये। स्वामी जी अपने प्रवास के दिनों में आसपास घूमते, साथ में ध्यान, अध्ययन और लेखन करते।

स्वामी जी की इच्छा थी कि हिमालय का यह मठ पूरी तरह से अद्वैत भाव को समर्पित हो। अद्वैत आश्रम मायावती में किसी मूर्ति या तस्वीर के आगे पूजा नहीं होती। यह स्थान ध्यान और चिंतन को अद्वैत भाव यानि दो नहीं से अध्यात्म को समर्पित है। अद्वैत विचारधारा के प्रवर्तक आदि गुरु शंकराचार्य जी के अनुसार संसार में ब्रह्म ही सत्य है, जगत मिथ्या है। जीव और ब्रह्म अलग नहीं है। जीव केवल अज्ञान के कारण ही ब्रह्म को नहीं जान पाता। जबकि ब्रह्म तो उसके अंदर ही विराजमान है।

18 जनवरी 1901 को स्वामी जी यहां से वापस लोट गए। उनकी प्रेरणा, ऊर्जा और चरण धूलि से यह स्थान अत्यंत पवित्र हो गया। आज भी स्वामी जी के अनुयायी यहाँ विश्व कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर निरंतर अग्रसर हैं।

श्रीमती सेवियर ने मायावती में एक धर्मार्थ अस्पताल भी शुरू किया था। जहां आसपास के गांव के निर्धन लोग आते, और चिकित्सा लाभ लेते। धीरे-धीरे अनेकों गांव के लोग यहां आने लगे। अस्पताल के नए भवनों की ज़रूरत हुई, आज आसपास के सैकड़ो गांव से आने वाले ग्रामीणों को, नियमित निशुल्क चिकित्सा सुविधाओं के साथ, समय- समय पर विशिष्ट रोगों की चिकित्सा हेतु, चिकित्सा शिविरों का भी आयोजन किया जाता है।

अद्वैत आश्रम मायावती से प्रबुद्ध भारत पत्रिका का कार्यालय नियमित रूप से चलता है। प्रबुद्ध भारत देश की सबसे लंबे समय से चली आ रही भारतीय पत्रिका के रूप में भी प्रतिष्ठित है।

इस आश्रम में एक सुंदर गौशाला भी संचालित होती है, जिसमें अच्छी प्रजाति की गाये, मायावती अस्पताल के मरीज़ों तथा आश्रम के निवासियों के लिए दूध उपलब्ध कराती हैं।

जल संग्रहण के लिए यहां बरसात के पानी को इकट्ठा करते कुछ छोटे जलाशय भी हैं। यहां थोड़े पैमाने पर खेती भी की जाती है।

आश्रम में एक अतिथि निवास भी है – लेकिन यहां उन्हीं को आवास के अनुमति मिलती है, जो स्वामी विवेकानंद और आध्यात्मिक धारा से जुड़े हैं। साधकों को एक बार में अधिकतम तीन दिन का आवास प्रदान किया जाता है, सिर्फ उन्हें जो गंभीरता पूर्वक प्रार्थना, ध्यान तथा विचारशील जीवन में रुचि रखते हैं। यह अतिथि निवास केवल मध्य मार्च से मध्य जून तक, और मध्य सितंबर से मध्य नवंबर तक खुला रहता है। इसके लिए आश्रम की वेबसाइट पर पूर्व में आवेदन करना होता है।

स्वामी विवेकानंद ने अल्मोड़ा के लिए कहा था – ये पहाड़, मनुष्य जाति की सर्वोत्तम धरोहरों से जुड़े हैं, यहां ना सिर्फ सैर करने का, बल्कि उससे भी अधिक ध्यान की नीरवता का, और का केंद्र होना चाहिए, और मुझे उम्मीद है की इसे कोई महसूस करेगा।

 

 

Kedarnath Yatra 2023: हेली सेवा का ये रहेगा किराया।

केदारनाथ यात्रा आमतौर पर अप्रैल या मई के महीनों में शुरू होती है और नवंबर प्रथम सप्ताह तक चलती है। हालाँकि, क्षेत्र में मौसम की स्थिति के आधार पर तिथियाँ भिन्न हो सकती हैं। इस वर्ष यह 25 अप्रैल से शुरू हो रही है।
चार कंपनियों को हेली  सेवा संचालन के लिए चयन कर लिया है।

UCADA के नये अनुबंध के बाद फाटा से Pawan Hans पवन हंस, Kestrel Aviation केस्ट्रल एविएशन और सिरसी से Himalayan Heli हिमालयन हेली, केस्ट्रल एविएशन के माध्यम से हेली सेवा संचालित की जाएगी।

गुप्तकाशी से केदारनाथ धाम के लिए संचालित होने वाली हेली सेवा की दोबारा  टेंडर प्रक्रिया चल रही है। पूर्व में एक ही कंपनी से टेंडर भरा गया था,  जिससे UCADA ने हेली कंपनियों से पुनः टेंडर आमंत्रित किए हैं।

Phata फाटा से Kedarnath केदारनाथ धाम के लिए हेली सेवा से आने-जाने का  किराया प्रति यात्री ₹5500  और सिरसी से केदारनाथ के लिए ₹5498 रुपये तय  किया गया।

हेली सेवाओं के टिकट की Online बुकिंग के लिए IRCTC आईआरसीटीसी से अनुबंध किया जाना है। इसके लिए प्रक्रिया चल रही है। यदि  यात्रा शुरू होने तक एमओयू में विलंब होने की स्थिति में UCADA के माध्यम  से टिकटों की बुकिंग की जाएगी।

केदारनाथ हेली सेवा के लिए अप्रैल के प्रथम सप्ताह से टिकटों की बुकिंग शुरू हो सकती है। केदारनाथ धाम के कपाट 2023 में 25 April  को खुल रहे है।

यह भी देखें।

Uttarkhand CharDham चारधाम यात्रा हेतु ट्रैवल एडवाइजरी Travel Advisory

चार धाम यात्रा शुरू होने वाली है, इसके लिए उत्तराखण्ड सरकार ने भी तैयारियाँ की है, और कुछ निर्देश दिये है, जिन्हें यात्रा शुरू करने से पूर्व जानना ज़रूरी है। इस लेख में बात करेंगे आपको अपनी यात्रा में क्या सावधानियाँ रखनी है।

पर्यटक पंजीकरण प्रक्रिया में कोई शुल्क शामिल नहीं है। चारधाम और हेमकुंड साहिब यात्रा के दौरान वैध व्यक्तिगत पहचान पत्र साथ रखें।

ऑनलाइन पंजीकरण के तरीके

1) वेब पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन https://registrationandtouristcare.uk.gov.in/

2) मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से – टूरिस्ट केयर उत्तराखंड Tourist Care Uttarakhand (Andorid & iOS)

3) व्हाट्सएप सुविधा के माध्यम से – मोबाइल नंबर: +91 8394833833
टाइप करें: व्हाट्सएप में पंजीकरण प्रक्रिया शुरू करने के लिए “यात्रा”।

सत्यापन का तरीका

शारीरिक रूप से केवल मोबाइल ऐप में “क्यूआर कोड” को स्कैन करके या “यात्रा पंजीकरण पत्र” डाउनलोड करके तीर्थस्थल पर जाया जा सकता है।

चार धाम, दुनिया के सबसे पवित्र हिंदू तीर्थस्थलों में से एक है, जिसमें यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के चार पवित्र स्थल शामिल हैं। इस वर्ष, उत्तराखंड सरकार ने यात्रा को सभी के लिए सुचारू और सफल बनाने के लिए कई उपायों की रूपरेखा तैयार की है।

पंजीकरण

चारधाम यात्रा तीर्थस्थलों – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब की यात्रा से पहले श्रद्धालुओं को अपना पंजीकरण कराना जरूरी है। सुचारू यात्रा सुनिश्चित करने के लिए, उत्तराखंड सरकार ने दैनिक यात्रियों की संख्या की सीमा निर्धारित की है।इसलिए उत्तराखण्ड सरकार के संबंधित पोर्टल पर वैधता की जांच करें और पंजीकरण करें यहाँ पर क्लिक कर  यात्रा करने से पूर्व पंजीकरण पूरा करें।

स्वास्थ्य सलाह

उत्तराखंड में चार धाम यात्रा में पवित्र तीर्थ उच्च अक्षांश High Altitude पर स्थित हैं। इन सभी तीर्थस्थलों की यात्रा करने से तीर्थयात्रियों को अत्यधिक ठंड, कम आर्द्रता, बढ़ी हुई पराबैंगनी विकिरण और हवा और ऑक्सीजन के दबाव में कमी का सामना करना पड़ सकता है। उपरोक्त के आलोक में, आरामदायक और सुरक्षित यात्रा के लिए निम्नलिखित सलाह दी जाती है:

  • सभी तीर्थयात्रियों को पूरी तरह से स्वास्थ्य जांच कराने के बाद यात्रा के लिए आगे बढ़ना चाहिए।
  • पहले से मौजूद बीमारियों वाले लोगों को निर्धारित दवाओं की पर्याप्त आपूर्ति के साथ अपने संबंधित चिकित्सकों के संपर्क विवरण को साथ रखना चाहिए।
  • वरिष्ठ नागरिक, गंभीर बीमारी वाले, और जो लोग अतीत में कोविड-19 से पीड़ित थे, उन्हें ठीक होने तक तीर्थयात्रा स्थगित करने पर विचार करना चाहिए।
  • यात्रा कार्यक्रम में अंतिम तीर्थ स्थल पर पहुंचने से पहले कम से कम एक दिन का विश्राम शामिल होना चाहिए।
    कृपया पर्याप्त मात्रा में ऊनी/गर्म कपड़े साथ रखें।
  • ऊंचाई की यात्रा करते समय हृदय रोग, श्वसन संबंधी बीमारियों, मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित रोगियों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए।
  • यदि आप सिरदर्द, चक्कर आना, उनींदापन, सीने में जकड़न, मतली, उल्टी, खांसी, तेज सांस लेना और हृदय गति में वृद्धि जैसे लक्षण देखते हैं, तो कृपया तुरंत चिकित्सा सहायता लें या सहायता के लिए 104 और 108 हेल्पलाइन पर संपर्क करें
  • शराब और अन्य नशीले पदार्थों के सेवन से बचें और धूम्रपान से परहेज करें।
  • धूप से त्वचा की सुरक्षा के लिए एसपीएफ़ 50 वाला सनस्क्रीन इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • आंखों को यूवी किरणों से बचाने के लिए सनग्लास का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • खुद को अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रखें और खाली पेट यात्रा करने से बचें।
  • ट्रेकिंग/वॉकिंग के दौरान बार-बार ब्रेक लें।
  • अधिक ऊंचाई पर अधिक व्यायाम से बचें।
  • आपात स्थिति के मामले में, हेल्पलाइन नंबर 108 – राष्ट्रीय एम्बुलेंस
  • स्वास्थ्य सेवा हेतु 104- उत्तराखंड स्वास्थ्य हेल्पलाइन पर संपर्क किया जा सकता है।

करने योग्य:

  • अपने वाहन का रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है।
  • चालक को वाहन में बैठे सभी यात्रियों की सूची रखनी चाहिए।
  • पहाड़ी रास्तों पर ऊपर जाने वाले वाहनों को पहले रास्ता दें।
  • वाहन चालक को वाहन के सभी वैध दस्तावेज रखने चाहिए, एक अतिरिक्त स्टेपनी रखनी चाहिए।
  • यात्रा करने से पहले आपको परिवहन कार्यालय से ग्रीन कार्ड प्राप्त करना होगा।
  • पहाड़ी रास्तों के मोड़ों पर हार्न जरूर बजाएं।
  • वाहन पार्क करते समय हैंड ब्रेक का प्रयोग अनिवार्य है। पार्किंग निर्धारित स्थान पर ही की जाए।
  • अपने साथ प्रूफ या स्कैन किया हुआ क्यूआर कोड रखें।

सावधानियाँ

  • पहाड़ की सड़कों पर सुबह 4 बजे से पहले और रात 10 बजे के बाद ड्राइव न करें।
  • सड़क के मोड़ पर ओवरटेक न करें।
  • नशे की हालत में वाहन न चलाएं।
  • वाहन के ऊपर बैठकर यात्रा न करें।
  • गंदे कपड़े और पॉलीबैग में कूड़ा न फेंके।
  • व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए निजी वाहनों का उपयोग न करें।

यह भी देखें

वीडियो देखें: 

Uttarakhand Chardham Yatra: 10 दिवसीय यात्रा बस द्वारा मात्र ₹3850 प्रति व्यक्ति से शुरू

उत्तराखण्ड में चार धाम यात्रा 2023 में बस द्वारा कम बजट में की जा सकती है। इस हेतु तीन श्रेणिया बनायी गई है। बस द्वारा श्रद्धालुओं को चारधाम के दर्शन कराया जायेगा। जिससे बजट यात्री कम मूल्य पर आरामदायक यात्रा कर पाएँ। यात्रा की दरें परिवहन विभाग द्वारा तय की गई है।

बस द्वारा प्रति यात्री लग्जरी बस का किराया ₹5700 है। 10 दिनों की यात्रा सरकार की निगरानी में रोटेशन समिति कराएगी। इस वर्ष Uttarkhand Char Dham चार धाम यात्रा 22 अप्रैल से शुरू हो रही है। चारधाम यात्रा के सड़क मार्ग का किराया तय हो गया है।  फ़िलहाल बस सेवा की बुकिंग Rishikesh ऋषिकेश में Offline ऑफलाइन होगी।

दस दिवसीय यात्रा ऋषिकेश से शुरू होकर बस वापस ऋषिकेश होगा, रूट विवरण।

  1. ऋषिकेश-बड़कोट (रात्रि विश्राम) 165.9 km
  2. बड़कोट-जानकीचट्टी-ट्रेक यमुनोत्री-बड़कोट (रात्रि विश्राम) 90 Kms & 14 Km trek
  3. बड़कोट-उत्तरकाशी (रात्रि विश्राम) 81.7 km
  4. उत्तरकाशी-गंगोत्री-उत्तरकाशी (रात्रि विश्राम) 198 km
  5. उत्तरकाशी-सोनप्रयाग 7 hr 39 min (227 km) या गुप्तकाशी (रात्रि विश्राम) 200 km
  6. गुप्तकाशी-गौरकुंड-ट्रेक केदारनाथ  (रात्रि विश्राम) 29.9 km & 19 Km Trek
  7. केदारनाथ-सोनप्रयाग या गुप्तकाशी (रात्रि विश्राम) 19Km trek & 5 km or 35 Km
  8. सोनप्रयाग-गुप्तकाशी-पीपलकोटी (रात्रि विश्राम) 149 km or 121 km
  9. पीपलकोटी-बदरीनाथ-पीपलकोटी (रात्रि विश्राम) 151 km
  10. पीपलकोटी-ऋषिकेश (ड्राप) 215 km

पंजीकरण और यात्रा आरंभ स्थल:
नया ट्रांजिट कैंप (निकट आईएसबीटी रोड), ऋषिकेश, New Transit Camp, Near ISBT Road, Rishikesh

बस सेवा की अधिकृत दरें
चारधाम यात्रा
3850:थ्री बाई टू
4300:टू बाई टू साधारण
5700:टू बाई टू पुश बैक

तीन धाम यात्रा
3150:थ्री बाई टू बस
3500टू बाई टू साधारण
4660टू बाई टू पुश बैक

दो धाम यात्रा
2240: थ्री बाई टू बस
2530 – टू बाई टू साधारण
3300: टू बाई टू पुश बैक

विशेष दो धाम (गंगोत्री-बद्रीनाथ)
2920: थ्री बाई टू बस
3250: टू बाई टू साधारण
4300: टू बाई टू पुश बैक

एक धाम
1520: थ्री बाई टू बस
1730:  टू बाई टू साधारण
2250: टू बाई टू पुश बैक

देखें वीडियो:

यह भी देखें

उत्तराखण्ड में रहने के लिए खूबसूरत स्थान

उत्तराखंड में रहने के लिए कुछ बेहतरीन शहरों की जानकारी लेनी हो तो इस इस लेख को पढ़ें। ये सब स्थान, रहने के लिए सभी आधुनिक सुविधाएँ और बेहतरीन आबोहवा लिये हैं और साथ साथ शांतिपूर्ण और सुंदर वातावरण की तलाश करने वाले लोगों के लिए उपयुक्त हैं। निम्नलिखित में से कुछ स्थान अनोखे अनुभव प्रदान करते हैं और रोमांच, शांति की तलाश करने वालों के लिए उपयुक्त हैं, ये स्थान एक अनूठा अनुभव प्रदान करते हैं और शांतिपूर्ण और प्राकृतिक वातावरण की तलाश करने वालों के लिए आदर्श हैं।

  1. देहरादून: यह उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी है और आधुनिक सुविधाओं, नौकरी के अवसरों और प्राकृतिक सुंदरता का एक अच्छा मिश्रण प्रदान करता है। यहाँ घूमेनें के लिए विभिन्न स्थान जिनमें से सहस्त्रधारा, एफआरआई, रॉबर्स केव, मालसी डियर पार्क, टपकेश्वर महादेव मंदिर, EC रोड, विभिन्न शॉपिंग मॉल और मल्टीप्लेक्स आदि कुछ हैं।
  2. नैनीताल: अपनी शांत झीलों, हरी-भरी हरियाली और सुहावने मौसम के लिए जाना जाने वाला नैनीताल भारत के सबसे लोकप्रिय हिल स्टेशनों में से एक है। नैनी झील, नैनीताल चिड़ियाघर, स्नो व्यू, पंगोट, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, खुर्पाताल, भवाली आदि स्थान नैनीताल के कुछ आकर्षण हैं।
  3. मसूरी: हिमालय की तलहटी में स्थित मसूरी लुभावने दृश्य, स्वच्छ हवा और शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करता है, जो इसे रहने के लिए एक लोकप्रिय स्थान बनाता है।
  4. हरिद्वार: अपने आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाने वाला हरिद्वार एक हलचल भरा शहर है जो साल भर पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।
  5. अल्मोड़ा: कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित, अल्मोड़ा एक आकर्षक हिल स्टेशन है जो हिमालय के शानदार दृश्य, एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और एक शांत जीवन शैली प्रदान करता है।
  6. ऋषिकेश: “विश्व की योग राजधानी” के रूप में जाना जाता है, ऋषिकेश अपने आश्रमों, आध्यात्मिक वातावरण और राफ्टिंग और बंजी जंपिंग जैसी साहसिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है।
  7. उत्तरकाशी: यह सुदूर और सुंदर शहर घने जंगलों, बर्फ से ढकी चोटियों और शांत नदियों से घिरा हुआ है, जो इसे साहसिक उत्साही और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक शानदार जगह बनाता है।
  8. बागेश्वर: यह ऐतिहासिक शहर कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक महत्व और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है।
  9. चमोली: अपने ग्लेशियरों, गर्म झरनों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाने वाला चमोली ट्रेकिंग और साहसिक खेलों के लिए एक आदर्श स्थान है।
  10. रुद्रप्रयाग: यह छोटा सा शहर दो पवित्र नदियों, अलकनंदा और मंदाकिनी के संगम पर स्थित है, और अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।
  11. पिथौरागढ़: कुमाऊं क्षेत्र में स्थित पिथौरागढ़ अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है।
  12. हल्द्वानी: नैनीताल जिले में स्थित, हल्द्वानी एक हलचल भरा शहर है जो कुमाऊँ के हिल स्टेशनों के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
  13. रानीखेत: यह सुंदर हिल स्टेशन अपनी हरी-भरी हरियाली, सुंदर गोल्फ कोर्स और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है।
  14. कोटद्वार: यह छोटा शहर पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है और गढ़वाल के हिल स्टेशनों के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
  15. श्रीनगर: पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित श्रीनगर अपनी प्राकृतिक सुंदरता, साहसिक खेलों और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।
  16. औली: एक लोकप्रिय स्की गंतव्य, औली हिमालय के मनोरम दृश्य और साहसिक खेलों की एक श्रृंखला प्रदान करता है।
  17. मुक्तेश्वर: यह विचित्र हिल स्टेशन अपनी प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण और ट्रेकिंग और पैराग्लाइडिंग जैसी साहसिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है।
  18. कर्णप्रयाग – कर्णप्रयाग भारत के उत्तराखंड के चमोली जिले में, अलकनंदा और पिंडर नदियों के संगम पर स्थित है। ये स्थान के लिए एक पवित्र स्थल माना जाता है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है और आसपास के क्षेत्रों में ट्रेकिंग और अन्य साहसिक गतिविधियों के लिए शुरुआती बिंदु के रूप में कार्य करता है। यह शहर कर्णेश्वर मंदिर सहित कई मंदिरों का घर भी है, जो भगवान शिव को समर्पित है।

 देश के सर्वाधिक प्रसिद्ध हिल स्टेशन में से एक मसूरी यात्रा का विवरण

पिछले लेख में देहरादून नगर के विवरण के बाद इस लेख में है देहरादून से मसूरी यात्रा का विवरण जैसे कैसा है मसूरी, कैसे पहुँचे मसूरी और क्यों इतना पोपुलर डेस्टिनेशन है – मसूरी! (इन सवालो के जवाब को जानने PopcornTrip के इस video को देखें)

देहरादून से मसूरी के दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। हम राजपुर रोड से जाखन, देहरादून जू, श्री प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर से होते हुए मसूरी के लिए आगे बढ़े। देहरादून के नगर क्षेत्र से मसूरी मार्ग में कुछ दूर चलते ही घुमावदार सड़क देख कर पहाड़ों से मिलने का अहसास होता है और तापमान में गिरावट का एहसास होता है।
देहरादून, समुद्र तल से लगभग 640 मीटर (2100 फीट) की ऊँचाई पर, और मसूरी, की ऊँचाई समुद्र तल से 2005 मीटर (6578 फीट) पर स्थित है। मसूरी का ठंडा मौसम, दूर तक घाटियों का दृश्य और स्वास्थ्यप्रद जलवायु, मसूरी को विशेष बनाती है।

अपने वाहन के अतिरिक्त देहरादून से मसूरी के लिए बसेज और टैक्सीज़ भी उपलब्ध हो जाती हैं। टैक्सी व उत्तराखण्ड परिवहन निगम की बस, देहरादून के रेलवे स्टेशन से समीप ही स्थित मसूरी बस अड्डे से नियमित अंतराल पर मिल जाती हैं।

Dehradun Railway

देहरादून के नगर क्षेत्र से बाहर निकलते ही घुमावदार सड़क देख कर पहाड़ों से मिलने का अहसास होता है। देहरादून पर बना वीडियो आप popcorntrip चैनल में देख सकते हैं

देहारादून चिड़ियाघर के बाद, सड़क घुमावदार होने के साथ हल्की चढ़ाई भी लिए हुए है। सड़क के किनारे दिखते खड़े – वाहन यह संकेत देते हैं – कि मसूरी जैसी खूबसूरत जगह, उत्तराखंड मे पर्यटकों द्वारा कितनी पसंद की जाती है। इस सफ़र में लगने वाला समय इस बात पर निर्भर करता है कि किस सीजन में मसूरी ट्रैवल कर रहें हैं, कोई ऑफ सीजन है तो लगभग डेढ़ घंटा और गर्मियों का सीजन और साथ मे सप्ताहंत भी, तो फिर समय होता है अपने धैर्य की परीक्षा देने का।

देहरादून से मसूरी जाते हुए सड़क के दाई ओर ओर पहाड़ी और बायीं ओर ढलान लिए हुए पहाड़ी नजर आती है। साफ़ मौसम हो तो मार्ग से दिखने वाले खूबसूरत दृश्य, जिसमें घाटियों के उतार के साथ दूर तक देहरादून शहर दिखाई देता है।

Dehradun to Mussoorie Journey

Dehradun to Mussoorie Journey Popcorn Trip

मार्ग में Mussoorie Municipality का Toll पॉइंट, यहाँ मसूरी नगर में वाहनों के प्रवेश के लिए शुल्क जमा होता है। इस सड़क में बरसातों के मौसम में अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों की सड़कों की तरह चट्टान से पत्थर या मलवा खिसकने का अंदेशा रहता है और इस बारे मे सावधानी बरतने के निर्देश देते बोर्ड जगह जगह दिखते हैं। इसी मार्ग में एक स्थान से बायीं ओर यहाँ का एक प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट भट्टा फॉल के लिए मार्ग है। यहाँ से भट्टा फॉल तक रोपवे द्वारा भी पहुँच सकते हैं। इस मार्ग में जगह जगह रेस्टोरेंट, कई गेस्ट हाउस और होटल भी दिखते हैं। मसूरी झील भी इसी मार्ग में स्थित है, जो मसूरी से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर है।

मसूरी नगर से कुछ पहले मल्टीलेवल पार्किंग के समीप से, मसूरी शहर मे एंट्री के लिए दो मार्ग जाते हैं, सीधा आगे जाता मार्ग पिक्चर पैलेस चौक की ओर जो यहाँ से लगभग 1 किलोमीटर और बाई ओर की सड़क जिससे तीन किलोमीटर की दूरी पर है – लाइब्रेरी चौक। Library चौक जाते हुए राइट हैंड साइड को मॉल रोड सीढ़ियों से भी पंहुचा जा सकता है। लाइब्रेरी चौक के सामने, मॉल रोड का ऊप्परी सिरा मिलता है, और दूसरा सिरा पिक्चर पैलेस चौक के समीप मिलता है।
मसूरी मॉल रोड में सुबह 9 बजे से रात्रि 10 बजे तक बड़े वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित है।मसूरी में वाहनों हेतु पार्किंग अलग अलग स्थानों में बनी हुई है।

देखें इस खूबसूरत मार्ग से यात्रा का रोचक वीडियो 

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Dehradun to Mussoorie Road Journey Guide

The road journey from Dehradun to Mussoorie is approximately 35 kilometers and takes about 1-2 hours depending on traffic, tourist season and road conditions. The route is well-connected by a good network of roads, and the journey is scenic, passing through beautiful mountains, valleys and forests. The most common route to take is via NH734 and the winding road, with a number of hairpin bends and steep inclines, offers picturesque views of the Doon valley and the surrounding hills.

Clock Tower

Clock Tower Dehradun

There are several modes of transportation available to make the journey, including:

  1. Bus: There are frequent bus services that run between Dehradun and Mussoorie, operated by the state-run Uttarakhand Transport Corporation (UTC). Anyone can get bus from Mussoorie Bus Stand near Dehradun Railway station.
  2. Taxi: You can also hire a taxi or a cab to take you from Dehradun to Mussoorie.
  3. Private car or two wheeler: You can also drive your own car, but be prepared for winding roads and steep inclines.
A Rainy Day in Dehradun

A Rainy Day in Dehradun

It is recommended to check the road condition in advance as the route is prone to landslides during monsoon season, and it’s better to plan your journey accordingly.

Parking in Mussoorie

Mussoorie has several parking options available, including on-street parking, municipal parking lots, and private parking lots. Some popular parking locations in Mussoorie include the Gandhi Chowk parking area, the Library Chowk parking area, and the Municipal Garden parking area. It’s also possible to find parking on the side streets near popular tourist attractions. It’s important to be aware of any parking restrictions or fees that may apply in certain areas. It is advised to check for parking information with local authorities before embarking on the trip.

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दुनागिरी मंदिर, पांडुखोली और कुमाऊँ की सबसे ऊँची चोटी भतकोट

इस लेख में है दुनागिरि, पाण्डुखोली और कुमाऊँ की सबसे ऊँची non हिमालयन पहाड़ी भतकोट से जुडी जानकारी।

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में – द्वाराहाट से लगभग 14 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है दुनागिरि मंदिर। मंदिर के लिये सड़क से लगभग 1 किलोमीटर का पैदल दूरी तय करके पंहुचा जा सकता है। सड़क के किनारे वाहनों की पार्किंग, कुछ रेस्टोरेंट, दैनिक आवश्यकताओं से जुड़े सामान से सम्बंधित दुकानो के साथ साथ प्रसाद इत्यादि के प्रतिष्ठान आप को सड़क से लगे हुए स्थित हैं।

यहाँ रानीखेत से द्वाराहाट होते हुए पहुँचा जा सकता है। इस स्थान से आगे 5 किलोमीटर की दूरी पर कुकुछीना नामक स्थान है और कुकुछीना से लगभग 4 किलोमीटर का ट्रेक करके सुप्रसिद्धि पाण्डुखोली आश्रम पंहुचा जा सकता जहाँ स्वर्गीय बाबा बलवंतगिरि जी ने एक आश्रम की स्थापना की थी।पाण्डुखोली – महावतार बाबा और लाहिड़ी महाशय जैसे उच्च आध्यात्मिक संतो की तपस्थली रही है । इसके बारे में विस्तृत जानकारी इस लेख में आगे है।

दुनागिरि मंदिर – उत्तराखंड और कुमाऊँ के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है – दुनागिरि मंदिर के के लिए सीढ़ियों से चढ़कर उप्पर जाना होता है और सीढ़ियों जहाँ शुरू होती हैं – वही प्रवेश द्वार से लगा हुआ हनुमान जी का मंदिर।

दुनागिरि मंदिर के दर्शन हेतु आने वाले श्रद्धालु सीढ़ियां चढ़ कर दुनागिरि मंदिर तक पहुंचते हैं।मंदिर तक ले जाने वाला मार्ग बहुत सुन्दर हैं, पक्की सीढिया, छोटे -२ स्टेप्स, जिसमे लगभग हर उम्र के लोग चल सकें, मार्ग के दोनों ओर दीवार और दीवार के उप्पर लोहे की रैलिंग लगी हैं, जिससे वन्य प्राणी और मनुष्य एक – दूसरे की सीमा को न लांघ सके। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 365 सीढ़ियां चढ़नी होती है | पूरा रास्ता टीन की छत से ढका हुआ है, जिससे श्रद्धालुओं का धुप और बारिश से बचाव होता है ।

मार्ग में कुछ कुछ दुरी पर आराम करने के लिए कुछ बेंचेस लगी हुई हैं। पूरे मार्ग में हजारों घंटे लगे हुए है, जो दिखने में लगभग एक जैसे है। मां दुनागिरि के मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 800 मीटर की दुरी पैदल चल के तय करनी होती हैं। लगभग दो तिहाई रास्ता तय करने के बाद, भंडारा स्थल मिलता है, जहा दूनागिरी मंदिर ट्रस्ट द्वारा प्रतिदिन भण्डारे का आयोजन किया जाता है। सुबह 9 बजे से लेकर दोपहर 3 बजे तक। जिसमें यहाँ आने वाले श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं।
दूनागिरी मंदिर रखरखाव का कार्य ‘आदि शाक्ति मां दूनागिरी मंदिर ट्रस्ट’ द्वारा किया जाता है।
प्रसादा आदि ग्रहण करने के बाद सभी श्रद्धालु अपने बर्तन, स्वंय धोते हैं एवं डोनेशन बॉक्स में अपनी श्रद्धानुसार भेट चढ़ाते है – जिससे भंडारे का कार्यक्रम अनवरत चलता रहता है।

इस जगह पर भी प्रसाद – पुष्प खरीदने हेतु कई दुकाने हैं। मंदिर से ठीक नीचे एक ओर गेट हैं – श्रद्धालओं की सुविधा के लिए यहाँ से मंदिर दर्शन के लिए जाने वाले और दर्शन कर वापस लौट के आने वालों के लिए दो अलग मार्ग बने हैं। देवी के मंदिर के पहले भगवान हनुमान, श्री गणेश व भैरव जी के मंदिर है। बायीं और लगभग 50 फ़ीट ऊंचा झूला जिसे पार्वती झूला के नाम से जाना जाता है।

मुख्य मदिर के निकट और मंदिर से पहले – बायीं और हैं गोलू देवता का मंदिर।
यहीं से दायी ओर – और भी मदिर है, और उप्पर सामने है मुख्य मंदिर। मुख्य मंदिर से नीचे मार्ग के दोनों और माँ की सवारी शेर।

अब जानते हैं मदिर से जुड़े कुछ तथ्यों को – दूनागिरी मुख्य मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। प्राकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिण्डियां माता भगवती के रूप में पूजी जाती हैं। दूनागिरी मंदिर में अखंड ज्योति का जलना इस मंदिर की एक विशेषता है।

दूनागिरी माता का वैष्णवी रूप में होने से इस स्थान में किसी भी प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती है। यहाँ तक की मंदिर में भेट स्वरुप अर्पित किया गया नारियल भी मंदिर परिसर में नहीं फोड़ा जाता है।

पुराणों, उपनिषदों और इतिहासविदों ने दूनागिरि की पहचान माया-महेश्वर व दुर्गा कालिका के रूप में की है। द्वाराहाट में स्थापित इस मंदिर में वैसे तो पूरे वर्ष भक्तों की कतार लगी रहती है, मगर नवरात्र में यहां मां दुर्गा के भक्त दूर-दराज से बड़ी संख्या में आशीर्वाद लेने आते हैं।

इतिहास/ मान्यताएं
इस स्थल के बारे में एक प्रचलित कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब लक्ष्मण को मेघनाद के द्वारा शक्ति लगी थी, तब सुशेन वेद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था।हनुमान जी आकाश मार्ग से पूरा द्रोणाचंल पर्वत उठा कर ले जा रहे तो इस स्थान पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरी का मंदिर का निर्माण कराया गया।
एक अन्य मान्यता के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य ने इस पर्वत पर तपस्या की थी, जिस कारण उन्हीं के नाम पर इसका नाम द्रोणागिरी पड़ा और बाद में स्थानीय बोली के अनुसार दूनागिरी हो गया।

एक अन्य जानकारी के अनुसार, कत्यूरी शासक सुधारदेव ने सन 1318 ईसवी में मन्दिर का पुनर्निर्माण कर यहाँ माँ दुर्गा की मूर्ति स्थापित की। यहाँ स्थित शिव व पार्वती की मूर्तियां उसी समय से यहाँ प्रतिस्थापित है।

दूनागिरि माता का भव्य मंदिर बांज, देवदार, अकेसिया और सुरई समेत विभिन्न प्रजाति के पेड़ों के झुरमुटों के मध्य स्थित है, जिससे यहां आकर मन को शांति की अनुभूति होती है। इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की जीवनदायिनी जड़ी, बूटियां भी मिलती हैं |

दूनागिरी मंदिर के बारे में यह भी माना जाता है कि यहाँ जो भी महिला अखंड दीपक जलाकर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है, उसे देवी वैष्णवी, संतान का सुख प्रदान करती है। यहाँ से हिमालय की विशाल पर्वत शृंखला को यहाँ से देखा जा सकता है।

यहाँ कैसे पहुँचे!
द्वाराहाट और दुनागिरि पहुंचने के लिये निकटतम हवाई अड्डा 164 किलोमीटर दूर पंतनगर में है। निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम 130 किलोमीटर की दूरी हैं, जहाँ से बस अथवा टैक्सी द्वारा यहाँ पंहुचा जा सकता हैं।
एक हवाई अड्डा चौखुटिया जो कि यहाँ से मात्र 25-30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित में प्रस्तावित हैं।

दुनागिरि से 14 किलोमीटर दूर द्वाराहाट और रानीखेत में रात्रि विश्राम लिए कई होटल्स उपलब्ध हैं, जिनकी जानकारी इंटरनेट में सर्च कर ली जा सकती हैं।

इस लेख के आरम्भ में हमने जिक्र किया था – दुनागिरि के निकट ही स्थित है प्रसिद्द पाण्डुखोली आश्रम का, जहाँ लगभग ४ किलोमीटर का ट्रेक करके पंहुचा जा सकता है, पाण्डुखोली का शाब्दिक अर्थ है ‘पांडू’ जो पांडव और ‘खोली’ का आशय हैं – आश्रय स्थल अथवा घर, अर्थात पांडवो का ‘आश्रय’।

पाण्डुखोली जाने का रमणीय मार्ग – बाज, बुरांश आदि के वृक्षों से घिरा है. कहते हैं पांडवो ने यहाँ अज्ञात वास के दौरान अपना कुछ समय व्यतीत किया था। पाण्डुखोली आश्रम से लगा सुन्दर बुग्यालनुमा घास का मैदान, इसे भीम गद्दा नाम से जाना है, आश्रम के प्रवेश द्वार, से प्रवेश करते ही मन शांति और आध्यात्मिक वातावरण से प्रफुल्लित हो उठता है, आश्रम में रात्रि विश्राम के लिए आपको आश्रम के नियम आदि का पालन करना होता है, किसी प्रकार के नशे आदि का यहाँ कड़ा प्रतिबन्ध है।

स्वामी योगानंद महाराज ने अपनी आत्मकथा “ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ योगी” में बताया है कि उनके गुरु श्री युक्तेश्वर गिरि महाराज के गुरु श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय जी ने यहीं अपने गुरु महावतार बाबा जी से क्रिया योग की दीक्षा ली थी।

कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास पांडवखोली के जंगलों में व्यतीत किये। यही नहीं पांडवों की तलाश में कौरव सेना भी पहुंची इस लिए इसे कौरवछीना भी कहा जाता था। लेकिन अब कुकुछीना के नाम से जाना जाता है।
माना जाता हैं – हमारे युग के सर्वकालिक महान गुरु – महावतार बाबा बीते पांच हजार साल से भी अधिक समय से यहां साधनारत हैं, उन्होंने दुनागिरि मंदिर में भी ध्यान किया था, उनका ध्यान स्थल दुनागिरि मंदिर भी देखा जा सकता हैं।

लाहिड़ी महाशय उच्च कोटि के साधक थे, पांडुखोली पहुंच गए, जहां महावतार बाबा ने उन्हें क्रिया योग की दीक्षा दी थी। लाहड़ी महाशय का रानीखेत और वहां से पाण्डुखोली पहुंचने और महावतार बाबा से साक्षात्कार का प्रसंग बेहद दिलचस्प हैं, जिसे आप ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ ए योगी जिसका हिंदी रूपांतरण – ‘योगी कथामृत’ में पढ़ सकते हैं, इन पुस्तकों का लिंक नीचे दिए हैं

योगी कथामृत (Hindi) : https://amzn.to/2Q0M8nz
Autobiography of a Yogi (English) : https://amzn.to/2Dogy1J 

इस क्षेत्र की पहाड़ियों में अनेको – अनदेखी गुफाएं हैं, संतो को मनुष्यों की आवाजाही से, दूर शांत जगह ध्यान और समाधी के लिए पसंद होती हैं, यहाँ ‘भीम गद्दा कहे जाने वाले मैदान पर पर पैर मारने पर – खोखले बर्तन की भांति ध्वनि महसूस की जा सकती हैं। यह जगह प्रसिद्ध है क्योंकि इस पहाड़ी में महामुनी बाबाजी महात्मा बलवंत गिरि जी महाराज की गुफा है। प्रत्येक दिसंबर माह में बाबा की पुण्यतिथि पर विशाल भंडारा होता है।

इस स्थान से आस पास की जगहों के आनेक लुभावने दृश्य देखे जा सकते हैं |

यही से कुमाऊँ की सबसे ऊँची non- himalaya चोटि भरतकोट जिसकी समुद्र तल से उचाई लगभग दस हजार फ़ीट है, स्थित है। ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग में श्रीराम के अनुज भरत ने भी इस क्षेत्र में (भरतकोट या भटकोट) तपस्या की थी। कहा जाता है कि श्री राम के वनवाश के समय महात्मा भरत ने इसी स्थान पर तपस्या कि थी। रामायण के युद्ध के समय जब लक्ष्मण मेघनाथ के शक्ति प्रहार से मूर्छित हो गए थे तब वीरवार हनुमान उनके प्राणों कि रक्षा के लिए संजीवनी बुटी लेने हिमालय पर्वत गए।

जब वो वापिस रहे थे तो भरत को लगा के कोई राक्षस आक्रमण के लिए आकाश मार्ग से रहा है। उन्होंने ये अनुमान लगा कर हनुमान जी पर बाण चला दिया। महावीर हनुमान मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़े और मूर्छित अवस्था में भी “राम” नाम का स्मरण करने लगे। यह देख कर भरत जी को बहुत ग्लानि हुयी कि उन्होंने एक राम भक्त पर बाण चला दिया। भरत ने हनुमान जी से क्षमा याचना कि और उनसे पूरा वृतांत सुना।

गगास नदी जो सोमेश्वर में बहती है, उसका उद्गम स्थल भी यही है। ट्रैकिंग के शौक रखने वाले पर्यटक यहाँ भी विजिट करते हैं. जिसके लिए उन्हें अपने साथ जरुरी सामान – जिसमे हैं – फ़ूड, टेंट्स, गरम कपडे, रेनकोट, स्लीपिंग बैग मुख्य है। ट्रेक में जाने से जाने से पूर्व क्या तैयारियाँ करें और क्या सामान ले जायें के जानकारी देता वीडियो देंखे

भारतकोट या भटकोट के ट्रेक के लिए स्थानीय गाइड, अनुभवी अथवा प्रशिक्षित ट्रेकर के साथ ही जाना सही रहता हैं।

उम्मीद है यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी, धन्यवाद!
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क्यों इतना प्रसिद्ध है देहरादून के निकट सहस्त्रधारा

सहस्त्रधारा भारत के उत्तराखंड राज्य राजधानी देहरादून के निकट स्थित एक आकर्षक पर्यटन स्थल है। सहस्त्रधारा नाम का अर्थ है “हजारों जल धारायें” और यह अपने चूना पत्थर के निर्माण और झरनों की एक श्रृंखला के लिए जाना जाता है। यह अपने प्राकृतिक सल्फर स्प्रिंग्स के लिए भी लोकप्रिय है, जिसके बारे में माना जाता है कि यहाँ के झरने के पानी में कई औषधीय गुण हैं। इस झरने के जल से कई त्वचा संबंधी रोगों का उपचार होता है। यहाँ आने वाले पर्यटक इस यहाँ बहते झरने के जल को इकट्ठा कर बनाये विभिन्न तालाबों में डुबकी लगाते हैं। इस स्थान में एक फ़न पार्क भी जहां विभिन्न झूले और राइड्स उपलब्ध हैं। यहाँ एक रज्जु मार्ग (Roap Way) भी है और एक बौद्ध मंदिर भी है।

Sahastradhara-Tour-Dehradun-in-Hindi

यहाँ पर्यटक पूरा दिन या तीन चार घंटे आराम से बिता सकते हैं। देहरादून स्थित सहस्त्रधारा कई कारणों से खास है, जिनमें से कुछ हैं:

  • माना जाता है कि प्राकृतिक गंधक के झरनों में औषधीय गुण होते हैं, और कहा जाता है कि यह त्वचा और जोड़ों की समस्याओं वाले लोगों के लिए फायदेमंद है।
  • यह स्थान अपने चूना पत्थर के निर्माण और झरनों की एक श्रृंखला के लिए जाना जाता है, जो इसे एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बनाता है।
  • यह आसपास की पहाड़ियों और घाटियों का सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है।
  • आगंतुक झरने में डुबकी लगा सकते हैं और यहां रोपवे की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
  • पिकनिक और प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेने के लिए यह एक बेहतरीन जगह है।
  • यह शहर के करीब स्थित है और सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
  • यह फोटोग्राफी और सुंदर परिदृश्यों को कैप्चर करने के लिए एक बेहतरीन जगह है।
  • इस जगह का शांत और निर्मल वातावरण है और यह उन लोगों के लिए एक आदर्श स्थान है जो शहर की हलचल से आराम की तलाश में हैं।

आप इस स्थान पर बने रोचक वीडियो से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं –

देहरादून क्यों हैं विशेष

उत्तराखण्ड में गढ़वाल की पहाड़ियों की तलहटी से लगा खुशमुमा मौसम लिए देहरादून ख़ूबसूरत तो है ही, साथ ही उत्तराखण्ड राज्य के राजधानी होने से इसकी और भी महत्व बड़ जाता है। 

वैसे तो राज्य बनने के साथ देहरादून अस्थायी राजधानी घोषित हुआ था, लेकिन अभी तक उत्तराखंड में कहीं और पूर्णकालिक राजधानी अब तक कहीं तैयार नहीं, उत्तराखंड में कई लोग मांग करते हैं कि गैरसैंण या कोई और पहाड़ी जगह राज्य की राजधानी बने, फिलहाल तो 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से  देहरादून शहर ही राज्य की राजधानी की जिम्मेदारी संभाल रहा है। 

PopcornTrip में देहरादून की जानकारी देते इस लेख में आप पायेंगे यहाँ का इतिहास, यहाँ के विभिन्न पर्यटक आकर्षण के केन्द्र जिनमें से कुछ हैं सहस्त्रधारा, टपकेश्वर मंदिर, गुच्चू पानी (रॉबर्स केव), FRI, क्लॉक टावर, मालसी डियर पार्क (देहरादून का चिड़ियाघर) आदि की जानकारी और साथ में यहाँ कैसे पहुँचे, यहाँ के मौसम आदि की जानकारी। 

देहरादून के लोग अपने शहर से बहुत प्रेम करते है और इस अद्भुत शहर से जुड़ा होने पर गर्व भी। यहाँ का खानपान, मौसम, प्रकृति, भोगोलिक वातावरण – सब कुछ लोगों को लुभाता है।

Dehradun

यह स्थान देश की अन्य लोगों के साथ celebrities को भी इतना पसंद आता है, वो देहरादून कम से कम एक घर बनाना या खरीदना चाहते है। अनेकों celebrities के देहरादून मे भी रेज़िडन्स है। 

पीढ़ियों से रहते लोग बताते है कि पहले देहरादून में एक या कुछ एकड़ से कम जमीन खरीदी या बेची नहीं जा सकती थी। जिससे सम्पन्न लोग ही यहाँ घर बना सकते थे। आज भी देहरादून में एकड़स लेंड में बने bunglows देखे जा सकते है। 

तब bunglow में चाहरदीवारी नहीं होती थी, चारों ओर हेज लगी रहती थी जिससे बारिश का पानी एकदम बह जाता। अब चाहरदीवारी से घिरी है। 

देहरादून में मध्यम आय वर्ग के लोगों ने घर बनाना चाहा,  तो समय के साथ  जमीन खरीद – फरोख्त के मानक बदले और शहर में कम साइज़ की जमीनें भी बेची जाने लगी। और शहर cement और कान्क्रीट से भरने लगा।  

देहारादून में कई पार्क होने के साथ देहारादून में कई राष्ट्रीय संस्थानों और organizations का मुख्यालय है – जिनमे ओएनजीसी, सर्वे ऑफ इंडिया, वन अनुसंधान संस्थान फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट,  Indian Institute of Petroleum प्रमुख हैं। 

देहरादून में देश के कई प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान भी यहाँ है। जिनमे प्रमुख है। Indian Military Academy, Rashtriya Indian Military College (राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कॉलेज), Indira Gandhi National Forest Academy (IGNFA), Lal Bahadur Shastri National Academy Of Administration (LBSNAA) भी देहरादून में हैं।

देहरादून को यहाँ के सुहावने मौसम, यहाँ के बासमती चावल के साथ और लीची के लिए भी जाना जाता है। देहरादून के आसपास –  मसूरी, धनौल्टी, ऋषिकेश, हरिद्वार, सहरानपुर, रुड़की जैसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण स्थान तो हैं ही, साथ ही नगर में या नगर की सीमा से लगे कई आकर्षण जैसे सहस्त्रधारा, रॉबर्स केव, टपकेश्वर महादेव, FRI जैसे आकर्षण भी हैं।
देहरादून को समझने के लिए यहाँ महीनों समय बिताना भी कम है, और कुछ 8-  10 ऐसे स्थान देखने हो जो internet सर्च मे टॉप पर आते है, या ज्यादातर पर्यटक विज़िट करते है, और उतना देखने के लिए 2-3 दिन का समय बहुत हैं। और ठहरने के लिए तमाम होटल/ resort / B&B homes hai. जो अपने बजट और रुचि के अनुसार विभिन्न होटल बुकिंग साइट्स से पता किए और बुक कराए जा सकते हैं।

Clock Tower Dehradun

देहरादून का इतिहास/ History of Dehradun

द्वापर युग में “महाभारतकालीन गुरु द्रोणाचार्य” के घर के रूप में भी जाने वाले देहरादून का यह नाम होने की कहानी यह है कि – सन् 1676 में,  सिक्खों के सातवें गुरु राम राय वर्ष अपनी संगत के साथ भ्रमण करते हुए इस स्थान पर पहुचे, और दून घाटी मे अपना डेरा यानि Camping की, उनके यहाँ पड़ाव डालने के बाद इस स्थान को डेरा दून कहा जाने लगा, और जो कालांतर में बदल कर देहरादून हो गया।
ब्रिटिश युग से पूर्व ज्यादातर दून घाटी गढ़वाल के शासकों के अधीन रही और रणनीतिक रूप से केंद्र में रही। ब्रिटिश पीरियड में ब्रिटिशर्स ने भी यहाँ अपनी छावनी बनायी।

देहरादून  के प्रमुख आकर्षण व गतिविधियां

देश भर की नामी ब्रांड्स और कंपनीज़ चाहे वो इलेक्ट्रॉनिक्स हों, फर्नीचर हो, ऑटोमोबाइल हों, रेस्टोरेंट हो के यहाँ लगभग सभी के आउटलेटस हैं।
देहरादून शहर का केंद्र माना जा सकता हैं यहाँ घंटा घर यानि क्लाक tower को। क्लॉक टावर यानी घंटा घर शहर के केंद्र में है। यहाँ लगे शिलापट में नाम बलबीर क्लॉक टावर दर्ज है। 1948 में इस क्लॉक टावर के निर्माण की शुरुआत ब्रिटिश समय के न्यायाधीश रहे और बलबीर सिंह जी के परिजनों ने उनकी स्मृति में किया और 1953 में बनकर तैयार हुआ। घंटाघर ईंटो और पत्थरों से बना हुआ है। इसमें प्रवेश के लिये छह दरवाजे हैं। इसके षट्कोणीय आकार की हर दीवार पर प्रवेशमार्ग है। ऊपर जाने के लिये गोल घुमावदार सीढ़ियाँ है। छह अलग दीवारों पर छह घड़ियां लगी हैं उन्‍हें उस समय स्विट्जरलैंड से भारी-भरकम मशीनों द्वारा लाया गया था। अब यहाँ मेकेनिकल घड़ियों की जगह –  इलेक्ट्रानिक घड़ियां लग गयी हैं।

Clock Tower

Clock Tower Dehradun


क्लॉक टावर  के निकट देहरादून के कई प्रसिद्ध बाजारें हैं। जिनमे से सबसे प्रसिद्ध है – देहरादून का सबसे पुराना बाजार – पलटन बाजार। इस बाजार से कई दूसरे बाजारों को जोड़ती गालियां है। क्लॉक टावर से राजपुर रोड की ओर आते हुए कुछ ही कदम की दूरी पर स्थित – MDDA मल्टी स्टोरी कार पार्किंग। इस पार्किंग कॉम्प्लेक्स की अन्डर ग्राउन्ड फ्लोरस में पार्किंग है और ऊपर की floors में कुछ रेस्टोरेंट, सर्विस सेंटर और कुछ दुकाने। पार्किंग से की दीवार से बाहर आते ही दिखता है – इन्दिरा मार्केट – यहाँ सस्ते रेडीमेड वस्त्रों की खरीददारी की जा सकती है।

Paltan Bazar Dehradunक्लॉक टावर से राजपूत रोड में लगभग 100 मीटर चलने के बाद दाई ओर चलते हुए पहुचते है – शहर के एक खूबसूरत पार्कगांधी पार्क मे। पार्क मे हरियाली और खूबसूरत फूलों और पेड़ों के साथ पंछियों की चहचहाट सुनते हुए सुबह की शुरुआत की जाये, तो फिर पूरा दिन ही अच्छा लगता है। 

Dehradun pleasant weather

A Rainy Day in Dehradun

देहरादून का मौसम
यहाँ का मौसम वर्ष भर सुहावना रहता है। यहाँ बारिश होने के लिए वातावरण को पश्चिमी विक्षोभ या सावन के आने की ज़रूरत नहीं रहती। जो कभी भी हो जाती है। घर से कोई यह सोच कर निकले कि आज मौसम साफ है – तो अचानक बारिश हो सकती है और कभी ऐसा लगे कि – आज  बारिश होगी और छाता लेकर बाहर जाए, तो जरूरी नहीं कि उस दिन बारिश हो।

शहर में कई जल स्रोत, झरने, जलाशय और पार्क है, जो यहाँ रहने वालों के लिए सैरगाह/ पिकनिक स्पॉट और सैलानियों के लिए आकर्षक पर्यटक स्थल हैं। जानते हैं इनके बारे में – 

सहस्त्रधारा

देहरादून के सर्वाधिक विज़िट किए जाने वाले पिकनिक डेस्टिनेशन में एक है सहस्त्रधारा। सहस्त्रधारा – देहरादून में क्लॉक टावर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक सुंदर पिकनिक स्पॉट है। घंटाघर के समीप स्थित परेड ग्राउंड से सहस्त्रधारा के लिए नियमित अंतराल पर चलने वाली बस मिल जाती हैं, आपने वाहन के अलावा टैक्सी अथवा ऑटो द्वारा भी यहाँ पंहुच सकते हैं। देहरादून में मोबाईल एप बेस्ड टैक्सी और बाइक राइड भी मिल जाती है।
सहस्त्रधारा में वाहनों के लिए बड़ा पार्किंग स्पेस है। पार्किंग से कुछ ही दूरी पर एक मंदिर भी है। सहस्त्रधारा नाम के अनुरूप यहाँ के प्रकार्तिक झरने से सहस्तरों धराएं निकलती हैं। यहाँ के जल स्रोतों से बहते पानी को रोककर बने कई छोटे छोटे जलाशय बनाए गए हैं, जो यहाँ आने वालों को लुभाते हैं। मानसून में यहाँ बहाव बहुत तीव्र होता है।

सहस्त्रधारा में प्राकृतिक और चिकित्सीय गुणों से भरपूर एक प्राकृतिक गंधक (सल्फर) वाटर स्प्रिंग है, इसके निरंतर बहते जल से गंभीर त्वचा विकारों को भी ठीक किया जा सकता है। देश भर से तो यहाँ लोग आते ही हैं साथ ही विदेशों से भी पर्यटक यहाँ,  त्वचा संबंधित रोगों के उन्मूलन के लिए आते हैं।

खाने के विकल्प उपलब्ध कराते यहाँ कई फ़ास्ट फ़ूड स्टॉल हैं। यहाँ Rope Way राइड भी लिया जा सकता है यहाँ एक fun park भी है जहां कई rides और swings का आनंद  ले सकते है। यहाँ  बौद्ध मंदिर भी है। साथ ही ठहरने के लिए कुछ होटेल्स भी है। यहाँ पूरा या आधा दिन विभिन्न गतिविधियों करते हुए बिताया जा सकता है। 

मालसी डियर पार्क / देहरादून चिड़ियाघर

सहस्त्रधारा से लगभग 11.5 किलोमीटर दूर देहरादून – मसूरी मार्ग में स्थित मालसी डियर पार्क जिसे देहरादून के चिड़ियाघर के नाम से भी जाना जाता हैं स्थित है। घंटाघर से यहाँ की दूरी 9 किलोमीटर है, यहाँ आने के लिए बस व या टैक्सी/ ऑटो भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। यहाँ की घंटे या पूरा दिन भी यहाँ दिखने वाले जीवों जिनमे कई पक्षी और पशु हैं की बारे में जानकारी लेते हुए बिता सकते हैं। इस जू को विजिट करने की टाइमिंग सुबह 09 से शाम 5 तक है, और ये सोमवार को बंद रहता है। यहाँ बच्चों के लिए पार्क, और जानकारी उपलब्ध कराते कई रोचक बोर्ड दिखते हैं। यहाँ जू के बाहर खाने के एक कैंटीन भी है।

रॉबर्स केव/ गुच्चू पानी

देहारादून का एक और आकर्षण है – क्लाक टोअर से लगभग साढ़े आठ किमी और देहरादून जू से लगभग 4 किमी दूर रॉबर्स केव जिसे गुच्चू पानी नाम से भी जाना जाता है। Robbers Cave में 4 वर्ष से उप्पर के आगंतुकों के लिए प्रवेश शुल्क लिया जाता है। यहाँ एक छोटी नहर है जो एक गुफा से हो कर गुजरती है। इस गुफा में बहते हुए पानी में चलते हुए रोमांच की अनुभूति होती है। ये गुफा लगभग 600 मीटर लंबी है। बरसात में इस पानी का लेवल बढ़ जाता है। और सर्दियों में पानी काफ़ी ठंडा रहता है।

टपकेश्वर महादेव

रॉबर्स केव से टपकेश्वर महादेव मंदिर की दूरी लगभग 6 किलोमीटर और क्लॉक टावर से 6.5 किलोमीटर  है। इस मंदिर में स्थित  शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं।  ऐसा माना जाता है कि इस जगह को गुरु द्रोणाचार्य द्वारा बसाया गया था, इसलिए इसे द्रोण गुफा के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ आने के लिए अपने वाहन के अलावा ऑटो अभी उपलब्ध हो जाते हैं। 


FRI (Forest Reserach Institute)

फारेस्ट रिसर्च सेंटर FRI के नाम से जाने जाने वाला संस्थान देहारादून का एक और आकर्षण है। यह संस्थान केवल अपने शोध कार्य के लिए बल्कि अपने अद्भुत वास्तुकला  के लिए भी जाना जाता हैं  और अपनी  बेहद आकर्षित कर देने वाली बनावट के कारन,”FRI” देहरादून के एक विख्यात पर्यटन स्थल में भी शुमार हैं  है एफ़ आर आई वन अनुसंधान संस्थान विश्वविध्यालय से संबद्ध है और विश्वविद्यालय  अनुदान आयोग [यूजीसीद्वारा मान्यता प्राप्त हैं |  

देहरादून कैसे पंहुचे!

देश भर से देहरादून आप कभी भी आ सकते हैं। साथ ही सड़क, रेल और हवाई मार्ग द्वारा देहरादून की कनेक्टिविटी देश के विभिन्न हिस्सों से है। देहरादून – हरिद्वार,  ऋषिकेश, मसूरी, चंडीगढ़, सहारनपुर, रुड़की, दिल्ली  जैसे नगरों से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहाँ आप अपने वाहन  से आने के अतिरिक्त प्लेन, ट्रेन, टैक्सी द्वारा भी आ सकते हैं।

हवाई मार्ग से –
देहरादून के निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट नगर से लगभग 20 किलोमीटर दूर जॉलीग्रेंट में स्थित है। यहाँ से एयर इंडिया, जेट एयरवेज, जेट कनेक्ट और स्पाइस जेट की देहरादून के लिए नियमित उड़ानें हैं। और हवाई अड्डे से नगर तक आने के लिए टैक्सी आदि उपलब्ध हो जाती हैं।
ट्रेन से
देहरादून से  दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, मुंबई, कोलकाता, उज्जैन, चेन्नई और वाराणसी के लाई नियमित ट्रेन चलती हैं। देहरादून से  देश के  बाकी हिस्सों से शताब्दी एक्सप्रेस, जन शताब्दी एक्सप्रेस, देहरादून एसी एक्सप्रेस, दून एक्सप्रेस, बांद्रा एक्सप्रेस और अमृतसर-देहरादून एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग से
देहरादून से देश के अधिकतर नगरों जैसे दिल्ली, शिमला, नैनीताल, हरिद्वार, ऋषिकेश, आगरा और मसूरी आदि से आवागमन के लिए वॉल्वो, डीलक्स, सेमी-डीलक्स और उत्तराखंड राज्य परिवहन की बसें उपलब्ध हो जाती हैं। हर 15 – 20 मिनट के अंतराल पर ये बसें यहाँ से चलती रहती हैं। देहरादून में एक अन्य बस टर्मिनल मसूरी बस स्टेशन हैं, जो देहरादून रेलवे स्टेशन के निकट ही स्थित है, जहाँ से मसूरी और आसपास के अन्य शहरों के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है। देहरादून में एक और अंतरराज्यीय बस टर्मिनल गांधी रोड पर दिल्ली बस स्टैंड है।

आशा है ये जानकारी युक्त रोचक लेख आपको पसंद आया होगा, देहरादून पर बना वीडियो देखें –