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पिथौरागढ़ से धारचूला की यात्रा

इस लेख में है –  पिथौरागढ़ से धारचूला की सड़क यात्रा का विवरण। धारचूला जहां पंचाचुली, आदि कैलाश और ओम पर्वत आदि यात्राओं के लिए मेडिकल जाँच होती है, और इनर लाइन पास बनता है। धारचूला से ही नेपाल विजिट भी किया जा सकता है, एक सेतु को पार कर।

देखिए अल्मोडा से पिथौरागढ़ का सफ़र

1,627 मीटर (5,338 फीट) की ऊंचाई पर स्थित पिथौरागढ़ से 940 मीटर (3084 फीट) ऊंचाई वाले धारचूला के लिए उतरने लगे। जैसे-जैसे हम आगे बड़े मौसम थोड़ा गर्म होने लगा, ऊंची पहाड़ियों से घिरी हुई घाटी नुमा स्थान की सड़कों के बीच से। पिथौरागढ़ से धारचूला तक यह यात्रा 92 किलोमीटर की थी, जिसे तय करने में सामान्यतः तीन से चार घंटों समय लगता है। 

पिथौरागढ़ शहर के केंद्र से लगभग 5-6 किलोमीटर बाद, बायीं ओर, एक सड़क थल होते हुए बागेश्वर और मुनस्यारी के लिए जाती मिली, हम दाहिनी ओर मुड़ गए जो हमें धारचूला के की और ले जाती थी।

आह, घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर यात्रा करने का आश्चर्य! यद्यपि पहाड़ी सड़कों में यात्रा थकान पैदा कर सकती है, लेकिन प्रकृति के बदलते दृश्य एकरसता से बोर नहीं होते देते।

जैसे ही हमने अपनी आरामदायक सीट की खिड़की की सीट से बाहर देखा, विचारों की एक लय हमारे दिमाग में नाचने लगी। प्रकृति के साथ रहने पर तृप्ति का भाव होता है, जैसे सब कुछ पास है, और प्रकृति से दूर होने पर भौतिक जीवन के जितना पास जायें और कितना कुछ भी हो लेकिन फिर भी दिखता है सिर्फ़ अभाव। 

पहाड़ी सड़कों में मार्ग घुमावदार तो होते हैं, लेकिन प्राकृतिक दृश्य हर कुछ किलोमीटर के बाद बदलते रहते है, और जिससे एकरसता या बोरियत नहीं होती,  प्राकृतिक दृश्यों के आकर्षण, सफ़र की थकावट को भी कम करते रहते है। 

हरे-भरे हरियाली के बीच से झांकते अनोखे पहाड़ी आवास, हमें उनकी दीवारों के भीतर रहने वाले जीवन और कहानियों की कल्पना करने के लिए प्रेरित करते हैं। 

अपने परिवेश की अलौकिक सुंदरता में खोए हुए, हमने पहाड़ियों के मध्य बनाने वाली आभासी आकृतियों की खोज करनी शुरू दी, जैसे कि प्रकृति स्वयं हमारी कल्पनाओं के साथ लुका-छिपी का एक आकर्षक खेल खेल रही हो। 

लेकिन जैसे ही हम इन मनमौजी सोच में डूबने लगे, एक आती हुई गाड़ी के तेज हॉर्न ने हमें हमारी ख़यालों से झकझोर दिया। चौंककर, हम वर्तमान में लौट आए, लेकिन फिर प्रकृति का नया रंग देखने को मिला जिसने हमारा ध्यान आकर्षित किया। प्रकृति, कितनी अद्भुत क्रिएटर है – जो नए मनोरम रूप दिखाने के साथ, मौसम और रंग बदल कर हर पल ऐसा दृश्यों का ऐसा संयोग प्रस्तुत करती है, जैसा पहले किसी ने न देखा हो, और शायद दोबारा भी नहीं देख पायेगा।

हमारी यात्रा हमें कनालीछीना क़स्बे तक ले आयी, पहाड़ियों के बीच ये एक खुला स्थान है, पिथौरागढ से लगभग 25 किलोमीटर दूर। यहां, व्यस्त बाजार और एक सुविधाजनक आवासीय क्षेत्र के बीच, यह छोटा खूबसूरत स्थान बहुत खुला होने के कारण यहाँ रहने के लिए भी सुविधाजनक है, यहाँ का आवासीय क्षेत्र देखकर ऐसा लगता है। कनालीछीना पिथौरगढ़ जनपद की एक तहसील भी है। कनाली छीना पिथौरागढ़ के बाद पिथौरागढ़ धारचूला रोड में सबसे बड़ी बाज़ार। 

आबादी क्षेत्र समाप्त होने के बाद कनालीछीना से 1 किलोमीटर बाद, बायीं और सड़क है देवलथल के लिए जो कि यहाँ से १६ किलोमीटर है। कुछ किलोमीटर सड़कों में चलने के बाद ओगला मार्केट ने जल्द ही अपने जीवंत माहौल से आकर्षित किया। 

मार्ग में है जौलजीबी, जो कि पिथौरागढ़धारचूला मार्ग का एक प्रमुख पड़ाव। सड़क से नीचे की और काली नदी और गोरी नदी का संगम, उस पार अपने पड़ोसी देश –  नेपाल का भू भाग, सुंदरता पूरे परिदृश्य में बिखरी हुई है। 

जौलजीबी की बाज़ार और टैक्सी स्टैंड। मार्केट के एक सिरे पर पोस्ट ऑफिस। मार्केट से कुछ आगे बढ़ने पर सड़क से नीचे दायी  ओर जौलजीबी  का राजकीय इंटर कॉलेज का गेट। 

जौलजीबी छोटा सा खूबसूरत एवं सुंदर क़स्बा, इस स्थान का सांस्कृतिक और व्यापारिक महत्व भी है, यहाँ काली और गोरी नदियों का संगम है। यहाँ हर वर्ष नवम्बर में भारत नेपाल के बीच बड़ा व्यापारिक मेला भी आयोजित होता है, जिसमे बड़ी संख्या में देश विदेश से लोग पहुँचते है।

इस रोड से आगे बढ़ते हुए, बलुवाकोट पहुँच गये। प्राकृतिक सौंदर्य की पृष्ठभूमि में यह हलचल भरा बाजार, यहाँ अस्पताल, पुलिस स्टेशन, स्कूल, डिग्री कॉलेज और बैंक जैसी सुविधाएँ है। सड़क के समानांतर नीचे की ओर काली नदी बहती है, और नदी के दूसरी और अपनी सुंदरता से नेपाल भी मन मोहता रहता है।  

पहाड़ों पर हम सड़क बना सकते है, लेकिन बारिश को कई बार यह आता, और ऊपर से कुछ मलबा या बोल्डर सड़क में आकर अवरोध के रूप में आ जाते है, और इस सड़क में मलवा आने की वजह से कुछ देर मार्ग अवरुद्ध रहा, रास्ता खोलने के लिए काम करते श्रमिकों और जेसीबी/ मैकिनिकल मशीनों के सहारे मार्ग को पुनः सुचारू कर दिया। धूल का ग़ुबार सड़क पर चलते काम की वजह से 

कुछ आगे जाने पर, फिर से सड़क में ट्रैफिक में ट्रैफ़िक रोका गया था, लेकिन यहाँ सड़क में अवरोध नहीं नयी सड़क का काम चल रहा था, बधाई हो, जिन्हें भी इससे लाभ मिले।

फिर मिला कालिका। और उसके बाद निंगालपानी।

धारचूला से लगभग 1 किलोमीटर पहले बायीं जाती सड़क – तवाघाट – लिपुलेख रोड, जिससे नारायण आश्रम, पंचाचुली, आदि

कैलाश, ओम पर्वत आदि स्थानों के लिए जा सकते है। लेकिन उससे पहले इनर लाइन परमिट होना ज़रूरी है, जिसे धारचूला से बनाया जा सकता है। वैसे यह ऑनलाइन भी बन जाता है, प्रक्रिया को जानने के साथ, इस ट्रिप में कितना खर्च होता है, किस समय यात्रा करनी होती है, क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए, क्या चुनौतियाँ आ सकती है, सहित आदि कैलाश की यात्रा करेंगे अगले भाग में।

हम बढ़ रहें है नेपाल मार्ग में, अपने गेस्ट हाउस में चेक इन करने। हमारी बुकिंग KMVN के धारचूला स्थित गेस्ट हाउस में थी, जो की नेपाल रोड में स्थित काली नदी के तट के समीप स्थित है। हम KMVN के आदि कैलाश यात्रा 16वे ग्रुप के यात्रियों में शामिल थे।

 

गेस्ट हाउस से नेपाल का भूभाग भी दिखता है, यहाँ से नेपाल का हिस्सा जो दार्चुला नाम से जाना जाता है, पुल पार कर पहुँचा जा सकता है, धारचूला और दार्चुला पर लेख फिर कभी। अभी चेक इन के बाद लंच और फिर मेडिकल और इनर लाइन पास के लिए प्रक्रिया होनी है। कैसे होती है, जानेंगे अगले भाग में। अब रोमांच और अध्यात्म के अनोखे अनुभव को हमारे साथ जानने के लिए रहिए तैयार। लेख पढ़ने और इस सीरीज का हिस्सा बने रहने के लिए धन्यवाद, अगर आपने पिछले दो भाग भी देखे है, तो कमेंट में बताइएगा।

धन्यवाद।