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अल्मोडा से चितई व जागेश्वर मंदिर दर्शन करते हुए पिथौरागढ़ का यात्रा वृतांत

अल्मोडा उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक, ऐतिहासिक मायने से महत्वपूर्ण नगर और उत्तराखंड का सीमांत जनपद पिथौरागढ़ जो अपने विविध महत्वपूर्ण पर्यावरणीय संपन्नता समेटे हुए है। पिथौरागढ़ से कई उच्च हिमालयी क्षेत्रों और ग्लेशियर्स के ट्रैक्स किए जा सकते हैं, river sports के लिए अनुकूलता लिए नगर। इस लेख में है, इन दोनों नगरों की सड़क यात्रा की जानकारी।

पिछले लेख में, हल्द्वानी जो कि कुमाऊँ का प्रवेश द्वार के नाम से जाना जाता है, जहां से कई पहाड़ी क्षेत्रों जैसे अल्मोडा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, रानीखेत, मुक्तेश्वर, बिनसर सहित अन्य कई स्थानों के लिए मार्ग है, और अल्मोडा जो उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्मृति चिन्ह समेटे हुए है, पहुँचने का यात्रा वृतांत था, अब आगे।

अल्मोडा नगर के धारानीला स्टेशन से पिथौरागढ़ को नियमित जाने वाली बस और टैक्सी आदि मिलती है।

अल्मोड़ा के नाम से जुड़ी है बाल मिठाई, चाकलेट और सिंगौड़ी को अलमोड़ा की मुख्य बाज़ार के अलावा यहाँ से ख़रीद सकते है, इनको बनानें में मिल्क प्रॉडक्ट्स का उपयोग होता है, तो इनके बेस्ट टेस्ट के लिए इन्हें 2-3 दिन के अंदर कंज्यूम करना ठीक रहता है।

धारानौला में रात्रि विश्राम करना हो, यहाँ कुछ होटल भी मिल जाएँगे, यहाँ ख़ान पान के लिए भी कई रेस्टोरेंट है।

चलने फिरना पसंद करते हो, तो  धारानीला से पटाल बाज़ार तक 15 – 20 मिनट में चढाई में ट्रेक कर पहुँच सकते है। और पटाल बाज़ार –  अल्मोडा की मुख्य बाज़ार है, लगभग 2 किमी लंबी बाज़ार में टहलते – टहलते शॉपिंग का भी आनद ले सकते है और अल्मोड़ा की ऐतिहासिक भवनों को देखते हुए, कुमाऊँ के इतिहास को अपने सामने देख कर महसूस कर सकते हैं।

अल्मोड़ा से पिथौरागढ़ 114 किलोमीटर है। धारानौला का बाज़ार का क्षेत्र ख़त्म होने के तुरंत बाद एक तिराहा दिखता है – सिकुड़ा बैंड, यहाँ से यू टर्न लेती दाहिनी ओर को जाती सड़क से जलना, लमगड़ा और उससे आगे जा सकते हैं, और सीधे आगे जाती सड़क से पिथौरागढ़ की ओर, यहाँ से सड़क हल्की चढ़ाई लिए है। इसी सड़क में मिलता – एक सुंदर व्यू पॉइंट है – फ़लसिमा, जहां से देख सकते है – अल्मोडा का विहंगम दृश्य और दूर तक फैली घाटियाँ। फ़लसीमा बेंड को पार करने के बाद दिखता है एक कलात्मक भवन – जो जाना जाता है –  उदयशंकर नाट्य अकैडमी के नाम से।

इस रोड पर आगे चलते हुए NTD तिराहे – बाद सड़क से ऊपर, बायीं ओर है, अल्मोड़ा  का जू, यहाँ तेंदुए, मृग सहित वन्य जीव देखे जा सकती हैं।

अल्मोड़ा  नगर से लगभग 8 -9  किलोमीटर की दूरी पर स्थित है –  स्थानीय निवासियों के धार्मिक आस्था का पवित्र स्थल चितई, जो अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध गोलू देव को समर्पित है।

अलमोड़ा – पिथौरागढ़ रोड से लगा, मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार, मंदिर के बाहर सड़क के किनारे प्रसाद, पुष्प, घंटियाँ अन्य सामग्री ख़रीदी जा सकती है। चितई में जलपान के साथ ठहरने के लिए कुछ गेस्ट हाउस दिखते है।

चितई मदिर स्थित गोलू देवता न्याय के देवता के रूप में जाने जाते हैं, लोग यहाँ अपनी प्रार्थनापत्रोंचिठ्ठियों में लिख, यहाँ टाँगते हैं, जो बड़ी बड़ी संख्या में देखी जा सकती है, मान्यता है किपवित्र और सच्चे हृदय से लिखी गई प्रार्थनाएँ यहाँ अवश्य स्वीकार होती हैं, श्रदालु यहाँ घंटियाँ, चुनरी भी अर्पित करते हैं।

इस मंदिर के चारों और अनगिनत घंटियाँ लगी दिखती हैं। कई विशेष अवसरों पर भक्तों द्वारा यहाँ भंडारा भी आयोजित कराया जाता है। मंदिर से कुछ मीटर आगे जाकरवाहनों के लिए बड़ा पार्किंग स्थल है। 

चितई से आगे सड़क ढलान लिए है, चितई से आगे 6 किमी बाद हैं –  छोटा सुंदर क़स्बा पेटशाल, पेटशाल से लगभग 1 किलोमीटर पर लखुउडयार शैलाश्रय prehistoric cave। यहाँ गुफानुमा चट्टान में की गई चित्रकारी आदि काल के मानवों द्वारा की गई है। लखुउडयार पर बना डेडिकेटेड वीडियो YouTube.com/PopcornTrip में देख सकते हैं।

अलमोड़ा – पिथौरागढ़ मार्ग में अगला स्थान मिलता है  – बाड़ेछीना। समुद्र तल से 1,415 मीटर की उचाई पर स्थित यह आस पास के गाँव के लिए बाज़ार हैं। बाड़ेछीना में बुनियादी ज़रूरत का सभी समान उपलब्ध हो जाता है,  यह एक उपजाऊ क्षेत्र है यहाँ ग्रामीणों द्वारा खेती होते देखी जा सकती है।

बाड़ेछीना के बाद मिलने वाले एक तिराहे से बायीं से धौलछीना, शेराघाट, बेरीनाग, चौकोड़ी, मुन्स्यारी आदि स्थानों को जा सकते है, और सीधी जाती सड़क है पिथौरागढ़ के लिए।

बाड़ेछीना से 11 किलोमीटर की दूरी पर पनुवानौला, यह घनी आबादी वाला क्षेत्र हैं, यहाँ काफी दुकानें, रैस्टौरेंटस आदि हैं।

पनुवानौला से लगभग दो किलोमीटर आगे हैआरतोला। यहाँ तिराहे से बायीं और जाती सड़क से 3 किलोमीटर की दूरी पर है भगवान शिव को समर्पित प्रांचीन जागेश्वर धाम और सीधा जाती सड़क पिथौरागढ़ के लिए है।

जागेश्वर मंदिर से समीप एक म्यूजियम भी है, जहां मंदिर से जुड़ी मूर्तियाँ और मंदिर से जुड़े विभिन्न प्रतीक रखे गये हैं।

जागेश्वर कई छोटे बड़े मंदिरों, जो कि  नौवीं से ग्याहरहवीं सदी के बीच, कत्यूरी शासन काल में निर्माण हुआ था का समूह है। इनमें से कुछ हैं महामृत्युंजय मंदिर, श्री जागेश्वर ज्योतिर्लिंग। यहाँ मंदिरों में काफी बारीक, उत्कृष्ट और आकर्षक नक्काशी की गई है। ये मंदिर प्रागण में एक ताल, जिसमें ब्रहम्मकमल के फूल दिखते हैं।

 

जागेश्वर मंदिर समूह के साथ ही यहाँ जागेश्वर मंदिर से समीप ही कुबेर देवता और चण्डिका देवी को समर्पित मंदिर भी स्थित हैं।  जागेश्वर आने वाले श्रद्धालु यहां भी अवश्य आते हैं। कुबेर भगवान धन और संपदा के प्रदानकर्ता माने गए हैं।

जागेश्वर मंदिर में कुछ समय व्यतीत कर, लंच जागेश्वर के कुमाऊँ मण्डल विकास निगम के गेस्ट हाउस में लिया।  आदि कैलाश यात्रा की यह यात्रा हम KMVN के १६ वे ग्रुप के साथ कर रहे है,  वापस लौटे अपना सफ़र जारी रखने के लिए। और मार्ग में फिर वही दण्डेश्वर मंदिर जिसे हमने आते समय भी देखा था। श्रद्धालु यहाँ भी रुक इस मंदिर के दर्शन करते हैं।

जागेश्वर मंदिर के दर्शन कर, उसी मार्ग से ३ किलोमीटर वापस आरतोला लौट अलमोड़ा पिथौरागढ़ मार्ग में फिर से अपना सफ़र जारी रखा। यहीं से एक सड़क के बायीं ओर झाकरसैम मंदिर, इस पर बना वीडियो भी PopcornTrip में देख सकते है।

आरतोला  से ४-५ किलोमीटर पर स्थित ये छोटा सा गाँव हैं गरुड़ाबांज। यहाँ सड़क के बाँज और अन्य चौड़ी पत्तियों वाले वृक्षों इस स्थान को अब तक के सफ़र में दिखने वाले वन क्षेत्रों से अलग बनाते हैं।

मार्ग में आने वाले कुछ स्टेशन है ध्याड़ी, बसौलीख़ान, पनार आदि। पनार में रामगंगा नामक नदी बहती है। पनार – पिथौरागढ़ मार्ग में पिथौरागढ़ से लगभग १३ किलोमीटर पूर्व गुरना माता का मंदिर है। यहाँ इस मार्ग से आने जाने वाले वाहन यहाँ माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने गंतव्य की और बड़ते हैं।

पिथौरागढ़ उत्तराखण्ड का सबसे लंबा अंतर्रास्त्रीय सीमा वाला ज़िला है, जिसकी सीमाएँ नेपाल और तिब्बत जो अब चीन का हिस्सा है, से लगी है।

देखें इस पर बना वीडियो 

आपको यह यात्रा सीरीज कैसी लग रही है, कमेंट करके बताइएगा।

Delicious Jalebiya Almora Ki

अल्मोड़ा अपनी प्राकर्तिक सुंदरता के साथ और भी कई बातों के लिए जाना जाता है

जिनमे से एक नाम आते ही – मुँह में मिठास घुल जाती हैं। वो हैं – अल्मोड़ा में कारखाना बाजार स्थित जलेबियो की मशहूर दुकान, इस दुकान की स्थापना कुछ तक़रीबन 70-80 साल पहले – स्वर्गीय किशन दत्त जोशी जी ने की थी, उनकी विरासत को आज उनके पुत्र आगे बढ़ा रहे हैं.

अल्मोड़ा मशहूर जलेबियों की यह दुकान, ब्रैंडिंग स्ट्रैटेजिस्ट के लिए शोध का विषय हो सकता हैं कि – दुकान के बाहर आज भी कोई बोर्ड नहीं हैं, कही कोई ब्रांडिंग नहीं हैं.




फिर भी जब जलेबियो का आनंद लेने का मन हो, तो अल्मोड़ा के स्थानीय निवासीयो को पहला ध्यान इसी दुकान का आता हैं. और यहाँ बैठकर दूध या दही के साथ जलेबियाँ लेने पर तो इसका जायका और भी बढ़ जाता हैं।

हर उम्र के लोग आनंद लेते गरमागरम जलेबियो का, यहाँ नज़र आते हैं, दिलचस्प बात यह हैं कि – यहाँ आप जिन जलेबियों का स्वाद लेंगे – उन्हें अपने सामने बनते हुए देख सकते हैं, दिन भर यहाँ स्वादिष्ट जलेबियाँ बनती रहती हैं – और हाथो हाथ बिक जाती हैं.




इस वीडियो को देखते हुए आया आपके में मुहं में पानी, तो आइये अल्मोड़ा और लीजिये खूबसूरत वादियों का आनंद साथ में माउथ मेल्टिंग जलेबिया,

आपको जलेबियाँ पसंद हों या वीडियो अच्छा लगा हो तो, लाइक का बटन दबायें – कमेंट कर बताएं आपके अनुभव, और अपने मित्रो को परिचित कराएं – अल्मोड़ा की एक डेलिकेसी से|

Almora City Tour

व्यस्त दिनचर्या और थकान भरी जीवनशैली के आप used to (अभ्यस्त) हो गये हों, पर कभी आपको लगे, कि आपने, अपने और अपनों के साथ, अच्छा वक़्त बिताना है, तो अल्मोड़ा जो की समुद्र तल से लगभग 6,106 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, आपके लिए एक उपयुक्त स्थान हो सकता है। ये नगर जहाँ एक और ऐतिहासिक महत्व का है, वही सांस्कृतिक, अध्यात्मिक स्थल होने के साथ साथ एक जाना माना पर्यटक स्थल भी है। इस जगह से राईट हैण्ड साइड को डोली डाना गोल्जू मंदिर है जो डेढ़ से दो किलोमीटर की soft​ ट्रैकिंग के बाद आता है। ​

देखें वीडियो

अल्मोड़ा, 16 वीं शताब्दी में कुमाऊं साम्राज्य पर शासन करने वाले चंदवंशीय राजाओं की राजधानी थी। एक कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि कौशिका देवी ने शुंभ और निशुंभ नामक दानवों को इसी क्षेत्र में मारा था।

हेड पोस्ट ऑफिस, रैमजे इंटर कॉलेज, एडम्स गर्ल्स inter कॉलेज, GIC आदि कुछ ब्रिटिश कालीन इमारतों में से एक हैं
चितई, नंदा देवी मंदिर, रघुनाथ मंदिर, हनुमान मंदिर, मुरली मनोहर मंदिर, भैरब मंदिर, पाताल देवी, कसारदेवी, उल्का देवी, बानरी देवी, बेतालेश्वर, स्याही देवी , जागेश्वर, डोलीडाना आस्था के केन्द्र इस शहर की धरोहर हैं

​​अल्मोड़ा में, आवागमन के लिए, KMOU, रोडवेज की बसें और टैक्सी उपलब्ध हो जाती हैं । जनपद का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम, यहाँ से लगभग 90० किमी० की दूरी पर, एवं निकटतम एअरपोर्ट पंतनगर लगभग 125 किमी० की दूरी पर स्थित है।

अल्मोड़ा कुमाऊ का एक प्रमुख शहर है जहाँ से कुमाओं और गडवाल के प्रमुख जगहों के लिए मार्ग जाता है जैसे नैनीताल, हल्द्वानी, पिथोरागढ़, बागेश्वर, द्वाराहाट, रानीखेत, कौसानी, जागेश्वर, कर्णप्रयाग, चमोली, आदि को, स्क्रीन में आपको इन स्थानों की अल्मोड़ा से दुरी का चार्ट दिख रहा है

इतिहासकारों की मान्यता है कि, सन् 1563 ई. में चंदवंश के राजा बालो कल्याणचंद ने आलमनगर के नाम से इस नगर को बसाया था। चंदवंश की पहले राजधानी चम्पावत थी। कल्याणचंद ने इस स्थान के महत्व को भली-भाँति समझा। तभी उन्होंने चम्पावत से बदलकर इस आलमनगर (अल्मोड़ा) को अपनी राजधानी बनाया।

सन् 1563 से लेकर 1790 ई. तक अल्मोड़ा का धार्मिक भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व कई दिशाओं में अग्रणी रहा। इसी बीच कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं राजनैतिक घटनाएँ भी घटीं। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से भी अल्मोड़ा समस्त कुमाऊँ अंचल का प्रतिनिधित्व करता रहा।
सन् १७९० ई. से गोरखाओं का आक्रमण कुमाऊँ अंचल में होने लगा था। गोरखाओं ने कुमाऊँ तथा गढ़वाल पर आक्रमण ही नहीं किया बल्कि अपना राज्य भी स्थापित किया। सन् 1896 ई. में अंग्रेजो की मदद से गोरखा पराजित हुए और इस क्षेत्र में अंग्रेजों का राज्य स्थापित हो गया।
स्वतंत्रता की लड़ाई में भी अल्मोड़ा के विशेष योगदान रहा है। शिक्षा, कला एवं संस्कृति के उत्थान में अल्मोड़ा का विशेष हाथ रहा है।
कुमाऊँनी संस्कृति की असली छाप अल्मोड़ा में ही मिलती है – अत: कुमाऊँ के सभी नगरों में अल्मोड़ा ही सभी दृष्टियों से बड़ा है।जनपद की मुख्य नदियों में रामगंगा, कोसी तथा सुयाल नदियां हैं । जनपद के प्रमुख कृषि उत्पाद चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा, चाय, सेब, आड़ू, खुबानी, पूलम हैं। तथा मयूर, ग्रे बटेर, काला तीतर, चिड़िया, चकोर, मोनाल तीतर, बाघ, चीतल, तेंदुआ, लोमड़ी, गोराल, हिम तेंदुआ, काले भालू जनपद में पायी जाने वाली जीव जन्तुओं की मुख्य प्रजातियां हैं। जनपद का मौसम सर्दियों में ठण्डा तथा गर्मियों में सुहावना रहता है। ऊंचाई वाले स्थानों में सर्दियों में जमकर हिमपात होता है।। जुलाई से सितंबर तक जनपद में भारी वर्षा होती है ।
अब ये बायीं और दींन दयाल उपाध्याय पार्क…