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उत्तराखण्ड में सुपर फ़ास्ट ट्रेन वन्दे भारत की सेवाएँ आरम्भ

उत्तराखण्ड आना अब हुआ और अधिक आसान, आकर्षक और आनंददायक। वन्दे भारत ट्रेन के साथ, इनोग्रेशन डे पर ट्रेन की सवारी करने का हमें  अवसर मिला और इस दिलचस्प सफ़र के अनुभव, रेल मंत्री अंश्वनी वैष्णव जी से मुलाक़ात और वन्दे भारत ट्रेन की जानकारी लिए लेख और वीडियो में आपका स्वागत है।

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव जी के साथ बातचीत में हमने उन्हें अपना अनुभव शेयर किया कि 7-8 साल पहले जब हमने अपने चाइना के विजिट में शंघाई में आधुनिक सुविद्याओं से युक्त –  मैगलेव ट्रेन के बारे में जाना, तव उसमे सफ़र करना चाहा, लेकिन किसी कारणवश तब ऐसा नहीं कर पाये, उस समय भारत के विकास कार्यों को देख यह ख्याल में भी नहीं आया था, कि भारत में भी कभी इस तरह से ट्रेन चल सकती है। वह भी इतनी जल्दी, रिकॉर्ड समय में तैयार कर – इसके लिए भारत सरकार और रेलवे की यह पहल अत्यंत सराहनीय है। हालाँकि maglev की स्पीड से अभी तुलना नहीं की जा सकती, लेकिन यह भारत के रेलवे सिस्टम के आधुनिकर

ण की दिशा में रिकॉर्ड समय में किसी कार्य को पूरा करने की स्पीड है, वह इनक्रेडिबल है।

भारत में पहले ही कई स्थानों पर वन्दे भारत ट्रेन्स चल रही है, पहली वन्दे भारत ट्रेन 15 फ़रवरी  2019 में दिल्ली से वाराणसी के रूट में चलनी शुरू हुई थी।

हमने रेल मंत्री के माध्यम से भारत सरकार के ऐसे कार्यों के लिए भी उनका आभार व्यक्त किया जो जो वो देश के लिए कर रहे है, बिना रुके और बिना थके, कई ऐसे कार्य भी जो अविश्वसनीय रूप से आम जनों के जीवन में गुणात्मक और रचनात्मक परिवर्तन ला रहे है।

अश्विनी जी ने वन्दे भारत के बारे में कई दिलचस्प जानकरियाँ दी- जैसे  – स्वदेशी तकनीक पर निर्मित सेमी हाई स्पीड ट्रेन है, जो आधुनिक सुविधाओं से युक्त नयी पीढ़ी के आवश्यकताओं को पूर्ण करने का प्रयास करती हाई टेक सुविधाओं से युक्त है।  अन्य साधारण ट्रेन की तरह लगने वाले झटके और सुनाई देने वाला शोर कम होगा। एक कोच से दूसरे कोच में जाना एकदम आसान। दो कोच के मध्य में लगा स्वचालित डोर दरवाज़े पर किसी के आते ही अपने आप खुलेगा, और गुजरते ही बंद हो जाएगा। ट्रेन में वातानुकूलित सिस्टम इस तरह से लगा है कि जो हवा को purify करने साथ हवा में घूमते वायरस को भी ख़त्म कर देगा।

सामान्यतः ट्रेन्स के कोच dark color के होते है, लेकिन सफ़ेद रंग की, सुंदर ग्राफ़िक्स से सजी, विशिष्ट डिज़ाइन के लिए यह ट्रेन विशेष आकर्षित करती है।

उत्तराखण्ड को मिली पहली वन्दे भारत ट्रेन बुधवार को छोड़कर शेष प्रतिदिन देहरादून और दिल्ली के बीच चलेगी, सुबह 7 बजे देहरादून से हरिद्वार – जो सुबह ११: ४५ पर आनंद विहार टर्मिनल पहुँचेगी। और शाम को ५:५० बजे दिल्ली से चलेगी और रात को १०:३५ मिनट पर  देहरादून पहुँचेगी, वन्दे भारत अधिकतम 180 से 200 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से चल सकती है।  

इस रूट के मध्य में वन क्षेत्र होने के कारण फ़िलहाल इस रूट पर यह ट्रेन फ़िलहाल अपनी ऑप्टिमम स्पीड से नहीं चलेगी। 

दिल्ली से देहरादून के मध्य ट्रेन के सफ़र में ४:४५ घंटे का समय लगेगा। जिसे भविष्य में कम किए जाने का प्रस्ताव है। 

ट्रेन में २ केटेगरी है – एसी चेयर कार और एग्जीक्यूटिव चेयर कार, जिनके किराए देहरादून से दिल्ली के लिए क्रमशः रू 900 एवं 1695 तथा दिल्ली से देहरादून का fare  क्रमशः रू 1065 और 1890 रुपये है, Fare में भोजन भी सर्व किया जाएगा। देहरादून से दिल्ली जाते हुए भोजन में ब्रेकफास्ट और दिल्ली से देहरादून की ट्रेन में डिनर शामिल होगा। जिन्हें अपनी सीट irctc की वेबसाइट से ऑनलाइन रिज़र्व करायी जा सकती है। 

इस इन्नॉग्रेशन डे पर यात्रा में उन सभी का उत्साह देखने लायक़ था, जो इस सफ़र का हिस्सा बने और उन सबका भी जो अलग अलग जगहों पर – अपने घरों से, पटरियों के किनारे या किसी प्लेटफार्म पर खड़े हो इसे जाते देख रहे थे, जगह – जगह देशभक्ति से भरे जयघोष ने वातावरण रोमचित कर दिया था,  गर्व से भरे भारतीयों के लिए आनंद का दिन, हो भी क्यों ना स्वदेशी तकनीक से बनी यह ट्रेन, आधुनिक रेलयात्रा के अनुभव को विस्तार दे रही थी और उत्तराखण्ड राज्य को वन्दे भारत से जोड़ने वाली पहली ट्रेन थी। 

Vande Bharat

अपने  inauguration दिवस पर ट्रेन से जगह जगह  हाथ हिलाते, अपने कैमरे में उन पलों को क़ैद करते दिख रहे थे – उत्साहित लोगों का समूह दिख रहा था, और बदले में ऐसे लग रहा था, अपने देश वसियों के आनंद पर, मानो  नतमस्तक हो यह ट्रेन भी अपनी इनौग्रेशन डे पर धीमी रफ़्तार में चलते हुए, उनका अभिवादन स्वीकार करते जा रही हो। 

वंदे भारत एक्सप्रेस को आमतौर पर “ट्रेन 18” के रूप में जाना जाता है वजह इसे 2018 में विकसित और लॉन्च किया गया था। “ट्रेन 18” नाम का अर्थ है कि यह एक आधुनिक और तकनीकी रूप से उन्नत ट्रेन है, जिसे पहली बार वर्ष के 18 वें वर्ष में पेश किया गया था। ट्रेन की कॉन्सेप्ट और निर्माण चेन्नई, भारत में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) द्वारा किया गया था और 15 फरवरी, 2019 को भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसका उद्घाटन कर जनता को समर्पित किया था।

दुनिया की सर्वाधिक गति से चलने वाली ट्रेन अभी चाइना में चलती है, बीजिंग से नानाजिंग के मध्य जिसकी एवरेज स्पीड ३१८ किलोमीटर प्रति घंटे है। 

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ट्रेन का आधिकारिक नाम “वंदे भारत एक्सप्रेस” है। “वंदे भारत” नाम भारत की भावना का प्रतीक है और हाई-स्पीड रेल परिवहन के क्षेत्र में देश की प्रगति और विकास में ट्रेन के योगदान का प्रतिनिधित्व करता है।

उम्मीद है पर्यटकों और अन्य कार्यों से उत्तराखण्ड आने वाले विज़िटर्स को इस ट्रेन के साथ सफ़र का नया अनुभव मिलेगा। उत्तराखण्ड के अन्य स्थानों पर आवागमन के लिए जल्दी ही अन्य अन्य ट्रेन्स भी मिलने वाली है, ऐसा रेल मंत्री अश्विनी जी ने बताया। 

वंदे भारत एक्सप्रेस के अंदर का विश्व स्तरीय इंटीरियर सहसा आपका ध्यान खींचेगा। इस ट्रेन में विशाल और एर्गोनोमिक रूप से डिज़ाइन की गई सीटें हैं, जो आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित हैं और यात्रियों के शानदार अनुभव के लिए पर्याप्त लेगरूम हैं। बड़ी खिड़कियां भारत के विविध परिदृश्यों के मनोरम दृश्य पेश करती हैं, जिससे आप अपनी यात्रा के दौरान देश की सुंदरता में डूब जाते हैं।

ऑन-बोर्ड वाई-फाई, इंफोटेनमेंट सिस्टम और जीपीएस-आधारित यात्री सूचना प्रणाली जैसी उन्नत सुविधाओं के साथ, वंदे भारत एक्सप्रेस आपको आपकी यात्रा के दौरान जोड़े और मनोरंजन करती है। ट्रेन में सभी यात्रियों के लिए स्वच्छ और आरामदायक वातावरण सुनिश्चित करने के लिए स्वचालित दरवाजे, बायो-वैक्यूम शौचालय और बेहतर एयर कंडीशनिंग भी शामिल है।

वंदे भारत एक्सप्रेस टिकाऊ परिवहन के लिए भारत की प्रतिबद्धता का एक चमकदार उदाहरण है। ट्रेन विद्युत कर्षण द्वारा संचालित है, कार्बन उत्सर्जन को कम करती है और हरित भविष्य में योगदान करती है। यात्रा के इस पर्यावरण-अनुकूल तरीके को चुनकर, आप अपने पर्यावरण पदचिह्न को कम करते हुए भारत की सुंदरता का पता लगा सकते हैं।

सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है और वंदे भारत एक्सप्रेस सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। यह ट्रेन ट्रेन सुरक्षा और चेतावनी प्रणाली (TPWS) और स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ATP) प्रणाली जैसी उन्नत प्रणालियों से सुसज्जित है, जो यात्रियों और चालक दल के लिए सुरक्षा की एक मजबूत परत प्रदान करती है।

देखें वीडियो 👇

इस लेख में इतना ही, पुनः जल्दी मिलते है एक नये वीडियो में popcorntrip चैनल पर।

धन्यवाद।

वैष्णो देवी धाम दर्शन

जय माँ वैष्णो देवी 

 देश के  सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण तीर्थों में से एक वैष्णो देवी मंदिर, जिसे भवन नाम से भी जाना जाता है – जहां माँ वैष्णो देवी विराजती है। इस भवन में स्थित एक गुफा मंदिर में माँ वैष्णो देवी के दर्शन होते है। मंदिर मे देवी के पिंडी स्वरूप में देवी महाकाली, महा सरस्वती और महा लक्ष्मी रूप विराजती हैं। यहाँ प्रतिवर्ष लाखों –  करोड़ों श्रद्धालु, माँ के दर्शनों के लिए पहुँचते है।
Trek to Vaishno Devi 

प्रतिदिन सूर्योदय से कुछ पहले बजे माँ की वैदिक मंत्रोच्चार के साथ आरती आरंभ होती है, जो लगभग एक – डेढ़ घंटे तक चलती है, जिसमे मंत्रौचार, प्रार्थना सहित प्रवचन शामिल होते है, और सूर्यास्त के बाद भी इसी तरह आरती होती है, 

इस पूजा में भाग लेने के लिए माँ वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की ऑफिसियल वेबसाइट maavaishnodevi.org से बुकिंग करवायी जा सकती हैइस वेबसाइट या मोबाइल एप से  माँ वैष्णो देवी मार्ग में रात्रि विश्राम, हेलीकॉप्टर सहित अन्य कई सेवाओं के लिए बुकिंग करायी जा सकती है। 

प्रातः और सांध्य आरती के समय को छोड़कर, माँ वैष्णो देवी के दर्शन, दर्शनों के लिए बनी – क़तार में खड़े होकर अपनी बारी पर दिन – रात किसी भी समय किये जा सकते है। वैष्णो देवी मंदिर में होने वाली आरती को श्रदालू घर बैठे प्रतिदिन लाइव भी देख सकते है। कैसे इस पर आगे बात करेंगे। 

पॉपकॉर्न ट्रिप के माँ वैष्णो देवी मंदिर यात्रा से जुड़ी जानकारी देते लेख और video को देखने के लिए आपका स्वागत है।

कैसे पहुँचे!

मां वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन करने के लिए शेष भारत से कटरा पहुँचना होता है। और कटरा तक सीधी ट्रेन ना हो तो जम्मू पहुँच सकते है। – जम्मू तवी रेलवे स्टेशन से कटरा की दूरी लगभग ५० किलोमीटर है। जम्मू – जम्मू और कश्मीर की शीतकालीन राजधानी है और भारत के सभी प्रमुख शहरों से हवाई, सड़क और रेल मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

By Air आने के लिए भी कटरा का निकटतम हवाई अड्डा जम्मू हवाई अड्डा है, जिसे आधिकारिक तौर पर जम्मू सिविल एन्क्लेव के रूप में जाना जाता है। इण्डियन एयरलाइंस और जेट एयरवेज़ की फ्लाइट प्रतिदिन जम्मू से ऑपरेट होती है। नयी दिल्ली से जम्मू की हवाई यात्रा में लगभग 80 मिनट का समय फ्लाइंग टाइम है।

बस के साथ कैब और टैक्सी की नियमित सेवाएं हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन से आसानी से उपलब्ध हैं। 

भारत के लगभग हर बड़े शहर से जम्मू और कटरा के लिए कई ट्रेनें उपलब्ध हैं। कटरा तक ट्रेन ना मिले तो –  जम्मू तवी रेलवे स्टेशन आकर यहाँ से आगे  टैक्सी अथवा नियमित रूप से चलने वाली बस से कटरा पहुँच सकते है। 

जम्मू तवी रेलवे स्टेशन से कटरा तक की दूरी लगभग 51 किमी है। इसके अलावा देश पर से सड़क मार्ग से आसानी से जम्मू और कटरा पहुचा जा सकता है। कटरा समुद्र तल से 2500 फीट की ऊंचाई पर है और माता वैष्णो देवी भवन समुद्र तल से 5200 फीट की ऊंचाई पर है। मार्च से मध्य जुलाई तक तीर्थयात्रियों की सर्वाधिक संख्या होती है।

कहाँ रुकें!

कटरा में हर बजट के होटल/ गेस्ट हाउस मिल जाते है। यहाँ वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड के कुछ गेस्ट हाउस कटरा से वैष्णों देवी के मार्ग में कई जगह है, उन्हें भी एडवांस में बुकिंग करायी जा सकती है। हमने अपनी यात्रा में कटरा में के गेस्ट हाउस में रूम लेकर यात्रा शुरू की। कटरा से बाणगंगा तक नियमित अंतराल पर ऑटो रिक्शा मिलते रहते हैं।

पैदल मार्ग

वैष्णो देवी मंदिर के पैदल मार्ग में यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व पंजीकरण कराना आवश्यक होता है, इसके लिए कटरा में स्थित जम्मू और कश्मीर के पर्यटक रिसेप्शन काउंटर, जो कटरा बस स्टेशन के समीप है, सुबह पाँच बजे से रात्रि 10 बजे यात्री अपना पहचान पत्र दिखा कर यात्रा हेतु आरएफआईडी कार्ड ले सकते है, RFID कटरा हैलीपैड, माता वैष्णो देवी रेलवे स्टेशन कटरा में भी बनवायें जा सकते है।

आरएफआईडी लेने के बाद  कटरा से दो किमी दूर बाणगंगा स्थित चेक पोस्ट तक ऑटो से पहुँच कर, कटरा से बाणगंगा चेक पोस्ट के लिए ऑटो आसानी से उपलब्ध हो जाते है,  यहाँ से आगे से माँ वैष्णो देवी के लिए ट्रेक शुरू होता है। जो लगभग बारह  किलोमीटर का है। 

बाणगंगा चेक पोस्ट पर आरएफआईडी radio frequency identification दिखाने के बाद ही ट्रेक की अनुमति मिलती है।  RFID को पूरी यात्रा में अपने साथ रखना अनिवार्य है, और यात्रा संपन्न होने के बाद बाणगंगा के प्रवेश/ निकास द्वार में जमा करना भी ज़रूरी है। 

RFID बनाने के बाद यात्री को 6 घंटे के अंदर बाणगंगा के चेक एंट्री द्वारा पर पहुँचना होता है। 

नदी का नाम बाण और गंगा से मिलकर बना है। बाण का अर्थ है तीर – arrow और गंगा पवित्र नदी गंगा के लिए है। ऐसा माना जाता है कि माता वैष्णो देवी ने पवित्र गुफा की ओर जाते समय अपने तरकश से एक तीर से इस जलाशय का निर्माण किया था, इसलिए इसका नाम बाणगंगा पड़ा। मान्यता है – कि उन्होंने इसमें डुबकी लगाई थी और अपने बाल भी यहीं धोए थे। कई तीर्थयात्री यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व इसमें स्नान भी करते हैं। नदी के किनारे कुछ कुछ घाट भी दिखते हैं। वैष्णो देवी के मुख्य मंदिर, जिसे भवन कहा जाता है, की पैदल यात्रा आरंभ से ही  दुकाने, चाय नाश्ते, भोजन आदि के प्रतिष्ठान मिलने लगते है, मार्ग में जगह जगह वाटर प्युरीफ़ायर, डस्ट बिन्स, टॉयलेट भी बने है। मार्ग में 24 घंटे वैष्णो देवी दर्शन हेतु जाते और दर्शन कर आते, श्रदालुओं का आवागमन होता रहता है। अलग अलग सीजन के अनुसार इनकी संख्या कम या ज़्यादा हो सकती है। 

दुकानों में मिलने वाली बांस की स्टिक्स जो बीस- तीस रुपये में मिल जाती हैं, इनके साथ ट्रेक करने में सहायता मिलती है।   यहीं से घोड़े, पालकी आदि भी उपलब्ध हो जाते हैं, जिनके लिए अलग मार्ग है। हेलीकॉप्टर से आना हो, तो वो कटरा हैलीपैड से मिल जाते है, लेकिन उसके लिए एडवांस बुकिंग करानी होती हो तो हेलीकॉप्टर सांझी छत तक जाते है, जहां से माँ वैष्णो देवी का ट्रेक 2.5 kilometer है। 

बाणगंगा से कुछ आगे चलते हुए पहुँचे – माँ के प्रथम चरण पादुका स्थल। ये है वो स्थान जहां माँ के प्रथम चरण पड़े थे, चरण पादुका, जो पुराने मार्ग से जाते हुए नज़र आता है। 

मार्ग में फुट मसाज देती मशीन लगी हुई कई स्टाल्स दिखते हैं, जहां यात्री भवन से लौट कर अपनी पैरों को आराम पहुँचाते दिखते है। हाँ अखरोट और ड्राई फ़्रूट कई दुकानों में भरें मिलते है, आकर्षक क़ीमतों पर, लेकिन इन्हें ख़रीदने से पहले सावधानी बरतना ज़रूरी है, अक्सर दिखने वाले अच्छे लगते है, लेकिन जब लोग घर ले जाते है, तो कई ख़राब क्वालिटी के निकलते है। मार्ग में प्लास्टिक सामग्री, डिस्पोजेबल सामग्री ले जाना प्रतिबंधित है।

पैदल मार्ग ज़्यादातर कवर्ड है, लगातार हल्की चढ़ाई लिए, घुमावदार मार्ग होने के कारण – ट्रैकिंग रूट के बीच -२ में सीढ़ीनुमा शॉर्टकट्स भी है, हर शॉर्टकट में सीढ़ियों की संख्या आरम्भ में ही लिखी गई है। साथ ही ये निर्देश भी –  बुजुर्ग, बीमार व हृदय रोगी सीढ़ियों का प्रयोग करने से बचना चाहिए। 

तीर्थ यात्रियों को ले जाने का साथ – भवन तक विभिन्न आवश्यक सामग्री भी ले जाते हैं –  खच्चर।    

सफ़र हमने रात में शुरू किया, पर्याप्त रोशनी के साथ ट्रैकिंग रूट अच्छे बने है, मार्ग में रात्रि में कटरा का जगमगाता दृश्य काफ़ी लुभावना दिखता है। मार्ग में आवश्यकता पड़ने पर स्वास्थ्य सहायता, पूरे मार्ग में प्रकाश व्यवस्था का प्रबंधन, माँ वैष्णो देवी shrine बोर्ड द्वारा किया जाता है। 

जम्मू में फ़िलहाल पोस्ट पेड मोबाइल फ़ोन ही काम करते है, और अगर आपके पास प्री पेड सिम है तो जितनी देर जम्मू राज्य में है – फ़ोन बातचीत करने के काम नहीं आएगा, इसलिए इस ट्रैकिंग रूट में अगर फ़ैमिली या ग्रुप में है तो कुछ निश्चित स्थान तय कर कर सकते है, अगर आगे – पीछे हो गये हो गये तो कहाँ पर एक दूसरे का इंतज़ार करेंगे। कटरा से भवन के बीच कई पॉइंट्स हैं –  बाणगंगा, चरण पादुका, इंद्रप्रस्थ, अर्धकुवांरी, गर्भजून, हिमकोटी, सांझी छत और भैरो मंदिर शामिल है कटरा मार्ग में कई दुकानों में किराए पर सिम देने वाले पोम्पलेट भी लगे दिखते है। 

कटरा से लगभग 6 किलोमीटर चल कर है, अर्धक्वारी। यह इस तीर्थयात्रा का मिडल पॉइंट है। अर्धकुवारी में माता का मंदिर और गुफा है। गुफा में प्रवेश के लिए यहाँ भवन के लिए जाने से पूर्व अपना नंबर लगवा सकते है, और वापसी तक नंबर आ जाये तो गुफा में प्रवेश किया जा सकता है। अर्धकुवारी में रात के समय कमरों के साथ प्रांग्रण में विश्राम करते तीर्थयात्री भी दिखते है, कंबल अर्धुकुवारी में बने काउंटर से लिए जा सकते है। यहाँ कुछ रूम्स भी है, उपलब्ध होने पर आवश्यक शुल्क देकर उन्मे भी ठहरा जा सकता है।  

अर्धकवारी से भवन के लिए दो मार्ग हैं, बायीं ओर हिमकोटी होते हुए (लगभग 5.5 kilometer), दायी ओर, जो अर्धकुवारी में कंबल जारी करने वाले काउंटर से लगा हुआ है, और चढ़ाई लिए हुए, थोड़ा लंबा  है। (लगभग 6.5 kilometer) है।

अर्धकुवारी

वर्णित कथा के अनुसार – बाणगंगा और चरण पादुका में विश्राम करने के बाद, माता अद्कुवारी में रुकी, यहाँ एक छोटे से गर्भ के आकार की गुफा में उन्होंने नौ माह तक ध्यान किया। चूंकि वैष्णवी ने नौ महीने की अवधि के लिए गर्भ के आकार की गुफा में आध्यात्मिक अनुशासन का पालन किया था, इसलिए यह गुफा गर्भ जून के नाम से लोकप्रिय हो गई। 

जब उनके ध्यान के दौरान उन्हें पता चला कि भैरों नाथ उनकी खोज में गुफा तक पहुंचे हैं, तो उन्होंने अपने त्रिशूल के साथ दूसरे छोर पर एक निकास बनाया और पवित्र गुफा की ओर बढ़ गईं। चूंकि गुफा बहुत संकरी है, इसलिए एक समय में केवल एक ही व्यक्ति इससे गुजर सकता है। 

 

Ardkuwari

Ardhkuwari

अर्धकवारी और कटरा के बीच में हिमकोटी होते हुए ५-६ किलोमीटर के मार्ग में –  इलेक्ट्रिक वाहनों से भी जा सकते है, लेकिन सीमित इलेक्ट्रिक वाहन चलने के कारण, अपनी सीट बुक कराने के बाद देर तक वाहन का इंतज़ार करना पड़ सकता है। पूरे यात्रा मार्ग में जगह जगह पर आवश्यक announcements और मधुर भजन प्रसारित किए जाते हैं। 

 

vaishno devi

vaishno devi गेट नंबर 3 से सामान्य श्रेणी के दर्शनार्थियों का प्रवेश होता है। 
गेट नंबर 3 के पास स्थित काउंटर से आप अपने किसी साथी जो आपसे यात्रा में बिछड़ गया हो, की सूचना प्रसारित करवा सकते हैं। जिसकी घोषणा यहाँ से लगभग 100 मीटर के दायरे में लगे विभिन्न माइक्स के ज़रिए की जाती है। 

माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की विभिन्न सुविधाओं की जानकारी  ऐप “Mata Vaishnodevi App” अथवा वेबसाइट  के द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है। मार्ग में जगह जगह पर यात्रियों के बैठने के लिए बेंचेज, पीने के पानी के लिए वाटर टैंक व आवश्यक निर्देश देते हुए बोर्ड्स दिखते रहते हैं।  कहीं कहीं पर चट्टान की ओर से पानी भी टपकता दिखता है। जहां पर तेज गति से सँभलते हुए चले, ऐसे निर्देश दिये बोर्ड भी दिखते हैं, क्योंकि इन स्थानों में पानी के साथ मिट्टी कंकड़ आदि भी गिरने की संभावना रहती है।

लॉकर रूम के आसपास प्रसाद सामग्री की दुकानें, खाने पीने के लिए स्थान पूरे रास्ते मिलते रहते है, और लॉकर रूम  से कुछ आगे बढ़ कर है, नीचे बायीं ओर को यहाँ से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भैरो घाटी जाने के  rope-way के लिए एंट्री गेट, भैरो घाटी जाने के लिए ट्रेक भी किया सकता है। 

वैष्णो देवी मुख्य मंदिर के नीचे एक प्राचीन शिव गुफा भी स्थित है। वैष्णोदेवी के दर्शन करने की बाद श्रद्धालुगण इस गुफा के भी दर्शन करते हैं। यहाँ पहुँचने के लिए कुछ सीढ़ियाँ उतरनी होती हैं। यहाँ प्राकृतिक श्रोत से निरंतर जल बहता रहता है। 

वैष्णो देवी मंदिर का इतिहास 

अधिकांश प्रांचीन तीर्थों की तरह, यह जानकारी नहीं मिलती कि –  वास्तव में यह पवित्र तीर्थ की तीर्थयात्रा कब शुरू हुई। पवित्र गुफा के एक भूवैज्ञानिक अध्ययन ने इसकी आयु लगभग एक लाख वर्ष होने का संकेत दिया है। वैदिक साहित्य में किसी देवी-देवता की पूजा का कोई संदर्भ नहीं मिलता है, हालांकि चार वेदों में सबसे पुराने ऋग्वेद में त्रिकुट पर्वत का उल्लेख मिलता है।

देवी मां का पहला उल्लेख महाकाव्य महाभारत में मिलता है। जब पांडवों और कौरवों की सेनाएँ कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में खड़ी थीं, तो श्रीकृष्ण की सलाह पर पांडवों के प्रमुख योद्धा अर्जुन; देवी मां का ध्यान किया और जीत का आशीर्वाद मांगा। यह तब है जब अर्जुन देवी माँ को ‘जम्बूकाटक चित्यैषु नित्यं सन्निहितालय’ कहकर संबोधित करते हैं, जिसका अर्थ है ‘आप जो हमेशा जम्बू में पर्वत की ढलान पर मंदिर में निवास करते हैं’ (जंबू का संदर्भ वर्तमान में जम्मू से माना जाता है)।

Vaishno Devi Jammu

Vaishno Devi Jammu

आमतौर पर यह भी माना जाता है कि पांडवों ने सबसे पहले कोल कंडोली और भवन में मंदिरों का निर्माण देवी मां के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता में किया था। एक पहाड़ पर, त्रिकुट पर्वत के ठीक बगल में और पवित्र गुफा के सामने पाँच पत्थर की संरचनाएँ हैं, जिन्हें पाँच पांडवों की चट्टान का प्रतीक माना जाता है।

पवित्र गुफा में एक ऐतिहासिक व्यक्ति की यात्रा का शायद सबसे पुराना संदर्भ गुरु गोबिंद सिंह का है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे पुरमंडल के रास्ते वहां गए थे। पवित्र गुफा तक जाने का पुराना पैदल मार्ग इस प्रसिद्ध तीर्थस्थल से होकर गुजरता था।

कुछ परंपराएं इस मंदिर को सभी शक्तिपीठों में सबसे पवित्र मानती हैं (एक ऐसा स्थान जहां देवी मां, शाश्वत ऊर्जा का निवास है) क्योंकि माता सती की मस्तक यहां गिरा था। कुछ लोग मानते है –  कि उसका दाहिना हाथ यहाँ गिरा था। श्री माता वैष्णो देवीजी की पवित्र गुफा में, एक मानव हाथ के पत्थर के अवशेष मिलते हैं, जिसे वरद हस्त (वह हाथ जो वरदान और आशीर्वाद देता है) के रूप में जाना जाता है।

वैष्णो देवी की पिंडी रूप में दर्शन करने के बाद, हम चले भैरो घाटी को।

भैरो घाटी को चढ़ाई लिए हुए मार्ग के प्रारंभ में दिखते है कुछ रेस्टोरेंट। भैरो घाटी के लिए पालकी, घोड़ा आदि उपलब्ध हो जाते हैं, और अगर आप के साथ छोटे बच्चे हैं, तो उनके लिए ट्रॉली भी अवैलबल हो जाती है। जो समर्थ हैं, उनके लिए सीढ़ियाँ भी हैं, जिनकी संख्या सीढ़ियों के प्रारंभ में ही अंकित है। बीच बीच में ट्रॉली में भैरव घाटी को जाती ट्रॉली, और साथ चलते श्रद्धालु, और दर्शन कर वापस लौटते श्रद्धालु दिखते रहते हैं। 

भैरो मंदिर का प्रवेश द्वार, मंदिर में श्रद्धालु की भीड़ को मैनेज करने के लिए इस तरह से रेलिंग द्वारा rows बनी हुई है, जिससे कम जगह में बिना धक्का- मुक्की के अधिक लोग लाइन में खड़े हो सके। और भैरो देव के मुख्य कक्ष में दर्शन कर श्रद्धालु कृतार्थ हो इस मार्ग से आगे बढ़ बाहर निकलते हैं।

Bhairo Mandir

Bhairo Mandir

कल शाम कटरा में मिली बारिश के बाद आज अच्छी धूप खिली है, जिससे आस पास की घाटियों के साथ वैष्णो देवी माता के मुख्य भवन का बड़ा सुंदर दृश्य दिख रहा है।  

मौसम

मध्य जुलाई से सितंबर – इन महीनों में कटरा में भारी वर्षा होती है, इसलिए अचानक land स्लाईड, सड़क खराब होने से माँ वैष्णो देवी की यात्रा करना मुश्किल हो सकता है।  इस समय कम यात्री होते है, जिससे, जो लोग बजट यात्रा और आराम से दर्शन करना चाहते है, वे ऐसा समय थोड़ा जोखिम लेकर आते है। 

अक्टूबर के महीने में नवरात्रि का त्योहार होने के कारण देश-विदेश से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। 

दिसंबर से जनवरी के मध्य तापमान उप-शून्य स्तर तक पहुँच जाता है, और आप भारी हिमपात का देख सकते हैं। इस मौसम के बावजूद, तीर्थयात्री एक अनोखे रहस्यमय अनुभव के लिए योजना बनाते हैं और मंदिर जाते हैं और यदि आप फोटोग्राफी से प्यार करते हैं, तो आपको इन दिनों अपनी यात्रा को याद नहीं करना चाहिए।

अधिक संख्या में यात्री वर्ष के अंत और शुरुआत में भी आते है, इस समय मार्ग पर बड़ी संख्या में दर्शनार्थी होते है। 

Clothing and accessories

सर्दियों के दौरान भारी ऊनी कपड़े ले जाने की जरूरत होती है। शेष वर्ष के लिए, हल्के ऊनी कपड़ों की आवश्यकता होती है। गर्मियों में भी, जब बेस कैम्प कटरा भी गर्म और उमस से भरा हो, मुख्य तीर्थ क्षेत्र, जिसे भवन के रूप में जाना जाता है, विशेष रूप से रातों में ठंडा रहता है। कंबल निःशुल्क मिल जाते है। यात्रा के लिए कैनवास के जूतों की भी आवश्यकता हो सकती है। फैंसी जूते ट्रैकिंग रूट पर चलना मुश्किल बनाते हैं 

Souvenirs

Souvenirs

पैदल जाने वालों के लिए, खड़ी चढ़ाई पर चलने में छड़ी बहुत मददगार होती है। बरसात के मौसम में छाता और रेनकोट की आवश्यकता होती है। जूते, कैमरे, छड़ी, टॉर्च, हेडबैंड, छाता और ऐसी ही कई अन्य वस्तुएं जिनके लिए व्यक्ति पहले से तैयार नहीं हो सकता है, पूरे कटरा और पवित्र मंदिर के रास्ते में विभिन्न निजी दुकानों पर किराए पर आसानी से उपलब्ध हैं। हालाँकि उनमे से कुछ की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं हो सकती है और इसलिए तीर्थयात्रियों को कुछ भी किराए पर लेने या खरीदने से पहले सावधानीपूर्वक जांच करने की आवश्यकता हो सकती है।

आपको ये जानकारी देता रोचक लेख और यात्रा संस्मरण पसंद आया होगा। विभिन्न स्थानों और ट्रैक्स की जानकारी देते लेख और वीडियोस भी आप PopcornTrip चैनल में देख सकते हैं।

देखे वीडियो 👇

 

मसूरी में क्या देखें

मसूरी, जिसे “पहाड़ों के रानी” नाम से भी जाना जाता है,  क्वीन ऑफ हिल्स मसूरी किसी रानी की तरह सजी सवरी। यों तो शिमला, ऊटी, दार्जीलिंग आदि हिल स्टेशनस भी अपनी अद्वितीय व अतुलनीय सुंदरता के कारण “क्वीन ऑफ हिल्स” कहे जाते है। और इस लेख में उत्तराखंड के  – “क्वीन ऑफ़ हिल्स” कहे जाने वाले डेस्टिनेशन मसूरी के कुछ टॉप एट्रैक्शंस के बारे में जानेंगे और देखेंगे क्या बातें मसूरी को बनाती है ख़ास!

समुद्र तल से लगभग 6,500 फीट (2,005 metre) की ऊँचाई पर – मसुरी भारत के उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून के समीप बसा के खूबसूरत हिल स्टेशन है। जो अपने सुरम्य दृश्यों, हरे-भरे जंगलों, औपनिवेशिक युग की वास्तुकला के साथ यहाँ के सुंदर landscapes के लिए जाना जाता है। नैसर्गिक ख़ूबसूरती और समुद्र तल से ऊँचाई की तुलना करें उत्तराखण्ड के एक और प्रसिद्ध आकर्षण नैनीताल से और हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से मसूरी की ऊँचाई लगभग समान है, इन स्थानों की जानकारी देते वीडियो भी PopcornTrip में देखे जा सकते है।

मसूरी को इसका नाम, एक समय या बहुतायत में उगने वाली मंसूर नाम की झाड़ियों से मिला। मंसूर झाड़ियों से मिल नाम मंसूरी, नाम समय के साथ बदल कर मसूरी हो गया।

मसूरी का सबसे बड़ा आकर्षण, मसूरी मॉल रोड  जिसका एक सिरा Picture Palace चौक और दूसरा सिरा  लाइब्रेरी चौक, जिसकी दूरी लगभग 2 किलोमीटर है।  यही रोड है  – जहां पैदल अथवा रिक्शे में बैठ कर घूमना समय मे पीछे ले जाता है। और दिखते है आधुनिक इमारतों के साथ कोलोनेयल भवन भी देखे जा सकते हैं।

Mussoorie Uttarakhand

Mussoorie Uttarakhand

मसूरी में घूमने के कुछ बेहतरीन स्थानों में शामिल हैं:
केम्प्टी फॉल्स: यह खूबसूरत झरना मसूरी के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है और हरे-भरे जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है।
गन हिल: यह दृष्टिकोण आसपास के पहाड़ों और घाटियों के मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है, और एक रोपवे द्वारा पहुँचा जा सकता है।
लाल टिब्बा: यह दृश्य हिमालय श्रृंखला का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है, और सूर्यास्त और सूर्योदय के लिए एक शानदार स्थान है।
ज्वालाजी मंदिर: यह मंदिर हिंदू देवी दुर्गा को समर्पित है और बेनोग पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।
बेनोग वन्यजीव अभयारण्य: यह अभयारण्य विभिन्न प्रकार के दुर्लभ और विदेशी पक्षियों और जानवरों का घर है, और प्रकृति और वन्यजीव उत्साही लोगों के लिए एक शानदार जगह है।
मसूरी झील: यह मानव निर्मित झील आसपास के पहाड़ों का सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती है और नौका विहार और पिकनिक के लिए एक लोकप्रिय स्थान है।
कंपनी गार्डन: यह उद्यान इत्मीनान से टहलने के लिए एक आदर्श स्थान है और हरे-भरे जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है।
लंढौर: यह मसूरी के बाहरी इलाके में स्थित एक विचित्र और शांतिपूर्ण शहर है, जो अपने औपनिवेशिक युग की वास्तुकला और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है।
कैमल्स बैक रोड: यह सड़क आसपास के पहाड़ों का सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती है और पैदल चलने, साइकिल चलाने और घुड़सवारी के लिए एक लोकप्रिय स्थान है।क्राइस्ट चर्च: यह मसूरी के सबसे पुराने चर्चों में से एक है और अपनी गॉथिक वास्तुकला और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। ये मसूरी की पेशकश करने वाली कई जगहों में से कुछ हैं। चाहे आप रोमांच, प्राकृतिक सुंदरता या सांस्कृतिक विरासत की तलाश कर रहे हों, इस हिल स्टेशन में सभी के लिए कुछ न कुछ है।

जानते हैं उपरोक्त में कुछ के बारे में विस्तार से – 

मॉल रोड में चहलक़दमी, मसूरी आने वाले पर्यटकों की पसंदीदा गतिविधि है। इसे मॉल रोड के किसी भी सिरे यानी पिक्चर पैलेस चौक या लाइब्रेरी चौक से शुरू कर दूसरे सिरे पर पूर्ण किया जा सकता है। लाइब्रेरी चौक से लगभग चार – पाँच सौ मीटर की दूरी पर इस पॉइंट से कैमल्स बैक के लिए मार्ग है। मॉल रोड में घूमते हुए दिखा गन हिल के चढ़ाई की और जाता मार्ग। यहाँ टैक्सी, रोपवे या पैदल किसी भी तरीके  से पहुँचा जा सकता है। हमने पैदल पहुँचने का विकल्प चुना। लगभग 500 मीटर के पैदल मार्ग में चढ़ाई चढ़ने के लिए फेफड़ों की परीक्षा हो जाती है, और लगभग 30 मिनट में धीमे कदमों से चलते हुए हम पहुँचे गन हिल।

मार्ग में नीचे की और देख मसूरी का बर्ड आई व्यू दिखता है। गन हिल मसूरी का दूसरा सबसे ऊँचा पॉइंट है। यहाँ मंदिर भी है, और यहाँ एक वाटर टैंक भी है, जिससे मसूरी को पानी की सप्लाई होती है। यहाँ amusement पार्क, फ़ास्ट फ़ूड स्टाल्स के साथ बच्चों के मनोरजन के लिए कुछ हाँटेड हाउस/ मैजिक शॉप भी है।  इसका नाम गन हिल पॉइंट होने के कारण शायद यहाँ – ब्रिटिशर्स यहाँ शूटिंग की प्रैक्टिस करते होंगे।
mussoorie town

इंटरनेट सर्च करने पर जो वजह पढ़ने को मिली – वो मनोरजंक और काल्पनिक ज़्यादा और वास्तविक कम लगती है, जैसे एक कहानी कहती है – ब्रिटिश समय में यहाँ समय बताने के ब्रिटिशर्स तोप से हर घंटे बाद गोले दागते थे, जितना बज रहा होता था, उतने गोले! अब सोचने की बात है कि क्या वास्तव में इतना खर्च और ऐसे संसाधनों का दुरुपयोग होता होगा उस समय और वह भी इतनी शांत प्रकृति से घिरी जगह में!

हमारा ख़याल है कि – या तो टीपू सुल्तान के हथियारों का ज़ख़ीरा उनके हाथ लग गया होगा, यह तोप के इन गोलों की expiry डेट नज़दीक होगी। वैसे हर घंटे की जानकारी उन्हें देनी ही थी तो ढोल, बिगुल या कोई बड़ा घंटा बजाकर भी कर भी तो बता सकते थे!

गन हिल का यह नाम होने कि एक दिलचस्प कहानी और जानने को मिली। अंग्रेज अधिकारी अपनी पत्नियों के साथ दोपहर 12:00 बजे घूमने के लिए निकलते थे, और वे लोग नहीं चाहते थे कि उनकी पत्नियों को स्थानीय लोग देखे, जिसकी वजह से वे लोग दोपहर 12:00 बजे तोप से गोले दागते थे और लोग स्थानीय लोग अपने घरों में चले जाते।

यह भी विचित्र बात लगती है – मसूरी जैसी रमणीय जगह में दोपहर 12 बजे कौन सा घूमने का समय हुआ भला, क्या सुबह – शाम नहीं घूमती थी वो? वो कोई देख भी ले, तो उससे क्या होगा, तब तो मोबाइल कैमरा और सीसीटीवी जैसी चीजें तो थी नहीं जिससे प्राइवेसी में दखल हो। गन हिल मसूरी की दूसरी सबसे ऊँची जगह है, यहाँ की कोई भी गतिविधि मसूरी टाउन से नहीं देखी जा सकता, उसके लिए इससे भी ऊँची जगह – लाल टिब्बा जाना होगा, जो मसूरी का सबसे ऊँचा पॉइंट है। लाल टिब्बा के बारे आगे जानेंगे।

Gun Hill पहाड़ी में से उतर कर, तस्वीरें इकट्ठी करते हुए पहुँचे माल रोड के दूसरे सिरे पर पहुँचे, लाइब्रेरी चौक पर मसूरी का सबसे चहल पहल पॉइंट। इस चौक का नाम यहाँ स्थित ब्रिटिश क़ालीन स्थापित लाइब्रेरी के कारण पड़ा, और यह भारत के सबसे पुराने पुस्तकालयों में से एक है। मसूरी पब्लिक लाइब्रेरी 1843 में आरंभ हुआ, इसमें पुस्तकों का एक विशाल संग्रह है। यह लोकेशन अद्भुत है, और मसूरी के केंद्र में स्थित है, यहाँ से एक मार्ग मॉल रोड को और दूसरा यहाँ के एक अन्य आकर्षण कंपनी बाग और केम्प्टी फॉल्स और उससे आगे यमुनोत्री आदि आदि स्थानों के भी जाता है। कंपनी बाग और kampti फॉल को भी इस लेख में आगे देखेंगे।

मसूरी की मॉल रोड में घूमना, विशेष रूप से शाम के समय, यहाँ के विजिट को अविस्मरिणीय बनाने के लिए पर्याप्त है।

लाइब्रेरी चौक में लगी benches बैठ कर, अगर वो ख़ाली हो तो, नहीं तो खड़े रहकर देखते हुए भी यहाँ से मसूरी की घाटियों के मनोरम दृश्यों के साथ देहरादून नगर को देख अपनी मसूरी यात्रा में कुछ और बेहतरीन यादगार पल जोड़ सकते हैं।

लाइब्रेरी चौक में कई दुकानें और रेस्तरां भी हैं, जो जहां लोकल/ और मल्टी cusine फ़ूड की अनेकों varities का स्वाद लिया जा सकता है।यह क्षेत्र चाट, मोमोज जैसे स्ट्रीट फूड के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जो पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच समान रूप से लोकप्रिय हैं।

लाइब्रेरी चौक से मॉल रोड होते हुए इस सड़क से पिक्चर पैलेस चौक तक पैदल चल मसूरी को महसूस करना, मसूरी ट्रिप की एक must do एक्टिविटी कही जा सकती है। मसूरी में लाइब्रेरी चौक से पिक्चर पैलेस चौक तक की पैदल दूरी बिना रुके तय करने लगभग 25-30 मिनट लगते हैं।

Mussoorie Mall Road

Mussoorie Mall Road

माल रोड, शाम के समय केवल पैदल चलने के लिए ही खुली रहती है, मॉल रोड पर चलते हुए सड़क के किनारे सजी हुई दुकानें, आकर्षक रेस्तरां और रोशनी से चमचमाते होटल दिखते हैं। गर्मियों और वीकेंड और लौंग हॉलिडे के समय तो यहाँ अच्छी ख़ासी संख्या में लोग दिखते है, और लोगों की चहलक़दमी और उत्साह को देखते हुए माल रोड में सैर करने का आनंद सभी को एनर्जेटिक कर देता है।

लगभग  5-7 मिनट चलने के बाद यहाँ पहुँच एक बड़ा घंटाघर दिखाई देता है। इस जंक्शन को गांधी चौक के नाम से जाना जाता है, और यह स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय स्पॉट है। 

गांधी चौक से, माल रोड में घूमते हुए कई दुकानों मे स्थानीय प्रतीक, कपड़े और स्थानीय हस्तशिल्प उपलब्ध मिल जाते है, यहाँ चलते हुए घाटी और आसपास के पहाड़ों के शानदार नज़ारों का आनंद भी ले सकते है। लाइब्रेरी चौक से लगभग 2 किमी लंबी माल रोड मे चलकर दूसरे छोर पिक्चर पैलेस चौक पहुंच जाते है। यह नाम यहाँ के एक सिनेमा हॉल के नाम पर रखा गया है, अब जो एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बन गया है। यहाँ तिब्बती मार्केट भी है, जहां गर्म कपड़ों के साथ विभिन्न हैंडमेड सामान बिक्री के लिए मौजूद है।

Mussoorie Beatuful

Mussoorie Beatiuful

गन हिल
उत्तराखंड के मसूरी में स्थित एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। यहां कुछ चीजें हैं जो इसे खास बनाती हैं। गन हिल मसूरी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है, और यह आसपास के पहाड़ों और घाटियों का शानदार मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। पर्यटक गन हिल के ऊपर से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों, मसूरी शहर और आसपास के जंगलों को देख सकते हैं।

रोपवे की सवारी: माल रोड से रोपवे की सवारी करना गन हिल तक पहुंचने के सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक है। रोपवे की सवारी एक रोमांचकारी अनुभव है और शहर और आसपास के पहाड़ों के मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। सवारी में लगभग 5-10 मिनट लगते हैं, और रोपवे स्टेशन पर टिकट खरीदे जा सकते हैं।

ऐतिहासिक महत्व: गन हिल का एक समृद्ध इतिहास है और औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेजों द्वारा एक खोज बिंदु के रूप में इस्तेमाल किया गया था। पहाड़ी का इस्तेमाल उस समय तोप दागने के लिए भी किया जाता था, इसी वजह से इसे यह नाम मिला।

ट्रेकिंग: गन हिल तक पहुँचने का दूसरा तरीका ट्रेकिंग है। कई ट्रेकिंग मार्ग हैं जो गन हिल की ओर ले जाते हैं, और सबसे लोकप्रिय मार्ग माल रोड से शुरू होता है। ट्रेक लगभग 1.5 किमी लंबा है और आपकी गति के आधार पर लगभग 30-45 मिनट लगते हैं। ट्रेक मध्यम कठिन है और इसमें सीढ़ियाँ चढ़ना शामिल है, इसलिए यह सभी के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता है।

पिक्चर पैलेस चौक से लंढौर बाजार या अन्य आस-पास के स्थलों पर पैदल टहलने जा सकते है या मसूरी से आसपास घूमने के लिए टैक्सी भी ले सकते हैं।

कंपनी गार्डन

पहले दिन माल रोड मे घूम कर अगले दिन हम निकले सबसे पहले कंपनी गार्डन की सैर करने जो लाइब्रेरी चौक से लगभग 2 से 3 किलोमीटर दूर कंपनी गार्डन मसूरी का एक अन्य आकर्षण है। यहाँ पैदल, अपने वाहन या स्थानीय टैक्सी द्वारा भी पंहुचा जा सकता है।

यदि पैदल चलना पसंद करते हैं, और ज्यादा जगह एक दिन मे कवर नहीं करना चाहते तो तो लाइब्रेरी चौक से कंपनी गार्डन तक पैदल भी जा सकते हैं। यह सैर मसूरी की सुंदरता के करीब ले जाएगी।

इस उद्यान की स्थापना 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा की गई थी, और शुरुआत में इसे ब्रिटिश अधिकारियों और उनके परिवारों के लिए एक पिकनिक स्थल माना जाता था। समय के साथ, यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बन गया है, जो अपनी हरी-भरी हरियाली, सुंदर फूलों और मनोरंजन के विभिन्न विकल्पों के लिए जाना जाता है।

ये उद्यान लगभग 22 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है और आगंतुकों के आनंद लेने के लिए इसमें कई आकर्षण हैं। कंपनी गार्डन के कुछ लोकप्रिय आकर्षणों में एक छोटी झील, एक झरना, एक नर्सरी, एक बच्चों का मनोरंजन पार्क और एक फूड कोर्ट शामिल हैं। यहाँ एक वॉकिंग ट्रैक भी है जो बगीचे से होकर गुजरता है, जो इसे इत्मीनान से टहलने के लिए एक शानदार जगह बनाता है। कंपनी गार्डन के प्रमुख आकर्षणों में से एक वार्षिक फ्लावर शो है, जो गर्मियों के महीनों के दौरान आयोजित किया जाता है। फ्लावर शो में गुलाब, गेंदे और डहलिया सहित फूलों की विभिन्न किस्मों का शानदार प्रदर्शन किया जाता है। यह पूरे भारत से पर्यटकों को आकर्षित करता है और गर्मियों के दौरान मसूरी आने वाले किसी भी व्यक्ति को इसे अवश्य देखना चाहिए। कंपनी गार्डन में फूड कोर्ट स्थानीय व्यंजनों को स्वाद लिया जा सकता हैं, यहाँ मोमोज और चाट जैसे कई प्रकार के स्नैक्स आदि उपलब्ध है।

कंपनी गार्डन स्थानीय हस्तशिल्प की खरीदारी के लिए भी एक अच्छी जगह है। बगीचे के भीतर कई दुकानें स्थित हैं जहां स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए ऊनी कपड़े, गहने और सजावटी सामान खरीदे जा सकते है।

कंपनी गार्डन मसूरी की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने और आराम करने के लिए कुछ घंटे बिताने के लिए एक अच्छी जगह है। चाहे आप एक पिकनिक स्थल की तलाश कर रहे हों, अपने बच्चों को कुछ मौज-मस्ती के लिए ले जाने की जगह, या बस आराम करने और दृश्यों का आनंद लेने के लिए, कंपनी गार्डन में सभी के लिए कुछ न कुछ है।

दलाई हिल्स

कंपनी गार्डन से मसूरी की ओर आते हुए लगभग आधा किलोमीटर बढ़ नीचे लेफ्ट की ओर जाते मार्ग से  लगभग 1 किलोमीटर दूरी पर स्थित है मसूरी का एक और मसूरी का शांति और सुकून के सुंदर पल ध्यान करते हुए या विचार शून्य होकर बिताने के लिए – एक विशेष स्थान है – बौद्ध मंदिर और दलाई हिल्स।

प्रकृति की गोद में बसा दलाई हिल्स मसूरी हिल के लिए मसूरी से केंपटी गार्डन जाते हुए रास्ते से एक अलग मार्ग है। यहाँ सन् 1960 में स्थापित केंद्रीय तिब्बती स्कूल है। और दलाई हिल्स से पूर्व, बौद्ध धर्म का प्रार्थना  स्थल – बौद्ध स्तूप भी स्थित है।  फिर यहाँ से कुछ आगे चलकर एक ऊँचे टीले जिसे  दलाई हिल्स के नाम से जाना जाता है, पर स्थित भगवान बुद्ध की दिव्य प्रतिमा।

Mussoorie Dehradun

Mussoorie Dehradun

पहाड़ी पर जब हम पहुचे तेज हवा चल रही थी, जिससे लहराते हुए यहाँ ये बुद्ध धर्म से जुड़ी झंडियाँ और पटकाएं  और भी मनमोहक लगती हैं,  दलाई हिल्स से आस पास की घाटियों और पहाड़ियों का बड़ा विहंगम और सुंदर दृश्य नज़र आता है। पहाड़ी की इस चोटी से लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी  का परिसर दिखाई देता है। जो देश पर के आईएएस, आईपीएस जैसे अधिकारी प्रशिक्षित होते है। इसी के समीप एक तिब्बती/ बौद्ध मंदिर ( शेडुप चोफेलिंग मंदिर ) भी स्थित है।

कैम्प्टी फॉल

मसूरी से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मसूरी – चकराता मार्ग में स्थित है kempty fall जहां लगभग 40 फीट की ऊँचाई से गिरता झरना, जो Visitors का पसंदीदा सैरगाह है, गर्मियों के सीजन मे यहाँ बड़ी संख्या मे सैलानी पहुचते है। यहाँ अपने वाहन, टैक्सी, रोपवे या टू व्हीलर रेंट पर ले कर भी पहुँच सकते हैं।

लंढौर

लंढौर प्रकृति प्रेमियों के लिए भी एक पोपुलर डेस्टिनेशन है। लंढौर प्रकृति प्रेमियों के लिए भी एक पोपुलर डेस्टिनेशन है।वापसी मे हम निकले landhor के लिए, पिक्चर palace चौक से आगे बढ़कर, landhor मसूरी से लगा हुआ है,  landhaur बाजार से ऊपर चढ़ाई मे जाते हुए प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लिया जा सकता है, रास्ती के दोनों और बाँज, बुरांश आदि के हरे भरे जंगलों से से घिरा हुआ क्षेत्र है, यहाँ से हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने के लिए एक आदर्श स्थान कह सकते है। ।

लंढौर औपनिवेशिक युग के दौरान यह एक प्रमुख ब्रिटिश छावनी थी। उस समय की कई पुरानी इमारतें और संरचनाएँ आज भी खड़ी हैं, जिनमें लंढौर बाज़ार, सेंट पॉल चर्च और प्रसिद्ध लंढौर क्लॉक टॉवर शामिल हैं।

साहित्यिक संबंध: लंढौर वर्षों से कई प्रसिद्ध लेखकों और कलाकारों का घर रहा है, जिसमें प्रसिद्ध लेखक रस्किन बॉन्ड भी शामिल हैं, जो कई वर्षों से वहां रहे। इस शहर ने कई लेखकों और कवियों को प्रेरित किया है, और इसके शांतिपूर्ण, शांत परिवेश ने दुनिया भर के रचनात्मक लोगों को आकर्षित करना जारी रखा है।

कुल मिलाकर, लंढौर की प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक महत्व, साहित्यिक संबंध, और पाक प्रसन्नता इसे पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए समान रूप से लोकप्रिय गंतव्य बनाती है। मसूरी से लंढौर पहुंचने के सबसे आसान तरीकों में से एक टैक्सी किराए पर ले कर आ सकते हैं। landhor की हाइट मे चार दुकान लंढौर में एक लोकप्रिय लैंडमार्क है। जहां से आप पैदल लंढौर घूम सकते हैं।

इनके अतिरिक्त पैदल चलकर भी, यदि आप पैदल चलना पसंद करते हैं और पैदल मसूरी और लंढौर घूमना चाहते हैं, तो आप मसूरी से लंढौर तक पैदल भी जा सकते हैं। सैर आपको सुंदर मार्गों से ले जाएगी और काफी आनंददायक है। मसूरी से, पिक्चर पैलेस चौक के समीप से लंढौर के मुख्य लैंडमार्क लंधौर के मध्य में स्थित चार दुकान तक नहीं पहुँच जाते, तब तक इस सड़क पर चलते रहें।

आप मसूरी से टैक्सी या कार लेकर भी गन हिल पहुंच सकते हैं। मसूरी में टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं, और आप मॉल रोड या लाइब्रेरी चौक से टैक्सी किराए पर ले सकते हैं। ट्रैफिक के आधार पर गन हिल तक ड्राइव करने में लगभग 10-15 मिनट लगते हैं। कुल मिलाकर, गन हिल तक पहुँचना काफी आसान है, और आप परिवहन का वह तरीका चुन सकते हैं जो आपको सबसे अच्छा लगे। रोपवे की सवारी सबसे लोकप्रिय विकल्प है और मसूरी की यात्रा के दौरान इसे अवश्य करना चाहिए।

हालांकि इन पहाड़ियों और प्रकृति पर हमारा कुछ ज्यादा दवाब रहता हैं। लॉंग हॉलिडेज़ और गर्मियों मे पैर रखने की जगह नहीं मिलती, इसलिए जो पर्यटक आते है उनमे से ज्यादातर को पहाड़ियों मे रहने का वो आनंद नहीं मिल पाता, जो कि मिलन चाहिए। वैसे जब हवाई जहाज, रेल, बस और कार ही नहीं बाइक तक मे अधिकतम बैठने वालों की सीमा तय होती है लेकिन शहर मे एक समय में आने वालों की नहीं। अगर शहर का भी एक पोर्टल हो, जितने भी लोग शहर में आना चाहें वो अड्वान्स मे सूचना दें, और जितने लोग एक बार मे शहर मे या सकें, उतने ही आए। उसके बाद उस दिन के लिए एंट्री बंद हो जाए। और जिनको अनुमति न मिले उन्हे उन्हे ऐसे नजदीकी हिल स्टेशन मे जाने का सुझाव दिया जाए जहां उस दिन अपेक्षाकृत कम दवाब हो। जिससे पर्यटकों को घंटों सड़क पर कार मे बैठ कर जाम में परेशान न होना पड़े, न होटल dhudhne में दिक्कत हो। और जो यहाँ आयें उनका अनुभव भी यादगार रहे। और आस पास के लेस known places मे भी पर्यटन फले फुले।

देखें वीडियो –

मसूरी के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य  हैं:

  • मसूरी – 1820 में अंग्रेजों द्वारा अपनी सैन्य छावनी के लिए बनाया। एक आयरिश व्यक्ति कैप्टन यंग इस जगह की सुंदरता से इतने मंत्रमुग्ध थे कि उन्होंने वहां अपना घर बनाने का फैसला किया, Mullingar Mansion जिसे मुलिंगर हाउस के नाम से भी जाना जाता है, 1825 में कैप्टन यंग द्वारा बनाया गया था, जो मसूरी में बसने वाले पहले यूरोपीय लोगों में से एक थे।
  • यह हवेली अब एक होटल है और एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। जिसके बाद मसुरी धीरे – 2  हिल स्टेशन के रूप में विकसित होकर गर्मियों के महीनों में ब्रिटीशर्स के लिए पोपुलर हॉलिडे destination बन गया।
  • माना जाता है कि “मसूरी” नाम “मसूरी” नामक पौधे से लिया गया है जो इस क्षेत्र में बहुतायत में मिलती थी।
  • मसूरी समुद्र तल से 6,580 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, और हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रृंखला से घिरा हुआ है।
  • मसूरी की एक विशेषता है “कैमल्स बैक रोड” के रूप में जाना जाता है और यह 3 किमी लंबा है जो ऊंट के हम्प जैसा दिखता है।
  • भारत में पहला तिब्बती स्कूल 1960 के दशक में मसूरी में स्थापित किया गया था।
    मसूरी का एक वाइब्रन्ट लोकल कल्चर देखा जा सकता है, और यह अपने पारंपरिक कुमाऊँनी और गढ़वाली व्यंजनों के साथ-साथ अपने हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों के लिए प्रसिद्ध है।
  • मसूरी के मुख्य आकर्षणों में से एक केम्प्टी फॉल्स है, जो पिकनिक और तैराकी के लिए एक लोकप्रिय स्पॉट है। दस्तावजों के अनुसार इस falls का पता 1835 में जॉन मेकिनन नामक एक ब्रिटिश अधिकारी ने की थी।
  • मशहूर लेखक रस्किन बांड 1663 से मसूरी में रह रहे हैं। उन्हें इस हिल स्टेशन में अपनी कई किताबें लिखने के लिए जाना जाता है।
  • मसूरी की एक अनूठी स्थापत्य शैली है जो ब्रिटिश औपनिवेशिक और भारतीय शैलियों का मिश्रण है। मसूरी की कुछ सबसे उल्लेखनीय इमारतों में क्राइस्ट चर्च, सेवॉय होटल, वुडस्टॉक स्कूल (1854), वेनबर्ग एलन स्कूल (1888), ओक ग्रोव स्कूल (1888) और मसूरी लाइब्रेरी शामिल हैं।
  • मसूरी में कई हॉलिवुड और बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है।
  • मसूरी पुस्तकालय 1843 में बनाया गया था और माल रोड पर स्थित है। यह भारत के सबसे पुराने पुस्तकालयों में से एक है और इसमें दुर्लभ और प्राचीन पुस्तकों सहित पुस्तकों का एक बड़ा संग्रह है।

    Mussoorie Library

    Mussoorie Library

  • मसूरी में सबसे ऊंचा पॉइंट लाल टिब्बा है, जहां से हिमालय श्रृंखला के सुंदर दृश्य नजर आते है।
  • लंढौर क्लॉक टॉवर 1911 में बनाया गया था और यह लंढौर के केंद्र में स्थित है। यह शहर का एक मील का पत्थर है और इसे अक्सर मीटिंग पॉइंट के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • Lal Bahadur Shastri National Academy of Administration यह संस्थान भारत में सिवल सर्वेन्टस के लिए  प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान है। यह शहर के सामने एक सुरम्य पहाड़ी पर स्थित है
  • मसूरी अपने ट्रेकिंग मार्गों के लिए भी जाना जाता है, जिसमें नाग टिब्बा चोटी का ट्रेक भी शामिल है, जो साहसिक उत्साही लोगों के लिए एक लोकप्रिय मार्ग है।
  • मसूरी में मौसम की एक अनोखी घटना होती है जिसे ‘मसूरी मिस्ट’ के नाम से जाना जाता है। यह धुंध हवा में पानी की बूंदों के संघनन condensation के कारण होती है और विशेष रूप से मानसून के मौसम में दिखाई देती है।

 

Few Attractions of Mussoorie

  1. Kempty Falls: This beautiful waterfall is one of the most popular tourist spots in Mussoorie and is surrounded by lush green forests and mountains.
  2. Gun Hill: This viewpoint offers panoramic views of the surrounding mountains and valleys, and is accessible by a ropeway.
  3. Lal Tibba: This viewpoint offers a panoramic view of the Himalayan range, and is a great spot for sunset and sunrise.
  4. Jwalaji Temple: This temple is dedicated to the Hindu goddess Durga and is situated on the top of the Benog Hill.
  5. Benog Wildlife Sanctuary: This sanctuary is home to a variety of rare and exotic birds and animals, and is a great place for nature and wildlife enthusiasts.
  6. Mussoorie Lake: This man-made lake offers a beautiful view of the surrounding mountains and is a popular spot for boating and picnics.
  7. Company Garden: This garden is an ideal place for a leisurely walk and is surrounded by lush green forests and mountains.
  8. Landour: This is a quaint and peaceful town located on the outskirts of Mussoorie, famous for its colonial-era architecture and serene atmosphere.
  9. Camel’s Back Road: This road offers a beautiful view of the surrounding mountains and is a popular spot for walking, cycling and horse-riding.
  10. Christ Church: This is one of the oldest churches in Mussoorie and is famous for its Gothic architecture and serene atmosphere.
  11. Mussoorie has a unique weather phenomenon known as the ‘Mussoorie Mist’. This mist is caused by the condensation of water droplets in the air and is particularly visible during the monsoon season.

आपको ये जानकारी और रोचक तथ्य पसंद आये होंगे। इस पर बना वीडियो देखें PopcornTrip चैनल पर।

 

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उत्तराखण्ड में रहने के लिए खूबसूरत स्थान

उत्तराखंड में रहने के लिए कुछ बेहतरीन शहरों की जानकारी लेनी हो तो इस इस लेख को पढ़ें। ये सब स्थान, रहने के लिए सभी आधुनिक सुविधाएँ और बेहतरीन आबोहवा लिये हैं और साथ साथ शांतिपूर्ण और सुंदर वातावरण की तलाश करने वाले लोगों के लिए उपयुक्त हैं। निम्नलिखित में से कुछ स्थान अनोखे अनुभव प्रदान करते हैं और रोमांच, शांति की तलाश करने वालों के लिए उपयुक्त हैं, ये स्थान एक अनूठा अनुभव प्रदान करते हैं और शांतिपूर्ण और प्राकृतिक वातावरण की तलाश करने वालों के लिए आदर्श हैं।

  1. देहरादून: यह उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी है और आधुनिक सुविधाओं, नौकरी के अवसरों और प्राकृतिक सुंदरता का एक अच्छा मिश्रण प्रदान करता है। यहाँ घूमेनें के लिए विभिन्न स्थान जिनमें से सहस्त्रधारा, एफआरआई, रॉबर्स केव, मालसी डियर पार्क, टपकेश्वर महादेव मंदिर, EC रोड, विभिन्न शॉपिंग मॉल और मल्टीप्लेक्स आदि कुछ हैं।
  2. नैनीताल: अपनी शांत झीलों, हरी-भरी हरियाली और सुहावने मौसम के लिए जाना जाने वाला नैनीताल भारत के सबसे लोकप्रिय हिल स्टेशनों में से एक है। नैनी झील, नैनीताल चिड़ियाघर, स्नो व्यू, पंगोट, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, खुर्पाताल, भवाली आदि स्थान नैनीताल के कुछ आकर्षण हैं।
  3. मसूरी: हिमालय की तलहटी में स्थित मसूरी लुभावने दृश्य, स्वच्छ हवा और शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करता है, जो इसे रहने के लिए एक लोकप्रिय स्थान बनाता है।
  4. हरिद्वार: अपने आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाने वाला हरिद्वार एक हलचल भरा शहर है जो साल भर पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।
  5. अल्मोड़ा: कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित, अल्मोड़ा एक आकर्षक हिल स्टेशन है जो हिमालय के शानदार दृश्य, एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और एक शांत जीवन शैली प्रदान करता है।
  6. ऋषिकेश: “विश्व की योग राजधानी” के रूप में जाना जाता है, ऋषिकेश अपने आश्रमों, आध्यात्मिक वातावरण और राफ्टिंग और बंजी जंपिंग जैसी साहसिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है।
  7. उत्तरकाशी: यह सुदूर और सुंदर शहर घने जंगलों, बर्फ से ढकी चोटियों और शांत नदियों से घिरा हुआ है, जो इसे साहसिक उत्साही और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक शानदार जगह बनाता है।
  8. बागेश्वर: यह ऐतिहासिक शहर कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक महत्व और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है।
  9. चमोली: अपने ग्लेशियरों, गर्म झरनों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाने वाला चमोली ट्रेकिंग और साहसिक खेलों के लिए एक आदर्श स्थान है।
  10. रुद्रप्रयाग: यह छोटा सा शहर दो पवित्र नदियों, अलकनंदा और मंदाकिनी के संगम पर स्थित है, और अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।
  11. पिथौरागढ़: कुमाऊं क्षेत्र में स्थित पिथौरागढ़ अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है।
  12. हल्द्वानी: नैनीताल जिले में स्थित, हल्द्वानी एक हलचल भरा शहर है जो कुमाऊँ के हिल स्टेशनों के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
  13. रानीखेत: यह सुंदर हिल स्टेशन अपनी हरी-भरी हरियाली, सुंदर गोल्फ कोर्स और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है।
  14. कोटद्वार: यह छोटा शहर पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है और गढ़वाल के हिल स्टेशनों के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
  15. श्रीनगर: पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित श्रीनगर अपनी प्राकृतिक सुंदरता, साहसिक खेलों और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।
  16. औली: एक लोकप्रिय स्की गंतव्य, औली हिमालय के मनोरम दृश्य और साहसिक खेलों की एक श्रृंखला प्रदान करता है।
  17. मुक्तेश्वर: यह विचित्र हिल स्टेशन अपनी प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण और ट्रेकिंग और पैराग्लाइडिंग जैसी साहसिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है।
  18. कर्णप्रयाग – कर्णप्रयाग भारत के उत्तराखंड के चमोली जिले में, अलकनंदा और पिंडर नदियों के संगम पर स्थित है। ये स्थान के लिए एक पवित्र स्थल माना जाता है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है और आसपास के क्षेत्रों में ट्रेकिंग और अन्य साहसिक गतिविधियों के लिए शुरुआती बिंदु के रूप में कार्य करता है। यह शहर कर्णेश्वर मंदिर सहित कई मंदिरों का घर भी है, जो भगवान शिव को समर्पित है।

Things should be kept in mind while travelling new places

Before traveling to a new place, consider the following preparations:

  1. Research the destination: Familiarize yourself with the culture, customs, laws, and language of the place you’re visiting.
  2. Plan your itinerary: Make a list of the places you want to visit, estimate the costs, and book accommodations if necessary.
  3. Obtain necessary documents: Check the visa requirements and make sure you have a valid passport, driver’s license, and travel insurance.
  4. Pack appropriately: Pack clothing and items suitable for the climate and activities you have planned.
  5. Stay informed: Stay up-to-date on local news and any travel warnings or alerts issued by your government.
  6. Keep copies of important documents: Keep electronic and physical copies of your passport, travel insurance, and other important documents in a safe place.
  7. Learn basic phrases: Learning basic phrases in the local language can be helpful in navigating the destination and communicating with locals.
  8. Respect local customs and laws: Be mindful of cultural differences and obey local laws and regulations.
  9. Stay safe: Familiarize yourself with emergency procedures, including the local emergency number, and take basic safety precautions, such as not carrying large amounts of cash or displaying valuables in public.

Explore various places with PopcornTrip

उत्तराखण्ड में 10 दिन की छुट्टियों में कहाँ ज़ाया जा सकता है!

यात्रा करना, अपने व्यक्तित्व को निखारने, नई चीजें सीखने के लिए सबसे अच्छे तरीकों में से एक है। हर कोई अपने दिन-प्रतिदिन की दिनचर्या में व्यस्त है, लेकिन अगर आपके पास कम दिनों की छुट्टी है, और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ सही तरीके से उत्तराखंड को घूमना चाहते हैं, तो यहां 10 दिनों में उत्तराखंड की यात्रा में नीचे दिये गये स्थानों को ध्यान में रख अपना टूर प्लान कर सकते हैं :

Dehradun Uttarakhand

Dehradun Uttarakhand

दिन 1-2: देहरादून पहुंचें और टपकेश्वर मंदिर, FRI, रॉबर्स केव और सहस्त्रधारा जैसे स्थानीय आकर्षण देखें।

दिन 3-4: ऋषिकेश ड्राइव करें और परमार्थ निकेतन और नीर गढ़ जलप्रपात सहित आश्रमों और मंदिरों का पता लगाएं।

दिन 5-6: मसूरी के लिए ड्राइव करें और गन हिल, केम्प्टी फॉल्स और कैमल्स बैक रोड जैसे लोकप्रिय आकर्षणों पर जाएँ।

Dehradun to Mussoorie Journey

Dehradun to Mussoorie Journey Popcorn Trip

दिन 7-8: औली ड्राइव करें और प्राकृतिक सुंदरता, स्कीइंग और ट्रेकिंग के अवसरों का आनंद लें।

दिन 9-10: ड्राइव करके जोशीमठ जाएं और प्रसिद्ध नरसिंह मंदिर जाएं और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान की सैर करें।

यह केवल एक टूर प्लान है, और इसे व्यक्तिगत रुचियों और समय की उपलब्धता के आधार पर बदलाव किया जा सकता है। आशा है कि आपको यह जानकारी पसंद आयी होगी।

PopcornTrip चैनल पर यात्रा वीडियो देखकर अन्य विभिन्न स्थानों को जानें।

https://www.youtube.com/@PopcornTrip

देहरादून क्यों हैं विशेष

उत्तराखण्ड में गढ़वाल की पहाड़ियों की तलहटी से लगा खुशमुमा मौसम लिए देहरादून ख़ूबसूरत तो है ही, साथ ही उत्तराखण्ड राज्य के राजधानी होने से इसकी और भी महत्व बड़ जाता है। 

वैसे तो राज्य बनने के साथ देहरादून अस्थायी राजधानी घोषित हुआ था, लेकिन अभी तक उत्तराखंड में कहीं और पूर्णकालिक राजधानी अब तक कहीं तैयार नहीं, उत्तराखंड में कई लोग मांग करते हैं कि गैरसैंण या कोई और पहाड़ी जगह राज्य की राजधानी बने, फिलहाल तो 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से  देहरादून शहर ही राज्य की राजधानी की जिम्मेदारी संभाल रहा है। 

PopcornTrip में देहरादून की जानकारी देते इस लेख में आप पायेंगे यहाँ का इतिहास, यहाँ के विभिन्न पर्यटक आकर्षण के केन्द्र जिनमें से कुछ हैं सहस्त्रधारा, टपकेश्वर मंदिर, गुच्चू पानी (रॉबर्स केव), FRI, क्लॉक टावर, मालसी डियर पार्क (देहरादून का चिड़ियाघर) आदि की जानकारी और साथ में यहाँ कैसे पहुँचे, यहाँ के मौसम आदि की जानकारी। 

देहरादून के लोग अपने शहर से बहुत प्रेम करते है और इस अद्भुत शहर से जुड़ा होने पर गर्व भी। यहाँ का खानपान, मौसम, प्रकृति, भोगोलिक वातावरण – सब कुछ लोगों को लुभाता है।

Dehradun

यह स्थान देश की अन्य लोगों के साथ celebrities को भी इतना पसंद आता है, वो देहरादून कम से कम एक घर बनाना या खरीदना चाहते है। अनेकों celebrities के देहरादून मे भी रेज़िडन्स है। 

पीढ़ियों से रहते लोग बताते है कि पहले देहरादून में एक या कुछ एकड़ से कम जमीन खरीदी या बेची नहीं जा सकती थी। जिससे सम्पन्न लोग ही यहाँ घर बना सकते थे। आज भी देहरादून में एकड़स लेंड में बने bunglows देखे जा सकते है। 

तब bunglow में चाहरदीवारी नहीं होती थी, चारों ओर हेज लगी रहती थी जिससे बारिश का पानी एकदम बह जाता। अब चाहरदीवारी से घिरी है। 

देहरादून में मध्यम आय वर्ग के लोगों ने घर बनाना चाहा,  तो समय के साथ  जमीन खरीद – फरोख्त के मानक बदले और शहर में कम साइज़ की जमीनें भी बेची जाने लगी। और शहर cement और कान्क्रीट से भरने लगा।  

देहारादून में कई पार्क होने के साथ देहारादून में कई राष्ट्रीय संस्थानों और organizations का मुख्यालय है – जिनमे ओएनजीसी, सर्वे ऑफ इंडिया, वन अनुसंधान संस्थान फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट,  Indian Institute of Petroleum प्रमुख हैं। 

देहरादून में देश के कई प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान भी यहाँ है। जिनमे प्रमुख है। Indian Military Academy, Rashtriya Indian Military College (राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कॉलेज), Indira Gandhi National Forest Academy (IGNFA), Lal Bahadur Shastri National Academy Of Administration (LBSNAA) भी देहरादून में हैं।

देहरादून को यहाँ के सुहावने मौसम, यहाँ के बासमती चावल के साथ और लीची के लिए भी जाना जाता है। देहरादून के आसपास –  मसूरी, धनौल्टी, ऋषिकेश, हरिद्वार, सहरानपुर, रुड़की जैसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण स्थान तो हैं ही, साथ ही नगर में या नगर की सीमा से लगे कई आकर्षण जैसे सहस्त्रधारा, रॉबर्स केव, टपकेश्वर महादेव, FRI जैसे आकर्षण भी हैं।
देहरादून को समझने के लिए यहाँ महीनों समय बिताना भी कम है, और कुछ 8-  10 ऐसे स्थान देखने हो जो internet सर्च मे टॉप पर आते है, या ज्यादातर पर्यटक विज़िट करते है, और उतना देखने के लिए 2-3 दिन का समय बहुत हैं। और ठहरने के लिए तमाम होटल/ resort / B&B homes hai. जो अपने बजट और रुचि के अनुसार विभिन्न होटल बुकिंग साइट्स से पता किए और बुक कराए जा सकते हैं।

Clock Tower Dehradun

देहरादून का इतिहास/ History of Dehradun

द्वापर युग में “महाभारतकालीन गुरु द्रोणाचार्य” के घर के रूप में भी जाने वाले देहरादून का यह नाम होने की कहानी यह है कि – सन् 1676 में,  सिक्खों के सातवें गुरु राम राय वर्ष अपनी संगत के साथ भ्रमण करते हुए इस स्थान पर पहुचे, और दून घाटी मे अपना डेरा यानि Camping की, उनके यहाँ पड़ाव डालने के बाद इस स्थान को डेरा दून कहा जाने लगा, और जो कालांतर में बदल कर देहरादून हो गया।
ब्रिटिश युग से पूर्व ज्यादातर दून घाटी गढ़वाल के शासकों के अधीन रही और रणनीतिक रूप से केंद्र में रही। ब्रिटिश पीरियड में ब्रिटिशर्स ने भी यहाँ अपनी छावनी बनायी।

देहरादून  के प्रमुख आकर्षण व गतिविधियां

देश भर की नामी ब्रांड्स और कंपनीज़ चाहे वो इलेक्ट्रॉनिक्स हों, फर्नीचर हो, ऑटोमोबाइल हों, रेस्टोरेंट हो के यहाँ लगभग सभी के आउटलेटस हैं।
देहरादून शहर का केंद्र माना जा सकता हैं यहाँ घंटा घर यानि क्लाक tower को। क्लॉक टावर यानी घंटा घर शहर के केंद्र में है। यहाँ लगे शिलापट में नाम बलबीर क्लॉक टावर दर्ज है। 1948 में इस क्लॉक टावर के निर्माण की शुरुआत ब्रिटिश समय के न्यायाधीश रहे और बलबीर सिंह जी के परिजनों ने उनकी स्मृति में किया और 1953 में बनकर तैयार हुआ। घंटाघर ईंटो और पत्थरों से बना हुआ है। इसमें प्रवेश के लिये छह दरवाजे हैं। इसके षट्कोणीय आकार की हर दीवार पर प्रवेशमार्ग है। ऊपर जाने के लिये गोल घुमावदार सीढ़ियाँ है। छह अलग दीवारों पर छह घड़ियां लगी हैं उन्‍हें उस समय स्विट्जरलैंड से भारी-भरकम मशीनों द्वारा लाया गया था। अब यहाँ मेकेनिकल घड़ियों की जगह –  इलेक्ट्रानिक घड़ियां लग गयी हैं।

Clock Tower

Clock Tower Dehradun


क्लॉक टावर  के निकट देहरादून के कई प्रसिद्ध बाजारें हैं। जिनमे से सबसे प्रसिद्ध है – देहरादून का सबसे पुराना बाजार – पलटन बाजार। इस बाजार से कई दूसरे बाजारों को जोड़ती गालियां है। क्लॉक टावर से राजपुर रोड की ओर आते हुए कुछ ही कदम की दूरी पर स्थित – MDDA मल्टी स्टोरी कार पार्किंग। इस पार्किंग कॉम्प्लेक्स की अन्डर ग्राउन्ड फ्लोरस में पार्किंग है और ऊपर की floors में कुछ रेस्टोरेंट, सर्विस सेंटर और कुछ दुकाने। पार्किंग से की दीवार से बाहर आते ही दिखता है – इन्दिरा मार्केट – यहाँ सस्ते रेडीमेड वस्त्रों की खरीददारी की जा सकती है।

Paltan Bazar Dehradunक्लॉक टावर से राजपूत रोड में लगभग 100 मीटर चलने के बाद दाई ओर चलते हुए पहुचते है – शहर के एक खूबसूरत पार्कगांधी पार्क मे। पार्क मे हरियाली और खूबसूरत फूलों और पेड़ों के साथ पंछियों की चहचहाट सुनते हुए सुबह की शुरुआत की जाये, तो फिर पूरा दिन ही अच्छा लगता है। 

Dehradun pleasant weather

A Rainy Day in Dehradun

देहरादून का मौसम
यहाँ का मौसम वर्ष भर सुहावना रहता है। यहाँ बारिश होने के लिए वातावरण को पश्चिमी विक्षोभ या सावन के आने की ज़रूरत नहीं रहती। जो कभी भी हो जाती है। घर से कोई यह सोच कर निकले कि आज मौसम साफ है – तो अचानक बारिश हो सकती है और कभी ऐसा लगे कि – आज  बारिश होगी और छाता लेकर बाहर जाए, तो जरूरी नहीं कि उस दिन बारिश हो।

शहर में कई जल स्रोत, झरने, जलाशय और पार्क है, जो यहाँ रहने वालों के लिए सैरगाह/ पिकनिक स्पॉट और सैलानियों के लिए आकर्षक पर्यटक स्थल हैं। जानते हैं इनके बारे में – 

सहस्त्रधारा

देहरादून के सर्वाधिक विज़िट किए जाने वाले पिकनिक डेस्टिनेशन में एक है सहस्त्रधारा। सहस्त्रधारा – देहरादून में क्लॉक टावर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक सुंदर पिकनिक स्पॉट है। घंटाघर के समीप स्थित परेड ग्राउंड से सहस्त्रधारा के लिए नियमित अंतराल पर चलने वाली बस मिल जाती हैं, आपने वाहन के अलावा टैक्सी अथवा ऑटो द्वारा भी यहाँ पंहुच सकते हैं। देहरादून में मोबाईल एप बेस्ड टैक्सी और बाइक राइड भी मिल जाती है।
सहस्त्रधारा में वाहनों के लिए बड़ा पार्किंग स्पेस है। पार्किंग से कुछ ही दूरी पर एक मंदिर भी है। सहस्त्रधारा नाम के अनुरूप यहाँ के प्रकार्तिक झरने से सहस्तरों धराएं निकलती हैं। यहाँ के जल स्रोतों से बहते पानी को रोककर बने कई छोटे छोटे जलाशय बनाए गए हैं, जो यहाँ आने वालों को लुभाते हैं। मानसून में यहाँ बहाव बहुत तीव्र होता है।

सहस्त्रधारा में प्राकृतिक और चिकित्सीय गुणों से भरपूर एक प्राकृतिक गंधक (सल्फर) वाटर स्प्रिंग है, इसके निरंतर बहते जल से गंभीर त्वचा विकारों को भी ठीक किया जा सकता है। देश भर से तो यहाँ लोग आते ही हैं साथ ही विदेशों से भी पर्यटक यहाँ,  त्वचा संबंधित रोगों के उन्मूलन के लिए आते हैं।

खाने के विकल्प उपलब्ध कराते यहाँ कई फ़ास्ट फ़ूड स्टॉल हैं। यहाँ Rope Way राइड भी लिया जा सकता है यहाँ एक fun park भी है जहां कई rides और swings का आनंद  ले सकते है। यहाँ  बौद्ध मंदिर भी है। साथ ही ठहरने के लिए कुछ होटेल्स भी है। यहाँ पूरा या आधा दिन विभिन्न गतिविधियों करते हुए बिताया जा सकता है। 

मालसी डियर पार्क / देहरादून चिड़ियाघर

सहस्त्रधारा से लगभग 11.5 किलोमीटर दूर देहरादून – मसूरी मार्ग में स्थित मालसी डियर पार्क जिसे देहरादून के चिड़ियाघर के नाम से भी जाना जाता हैं स्थित है। घंटाघर से यहाँ की दूरी 9 किलोमीटर है, यहाँ आने के लिए बस व या टैक्सी/ ऑटो भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। यहाँ की घंटे या पूरा दिन भी यहाँ दिखने वाले जीवों जिनमे कई पक्षी और पशु हैं की बारे में जानकारी लेते हुए बिता सकते हैं। इस जू को विजिट करने की टाइमिंग सुबह 09 से शाम 5 तक है, और ये सोमवार को बंद रहता है। यहाँ बच्चों के लिए पार्क, और जानकारी उपलब्ध कराते कई रोचक बोर्ड दिखते हैं। यहाँ जू के बाहर खाने के एक कैंटीन भी है।

रॉबर्स केव/ गुच्चू पानी

देहारादून का एक और आकर्षण है – क्लाक टोअर से लगभग साढ़े आठ किमी और देहरादून जू से लगभग 4 किमी दूर रॉबर्स केव जिसे गुच्चू पानी नाम से भी जाना जाता है। Robbers Cave में 4 वर्ष से उप्पर के आगंतुकों के लिए प्रवेश शुल्क लिया जाता है। यहाँ एक छोटी नहर है जो एक गुफा से हो कर गुजरती है। इस गुफा में बहते हुए पानी में चलते हुए रोमांच की अनुभूति होती है। ये गुफा लगभग 600 मीटर लंबी है। बरसात में इस पानी का लेवल बढ़ जाता है। और सर्दियों में पानी काफ़ी ठंडा रहता है।

टपकेश्वर महादेव

रॉबर्स केव से टपकेश्वर महादेव मंदिर की दूरी लगभग 6 किलोमीटर और क्लॉक टावर से 6.5 किलोमीटर  है। इस मंदिर में स्थित  शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं।  ऐसा माना जाता है कि इस जगह को गुरु द्रोणाचार्य द्वारा बसाया गया था, इसलिए इसे द्रोण गुफा के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ आने के लिए अपने वाहन के अलावा ऑटो अभी उपलब्ध हो जाते हैं। 


FRI (Forest Reserach Institute)

फारेस्ट रिसर्च सेंटर FRI के नाम से जाने जाने वाला संस्थान देहारादून का एक और आकर्षण है। यह संस्थान केवल अपने शोध कार्य के लिए बल्कि अपने अद्भुत वास्तुकला  के लिए भी जाना जाता हैं  और अपनी  बेहद आकर्षित कर देने वाली बनावट के कारन,”FRI” देहरादून के एक विख्यात पर्यटन स्थल में भी शुमार हैं  है एफ़ आर आई वन अनुसंधान संस्थान विश्वविध्यालय से संबद्ध है और विश्वविद्यालय  अनुदान आयोग [यूजीसीद्वारा मान्यता प्राप्त हैं |  

देहरादून कैसे पंहुचे!

देश भर से देहरादून आप कभी भी आ सकते हैं। साथ ही सड़क, रेल और हवाई मार्ग द्वारा देहरादून की कनेक्टिविटी देश के विभिन्न हिस्सों से है। देहरादून – हरिद्वार,  ऋषिकेश, मसूरी, चंडीगढ़, सहारनपुर, रुड़की, दिल्ली  जैसे नगरों से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहाँ आप अपने वाहन  से आने के अतिरिक्त प्लेन, ट्रेन, टैक्सी द्वारा भी आ सकते हैं।

हवाई मार्ग से –
देहरादून के निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट नगर से लगभग 20 किलोमीटर दूर जॉलीग्रेंट में स्थित है। यहाँ से एयर इंडिया, जेट एयरवेज, जेट कनेक्ट और स्पाइस जेट की देहरादून के लिए नियमित उड़ानें हैं। और हवाई अड्डे से नगर तक आने के लिए टैक्सी आदि उपलब्ध हो जाती हैं।
ट्रेन से
देहरादून से  दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, मुंबई, कोलकाता, उज्जैन, चेन्नई और वाराणसी के लाई नियमित ट्रेन चलती हैं। देहरादून से  देश के  बाकी हिस्सों से शताब्दी एक्सप्रेस, जन शताब्दी एक्सप्रेस, देहरादून एसी एक्सप्रेस, दून एक्सप्रेस, बांद्रा एक्सप्रेस और अमृतसर-देहरादून एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग से
देहरादून से देश के अधिकतर नगरों जैसे दिल्ली, शिमला, नैनीताल, हरिद्वार, ऋषिकेश, आगरा और मसूरी आदि से आवागमन के लिए वॉल्वो, डीलक्स, सेमी-डीलक्स और उत्तराखंड राज्य परिवहन की बसें उपलब्ध हो जाती हैं। हर 15 – 20 मिनट के अंतराल पर ये बसें यहाँ से चलती रहती हैं। देहरादून में एक अन्य बस टर्मिनल मसूरी बस स्टेशन हैं, जो देहरादून रेलवे स्टेशन के निकट ही स्थित है, जहाँ से मसूरी और आसपास के अन्य शहरों के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है। देहरादून में एक और अंतरराज्यीय बस टर्मिनल गांधी रोड पर दिल्ली बस स्टैंड है।

आशा है ये जानकारी युक्त रोचक लेख आपको पसंद आया होगा, देहरादून पर बना वीडियो देखें –

 

पहाड़ों की यात्रा में नहीं होगी मुश्किल, अगर ये प्रो टिप्स जान लें तो।

बाइक से आयें या कार से,  पहाड़ी रोड पर घुमावदार मोड़ों से सफर करते हुए अक्सर लोग परेशान हो जाते हैं – तब यह 10 टिप्स यकीनन आपके ट्रैवल अनुभव को बदल देंगी, और आप पर्वतीय क्षेत्रों बार बार आना चाहेंगे।

पहाड़ी रास्तों में चलते हुए वाहन में, कोई पुस्तक पढ़ने, मोबाइल अथवा लैपटॉप के स्क्रीन में देखने से बचें, क्योंकि मोशन के विपरीत किसी भी चीज पर ध्यान देने कई सर  दर्द, चक्कर  आने, मितली  आने  जैसी  कई  परेशानियां हो सकती है, जितना संभव हो अपने सामने की ओर देखें, और सामने देखने का मन ना हो तो आंख बंदकर रिलैक्स हो सकते हैं।

कपड़ों का चयन क्रेते हुए ध्यान रखें – सर्दियों में डेनिम की जगह, कॉर्डरॉय क्लोधिंग ठंड रोकने के लिए अधिकार कारगर है, साथ ही मौसम के अनुसार कपड़ों रखें, पहाड़ी डेस्टिनेशन  में जितने हाई एल्टीट्यूड में जाएंगे, ठंड उतनी ही ज्यादा होगी।

पहाड़ों में सफर करते हुए कान ढ़क कर रखें क्योंकि यहां बहती ठंडी हवाओं में नमी भी होती है कान में जाने से परेशानी हो सकती है।

पहाड़ी घुमावदर रोड्स में एक दिन में डेढ़ ज़्यादा से ज़्यादा डेढ़ सौ से  दो सौ किलोमीटर तक ही यात्रा करें, तेज़ी से मौसम बदलने से परेशानी हो सकती है, आसपास के नजारों का आनंद लेते हुए धीरे-धीरे चलें और ठहरते हुए आगे बढ़े।

पहाड़ी सड़कों पर दिन में ही ड्राइव करें, शाम होने से पहले कहीं रुक जाएं रात में होटल मिलने में परेशानी होगी, क्योंकि पहाड़ों में ज्यादातर जगहों पर स्थानीय बाजार शाम को जल्दी बंद हो जाती है। पहाड़ों में आते हुए अपने वाहन में पर्याप्त ईधन रखें, क्योंकि पेट्रोल पंप के मध्य कई जगह बहुत दूरी है।

घर से बाहर भोजन कुछ अलग स्वाद का मिलता है, इसलिए बाहर का फ़ूड लेते हुए, आप सामान्यतः जितना लेते हैं उसका आधा यह दो तिहाई ही लें, जिससे अगर वो अनुकूल न भी हो, तो भी पाचन में अधिक दिक्कत नहीं होगी। सलाद  की मात्रा बढ़ा  लें।

पहाड़ों में घूमते समय ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है, ज्यादा पसीना बहता है, जिससे डिहाइड्रेशन यानी शरीर में पानी की कमी हो सकती है, इससे बचने के लिए अपने साथ एनर्जी ड्रिंक्स अथवा इलेक्ट्रोल रखें, और नियमित अंतराल पर लेते रहें।

पहाड़ों में गूगल मैप को ऑफलाइन डाउनलोड करके रखें, क्योंकि इंटरनेट कनेक्टिविटी हर जगह नहीं है, किसी दुविधा की स्थिति में स्थानीय लोगों से भी जानकारी ले लें, कई जगह नए रास्ते बन रहे हैं, और कई मार्ग बंद हो चुके है।

मोड़ों पर कभी भी overtake करने की कोशिश ना करें, भले ही कितनी ही जल्दी में आप हो, कभी मोड़ो पर अचानक से कोई अनचाहा ऑब्जेक्ट जैसे कोई वन्य प्राणी या पहाड़ी से गिरकर आया कोई पत्थर/ मलबा हो सकता है, साथ ही पहाड़ी सड़कों पर अपने वाहन को तय गति सीमा में ही रखें, पहाड़ी सड़के तेज रफ्तार वाहनों के लिए नहीं बनी है

अगर यात्रा मैं आपका बजट कम हो या कुछ नया करना चाहते हैं, तो किसी किसी छोटी, कम जानी पहचने स्थान में रात्रि विश्राम कर सकते हैं, हो सकता है –  इन जगहों पर इंटरनेट कनेक्टिविटी अथवा कुछ दूसरी सुविधाएं ना मिले।

उम्मीद है यह कुछ बातें आपके पहाड़ों में सफर के अनुभव को और भी बेहतर बनाए रखने में आपकी सहायता करेंगी शेयर करें आपके मित्रों के साथ जो पहाड़ों की यात्रा में निकलने वाले हैं।

देखें video :

शिमला से चंडीगढ़ टैक्सी रु 1200/ में

अपनी पिछली यात्रा में शिमला से चंडीगढ़ लौटने के लिए बस अथवा टैक्सी से लौटने का ऑप्शन था। कुछ वजहों से हमारे पास सामान अधिक था, तो बस से यात्रा करना असुविधाजनक था, इसलिए टैक्सी हायर की। इस 110 किलोमीटर की दूरी के लिए टैक्सी रु 2500 से रु0 4000 में मिल रही थी।

तब हमने सर्च किया bla bla वेबसाईट/ एप में, जिस समय हमें लौटना था उसके आस-पास हमें, एक कार मिल रही थी। जिसमे प्रति सीट का किराया रु0 300/ दिख रहा था, हमने सभी चार सीटस बुक कर ली, जिससे यात्रा सुविधाजनक हो पाए।

जिनको जानकारी नहीं है इस वेबसाईट की – उनके लिए – bla bla एक कार pooling एप/ वेबसाईट है, इसमे कोई individual या टैक्सी चालक कहीं जा रहे हो, तो अपनी यात्रा की लागत कम करने के लिए, एप मे अपनी जर्नी लिस्ट कर देते है। और उसी दिशा मे किसी और को भी जाना हो तो कार ड्राइवर के द्वारा लिस्ट किया हुआ मूल्य अप्रूव कर बुक करवा सकते हैं, (ध्यान रखें advance मे कुछ भी पेमेंट न दें, अपनी यात्रा पूरी होने के बाद ही भुगतान करें)

कार/ टैक्सी किसी अन्य सवारी के साथ शेयर न करना चाहे तो – उपलब्धता के अनुसार सभी seats बुक कर आराम से अपनी मंजिल पर पँहुच सकते है। जो कि सामान्य टैक्सी बुक कराने की तुलना मे बहुत कम होता है।

सब चीज परफेक्ट और फूलप्रूफ तो होती नहीं, bla bla मे लिस्टेड कार हमेशा आपको तय कार्यक्रम के अनुसार उपलब्ध हो जाएगी, ऐसा भी नहीं है।

हम इस एप के माध्यम से बुकिंग कराने के बाद बताए गए पिक अप पॉइंट पर पँहुचे, और कुछ देर बाद सफेद रंग की स्विफ्ट Dzire कार पहुची, जो एक टैक्सी थी, किसी सवारी को लेकर चंडीगढ़ से शिमला ड्रॉप करने आई थी, और अब उसे वापस लौटना था, चुकि – टैक्सी ड्राइवर दोनों ओर का किराया, बुकिंग कराने वाले से पहले ही वसूल लेते है, तो उसके लिए वापसी मे लौटते हुए कम कीमत मे सवारी बैठा कर अतिरिक्त लाभ कमाने का मौका होता है।

टैक्सी के अलावा कई निजी वाहन स्वामी भी इस एप मे अपने वाहन के route को डेट और टाइम के साथ लिस्ट कर लेते है, जिससे उन्हे यात्रा मे हमसफर भी मिल जाते है, और यात्रा का व्यय भी कम हो जाता है।

हम टैक्सी मे बैठे कुछ ही मिनट हुए थे, तभी ड्राइवर का मोबाइल बजा – बातचीत से मालूम हुआ कि किसी और ने भी हमारी तरह इस एप के माध्यम से इसी टैक्सी मे अपनी बुकिंग कराई थी, ड्राइवर ने काल पर बहाना बनाते हुए दूसरे यात्री को कहाँ कि “वह रास्ते मे कहीं जाम पर फंसा है और समय पर नहीं पहुच पाएगा” हमें बुकिंग कराने वाले दूसरे यात्री के लिए बुरा लगा कि – उसे टैक्सी नहीं मिल पायी।

लेकिन ड्राइवर को इस सब से कोई सरोकार नहीं था, उसने अपनी ओर से सफाई देते बताया कि कई बार लोग बुकिंग कराने के बाद तय जगह पर तय समय पर नहीं पहुचते, तो वह दो मोबाईल से लिस्टिंग कर, दो अलग -2 बुकिंग ले लेता है। और जो पहले मिल जाए या जिससे अच्छी डील मिल जाए उसे अपने साथ ले जाता है, और और दूसरी बुकिंग को ऐसे ही छोड़ देता है।

इस तरह आप जब भी इस एप के माध्यम से बुकिंग कराएं, ड्राइवर से तय करवा लें कि वो लेने ही आएगा। और अगर फिर भी अंतिम समय मे न आए तो, किसी अन्य माध्यम से भी यात्रा के लिए भी तैयार रहें। #popcorntrip

एक समय था सैर सपाटा अमीरों के लिए ही था।

एक समय था सैर सपाटा अमीरों के ही शौक थे, और यह विलासिता मे आता था। बाकींलोग तो साल – दो साल मे अपने रिश्तेदारी में चले जाए तो वहीं घूमना माना जाता था। फिर महीनों तक उस घूमने के मित्रों – मोहल्ले मे चर्चे होते।

अभी बहुत समय नहीं बीता इस बात को। फिर लोगों की औसत आय बढ़ने के साथ – दूर दराज के स्थानों और दुनिया के प्रति जानकारी और वहाँ पहुँचने का आकर्षण भी बढ़ने लगा।

यात्राओं मे स्टिल केमेरे की भी भूमिका बड़ी, कहीं जाओं तो तस्वीरें भी खीच लो, कोडेक, फूजी जैसे कमेरे मे रील डालो और अपनी यात्राओं को छवियों के साथ अमर कर लो। तब लोग फुरसत से निकलते और एक या दो डेस्टिनेशन को देख कुछ दिन किसी होटल मे रूम लेकर रहते है लौट आते।

फिर डिजिटल केमेरे आए – लोग खुश थे – अब अच्छी क्वालिटी (तथाकथित) मिलने के साथ रील पर होने वाले पैसे बचेंगे, हालांकि – डिजिटल केमेरे कई गुना महेंगे थे। खैर आरंभिक/ एकमुश्त होने वाले खर्चे से अधिक मानव मनोविज्ञान को आपरैशनल/ रनिंग कोस्ट अखरती है। फिर वो कोई वाहन हो या डिवाइस। फिर मोबाईल मे भी केमेरे आने लगे।

फिर इंटरनेट के आने के बाद अन्य कई सेक्टर की तरह घूमने फिरने मे भी क्रांति हुई, तब मोबाईल सिर्फ बात करने, संदेश भेजने, टाइम देखने आदि का माध्यम ही नहीं रहा, बल्कि इंटरनेट उपयोग का भी एक अच्छा टूल बन गया।

साधारण मोबाईल के स्मार्टफोन बनने के बाद – जहां एक ओर सोशल मीडिया ने प्रवेश किया दूसरी ओर होटल/ पैकेज बुकिंग की तमाम साइट्स आने लगी – जिहोने सस्ते होटेल्स लिस्ट करने शुरू कर दिए, टैक्सी बुकिंग एप आने लगी और सोशल मीडिया पर लोगों ने अपने यात्रा की तस्वीरें अपलोड करनी शुरू कर दिए। जो दूसरे लोगों को भी घूमने के लिए प्रेरित करने करने लगी।

फिर अब आया video का दौर – तमाम साइट्स मे रील बनाना, ज्यादा से ज्यादा स्थानों को कवर करके -Vlog बनाना, अपलोड करना।

घूमने के तरीके और उद्देश्य मे भी परिवर्तन हो गया है – जो कुछ समय पहले फुरसत के समय का आनंद लेना होता था। अब घूमने के समय ज्यादातर लोगों को अपने लिए भी फुरसत नहीं होती, घूमा इसलिए जा रहा है कि – हमने कितनी ज्यादा से ज्यादा जगह कितने कम से कम समय मे देख ली, डेस्टिनेशन में बिताने से ज्यादा समय सड़कों से गुजरने में बीत रहा है।

हाँ अभी भी कई लोग है – जिन्हे घूमते हुए न अपनी सेल्फ़ी लेने की परवाह होती, न सोशल मीडिया पर अपनी यात्राओं की तस्वीर डालने की ख्वाहिश होती, किसी डेस्टिनेशन मे जाकर वहां की फिज़ाओं को महसूस करते हैं, जहां होते है बस वहीं रहते है – और बाकि सब भूल जाते हैं। #popcorntrip