Dharchula

पिथौरागढ़ से धारचूला की यात्रा

इस लेख में है –  पिथौरागढ़ से धारचूला की सड़क यात्रा का विवरण। धारचूला जहां पंचाचुली, आदि कैलाश और ओम पर्वत आदि यात्राओं के लिए मेडिकल जाँच होती है, और इनर लाइन पास बनता है। धारचूला से ही नेपाल विजिट भी किया जा सकता है, एक सेतु को पार कर।

देखिए अल्मोडा से पिथौरागढ़ का सफ़र

1,627 मीटर (5,338 फीट) की ऊंचाई पर स्थित पिथौरागढ़ से 940 मीटर (3084 फीट) ऊंचाई वाले धारचूला के लिए उतरने लगे। जैसे-जैसे हम आगे बड़े मौसम थोड़ा गर्म होने लगा, ऊंची पहाड़ियों से घिरी हुई घाटी नुमा स्थान की सड़कों के बीच से। पिथौरागढ़ से धारचूला तक यह यात्रा 92 किलोमीटर की थी, जिसे तय करने में सामान्यतः तीन से चार घंटों समय लगता है। 

पिथौरागढ़ शहर के केंद्र से लगभग 5-6 किलोमीटर बाद, बायीं ओर, एक सड़क थल होते हुए बागेश्वर और मुनस्यारी के लिए जाती मिली, हम दाहिनी ओर मुड़ गए जो हमें धारचूला के की और ले जाती थी।

आह, घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर यात्रा करने का आश्चर्य! यद्यपि पहाड़ी सड़कों में यात्रा थकान पैदा कर सकती है, लेकिन प्रकृति के बदलते दृश्य एकरसता से बोर नहीं होते देते।

जैसे ही हमने अपनी आरामदायक सीट की खिड़की की सीट से बाहर देखा, विचारों की एक लय हमारे दिमाग में नाचने लगी। प्रकृति के साथ रहने पर तृप्ति का भाव होता है, जैसे सब कुछ पास है, और प्रकृति से दूर होने पर भौतिक जीवन के जितना पास जायें और कितना कुछ भी हो लेकिन फिर भी दिखता है सिर्फ़ अभाव। 

पहाड़ी सड़कों में मार्ग घुमावदार तो होते हैं, लेकिन प्राकृतिक दृश्य हर कुछ किलोमीटर के बाद बदलते रहते है, और जिससे एकरसता या बोरियत नहीं होती,  प्राकृतिक दृश्यों के आकर्षण, सफ़र की थकावट को भी कम करते रहते है। 

हरे-भरे हरियाली के बीच से झांकते अनोखे पहाड़ी आवास, हमें उनकी दीवारों के भीतर रहने वाले जीवन और कहानियों की कल्पना करने के लिए प्रेरित करते हैं। 

अपने परिवेश की अलौकिक सुंदरता में खोए हुए, हमने पहाड़ियों के मध्य बनाने वाली आभासी आकृतियों की खोज करनी शुरू दी, जैसे कि प्रकृति स्वयं हमारी कल्पनाओं के साथ लुका-छिपी का एक आकर्षक खेल खेल रही हो। 

लेकिन जैसे ही हम इन मनमौजी सोच में डूबने लगे, एक आती हुई गाड़ी के तेज हॉर्न ने हमें हमारी ख़यालों से झकझोर दिया। चौंककर, हम वर्तमान में लौट आए, लेकिन फिर प्रकृति का नया रंग देखने को मिला जिसने हमारा ध्यान आकर्षित किया। प्रकृति, कितनी अद्भुत क्रिएटर है – जो नए मनोरम रूप दिखाने के साथ, मौसम और रंग बदल कर हर पल ऐसा दृश्यों का ऐसा संयोग प्रस्तुत करती है, जैसा पहले किसी ने न देखा हो, और शायद दोबारा भी नहीं देख पायेगा।

हमारी यात्रा हमें कनालीछीना क़स्बे तक ले आयी, पहाड़ियों के बीच ये एक खुला स्थान है, पिथौरागढ से लगभग 25 किलोमीटर दूर। यहां, व्यस्त बाजार और एक सुविधाजनक आवासीय क्षेत्र के बीच, यह छोटा खूबसूरत स्थान बहुत खुला होने के कारण यहाँ रहने के लिए भी सुविधाजनक है, यहाँ का आवासीय क्षेत्र देखकर ऐसा लगता है। कनालीछीना पिथौरगढ़ जनपद की एक तहसील भी है। कनाली छीना पिथौरागढ़ के बाद पिथौरागढ़ धारचूला रोड में सबसे बड़ी बाज़ार। 

आबादी क्षेत्र समाप्त होने के बाद कनालीछीना से 1 किलोमीटर बाद, बायीं और सड़क है देवलथल के लिए जो कि यहाँ से १६ किलोमीटर है। कुछ किलोमीटर सड़कों में चलने के बाद ओगला मार्केट ने जल्द ही अपने जीवंत माहौल से आकर्षित किया। 

मार्ग में है जौलजीबी, जो कि पिथौरागढ़धारचूला मार्ग का एक प्रमुख पड़ाव। सड़क से नीचे की और काली नदी और गोरी नदी का संगम, उस पार अपने पड़ोसी देश –  नेपाल का भू भाग, सुंदरता पूरे परिदृश्य में बिखरी हुई है। 

जौलजीबी की बाज़ार और टैक्सी स्टैंड। मार्केट के एक सिरे पर पोस्ट ऑफिस। मार्केट से कुछ आगे बढ़ने पर सड़क से नीचे दायी  ओर जौलजीबी  का राजकीय इंटर कॉलेज का गेट। 

जौलजीबी छोटा सा खूबसूरत एवं सुंदर क़स्बा, इस स्थान का सांस्कृतिक और व्यापारिक महत्व भी है, यहाँ काली और गोरी नदियों का संगम है। यहाँ हर वर्ष नवम्बर में भारत नेपाल के बीच बड़ा व्यापारिक मेला भी आयोजित होता है, जिसमे बड़ी संख्या में देश विदेश से लोग पहुँचते है।

इस रोड से आगे बढ़ते हुए, बलुवाकोट पहुँच गये। प्राकृतिक सौंदर्य की पृष्ठभूमि में यह हलचल भरा बाजार, यहाँ अस्पताल, पुलिस स्टेशन, स्कूल, डिग्री कॉलेज और बैंक जैसी सुविधाएँ है। सड़क के समानांतर नीचे की ओर काली नदी बहती है, और नदी के दूसरी और अपनी सुंदरता से नेपाल भी मन मोहता रहता है।  

पहाड़ों पर हम सड़क बना सकते है, लेकिन बारिश को कई बार यह आता, और ऊपर से कुछ मलबा या बोल्डर सड़क में आकर अवरोध के रूप में आ जाते है, और इस सड़क में मलवा आने की वजह से कुछ देर मार्ग अवरुद्ध रहा, रास्ता खोलने के लिए काम करते श्रमिकों और जेसीबी/ मैकिनिकल मशीनों के सहारे मार्ग को पुनः सुचारू कर दिया। धूल का ग़ुबार सड़क पर चलते काम की वजह से 

कुछ आगे जाने पर, फिर से सड़क में ट्रैफिक में ट्रैफ़िक रोका गया था, लेकिन यहाँ सड़क में अवरोध नहीं नयी सड़क का काम चल रहा था, बधाई हो, जिन्हें भी इससे लाभ मिले।

फिर मिला कालिका। और उसके बाद निंगालपानी।

धारचूला से लगभग 1 किलोमीटर पहले बायीं जाती सड़क – तवाघाट – लिपुलेख रोड, जिससे नारायण आश्रम, पंचाचुली, आदि

कैलाश, ओम पर्वत आदि स्थानों के लिए जा सकते है। लेकिन उससे पहले इनर लाइन परमिट होना ज़रूरी है, जिसे धारचूला से बनाया जा सकता है। वैसे यह ऑनलाइन भी बन जाता है, प्रक्रिया को जानने के साथ, इस ट्रिप में कितना खर्च होता है, किस समय यात्रा करनी होती है, क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए, क्या चुनौतियाँ आ सकती है, सहित आदि कैलाश की यात्रा करेंगे अगले भाग में।

हम बढ़ रहें है नेपाल मार्ग में, अपने गेस्ट हाउस में चेक इन करने। हमारी बुकिंग KMVN के धारचूला स्थित गेस्ट हाउस में थी, जो की नेपाल रोड में स्थित काली नदी के तट के समीप स्थित है। हम KMVN के आदि कैलाश यात्रा 16वे ग्रुप के यात्रियों में शामिल थे।

 

गेस्ट हाउस से नेपाल का भूभाग भी दिखता है, यहाँ से नेपाल का हिस्सा जो दार्चुला नाम से जाना जाता है, पुल पार कर पहुँचा जा सकता है, धारचूला और दार्चुला पर लेख फिर कभी। अभी चेक इन के बाद लंच और फिर मेडिकल और इनर लाइन पास के लिए प्रक्रिया होनी है। कैसे होती है, जानेंगे अगले भाग में। अब रोमांच और अध्यात्म के अनोखे अनुभव को हमारे साथ जानने के लिए रहिए तैयार। लेख पढ़ने और इस सीरीज का हिस्सा बने रहने के लिए धन्यवाद, अगर आपने पिछले दो भाग भी देखे है, तो कमेंट में बताइएगा।

धन्यवाद।

अल्मोडा से चितई व जागेश्वर मंदिर दर्शन करते हुए पिथौरागढ़ का यात्रा वृतांत

अल्मोडा उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक, ऐतिहासिक मायने से महत्वपूर्ण नगर और उत्तराखंड का सीमांत जनपद पिथौरागढ़ जो अपने विविध महत्वपूर्ण पर्यावरणीय संपन्नता समेटे हुए है। पिथौरागढ़ से कई उच्च हिमालयी क्षेत्रों और ग्लेशियर्स के ट्रैक्स किए जा सकते हैं, river sports के लिए अनुकूलता लिए नगर। इस लेख में है, इन दोनों नगरों की सड़क यात्रा की जानकारी।

पिछले लेख में, हल्द्वानी जो कि कुमाऊँ का प्रवेश द्वार के नाम से जाना जाता है, जहां से कई पहाड़ी क्षेत्रों जैसे अल्मोडा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, रानीखेत, मुक्तेश्वर, बिनसर सहित अन्य कई स्थानों के लिए मार्ग है, और अल्मोडा जो उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्मृति चिन्ह समेटे हुए है, पहुँचने का यात्रा वृतांत था, अब आगे।

अल्मोडा नगर के धारानीला स्टेशन से पिथौरागढ़ को नियमित जाने वाली बस और टैक्सी आदि मिलती है।

अल्मोड़ा के नाम से जुड़ी है बाल मिठाई, चाकलेट और सिंगौड़ी को अलमोड़ा की मुख्य बाज़ार के अलावा यहाँ से ख़रीद सकते है, इनको बनानें में मिल्क प्रॉडक्ट्स का उपयोग होता है, तो इनके बेस्ट टेस्ट के लिए इन्हें 2-3 दिन के अंदर कंज्यूम करना ठीक रहता है।

धारानौला में रात्रि विश्राम करना हो, यहाँ कुछ होटल भी मिल जाएँगे, यहाँ ख़ान पान के लिए भी कई रेस्टोरेंट है।

चलने फिरना पसंद करते हो, तो  धारानीला से पटाल बाज़ार तक 15 – 20 मिनट में चढाई में ट्रेक कर पहुँच सकते है। और पटाल बाज़ार –  अल्मोडा की मुख्य बाज़ार है, लगभग 2 किमी लंबी बाज़ार में टहलते – टहलते शॉपिंग का भी आनद ले सकते है और अल्मोड़ा की ऐतिहासिक भवनों को देखते हुए, कुमाऊँ के इतिहास को अपने सामने देख कर महसूस कर सकते हैं।

अल्मोड़ा से पिथौरागढ़ 114 किलोमीटर है। धारानौला का बाज़ार का क्षेत्र ख़त्म होने के तुरंत बाद एक तिराहा दिखता है – सिकुड़ा बैंड, यहाँ से यू टर्न लेती दाहिनी ओर को जाती सड़क से जलना, लमगड़ा और उससे आगे जा सकते हैं, और सीधे आगे जाती सड़क से पिथौरागढ़ की ओर, यहाँ से सड़क हल्की चढ़ाई लिए है। इसी सड़क में मिलता – एक सुंदर व्यू पॉइंट है – फ़लसिमा, जहां से देख सकते है – अल्मोडा का विहंगम दृश्य और दूर तक फैली घाटियाँ। फ़लसीमा बेंड को पार करने के बाद दिखता है एक कलात्मक भवन – जो जाना जाता है –  उदयशंकर नाट्य अकैडमी के नाम से।

इस रोड पर आगे चलते हुए NTD तिराहे – बाद सड़क से ऊपर, बायीं ओर है, अल्मोड़ा  का जू, यहाँ तेंदुए, मृग सहित वन्य जीव देखे जा सकती हैं।

अल्मोड़ा  नगर से लगभग 8 -9  किलोमीटर की दूरी पर स्थित है –  स्थानीय निवासियों के धार्मिक आस्था का पवित्र स्थल चितई, जो अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध गोलू देव को समर्पित है।

अलमोड़ा – पिथौरागढ़ रोड से लगा, मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार, मंदिर के बाहर सड़क के किनारे प्रसाद, पुष्प, घंटियाँ अन्य सामग्री ख़रीदी जा सकती है। चितई में जलपान के साथ ठहरने के लिए कुछ गेस्ट हाउस दिखते है।

चितई मदिर स्थित गोलू देवता न्याय के देवता के रूप में जाने जाते हैं, लोग यहाँ अपनी प्रार्थनापत्रोंचिठ्ठियों में लिख, यहाँ टाँगते हैं, जो बड़ी बड़ी संख्या में देखी जा सकती है, मान्यता है किपवित्र और सच्चे हृदय से लिखी गई प्रार्थनाएँ यहाँ अवश्य स्वीकार होती हैं, श्रदालु यहाँ घंटियाँ, चुनरी भी अर्पित करते हैं।

इस मंदिर के चारों और अनगिनत घंटियाँ लगी दिखती हैं। कई विशेष अवसरों पर भक्तों द्वारा यहाँ भंडारा भी आयोजित कराया जाता है। मंदिर से कुछ मीटर आगे जाकरवाहनों के लिए बड़ा पार्किंग स्थल है। 

चितई से आगे सड़क ढलान लिए है, चितई से आगे 6 किमी बाद हैं –  छोटा सुंदर क़स्बा पेटशाल, पेटशाल से लगभग 1 किलोमीटर पर लखुउडयार शैलाश्रय prehistoric cave। यहाँ गुफानुमा चट्टान में की गई चित्रकारी आदि काल के मानवों द्वारा की गई है। लखुउडयार पर बना डेडिकेटेड वीडियो YouTube.com/PopcornTrip में देख सकते हैं।

अलमोड़ा – पिथौरागढ़ मार्ग में अगला स्थान मिलता है  – बाड़ेछीना। समुद्र तल से 1,415 मीटर की उचाई पर स्थित यह आस पास के गाँव के लिए बाज़ार हैं। बाड़ेछीना में बुनियादी ज़रूरत का सभी समान उपलब्ध हो जाता है,  यह एक उपजाऊ क्षेत्र है यहाँ ग्रामीणों द्वारा खेती होते देखी जा सकती है।

बाड़ेछीना के बाद मिलने वाले एक तिराहे से बायीं से धौलछीना, शेराघाट, बेरीनाग, चौकोड़ी, मुन्स्यारी आदि स्थानों को जा सकते है, और सीधी जाती सड़क है पिथौरागढ़ के लिए।

बाड़ेछीना से 11 किलोमीटर की दूरी पर पनुवानौला, यह घनी आबादी वाला क्षेत्र हैं, यहाँ काफी दुकानें, रैस्टौरेंटस आदि हैं।

पनुवानौला से लगभग दो किलोमीटर आगे हैआरतोला। यहाँ तिराहे से बायीं और जाती सड़क से 3 किलोमीटर की दूरी पर है भगवान शिव को समर्पित प्रांचीन जागेश्वर धाम और सीधा जाती सड़क पिथौरागढ़ के लिए है।

जागेश्वर मंदिर से समीप एक म्यूजियम भी है, जहां मंदिर से जुड़ी मूर्तियाँ और मंदिर से जुड़े विभिन्न प्रतीक रखे गये हैं।

जागेश्वर कई छोटे बड़े मंदिरों, जो कि  नौवीं से ग्याहरहवीं सदी के बीच, कत्यूरी शासन काल में निर्माण हुआ था का समूह है। इनमें से कुछ हैं महामृत्युंजय मंदिर, श्री जागेश्वर ज्योतिर्लिंग। यहाँ मंदिरों में काफी बारीक, उत्कृष्ट और आकर्षक नक्काशी की गई है। ये मंदिर प्रागण में एक ताल, जिसमें ब्रहम्मकमल के फूल दिखते हैं।

 

जागेश्वर मंदिर समूह के साथ ही यहाँ जागेश्वर मंदिर से समीप ही कुबेर देवता और चण्डिका देवी को समर्पित मंदिर भी स्थित हैं।  जागेश्वर आने वाले श्रद्धालु यहां भी अवश्य आते हैं। कुबेर भगवान धन और संपदा के प्रदानकर्ता माने गए हैं।

जागेश्वर मंदिर में कुछ समय व्यतीत कर, लंच जागेश्वर के कुमाऊँ मण्डल विकास निगम के गेस्ट हाउस में लिया।  आदि कैलाश यात्रा की यह यात्रा हम KMVN के १६ वे ग्रुप के साथ कर रहे है,  वापस लौटे अपना सफ़र जारी रखने के लिए। और मार्ग में फिर वही दण्डेश्वर मंदिर जिसे हमने आते समय भी देखा था। श्रद्धालु यहाँ भी रुक इस मंदिर के दर्शन करते हैं।

जागेश्वर मंदिर के दर्शन कर, उसी मार्ग से ३ किलोमीटर वापस आरतोला लौट अलमोड़ा पिथौरागढ़ मार्ग में फिर से अपना सफ़र जारी रखा। यहीं से एक सड़क के बायीं ओर झाकरसैम मंदिर, इस पर बना वीडियो भी PopcornTrip में देख सकते है।

आरतोला  से ४-५ किलोमीटर पर स्थित ये छोटा सा गाँव हैं गरुड़ाबांज। यहाँ सड़क के बाँज और अन्य चौड़ी पत्तियों वाले वृक्षों इस स्थान को अब तक के सफ़र में दिखने वाले वन क्षेत्रों से अलग बनाते हैं।

मार्ग में आने वाले कुछ स्टेशन है ध्याड़ी, बसौलीख़ान, पनार आदि। पनार में रामगंगा नामक नदी बहती है। पनार – पिथौरागढ़ मार्ग में पिथौरागढ़ से लगभग १३ किलोमीटर पूर्व गुरना माता का मंदिर है। यहाँ इस मार्ग से आने जाने वाले वाहन यहाँ माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने गंतव्य की और बड़ते हैं।

पिथौरागढ़ उत्तराखण्ड का सबसे लंबा अंतर्रास्त्रीय सीमा वाला ज़िला है, जिसकी सीमाएँ नेपाल और तिब्बत जो अब चीन का हिस्सा है, से लगी है।

देखें इस पर बना वीडियो 

आपको यह यात्रा सीरीज कैसी लग रही है, कमेंट करके बताइएगा।

Bageshwar

Situated at an elevation of 1004 meters above sea level, Bageshwar is a city known for its beautiful convergence of Saryu and Gomati rivers. The city is adorned with numerous temples dedicated to various Gods and Goddesses, which are located in close proximity. Bageshwar is surrounded by majestic mountains like Bhileshwar and Nileshwar on the eastern and western sides, while Suraj Kund and Agni Kund mark the northern and southern boundaries.

Located at a distance of 470 km from New Delhi and 332 km from the State Capital Dehradun, Bageshwar is famous for its picturesque beauty, glaciers, rivers, and temples. It serves as the administrative headquarters of Bageshwar district and was once a prominent market for trade between Tibet and Kumaun, frequented by Bhotia traders who bartered Tibetan wares for local produce.

Bageshwar holds significant religious, historic, and political importance. It is mentioned in various puranas as being associated with Lord Shiva. The annual Uttarayani fair, which was once the largest fair in the Kumaon division and visited by around 15,000 people in the first half of the twentieth century, became the epicenter of the Coolie Begar Movement in January 1921.

According to the Shiva Purana’s Manaskhand, Bagnath Temple and the surrounding city were built by Chandeesh, a servant of Lord Shiva. Another Hindu legend states that Sage Markandeya worshiped Lord Shiva in Bageshwar, and Lord Shiva blessed him by appearing in the form of a tiger.

Some of the popular tourist attractions in Bageshwar include:

  1. Bagnath Temple: This ancient temple is dedicated to Lord Shiva and is located on the banks of the Gomati river. It is believed to be one of the 12 Jyotirlingas in Hindu mythology and is a prominent pilgrimage site for devotees of Lord Shiva.
  2. Baijnath Temple: This temple is located about 26 kilometers from Bageshwar and is known for its intricate architecture and historical significance. It is dedicated to Lord Shiva and is believed to be built during the 12th century.
  3. Kausani: Located about 38 kilometers from Bageshwar, Kausani is a picturesque hill station known for its panoramic views of the Himalayan peaks including Nanda Devi, Trishul, and Panchachuli. It is also famous for its tea gardens and is often referred to as the “Switzerland of India”.
  4. Pindari Glacier: This popular trekking destination is located about 55 kilometers from Bageshwar and is known for its breathtaking views of snow-capped peaks, glaciers, and alpine meadows. It is a challenging trek that takes you through pristine Himalayan wilderness and is a must-visit for adventure enthusiasts.
  5. Chandika Temple: Located about 18 kilometers from Bageshwar, this ancient temple is dedicated to Goddess Chandika, who is believed to be an incarnation of Goddess Durga. It is a revered place of worship and is known for its tranquil surroundings and religious significance.
  6. Gauri Udiyar: This sacred spot is located on the banks of the Saryu river and is believed to be the place where Goddess Parvati performed penance to win the heart of Lord Shiva. It is a popular spot for devotees to offer prayers and take a dip in the holy river.

Apart from these, Bageshwar also offers opportunities for camping, trekking, and exploring the natural beauty of the region. The local culture and traditions of Bageshwar, with its fairs, festivals, and handicrafts, are also worth experiencing for a complete cultural immersion.

Bageshwar, a serene destination in Uttarakhand, is well connected by various modes of transportation. Here are some ways to reach Bageshwar:

By Air: The nearest airport to Bageshwar is Pantnagar Airport, approximately 183 kilometers away. Regular flights connect Pantnagar Airport to major cities in India. From Pantnagar Airport, one can hire a taxi or take a bus to reach Bageshwar.

By Train: The nearest railway station to Bageshwar is Kathgodam Railway Station, approximately 166 kilometers away. Kathgodam is well connected to major cities in India by regular train services. From Kathgodam, one can hire a taxi or take a bus to reach Bageshwar.

By Road: Bageshwar is well connected by road and can be reached by buses, taxis, or private vehicles.

  • From Delhi: Bageshwar is approximately 470 kilometers away from Delhi. One can take NH9 from Delhi to Haldwani, and then follow NH109 and NH309A to Bageshwar.
  • From Dehradun: Bageshwar is approximately 332 kilometers away from Dehradun. One can take NH7 from Dehradun to Haridwar, and then follow NH34 and NH309A to Bageshwar.
  • From Kathgodam: Bageshwar is approximately 166 kilometers away from Kathgodam. One can take NH109 from Kathgodam to Bageshwar.

It is advisable to check road conditions and weather before embarking on the journey, especially during monsoon or winter months, as the roads in hilly areas of Uttarakhand can be challenging. Hiring a local taxi or using public transport is a convenient option for reaching Bageshwar and exploring the nearby attractions.

 

Bhimtal

The Bhimeshwara Mahadev Temple, an ancient temple mentioned by Atkinson, is located on the banks of Bhimtal. According to legend, it was built by Bhima during the exile period of the Pandavas. The temple was later renovated by Baz Bahadur of the Chand Dynasty in the 17th century. Bhimtal is older than Nainital city and was once part of the ancient silk route.

The Bhimtal Lake, with an island in its midst located 91 meters from the shore, is known for its masonry dam built in 1883, which serves as a storage facility. It is claimed to be the largest lake in the Kumaon region and is a major source of drinking water supply. The lake also supports aquaculture with various fish species. Situated at an elevation of 1,375 meters, the lake has a catchment area of 17.12 square kilometers, characterized by dense forest cover consisting of Chir Pine, Ban Oak, and mixed deciduous forests. A peripheral road along the lake provides scenic views of the fish life in the lake, while the banks of the lake have steep shingle-covered lower elevations and bushes and grass at higher elevations.

The Bhimtal Lake is larger than the Nainital Lake and attracts thousands of tourists throughout the year who come to enjoy its serene and pristine beauty. Boating, both traditional and modern paddle-boats, is a popular activity on the lake, offering a memorable experience. The surrounding pine forests with their gentle balmy aroma invite visitors to explore the pristine nature, with brooks, rocks, villages, and friendly village folk to encounter.

Bhimtal is a perfect retreat from the hustle and bustle of city life, and many enlightened souls from all over India have chosen Bhimtal and its surroundings as their post-retirement home in recent years. The town has a well-developed market where visitors can find everything they need for a relaxed holiday, including hotels, resorts, eateries, and stores selling local produce such as rhododendron juice and organic Himalayan products.

 

Bhimtal is a popular tourist destination in the Kumaon region of Uttarakhand, India, and can be reached through various modes of transportation. Here are some ways to reach Bhimtal:

By Air: The nearest airport to Bhimtal is Pantnagar Airport, which is approximately 55 kilometers away. From Pantnagar Airport, one can hire a taxi or take a bus to reach Bhimtal. However, Pantnagar Airport has limited flight connectivity, and the nearest major airport with better connectivity is Indira Gandhi International Airport in Delhi, which is about 300 kilometers away from Bhimtal.

By Train: The nearest railway station to Bhimtal is Kathgodam Railway Station, which is approximately 22 kilometers away. Kathgodam Railway Station is well-connected to major cities in India, and from there, one can hire a taxi or take a bus to reach Bhimtal.

By Road: Bhimtal is well-connected by road to major cities in Uttarakhand and nearby states. One can take a bus, hire a taxi, or drive their own vehicle to reach Bhimtal. The nearest major city is Nainital, which is about 22 kilometers away from Bhimtal, and other nearby cities include Kathgodam, Haldwani, and Ranikhet.

 

दुनागिरी मंदिर, पांडुखोली और कुमाऊँ की सबसे ऊँची चोटी भतकोट

इस लेख में है दुनागिरि, पाण्डुखोली और कुमाऊँ की सबसे ऊँची non हिमालयन पहाड़ी भतकोट से जुडी जानकारी।

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में – द्वाराहाट से लगभग 14 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है दुनागिरि मंदिर। मंदिर के लिये सड़क से लगभग 1 किलोमीटर का पैदल दूरी तय करके पंहुचा जा सकता है। सड़क के किनारे वाहनों की पार्किंग, कुछ रेस्टोरेंट, दैनिक आवश्यकताओं से जुड़े सामान से सम्बंधित दुकानो के साथ साथ प्रसाद इत्यादि के प्रतिष्ठान आप को सड़क से लगे हुए स्थित हैं।

यहाँ रानीखेत से द्वाराहाट होते हुए पहुँचा जा सकता है। इस स्थान से आगे 5 किलोमीटर की दूरी पर कुकुछीना नामक स्थान है और कुकुछीना से लगभग 4 किलोमीटर का ट्रेक करके सुप्रसिद्धि पाण्डुखोली आश्रम पंहुचा जा सकता जहाँ स्वर्गीय बाबा बलवंतगिरि जी ने एक आश्रम की स्थापना की थी।पाण्डुखोली – महावतार बाबा और लाहिड़ी महाशय जैसे उच्च आध्यात्मिक संतो की तपस्थली रही है । इसके बारे में विस्तृत जानकारी इस लेख में आगे है।

दुनागिरि मंदिर – उत्तराखंड और कुमाऊँ के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है – दुनागिरि मंदिर के के लिए सीढ़ियों से चढ़कर उप्पर जाना होता है और सीढ़ियों जहाँ शुरू होती हैं – वही प्रवेश द्वार से लगा हुआ हनुमान जी का मंदिर।

दुनागिरि मंदिर के दर्शन हेतु आने वाले श्रद्धालु सीढ़ियां चढ़ कर दुनागिरि मंदिर तक पहुंचते हैं।मंदिर तक ले जाने वाला मार्ग बहुत सुन्दर हैं, पक्की सीढिया, छोटे -२ स्टेप्स, जिसमे लगभग हर उम्र के लोग चल सकें, मार्ग के दोनों ओर दीवार और दीवार के उप्पर लोहे की रैलिंग लगी हैं, जिससे वन्य प्राणी और मनुष्य एक – दूसरे की सीमा को न लांघ सके। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 365 सीढ़ियां चढ़नी होती है | पूरा रास्ता टीन की छत से ढका हुआ है, जिससे श्रद्धालुओं का धुप और बारिश से बचाव होता है ।

मार्ग में कुछ कुछ दुरी पर आराम करने के लिए कुछ बेंचेस लगी हुई हैं। पूरे मार्ग में हजारों घंटे लगे हुए है, जो दिखने में लगभग एक जैसे है। मां दुनागिरि के मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 800 मीटर की दुरी पैदल चल के तय करनी होती हैं। लगभग दो तिहाई रास्ता तय करने के बाद, भंडारा स्थल मिलता है, जहा दूनागिरी मंदिर ट्रस्ट द्वारा प्रतिदिन भण्डारे का आयोजन किया जाता है। सुबह 9 बजे से लेकर दोपहर 3 बजे तक। जिसमें यहाँ आने वाले श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं।
दूनागिरी मंदिर रखरखाव का कार्य ‘आदि शाक्ति मां दूनागिरी मंदिर ट्रस्ट’ द्वारा किया जाता है।
प्रसादा आदि ग्रहण करने के बाद सभी श्रद्धालु अपने बर्तन, स्वंय धोते हैं एवं डोनेशन बॉक्स में अपनी श्रद्धानुसार भेट चढ़ाते है – जिससे भंडारे का कार्यक्रम अनवरत चलता रहता है।

इस जगह पर भी प्रसाद – पुष्प खरीदने हेतु कई दुकाने हैं। मंदिर से ठीक नीचे एक ओर गेट हैं – श्रद्धालओं की सुविधा के लिए यहाँ से मंदिर दर्शन के लिए जाने वाले और दर्शन कर वापस लौट के आने वालों के लिए दो अलग मार्ग बने हैं। देवी के मंदिर के पहले भगवान हनुमान, श्री गणेश व भैरव जी के मंदिर है। बायीं और लगभग 50 फ़ीट ऊंचा झूला जिसे पार्वती झूला के नाम से जाना जाता है।

मुख्य मदिर के निकट और मंदिर से पहले – बायीं और हैं गोलू देवता का मंदिर।
यहीं से दायी ओर – और भी मदिर है, और उप्पर सामने है मुख्य मंदिर। मुख्य मंदिर से नीचे मार्ग के दोनों और माँ की सवारी शेर।

अब जानते हैं मदिर से जुड़े कुछ तथ्यों को – दूनागिरी मुख्य मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। प्राकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिण्डियां माता भगवती के रूप में पूजी जाती हैं। दूनागिरी मंदिर में अखंड ज्योति का जलना इस मंदिर की एक विशेषता है।

दूनागिरी माता का वैष्णवी रूप में होने से इस स्थान में किसी भी प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती है। यहाँ तक की मंदिर में भेट स्वरुप अर्पित किया गया नारियल भी मंदिर परिसर में नहीं फोड़ा जाता है।

पुराणों, उपनिषदों और इतिहासविदों ने दूनागिरि की पहचान माया-महेश्वर व दुर्गा कालिका के रूप में की है। द्वाराहाट में स्थापित इस मंदिर में वैसे तो पूरे वर्ष भक्तों की कतार लगी रहती है, मगर नवरात्र में यहां मां दुर्गा के भक्त दूर-दराज से बड़ी संख्या में आशीर्वाद लेने आते हैं।

इतिहास/ मान्यताएं
इस स्थल के बारे में एक प्रचलित कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब लक्ष्मण को मेघनाद के द्वारा शक्ति लगी थी, तब सुशेन वेद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था।हनुमान जी आकाश मार्ग से पूरा द्रोणाचंल पर्वत उठा कर ले जा रहे तो इस स्थान पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरी का मंदिर का निर्माण कराया गया।
एक अन्य मान्यता के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य ने इस पर्वत पर तपस्या की थी, जिस कारण उन्हीं के नाम पर इसका नाम द्रोणागिरी पड़ा और बाद में स्थानीय बोली के अनुसार दूनागिरी हो गया।

एक अन्य जानकारी के अनुसार, कत्यूरी शासक सुधारदेव ने सन 1318 ईसवी में मन्दिर का पुनर्निर्माण कर यहाँ माँ दुर्गा की मूर्ति स्थापित की। यहाँ स्थित शिव व पार्वती की मूर्तियां उसी समय से यहाँ प्रतिस्थापित है।

दूनागिरि माता का भव्य मंदिर बांज, देवदार, अकेसिया और सुरई समेत विभिन्न प्रजाति के पेड़ों के झुरमुटों के मध्य स्थित है, जिससे यहां आकर मन को शांति की अनुभूति होती है। इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की जीवनदायिनी जड़ी, बूटियां भी मिलती हैं |

दूनागिरी मंदिर के बारे में यह भी माना जाता है कि यहाँ जो भी महिला अखंड दीपक जलाकर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है, उसे देवी वैष्णवी, संतान का सुख प्रदान करती है। यहाँ से हिमालय की विशाल पर्वत शृंखला को यहाँ से देखा जा सकता है।

यहाँ कैसे पहुँचे!
द्वाराहाट और दुनागिरि पहुंचने के लिये निकटतम हवाई अड्डा 164 किलोमीटर दूर पंतनगर में है। निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम 130 किलोमीटर की दूरी हैं, जहाँ से बस अथवा टैक्सी द्वारा यहाँ पंहुचा जा सकता हैं।
एक हवाई अड्डा चौखुटिया जो कि यहाँ से मात्र 25-30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित में प्रस्तावित हैं।

दुनागिरि से 14 किलोमीटर दूर द्वाराहाट और रानीखेत में रात्रि विश्राम लिए कई होटल्स उपलब्ध हैं, जिनकी जानकारी इंटरनेट में सर्च कर ली जा सकती हैं।

इस लेख के आरम्भ में हमने जिक्र किया था – दुनागिरि के निकट ही स्थित है प्रसिद्द पाण्डुखोली आश्रम का, जहाँ लगभग ४ किलोमीटर का ट्रेक करके पंहुचा जा सकता है, पाण्डुखोली का शाब्दिक अर्थ है ‘पांडू’ जो पांडव और ‘खोली’ का आशय हैं – आश्रय स्थल अथवा घर, अर्थात पांडवो का ‘आश्रय’।

पाण्डुखोली जाने का रमणीय मार्ग – बाज, बुरांश आदि के वृक्षों से घिरा है. कहते हैं पांडवो ने यहाँ अज्ञात वास के दौरान अपना कुछ समय व्यतीत किया था। पाण्डुखोली आश्रम से लगा सुन्दर बुग्यालनुमा घास का मैदान, इसे भीम गद्दा नाम से जाना है, आश्रम के प्रवेश द्वार, से प्रवेश करते ही मन शांति और आध्यात्मिक वातावरण से प्रफुल्लित हो उठता है, आश्रम में रात्रि विश्राम के लिए आपको आश्रम के नियम आदि का पालन करना होता है, किसी प्रकार के नशे आदि का यहाँ कड़ा प्रतिबन्ध है।

स्वामी योगानंद महाराज ने अपनी आत्मकथा “ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ योगी” में बताया है कि उनके गुरु श्री युक्तेश्वर गिरि महाराज के गुरु श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय जी ने यहीं अपने गुरु महावतार बाबा जी से क्रिया योग की दीक्षा ली थी।

कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास पांडवखोली के जंगलों में व्यतीत किये। यही नहीं पांडवों की तलाश में कौरव सेना भी पहुंची इस लिए इसे कौरवछीना भी कहा जाता था। लेकिन अब कुकुछीना के नाम से जाना जाता है।
माना जाता हैं – हमारे युग के सर्वकालिक महान गुरु – महावतार बाबा बीते पांच हजार साल से भी अधिक समय से यहां साधनारत हैं, उन्होंने दुनागिरि मंदिर में भी ध्यान किया था, उनका ध्यान स्थल दुनागिरि मंदिर भी देखा जा सकता हैं।

लाहिड़ी महाशय उच्च कोटि के साधक थे, पांडुखोली पहुंच गए, जहां महावतार बाबा ने उन्हें क्रिया योग की दीक्षा दी थी। लाहड़ी महाशय का रानीखेत और वहां से पाण्डुखोली पहुंचने और महावतार बाबा से साक्षात्कार का प्रसंग बेहद दिलचस्प हैं, जिसे आप ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ ए योगी जिसका हिंदी रूपांतरण – ‘योगी कथामृत’ में पढ़ सकते हैं, इन पुस्तकों का लिंक नीचे दिए हैं

योगी कथामृत (Hindi) : https://amzn.to/2Q0M8nz
Autobiography of a Yogi (English) : https://amzn.to/2Dogy1J 

इस क्षेत्र की पहाड़ियों में अनेको – अनदेखी गुफाएं हैं, संतो को मनुष्यों की आवाजाही से, दूर शांत जगह ध्यान और समाधी के लिए पसंद होती हैं, यहाँ ‘भीम गद्दा कहे जाने वाले मैदान पर पर पैर मारने पर – खोखले बर्तन की भांति ध्वनि महसूस की जा सकती हैं। यह जगह प्रसिद्ध है क्योंकि इस पहाड़ी में महामुनी बाबाजी महात्मा बलवंत गिरि जी महाराज की गुफा है। प्रत्येक दिसंबर माह में बाबा की पुण्यतिथि पर विशाल भंडारा होता है।

इस स्थान से आस पास की जगहों के आनेक लुभावने दृश्य देखे जा सकते हैं |

यही से कुमाऊँ की सबसे ऊँची non- himalaya चोटि भरतकोट जिसकी समुद्र तल से उचाई लगभग दस हजार फ़ीट है, स्थित है। ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग में श्रीराम के अनुज भरत ने भी इस क्षेत्र में (भरतकोट या भटकोट) तपस्या की थी। कहा जाता है कि श्री राम के वनवाश के समय महात्मा भरत ने इसी स्थान पर तपस्या कि थी। रामायण के युद्ध के समय जब लक्ष्मण मेघनाथ के शक्ति प्रहार से मूर्छित हो गए थे तब वीरवार हनुमान उनके प्राणों कि रक्षा के लिए संजीवनी बुटी लेने हिमालय पर्वत गए।

जब वो वापिस रहे थे तो भरत को लगा के कोई राक्षस आक्रमण के लिए आकाश मार्ग से रहा है। उन्होंने ये अनुमान लगा कर हनुमान जी पर बाण चला दिया। महावीर हनुमान मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़े और मूर्छित अवस्था में भी “राम” नाम का स्मरण करने लगे। यह देख कर भरत जी को बहुत ग्लानि हुयी कि उन्होंने एक राम भक्त पर बाण चला दिया। भरत ने हनुमान जी से क्षमा याचना कि और उनसे पूरा वृतांत सुना।

गगास नदी जो सोमेश्वर में बहती है, उसका उद्गम स्थल भी यही है। ट्रैकिंग के शौक रखने वाले पर्यटक यहाँ भी विजिट करते हैं. जिसके लिए उन्हें अपने साथ जरुरी सामान – जिसमे हैं – फ़ूड, टेंट्स, गरम कपडे, रेनकोट, स्लीपिंग बैग मुख्य है। ट्रेक में जाने से जाने से पूर्व क्या तैयारियाँ करें और क्या सामान ले जायें के जानकारी देता वीडियो देंखे

भारतकोट या भटकोट के ट्रेक के लिए स्थानीय गाइड, अनुभवी अथवा प्रशिक्षित ट्रेकर के साथ ही जाना सही रहता हैं।

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कटारमल सूर्य मंदिर, अल्मोड़ा

कटारमल सूर्य मंदिर, भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से लगभग 16 किलोमीटर की दुरी अल्मोड़ा रानीखेत मार्ग पर एक ऊँची पहाड़ी पर बसे गाँव अधेली सुनार में स्थित है।

कटारमल सूर्य मंदिर कुमांऊॅं के विशालतम ऊँचे मन्दिरों में से एक है।  पूरब की ओर रुख वाला यह मंदिर कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा और सबसे ऊंचा मंदिर है।

हिन्दू धर्म की यही खासियत हैं कि इसमे प्रकृति के हर रूप को पूजा जाता है, चाहे वो जल हो, अग्नि हो, वायु हो, अन्न हो, भूमि हो या फिर सूर्य, तो इन्ही में से एक सूर्य को समर्पित विभिन्न मंदिर भारत के कई राज्यों में हैं – जैसे उड़ीसा स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर के अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात, कश्मीर, बिहार, असम, तमिलनाडु, राजस्थान आदि सहित उत्तराखंड राज्य स्थित कटारमल सूर्य मंदिर प्रमुख हैं।

आज आप जानेंगे, उत्तराखंड स्थित इस कटारमल सूर्य मंदिर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी। नमस्कार आपका स्वागत है पॉपकॉर्न ट्रिप में।

इस मंदिर का सामने वाला हिस्सा पूर्व की ओर है। इसका निर्माण इस प्रकार करवाया गया है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर में रखे शिवलिंग पर पड़ती है।

अल्मोड़ा रानीखेत मार्ग में कोसी से लगभग ४ किलोमीटर की दुरी पर कटारमल सूर्य मंदिर के लिए ३ किलोमीटर का एक अलग मार्ग जाता है। एक और हलकी पहाड़ी और नीचे की और रेलिंग लगी है। इस मार्ग से चलते हुए आपको कटारमल गाँव और आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों जैसे कोसी, हवालबाग आदि गाँव का दृश्य दिखाई देता है। साथ ही मार्ग में आपको पारंपरिक शैली से बने हुए पहाड़ी घर भी दिखते हैं, और ऐसे ही खुबसूरत दृश्यों को देखते हुए आप कब मंदिर के समीप पहुच जाते हैं, पता ही नहीं चलता।

लगभग 9वी से 11वी शताब्दी के मध्य, कत्युरी शासन काल में बने इस सूर्य मंदिर के बारे में मान्यता है कि, इसका निर्माण एक रात में कराया गया था। कत्युरी शासक कटारमल देव द्वारा इस मंदिर का निर्माण हुआ। इस मंदिर का मुख्य भवन का शिखर खंडित है, जिसके पीछे ये कारण बताया जाटा है कि मंदिर निर्माण के अंतिम चरण में सूर्योदय होने लगा था, जिससे मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया, और ये हिस्सा अधुरा ही रह गया, जिसे आज भी देखा जा सकता है। हालाँकि एक अन्य मान्यता के अनुसार परवर्ती काल में रखरखाव आदि के अभाव में मुख्य मन्दिर के बुर्ज का कुछ भाग ढह गया।

देखिए video

How to Reach कैसे पहुचे!

कटारमल मंदिर के नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम यहाँ से लगभग 105 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर 135 किलोमीटर की दुरी पर है। जिला मुख्यालय अल्मोड़ा से लगभग 16 किलोमीटर, रानीखेत से 30 किलोमीटर, कौसानी से 42 किलोमीटर है।

कटारमल मंदिर के सबसे नजदीक का क़स्बा मंदिर से लगभग 4.5 किलोमीटर की दुरी पर कोसी है, और पैदल मार्ग द्वारा लगभग २ किलोमीटर की दुरी पर है।

Where to stay रात्रि विश्राम के लिए नजदीक स्थल कोसी में रात्रि विश्राम के लिये आपको होटल मिल जायेंगे, जिसकी दुरी यहाँ से लगभग 5 किलोमीटर है। इसके अतिरिक्त अल्मोड़ा, रानीखेत, कौसानी आदि में भी आप ठहर सकते हैं।

Nearby attractions – आस पास के पर्यटक आकर्षण के केंद्र चितई गोलू देवता मंदिर, कसार देवी मंदिर, जागेश्वर धाम, रानीखेत, कौसानी (इन स्थानों पर बने वीडियो भी आप youtube.com/popcornTrip पर देख सकते हैं।), कोसी नदी आदि हैं। यहाँ आप कोसी से ट्रैकिंग कर के भी पँहुच सकते हैं और उसी दिन वापसी भी कर सकते हैं।

 

खटीमा : भारत और नेपाल की सीमा के निकट बसा उत्तराखंड का नगर

उत्तराखण्ड स्थित खटीमा, कुमाऊँ मण्डल के उधमसिंहनगर जनपद में स्थित एक नगर है। समुद्र तल से 653 फीट (199 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित, यह स्थान भारत-नेपाल सीमा के निकट है। खटीमा नगर, राज्य के अन्य भागों से भली भांति, सड़क और रेलमार्गों से जुड़ा है। यह दिल्ली से 8 घण्टे, नैनीताल से 4 घंटा एवं हल्द्वानी से 3 घंटे की दूरी पर स्थित है।

खटीमा उत्तराखंड निर्माण की मांग करते हुए 1994 में शहीद हुए आंदोलनकारियों की भूमि के रूप मे भी जाना जाता है। यहाँ की बाज़ार मे सीमावर्ती राज्य नेपाल के भी लोग खरीददारी करने आते है।

खटीमा क्षेत्र में पर्यटको को आकर्षित और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने उत्तराखंड के पहले मगरमच्छों के पार्क का लोकार्पण किया। यहाँ 150 से अधिक क्रोकोडाइल हैं। 01 दिसम्बर 2021 से यहाँ crocodile पार्क आरंभ हुआ। यहाँ आगुन्तुक जान सकेंगे कि मगरमच्छ कैसे रहते हैं, कैसे तैरते हैं, कैसे खाते हैं, कैसे सोते हैं, कैसे अपने भोजन के लिए शिकार करते हैं।

खटीमा कैसे पहुंचे!
खटीमा से निकटतम हवाईअड्डा पंतनगर है। खटीमा के आसपास, पर्यटकों के भ्रमण के लिए अनेक स्थानों में से कुछ – नानकमत्ता साहिब, पूर्णागिरि मंदिर और अंतर्राष्ट्रीय नेपाल सीमा से सटा हुआ बनबसा और नेपाल स्थित महेन्द्रनगर हैं (इन स्थानों की जानकारी देते वीडियो आप Popcorn Trip Youtube चैनल में देख सकते हैं)। खटीमा से उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून व अन्य प्रमुख नगर जैसे हरिद्वार, दिल्ली आदि के लिए टूरिस्ट बसों का भी संचालन भी होता। देखिए खटीमा की जानकारी देता विडीयो

गंगोलीहाट माँ हाट कालिका मंदिर : नवरात्र विशेष

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में गंगोलीहाट में माँ कालिका का मंदिर, देवदार के खूबसूरत वृक्षों से घिरा है। इस सुविख्यात मंदिर में स्थानीय लोगो के अलावा दूर- दूर से शृदालू  माँ काली के दर्शन को आते हैं, और मनोकामनाओं की सिद्धि के साथ यहाँ आध्यात्मिक शांति पाते हैं। 

नवरात्रियों में माँ हाट कालिका के मंदिर में श्रद्धालुओं का बड़ी संख्या में आगमन, मंदिर के दिव्य वातावरण को और भी उल्लसित करता है और आगंतुकों को ऊर्जा से सरोबोर कर देता है।

माँ हाट कालिका मंदिर-, उत्तराखंड मे पिथोरगढ़ जिले मे, जिला मुख्यालय से 57 किलोमीटर दूर  गंगोलीहाट नाम के खूबसूरत पहाड़ी नगर मे हैं। गंगोलिहाट की बाज़ार बहुत बड़ी नहीं हैं, यहाँ थोड़ी सी दूरी मे बस स्टॉप, टॅक्सी स्टैंड है।

ठहरने के लिए KMVN के टुरिस्ट रेस्ट हाउस सहित –  कुछ होटेल्स, lodges है।  मंदिर के अलग से रोड ढलान की ओर जाती हैं, इस जगह नाम गंगोलीहाट पड़ने का कारण और यहाँ का संक्षित इतिहास इस तरह हैं। 

सरयू गंगा तथा राम गंगा नदियों के मध्य स्थित होने के कारण इस क्षेत्र को पूर्वकाल में गंगावली कहा जाता था, जो धीरे धीरे बदलकर गंगोली हो गया। तेरहवीं शताब्दी से पहले इस क्षेत्र पर कत्यूरी राजवंश का शासन था। गंगोलीहाट इस गंगोली क्षेत्र का प्रमुख व्यापारिक केंद्र था, बाज़ार को जिसे स्थानीय बोली मे हाट कहते हैं। गंगोली के साथ साथ हाट –  जुड़कर इस क्षेत्र को नाम मिला गंगोलीहाट। 

तेरहवीं शताब्दी के बाद यहाँ मनकोटी राजाओं का शासन रहा, जिनकी राजधानी मनकोट में थी। सोलहवीं शताब्दी में कुमाऊँ के राजा बालो कल्याण चन्द ने मनकोट पर आक्रमण कर गंगोली क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। 

गंगोलीहाट की मुख्य सड़क से आधे से एक किलोमीटर की दूरी पर  रोड के बाद सड़क के किनारे वहाँ पार्क किए जा सकते हैं,यहाँ पर कई दुकाने हैं, जहां से मंदिर के लिए प्रसाद पुष्प आदि खरीदे जा सकते हैं। 

यहाँ से कुछ सीढ़िया उतर मंदिर तक पहुचा जा सकता हैं। पैदल मार्ग का एक बड़ा में टिन की चादरों से कवर्ड हैं और हाट कालिका मंदिर घिरा है, देवदार के छायादार और घने वृक्षों से। 

हजारों वर्ष पूर्व आदि गुरू शंकराचार्य बद्रीनाथ, केदारनाथ होते हुए, यहां पर आए तो उन्हें आभास हुआ कि यहां पर कोई शक्ति है, यहाँ मां ने कन्या के रूप में दर्शन दिया और कहाँ की उन्हे ज्वाला रूप से शांत रूप में ले आओ।  तब इस जगह माँ हाट कालिका – शक्तिपीठ की स्थापना इस जगह आदि गुरु शंकरायचार्य जी द्वारा हुई।

यह माना जाता है कि कोलकाता में माँ काली मंदिर मे विराजित महाकाली का ही शक्ति रूप  गंगोलिहाट मैं  हाट कालिका मंदिर में vidhyaman है,  गंगोलीहाट में स्थित हाट कालिका का मंदिर पुरे भारत के साथ-साथ भारतीय सेना बलों के बीच में भी प्रसिद्ध है|

मंदिर के मुख्य पुजारी, रावल परिवार से हैं, यहाँ के पुरोहित  पंत जी से मंदिर के बारे मे कुछ जानकरियाँ ली। 

भारतीय सेना के कुमाऊं रेजीमेंट के हाट कालिका से जुड़ाव के बारे में एक दिलचस्प कहानी है। “द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945) के समय एक बार भारतीय सेना का जहाज डूबने लगा। तब सैन्य अधिकारियों ने जवानों से अपने-अपने ईश्वर को याद करने का कहा, कुमाऊं के सैनिकों ने जैसे ही हाट काली का जयकारा लगाया वैसे ही जहाज किनारे आ गया।” तभी से कुमाऊं रेजीमेंट ने मां काली को आराध्य देवी के रूप मे मानता हैं।जब भी कुमाऊं रेजीमेंट के जवान युद्ध के लिए जाते हैं तो काली मां के दर्शन के बिना नहीं जाते हैं। हर वर्ष माघ माह में यहां पर सैनिकों और अधिकारी बड़ी संख्या मे दर्शन के लिए आते हैं, यहाँ बने कई धर्मशाले, मंदिर और रास्ते के  निर्माण मे स्थानीय लोगों, श्रीडालुओं के साथ भारतीय सेना से जुड़े लोगो का भी योगदान हैं। 

गंगोलिहाट से करीब 24 किलोमीटर दूर विश्व विख्यात पाताल भुवनेश्वर गुफा हैं, यहाँ कुछ अन्य गुफाये भी देखी जा सकती हैं – जिनमे हैं – शैलेश्वर गुफा “मुक्तेश्वर गुफा” भी प्रसिद्ध हैं और कुछ समय पूर्व जानकारी मे आई  गुफा – भोलेश्वर गुफा।  

गंगोलिहाट के समीपवर्ती  दर्शनीय स्थलों मे चौकोडी, पिथोरागढ़ , बेरीनाग, धौलछीना, जागेश्वर आदि हैं, कुछ दर्शनीय स्थलों  की  दूरी स्क्रीन मे देखी जा सकती हैं। 

गंगोलिहाट से नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर 162 किलोमीटर और काठगोदाम रेलवे 190 किलोमीटर हैं। नजदीकी  नैनी सैनी एयरपोर्ट पिथोरागढ़  84 किमी और पंतनगर हवाई अड्डा 223 किलोमीटर हैं। 

दिल्ली, देहारादून, लखनऊ और दूसरे बड़े शहरो से फिलहाल को सीधी बस सर्विस नहीं हैं,  यहाँ से गगोलिहाट आने के लिए  पहले हल्द्वानी पहुचना होगा, से 197 किलोमीटर दूर हैं, पहाड़ी मार्ग होने के कारण इस दूरी को तय करने मे 6 से 7 घंटे लगते हैं।

हल्द्वानी से रोडवेज़ की एक बस शेराघाट, गंगोलीहाट होते हुए पिथौरागढ़ तक जाती हैं, हल्द्वानी से गंगोलिहाट के लिए कुछ प्राइवेट बस सर्विस और shared टॅक्सी भी मिल जाती हैं। 

मंदिर के दर्शन करने और जानने के लिए देखें वीडियो:

शीतला देवी मंदिर दर्शन, रानीबाग, काठगोदाम, हल्द्वानी